By Vaishnav, For Vaishnav

Tuesday, 15 July 2025

व्रज - श्रावण कृष्ण षष्ठी

व्रज - श्रावण कृष्ण षष्ठी
Wednesday, 16 July 2025

सेहरा के श्रृंगार

विशेष –  आज श्रीजी को इस ऋतु का अंतिम सेहरे का श्रृंगार धराया जायेगा.

श्रावण कृष्ण अष्टमी से जन्माष्टमी की बधाई बैठेगी, प्रभु को बालभाव के श्रृंगार अधिक धराये जायेंगे और सेहरा कुमारभाव का श्रृंगार है अतः आज के बाद आश्विन नवरात्री तक श्रीजी को सेहरा नहीं धराया जाता. 

आज के दिन सखियों ने साकेत वन में प्रिया-प्रीतम को सेहरे का श्रृंगार धराकर हिंडोलना झुलाया था इस भाव से यह श्रृंगार धराया जाता है.

आज श्रीजी को अमरसी पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर अमरसी छज्जेदार पाग के ऊपर सेहरा धराया जायेगा. 

संध्या-आरती में कमलचौंक में श्री मदनमोहन जी केसरी सलमा सितारा के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सखी री सावन दूल्हे आयो l
शीश सहेरो सरस गजमुक्ता हीरा बहुत जरायो ll 1 ll
लाल पिछोरा सोहे सुन्दर सोवत मदन जगायो l
तेसीये वृषभान नंदिनी ललिता मंगल गायो ll 2 ll
दादुर मोर पपैया बोले बदरा बराती आयो l
‘सूरदास’ प्रभु तिहारे दरसकों दामिनी हरख दिखायो ll 3 ll  

साज – आज श्रीजी में साकेत वन में विवाह के भाव की लग्नमंडप के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्री ठाकुरजी के साथ श्री स्वामिनीजी एवं श्री यमुनाजी के सेहरे के श्रृंगार में दर्शन होते हैं और सखियाँ मंगल गीत गा रहीं हैं. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी मलमल का पिछोड़ा एवं राजशाही पटका धराया जाता है. पटका रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की बाहर की खिडकी की अमरसी छज्जेदार पाग के ऊपर हीरा व माणक का सेहरा धराया जाता है. 
बायीं ओर दो तुर्री, लूम रुपहली ज़री की एवं दायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली व कमल माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की थाग वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, फिरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फिरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी राग-रंग की आती है.

Monday, 14 July 2025

व्रज - श्रावण कृष्ण पंचमी

व्रज - श्रावण कृष्ण पंचमी
Thursday 25 July 2024

हरी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

विशेष – आज का श्रृंगार श्री ललिताजी की भाव से होता है. श्रीजी को नियम के हरी मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर जमाव का कतरा धराया जाता है.  
अनोसर में श्रीमस्तक पर धरायी पाग के ऊपर की सुनहरी खिड़की बड़ी कर के धरायी जाती है.

संध्या-आरती में कमलचौंक में श्री मदनमोहन जी चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

व्रज पर नीकी आजघटा l
नेन्ही नेन्ही बुंद सुहावनी लागत चमकत बीजछटा ll 1 ll
गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा l
तैसेई सुर गावत आतक पिक प्रगट्यो है मदन भटा ll 2 ll
सब मिलि भेट देत नंदलाल हि बैठे ऊंची अटा l
‘कुंभनदास’ गिरिधरन लाल सिर कसुम्भी पीत पटा ll 3 ll  

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की पठानी किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे मलमल का सुनहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक तथा सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की सुनहरी जरी की बाहर की खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तथा जमाव का कतरा सुनहरी तु्र्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं पीले पुष्पों की सुन्दर दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी लाल मीना की आती है. 
 अनोसर में पाग पे से सुनहरी खिड़की बड़ी करके धरायी जाती हैं.

Sunday, 13 July 2025

व्रज - श्रावण कृष्ण चतुर्थी

व्रज - श्रावण कृष्ण चतुर्थी 
Monday, 14 July 2025

देखो माई शोभा श्यामल तनकी।
मानों लई रसिक नंदनंदन सब गति नौतन धनकी।।१।।
निरख सखी नीलांबर को छोर।
झूम रह्ये सखी वदन चंदपें आई घटा घनघोर।।२।।

नील कुल्हे का श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को नियम का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को नील कुल्हे (गहरे आसमानी रंग की कुल्हे) धरायी जाती है और कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है. 

आज का उत्सव श्री यमुनाजी की ओर से होता है. श्री यमुनाजी और श्री गिरिराजजी के भाव से आज गहरे आसमानी रंग के वस्त्र एवं कुल्हे धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : मल्हार)

तेसीय हरित भूमि तेसीय बूढ़न शोभा तेसोई इन्द्र को धनुष मेहसों l
तेसीय घुमड़ घटा वरषत बूंदन तेसेई नाचत मोर नेह सों ll 1 ll
वृन्दावन सघन कुंज गिरीगहवर विरहत श्याम श्यामा सोहें दामिनी सं देहसों l
‘छीतस्वामी’ गुननिधान गोवर्धनधारी लाल मध्य तहां गान करत लाल तान गेहसों ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज गहरे आसमानी (शोशनी) रंग की मलमल की सुनहरी लप्पा (ज़री की तुईलैस की किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गहरे आसमानी (शोशनी) मलमल का सुनहरी लप्पा (ज़री की तुईलैस की किनारी) से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 
श्रीमस्तक पर नील कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर हीरा का शीशफूल, दो हीरा की तुर्री धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 स्वरुप की बायीं ओर मीना की शिखा (चोटीजी) धरायी जाती हैं. 
तुलसी व पीले पुष्पों की सुन्दर कलात्मक दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक भाभीजी वाले व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट आसमानी व गोटी राग-रंग की आती है.

Saturday, 12 July 2025

व्रज - श्रावण कृष्ण तृतीया

व्रज - श्रावण कृष्ण तृतीया 
Sunday, 13 July 2025

हिंडोलना रोपण के परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज का श्रीजी का श्रृंगार कल के श्रृंगार का परचारगी श्रृंगार है.

अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन उपरांत उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. 

इसमें सभी वस्त्र एवं श्रृंगार लगभग सम्बंधित उत्सव की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज अगर यहाँ बिराज रहे होवे तो (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं.

आज का श्रृंगार चन्द्रावलीजी की ओर से किया जाता है अतः कल के उलट वस्त्र पीले धराये जाते हैं और ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

चल सखी देखन नंद किशोर l
श्रीराधाजु संग लीये बिहरत रुचिर कुंज घन सोर ll 1 ll
उमगी घटा चहुँ दिशतें बरखत है घनघोर l
तैसी लहलहातसों दामन पवन नचत अति जोर ll 2 ll
पीत वसन वनमाल श्याम के सारी सुरंग तनगोर l
जुग जुग केलि करो ‘परमानंद’ नैन सिरावत मोर ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल का रुपहरी लप्पा का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं. कल ललिताजी की भावना से लाल वस्त्र धराये थे और आज के वस्त्र चन्द्रावलीजी की भावना से पीले होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के माणक के आभरण धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 
श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलड़ा धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर पीले रंग की (आसमानी बाहर की खिडकी की) छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, पन्ने की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक माणक व एक हीरा के) धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का, गोटी सोने की छोटी व आरसी सोने की डांडी की आती है. प्रातः श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की आती है.

Friday, 11 July 2025

व्रज - श्रावण कृष्ण द्वितीया

व्रज - श्रावण कृष्ण द्वितीया 
Saturday, 12 July 2025

हिन्डोलना रोपण

विशेष - श्रावण मास प्रारंभ हो चुका हैं.
आज प्रभु को हिंडोलना रोपण किया जायेगा. कल प्रभु को उष्णकाल के अंतिम मोती के आभरण धराये गये. आज से ठाड़े वस्त्र धराये जायेंगे. 

श्रावण मास में भगवान शंकर अपनी अर्धांगिनी माता पार्वतीजी के साथ पृथ्वी पर निवास करते हैं अतः इस मास में शिव की पूजा का विशेष महत्व है.

आज नियम का लाल पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर पाग व मोर-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चारोली (चिरोंजी) के लड्डू एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी का भोग अरोगाया जाता है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सखीरी सावन दूल्हे आयो l
चार मास के लग्न लिखाये, बदरन अंबर छायो ll 1 ll
बिजुरी चमके बगुआ बराती कोयल शब्द सुनायो l
दादुर मोर पपैया बोले इन्द्र निशान बजायो ll 2 ll
हरी हरी भूमि पर इन्द्रवधु सी रंग बिछोना बिछायो l
‘सूरदास’ प्रभु तिहारे मिलनको सखियन मंगल गायो ll 3 ll  

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव सोने के रखे जाते हैं. मात्र दो गुलाबदानी, माटी के झारीजी का पड़धा एवं त्रस्टीजी चांदी के रहते हैं. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. आज से चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट नहीं की जाती.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं. आज की सेवा ललिताजी एवं चन्द्रावली जी के भाव से होने के कारण लाल अनुराग के रंग के वस्त्र धराये जाते हैं. श्री स्वामिनीजी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
नीचे पदक,ऊपर हीरा, पन्ना,मानक मोती के हार,माला,दुलड़ा धराये जाते हैं.
 कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर लाल (हरी बाहर की खिडकी की) छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
रंग-बिरंगी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली की व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Thursday, 10 July 2025

व्रज - श्रावण कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - श्रावण कृष्ण प्रतिपदा
Friday, 11 July 2025

(अधरंग) पतंगी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर तुर्रा के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

व्रज पर नीकी आजघटा l
नेन्ही नेन्ही बुंद सुहावनी लागत चमकत बीजछटा ll 1 ll
गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा l
तैसेई सुर गावत आतक पिक प्रगट्यो है मदन भटा ll 2 ll
सब मिलि भेट देत नंदलाल हि बैठे ऊंची अटा l
‘कुंभनदास’ गिरिधरन लाल सिर कसुम्भी पीत पटा ll 3 ll  

साज – आज श्रीजी में (अधरंग) पतंगी रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज (अधरंग) पतंगी  धोती एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज ऊष्णकालीन हल्का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर (अधरंग) पतंगी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
 तुलसी एवं श्वेत पुष्पों वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. कली आदि माला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट राग रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

Wednesday, 9 July 2025

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा
Thursday, 10 July 2025

पिय बीन लागत बूंद कटारी ।
छिन भीतर छिन बाहिर
आवत छिन छिन चढत अटारी ।।१।।
दादुर मोर बपैया बोले कोयल कुंजे कारि ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन बीन दुख व्याप्यो मोहे भारी ।।२।।

कचौरी पूनम (गुरु पूर्णिमा)

विशेष - आज आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा है जिसे हम गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कचौरी पूनम के नाम से भी जानते हैं.

आज पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय के अलावा अन्य हिन्दू सम्प्रदायों के लोग अपने गुरु का दर्शन एवं पूजन करते हैं. पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में गुरु का पूजन पवित्रा एकादशी के दूसरे दिन अर्थात श्रावण शुक्ल द्वादशी को किया जाता है.

आज वेदव्यासजी का जन्मदिवस है और वेदव्यासजी भगवान विष्णु के अवतार हैं अतः पुष्टिमार्ग में देहरी-वन्दनमाल का क्रम होता है.

आज से ऊष्णकाल विदा हो जाता है. प्रभु सेवा में ठाड़े वस्त्र आरम्भ हो जाते हैं. चंदन बरनी पर श्वेत के स्थान पर लाल वस्त्र चढ़ाया जाता है.
चंदवा एवं टेरा आज से रंगीन बदले जाते हैं.

आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 
अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण दशमी तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 
जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 
जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 
जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

भोग विशेष - श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चारोली (चिरोंजी) के लाटा के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
चारोली (चिरोंजी) के लाटा के लड्डू वर्ष भर में श्रीजी को एक बार ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आरोगाये जाते हैं. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

आज श्री नवनीतप्रियाजी को विशेष रूप से पलना के भोग में जोटापूड़ी (पतली पूड़ी) के स्थान पर एवं संध्या-आरती में भी फीके के स्थान पर उड़द की दाल की कचौरी अरोगायी जाती है. 
अधिकतर पुष्टिमार्गीय मंदिरों में आज के दिन ठाकुर जी को कचौरी अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

अरी इन मोरन की भांत देख नाचत गोपाला ।
मिलवत गति भेदनीके मोहन नटशाला ।।१।।
गरजत धन मंदमद दामिनी दरशावे ।
रमक झमक बुंद परे राग मल्हार गावे ।।२।।
चातक पिक सधन कुंज वारवार कूजे ।
वृंदावन कुसुम लता चरण कमल पूजे ।।३।।
सुरनर मुनि कामधेनु कौतुक सब आवे ।
वारफेर भक्ति उचित परमानंद पावे ।।४।।

साज – श्रीजी में आज वर्षाऋतु के आगमन पर चमकती बिजली, वन खड़े में ग्वाल-बाल, गायें एवं हिरणों के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल चूंदड़ी का सूथन, छोटी काछनी लाल एकदानी चूंदड़ी की रूपहरी किनारी की एवं बड़ी काछनी श्याम रंग की सुनहरी किनारी तथा लाल रंग की एकदानी चूंदड़ी का रास-पटका धराया जाता है. सूथन तथा रास-पटका के ऊपर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी शोभित है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं. आज से प्रतिदिन ठाड़े वस्त्र धराये जाएंगे.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मोती का सुन्दर मुकुट तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हे बध्धी धरायी जाती हैं.
नीचे पदक,ऊपर हरी मणी की माला धरायी जाती हैं.
मोती की शिखा (चोटी) और श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
राजभोग में मोती का चोखटा आता हैं.
पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी जड़ाव मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत रंग का सुनहरी किनारी का और गोटी मोती की धरायी जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में  एक झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दाँडी की आती है.

व्रज - श्रावण कृष्ण षष्ठी

व्रज - श्रावण कृष्ण षष्ठी Wednesday, 16 July 2025 सेहरा के श्रृंगार विशेष –  आज श्रीजी को इस ऋतु का अंतिम सेहरे का श्रृंगार धराया जायेगा. श्...