By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 31 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी 
Sunday, 01 September 2024

क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।

श्री काका-वल्लभजी ने यह श्रृंगार श्री गोविन्दस्वामी के उपरोक्त पद के आधार पर किया था 
आज के श्रृंगार की यह विशेषता है कि वर्षभर में केवल आज ही के दिन कुल्हे और वस्त्र अलग-अलग रंग के होते हैं. 

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव है. 
आपका जन्म विक्रम संवत 1703 में गोकुल में हुआ था. 

आप टिपारा वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी विट्ठलेशरायजी के सबसे छोटे पुत्र एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरजी महाराज (जिन्होंने श्रीजी को व्रज से मेवाड़ में पधराये) के काकाजी थे. 
आपके 68 वचनामृत बहुत प्रसिद्ध हैं. 
आपने महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य के ग्रंथ सुबोधिनीजी' पर "व्याख्यात्मक निबन्ध" लिखा इसीलिए आप 'श्री वल्लभजी लेखवाले' के नाम से जानें गए ।

आपने व्रज से मेवाड़ पधारते समय श्रीजी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न हो कर श्रीजी ने उनको आज्ञा करके स्वयं के श्रृंगार धरवाये. 
मेवाड़ पधारने के बाद आपने श्रीजी को आज का पीत पिछोड़ा एवं लाल कुल्हे का श्रृंगार धराया. तब से यह श्रृंगार प्रतिवर्ष आज के दिन होता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।

साज - श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज रुपहली किनारी से सुसज्जित पीले मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, रुपहली घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी भी धरायी जाती है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फ़िरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट पीला, गोटी राग-रंग की एवं आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Friday, 30 August 2024

व्रज – भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी
Saturday, 31 August 2024

गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी तकिया के ऊपर सफेद मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर श्वेत मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा,लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और वेत्रजी धराये जाते हैं.. 
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

Thursday, 29 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी 
Friday, 30 August 2024

वत्स द्वादशी (बच्छ बारस)

ऐसा कहा जाता है कि जब प्रभु श्रीकृष्ण अढाई वर्ष के थे तब आज के दिन ही यशोदाजी ने भी गाय और बछड़े का पूजन कर शगुन के रूप में उनको वन में बछड़े चराने को भेजा था. 
इस कारण से आज का दिवस वत्स द्वादशी कहलाता है. 

इसके अतिरिक्त लाला अक्षय तृतीया को अपने मुंडन के दिवस भी वन में गौ-चारण को गये परन्तु भीषण गर्मी से बेहाल प्रभु को थोड़े ही समय में लौट कर आना पड़ा. 
यह प्रसंग मैं अक्षय तृतीया को बता चुका हूँ. 
यद्यपि लाला ने यथाविधि गौ-चारण गोपाष्टमी के दिवस से प्रारंभ किया था और उसी दिन से गोपाल कहाए थे.

गुजरात में गौ-वत्स द्वादशी दीपावली के पहले आने वाली कार्तिक कृष्ण द्वादशी को होती है.

श्रीजी में सेवाक्रम - आज श्रीजी को नियम की गौ पूजन की पिछवाई, लाल चौफूली चूंदड़ी की लाल गोल-काछनी, सूथन और श्रीमस्तक पर हीरा की तिलक वाली टोपी धरायी जाती है.

बालभाव के कीर्तन गाये जाते हैं जिसमें गौ-पूजन को जाते बालक श्री श्यामसुंदर के श्रृंगार, सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों एवं यशोदाजी के बड़े भाग्य का अद्भुत वर्णन किया गया है. 
नीचे वर्णित कीर्तन को भावपूर्वक पढ़ें और सुन्दर शब्दों को समझने का प्रयास कर उनका आनंद लें. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ठाडी लिये खिलावत कनियां l
प्रेममुदित मन गावत यशोदा हरि लीला मोहनियां ll 1 ll
काजर तिलक पीत तन झगुली कणित पाई पैजनिया l
हंसुली हेम हमेल बिराजत झर झटकन मनि मनिया ll 2 ll
हुलरावति हसि कंठ लगावत प्रीति रीति अति धनियां l
चुंबत मुख ‘रघुनाथदास’ बलि बड़ भागिन नंद रनियां ll 3 ll

साज – नन्दभवन की तिबारी में बछड़े सहित गाय का तिलक कर पूजन करती श्री यशोदा माँ, रोहिणी माँ तथा दूसरी ओर गायों के साथ ग्वाल-बालों के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की चौफूली चुन्दडी के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन एवं गोल काछनी (मोर काछनी) धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी एवं कमल माला आती है.
श्रीमस्तक हीरा की टोपी तिलक व फूंदा वाली पर जाली(net) की तीन तुर्री और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं एवं स्वरुप की बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व एक सोना के) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी मोर की व आरसी बावा साहब द्वारा पधराई कांच के कलात्मक काम की आती है.

Wednesday, 28 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण एकादशी (अजा एकादशी)

व्रज - भाद्रपद कृष्ण एकादशी (अजा एकादशी)
Thursday, 29 August 2024

आज अजा एकादशी हैं. महापापी अजामिल के प्रसंग में प्रभु के जीव पर अनुग्रह को आत्मसात करे.

अजा एकादशी

विशेष – महापापी अजामिल जिसने अपने अंतिम समय में अपने स्वयं के पुत्र ‘नारायण’ के नामोच्चारण के निमित प्रभु का नाम उच्चारण किया था. प्रभु की दयालुता देखें कि केवल अंत समय में ‘नारायण’ के नाम के उच्चारण मात्र से उन्होंने आज के दिन अपने देवदूत भेज अजामिल पर अनुग्रह कर उसका उद्धार किया था. प्रभु ने यह अपना अनुग्रह प्रकट करने के लिए किया इसी लिए कहते हे की प्रभु कर्तुम अकर्तुम अन्यथाकर्तुम सर्वसमर्थ है।आज की एकादशी उसी अजामिल के नाम से अजा एकादशी कहलाती है.
ये अध्याय से यह सीख मिलती है कि  हम सब पुष्टि वैष्णवो को ठाकुरजी की सेवा और नाम किर्तन सतत अंतिम श्र्वास तक करना है , कितनी भी विषम परिस्थिति हमारे जीवन में क्यों न आए ? 
ठाकुरजी की सेवा और ठाकुरजी से स्नेह यही पुष्टि जीव का लक्ष्य होना चाहिए ।
मनुष्य चाहे जितना बड़ा पापी हो , चाहे जितना नि:साधन हो ; यदि सच्चे ह्रदय से एकबार भी प्रभु की शरण स्वीकार ले तो प्रभु उसको " स्वजन " मान लते हैं . इसीलिए महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी  ने "कृष्णाश्रयस्तोत्र" में कहा हैं :-

"पापसक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम" 

भावार्थ :- सुखी हो या दु:खी , पापी हो या निष्पाप , धनवान हो या निर्धन , साधन-सम्पन्न हो या नि:साधन ; सभी को श्रीकृष्ण की शरण में ही जाना चाहिए .
          सब देवें के देव , सर्वशक्तिमान , सर्वकारण ऐसे श्रीकृष्ण को छोड़ कर अन्य किसी की शरण में क्यों जाएँ ?
      इसीलिए पुष्टिमार्ग श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति का मार्ग 
दिखाता/सिखाता है .

आज से अमावस्या तक प्रभु को बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं बाल-लीला के ही अद्भुत पद गाये जाते हैं. 

आज श्रीजी प्रभु को नियम से यह हल्का श्रृंगार धराया जाता है जिसमें लाल पिछोड़ा, जन्माष्टमी वाला केसरी गाती का पटका, श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर पन्ना की गोटी लूम की रुपहली किलंगी धरायी जाती है. नन्दउत्सव के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है. 

जन्माष्टमी के उपरांत आज मंगला के पश्चात सभी साज पर सफेदी चढ़े. टेरा, चौरसा आदि सभी नित्य के आ जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन : (राग – सारंग)

जब मेरो मोहन चलेगो घुटुरुवन तब हो री करोंगी वधाई l
सर्वसु बारि देहूंगी तिहि छिनु मैया कहे तुतुराई ll 1 ll
यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l
नंद सुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंदललाई ll 2 ll

साज – नन्दभवन में बधाई देने एवं दर्शन करने को आये व्रजभक्तों की भीड़ एवं दूसरी ओर छठी पूजन और लालन को पलना झुलाते नंदबाबा और यशोदाजी के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में आती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पड़घा, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा (षष्ठी उत्सव वाला) धराया जाता है. जन्माष्टमी वाला केसरी रंग का गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सुवापंखी हरे (तोते के पंखों के जैसे हल्के हरे) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती तथा सोने के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, पन्ना की गोटी, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हालरा बघनखा और हमेल धराये जाते हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. 

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी चांदी की आती है.

Tuesday, 27 August 2024

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी
Wednesday, 28 August 2024

जन्माष्टमी का परचारगी श्रृंगार

विशेष – जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं. प्रथम बधाई का श्रृंगार श्री यमुनाजी के भाव से, दूसरा जन्माष्टमी के दिन श्री राधिकाजी के भाव से, तीसरा नन्द महोत्सव का श्री चन्द्रावलीजी के भाव से और चौथा आज का श्री ललिताजी के भाव से होता है. 

आज श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार  पिछली कल की भांति ही होते हैं. 
इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है. 

परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी अगर उपस्थित  हो तो श्रीजी  के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं.

कल नन्दोत्सव से अमावस्या तक प्रभु की बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं कीर्तनों में बाल-लीला के ही पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालिन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गोदान l
गोकुल मंगल महामहोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंद गोप के लाल ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग के  जामदानी के, रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशमी सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं. आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का दो जोड़ (विगत कल चार जोड़) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे और माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जड़ाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर हीरे का चौखटा धराया जाता है.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी हीरे के आते हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में स्वर्ण की बड़ी डाँडी की आती  है.

Monday, 26 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी
Tuesday, 27 August 2024      

नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की l
हाथी दीने, घोड़ा दीने और दीनी पालकी ll

सभी वैष्णवों को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व नन्द महोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

नंद महोत्सव

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l

आज की Post को गत रात्रि से प्रारंभ करता हूँ. गत रात्रि शयनभोग अरोगकर प्रभु रात्रि लगभग 9.30 बजे जागरण में बिराज जाते हैं. 
रात्रि लगभग 11.45 को जागरण के दर्शन बंद होते हैं, भीतर रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है. 

श्रीजी में जन्म के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते जबकि श्री नवनीतप्रियाजी में जन्म के दर्शन सीमित व्यक्तियों को होते हैं.

प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं. 

रात्रि 12 बजे पश्चात जन्म के समय श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के तृतीय अध्याय के साढ़े आठ श्लोक तीन बार बोल कर निज मन्दिर के पट खुलते हैं.
शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है. 

श्रीजी में प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, तदुपरांत महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, कई प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं. 

प्रातः लगभग 5.30 बजे महाभोग सराये जाते हैं. भोग सरे पश्चात नन्दबाबा (श्रीजी के मुखियाजी), यशोदाजी (श्री नवनीतप्रियाजी के मुखियाजी), गोपियों एवं ग्वाल (श्रीजी व नवनीतप्रियाजी के सेवक व उनके परिवारजन) को गहनाघर, दर्ज़ीखाना, उस्ताखाना आदि के सेवक तैयार करते हैं. 

अनोसर नहीं होने से श्रीजी में जगावे के कीर्तन नहीं गाये जाते. 
महाभोग सराने के पश्चात झारीजी नई आती है और श्रीकंठ में मालाजी नई धराई जाती हैं एवं आरसी चार झाड़ की आती है.
इसके अलावा नंदमहोत्सव मे श्रृंगार, वस्त्र, साज़ इत्यादि जन्माष्टमी के दिन वाले ही रहते है. 

प्रातः लगभग 6.30 बजे नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी लालन में छठी पूजन को पधारते हैं और छठी पूजन के उपरांत पूज्य श्री तिलकायत श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी में पधराते हैं.
नंदबाबा व यशोदाजी श्रीजी के सम्मुख सोने के पलने में प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को झुलाते है.

नंदमहोत्सव के भोग में पलने की दाई तरफ रंगीन वस्त्र से ढँक कर दूधघर एवं खांडघर की सामग्री, माखन मिश्री तथा पंजीरी धरी जाती है वहीँ पलने की बायीं ओर पडघा के ऊपर झारीजी पधराये जाते है.
१२ बिड़ी अरोगाई जाती हैं और चार आरती करके न्योछावर करके राई लोन (नमक) से नज़र उतारी जाती हैं.
 
सभी भीतरिया, अन्य सेवक व उनके परिवारजन गोपियाँ ओर ग्वाल-बाल का रूप धर कर मणिकोठा में घेरा बनाकर नाचते-गाते हैं और दर्शनार्थी वैष्णवों पर हल्दी मिश्रित दूध-दही का छिडकाव करते हैं.

कीर्तन – (राग : सारंग)

हेरि है आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

कीर्तन – (राग : सारंग) 

आज महा मंगल मेहराने l
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बैरख बाने ll 1 ll
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll 

सभी वैष्णव नाचते, गाते आनंद से "लालो आयो रे...लालो आयो रे" गाते हैं.
नंदमहोत्सव के दर्शन लगभग 11 बजे तक खुले रहते हैं व दर्शन के उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी अपने घर पधारकर मंगलभोग अरोगते हैं. 
वहीँ दूध-दही से सरोबार मणिकोठा, डोल-तिबारी रतन-चौक, कमल-चौक सहित पूरे मंदिर को जल से धोया जाता है.

नंदमहोत्सव के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत एवं श्री विशालबावा, नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी को कीर्तन समाज व ग्वाल-बाल की टोली के साथ श्री महाप्रभुजी की बैठक में पधराते हैं

मंगला के दर्शन लगभग 12.15 बजे खुलते हैं. आज के दिन मंगला और श्रृंगार दोनों दर्शन साथ में होते हैं. उसी दर्शन में केवल टेरा लेकर मालाजी धरायी जाती है और श्रृंगार के कीर्तन गाये जाते हैं. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को कूर के गुंजा, कठोर मठड़ी, सेव के लड्डू व दूधघर में सिद्ध बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

ग्वाल दर्शन नहीं खोले जाते व राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2.15 बजे खुलते हैं. आगे का क्रम अन्य दिनों के जैसे ही होता है. 

राजभोग से शयन तक सभी समां में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. 
जन्माष्टमी के दिन धराया हुआ श्रृंगार आज शयन मे बड़ा होता है.

Sunday, 25 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी
Monday, 26 August 2024

सभी वैष्णवजन को प्रभु के आगमन की ख़ूब ख़ूब बधाई

जय श्री कृष्ण 

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

सेवाक्रम – आज का उत्सव महा-महोत्सव कहलाता है. पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए यह महोत्सव सबसे अधिक महत्व का होता है. 

बीच में एक बात... 

कुछ वैष्णवों ने पूछा था कि प्रभु का जन्म रात्रि को होता है तो पंचामृत स्नान प्रातः क्यों होता है ?

-आज प्रभु को उनके जन्मदिन के महात्म्य स्वरूप यशोदोत्संगलालित स्वरूप के आधार रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण के रूप में पंचामृत स्नान कराया जाता है.
रात्रि को प्रभु जन्म उपरांत तो श्री बालकृष्णलालजी के स्वरुप को पंचामृत होता है.

कुछ का प्रश्न यह भी था कि प्रभु जन्म के शुभ दिन फलाहार करना कैसे उचित है ?

- पुष्टिमार्ग में चारों जयंतियों (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीरामनवमी, श्री वामन द्वादशी व श्री नृसिंह जयंती) के दिन फलाहार किया जाता है.
इसका भाव यह है कि जब हम प्रभु के सम्मुख जाएँ अथवा प्रभु हमारे घर पधारें तब तन, मन से शुद्ध हों और आयुर्वेद में भी कहा गया है कि उपवास अथवा फलाहार से तन व मन की शुद्धि होती है.

पंचामृत को दर्शन के पश्चात् श्रीजी के पातलघर से सभी वैष्णवों को वितरित किया जाता है जिसे प्रभु प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.

श्रृंगार काफी देर से लगभग 9.30 बजे खुलते हैं क्योंकि पंचामृत स्नान के पश्चात प्रभु स्वरुप अत्यधिक चिकना हो जाता है. साथ ही आज का श्रृंगार, आभरण आदि भी अत्यधिक भारी में भारी होते हैं (जिनका वर्णन आगे इसी post में है). 

श्रृंगार दर्शन में श्रीजी को तिलक एवं अक्षत किया जाता है, भेंट रखी जाती है. इस दौरान शंख, झालर, धंटा आदि बजाये जाते हैं और वैष्णव मंगलगान गाते हैं. 
प्रभु के सम्मुख हल्दी से चौक पुराया जाता है. राई, लोन से प्रभु की नज़र उतारी जाती है. 

श्रीजी के मुख्य पंड्याजी वर्षपत्र पढ़ते हैं.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त चन्द्रकला एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, चार प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी भोग में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. राजभोग दर्शन लगभग 12.30 को खुलते हैं.

संध्या आरती में जयंती के फलाहार के रूप में मलाई की बासोंदी और खोवा और फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा आरोगाया जाता है.

संध्या-आरती दर्शन लगभग रात्रि 7.30 बजे खुलते हैं और लगभग रात्रि 8.30 बजे से जागरण के दर्शन होते हैं जो कि रात्रि लगभग 11.45 तक खुले रहते हैं.

तदुपरांत रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है.

प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं. 

प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.
 महाभोग की सखड़ी में राजभोग की भांति सखड़ी की सामग्री, पांचभात, मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.

वैष्णवों के घर श्री ठाकुरजी को शयन पश्चात पोढ़ा दिया जाता है और जागरण नहीं किया जाता. नवमी के दिन श्री ठाकुरजी को जगाकर, मंगल भोग धर कर, सरा कर श्रृंगार किया जाता है. राजभोग में अदकी सामग्रियां धर कर पलने में झूला कर नन्दोत्सव मनाया जाता है परन्तु मंदिरों – हवेलियों आदि में अष्टमी के रात्रि को महाभोग, नवमी के दिवस प्रातः नन्दोत्सव, इसके पश्चात मंगला, श्रृंगार एवं राजभोग आदि का सेवाक्रम किया जाता है. 
इस उत्सव में सेवाक्रम मंदिरों में और वैष्णवों के घरों में थोड़ा अलग-अलग होता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. लाल रंग का पीताम्बर चौखटे के ऊपर धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी से भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के तीन जोड़ी के हीरा, पन्ना एवं माणक नवरत्नों के आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे तेरह पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक एवं मोती के हार, माला आदि धराये जाते हैं.
हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं. वैजयंतीमाला धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जमाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मानक की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. प्रभु के मुखारविंद पर केशर से कपोलपत्र किये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में उस्ताजी की बड़ी दिखाई जाती है.

जागरण कीर्तन – (राग : मालव)

 पद्म धर्यो जन ताप निवारण ।
चक्र सुदर्शन धर्यो कमल कर भक्तनकी रक्षा के कारण ॥१॥
शंख धर्यो रिपु उदर विदारन गदाधरी दुष्टन संहारन ।
चारौ भुजा चारौ आयुध धरे नारायण भुव भार उतारन ॥२॥
दीनानाथ दयाल जगत गुरू आरति हरन  चिंतामनि ।
परमानंद दासकौ ठाकुर यह औसर छांडो जिन किनि ॥३॥

Saturday, 24 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी (षष्ठी क्षय)

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी (षष्ठी क्षय)
Sunday, 25 August 2024

षष्ठी उत्सव

“षष्टी देवी नमस्तुभ्यं सूतिकागृह शालिनी l
पूजिता परमयाभक्त्या दीर्घमायु: प्रयच्छ मे ll”  

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है पर आज श्री यशोदाजी के भाव से भावित साज आता है. 

साज, पिछवाई, खण्डपाट, ठाड़े वस्त्र सभी पीले रंग के आते हैं. इसका यह भाव है कि माता यशोदाजी पीले वस्त्र धारण कर लाला को गोद में ले कर छठ्ठी पूजन करने विराजित है. 
इसी प्रकार प्रत्येक उत्सव के एक दिन पहले पन्ना एवं मोती के आभरण धराये जाते हैं परन्तु आज हीरे-मोती के आभरण धराये जाते हैं. इस प्रकार आज अनोखा-अद्भुत भावभावित श्रृंगार धराया जाता है.

भोग – आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरिया घेवर अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन - 
कीर्तन – (राग : देवगंधार)

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l
व्रज पूरव पूरे पुन्य रुपी कुल, सुथिर थुनी, ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि, कीनी वेद ध्वनी ll 1 ll  
सुनि धाई सबे व्रजनारी, सहज सिंगार कियें, तन पहेरे नौतन चीर, काजर नैन दिये l
कसि कंचुकी तिलक लिलाट, शोभित हार हिये, कर कंकण कंचन थार, मंगल साज लिये ll 2 ll....अपूर्ण

कीर्तन – (राग : सारंग)

घरघर ग्वाल देत हे हेरी l
बाजत ताल मृदंग बांसुरी ढ़ोल दमामा भेरी ll 1 ll
लूटत झपटत खात मिठाई कहि न सकत कोऊ फेरी l
उनमद ग्वाल करत कोलाहल व्रजवनिता सब घेरी ll 2 ll
ध्वजा पताका तोरनमाला सबै सिंगारी सेरी l
जय जय कृष्ण कहत ‘परमानंद’ प्रकट्यो कंस को वैरी ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल रंग का डोरिया का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छेड़ान का  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली एवं ऊपर मोतियों की माला धरायी जाती हैं.
त्रवल नहीं धरावें परन्तु हीरा की बघ्घी धरायी जाती है.
गुलाब के पुष्पों की एक मालाजी एवं दूसरी श्वेत पुष्पों की कमल के आकार की मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
 आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Friday, 23 August 2024

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी
Saturday, 24 August 2024

विशेष – जन्माष्टमी के पूर्व श्रीजी को घर के श्रृंगार धराये जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ भी कहा जाता है.
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को हरा सफ़ेद लहरिया और श्रीमस्तक पर पाग और सुनहरी जमाव का कतरा धराया जाता है. 
आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
आज श्रीजी में जन्माष्टमी की पानघर की सेवा की जाती हैं.
आज प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी (मेवा मिश्रित खस्ता ठोड़) अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज - श्रीजी में आज हरे-श्वेत रंग के लहरिया की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज हरे-श्वेत लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
माणक तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे-सफेद लहरिया की पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सुनहरी जमाव का कतरा एवं सुनहरी तुर्री तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मानक के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में हार एवं दुलड़ा धराया जाता हैं.
पीले पुष्पों की विविध रंग की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है एवं इसी प्रकार की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट शतरंज का हरा एवं गोटी स्वर्ण की शतरंज की धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है.

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी  Friday, 07 March 2025 होलकाष्टकारंभ विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने व...