By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 31 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल नवमी
Monday, 01 September 2025

व्रज में रतन राधिका गोरी ।
हर लीनी वृषभान भवनतें नंद सुवन की जोरी ।।१।।
ग्रथित कुसुम अलकावली की छवि अरु सुदेश करडोरी ।
पिय भुज कन्ध धरें यों राजत ज्यों दामिनी घनसोंरी ।।२।।
कालिंदी तट कोलाहल सघन कुंजवन खोरी ।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर नागर नागरी नवल किशोरी ।।३।।

राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को राधाष्टमी का परचारगी श्रृंगार धराया जायेगा. परचारगी श्रृंगार में श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं, केवल पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है और आभरण कुछ कम होते हैं. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.आज तकिया के खोल एवं साज जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी में सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है.

परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी चिरंजीवी श्री विशाल बावा होते हैं. यदि वे उपस्थित हों तो श्रीजी के श्रृंगारी वही होते हैं. 

जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं परन्तु श्री राधिकाजी प्रभु की अर्धांगिनी हैं अतः इस भाव से राधाष्टमी के श्रृंगार दो बार ही होते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मैं देखी सुता वृषभान की l
जननी संग आई व्रज रावरी शोभा रूप निधान की ll 1 ll
नेंक सुभायते भृकुटी टेढ़ी बेनी सरस कमानकी l
नैन कटाक्ष रहत चितवतही चितवनि निपट अयानकी ll 2 ll
पग जेहरी कंचन रोचनसी तनकसी पोहोंची पानकी l
खगवारी गले द्वै लर मोती तनक तरुवनी कानकी ll 3 ll
लै बैठी हंसि गोद जसोदा मनमें ऐसी बानकी l
‘सूरदास’ प्रभु मदनमोहन हित जोरी सहज समान की ll 4 ll    

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.
नीचे आठ पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार एवं माला धराए जाते हैं.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Saturday, 30 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल अष्टमी
Sunday, 31 August 2025

आज वधाई है बरसाने ।
पंच शब्द बाजे सुनि सुर मुनि देखन मन तरसाने ।।१।।
कीरति कूखि चंद्रमा प्रगटी श्रीराधाजु पग दरसाने ।
ललित निकुंज बिहारीन के ऊर रहे रूप सरसाने ।।२।।

सभी वैष्णवजन को स्वामिनीजी के आगमन की ख़ूब ख़ूब बधाई

जय श्री कृष्ण 

राधाष्टमी 

आज  ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खुलते गोपी वल्लभ (ग्वाल) के भोग सरे पश्चात स्वामिनीजी के शृंगार धराए जाते हैं.
मालाजी नवीन धरायी जाती हैं.
प्रभु के मुखारविंद पर (ऊबटना) चंदन से कपोलपत्र मांड़े जाते हैं. गुलाल,अबीर,चंदन,चोवा से सूक्ष्म खेल होवे फिर जड़ाऊ आरसी दिखा कर प्रभु श्री गोवर्धनधरण को कुंकुम-अक्षत से तिलक करके आरती करी जाती हैं.
शंख, झालर, घंटानाद के द्वारा स्वामिनीजी के आगमन का स्वागत किया जाता हैं.
तदुपरांत उत्सव भोग धरे जाते हैं जिसमें विशेष रूप से पंजीरी के लड्डू, छुट्टीबूंदी, खस्ता शक्करपारा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), सफ़ेद-केसरी मावा की गुंजिया, केशरयुक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, रवा की खीर, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, और विविध प्रकार के संदाना अरोगाये जाते हैं.
साथ ही श्रीजी को श्री नवनीतप्रियाजी, द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के घर से सिद्ध होकर आये पंजीरी के लड्डू भी अरोगाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नियम से केसरी जामदानी के वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोरर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी एवं शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. 

उत्थापन समय फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

भोग-आरती के दर्शन में ढाढ़ी-ढाढन (नाच-गा कर बधाई देने वाले) आते हैं एवं मणिकोठा में हो रहे कीर्तन के दौरान दोनों नृत्य करते हैं. 
ढाढ़ीलीला होती है, ढाढ़ीलीला के पद गाये जाते हैं. इसके पश्चात दोनों को बधाई स्वरुप दान दिया जाता है.

ढाढ़ी-ढाढन दोनों पुरुष ही होते हैं. पिछले कई वर्षों से ढाढ़न के रूप में बुरहानपुर (महाराष्ट्र) के परम वैष्णव श्री बलदेवभाई सुन्दर स्त्रीवेश धर कर श्रीजी के समक्ष नृत्य करते हैं.

शयन समय डोल-तिबारी में ध्रुव-बारी के पास में प्रिया-प्रीतम के भाव से बिछायत होती है, कांच का बंगला धरा जाता है एवं विविध सज्जा की जाती है जो कि अनोसर में भी रहती है और अगले दिन शंखनाद पश्चात हटा ली जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

प्रगट भई रावल श्री राधा।।
सुनि धाई व्रजपुरकी वनिता निरखत सुंदर रूप अगाधा।।1।।
तब वृषभान दान बहु दीने जाचककी सब पूजी साधा। 
द्वारिकेस स्वामिनी महिमा मुनिमन ध्यान लगाय समाधा।।2।।

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज वृषभान के आनंद l
वृंदाविपिन विहारिनि प्रगटी श्रीराधाजु आनंद कंद ll 1 ll
गोपी ग्वाल गाय गो सुत लै चले यशोदा नंद l
नंदी सुरर तें नाचत गावत आनंद करत सुछंद ll 2 ll
लेत विमल यश देत वसन पशु धरत दूब शिरवृंद l
लोचन कुमुद प्रफुल्लित देखियत ज्यों गोरी मुखचंद ll 3 ll
जाचक भये परमधन कहियत गोधन सुधा अमंद l
भये मनोरथ ‘व्यास’ दासके दूरि गए दुःख द्वंद ll 4 ll

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली (जन्माष्टमी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली रुपहली फूल वाली किनारी से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का दो जोड़ का हीरा एवं माणक भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा- हीरे, मोती, माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. मुखारविंद पर चंदन से कपोलपत्र किये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि मालाजी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
आज मोती का कमल धराया जाता हैं.
हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Friday, 29 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
Saturday, 30 August 2025

 राधाष्टमी के आगम का श्रृंगार 

विशेष - कल राधाष्टमी का उत्सव है अतः आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादा मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 

प्रभु को यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

धनि धनि प्रभावती जिन जाई ऐसी बेटी धनि धनि हो वृषभान पिता l
गिरिधर नीकी मानी सो तो तीन लोक जानी उरझ परी मानों कनकलता ll 1 ll
चरन गंगा ढारों मुख पर ससि वारों ऐसी त्रिभुवनमें नाहिन वनिता l
‘नंददास’ प्रभु श्याम बस करनको श्यामाजु के तोले नावे सिन्धु सुता ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की गईं है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच तथा मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराया है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली चार सुन्दर मालाजी धरायी हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये हैं.
पट लाल, गोटी स्वर्ण की छोटी व शृंगार में आरसी सोने की आती है.

Thursday, 28 August 2025

व्रज - भाद्रपद शुक्ल षष्ठी

व्रज - भाद्रपद शुक्ल षष्ठी
Friday, 29 August 2025

सभी वैष्णवजन को श्रीललिताजी के उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई
 
बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव

श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.  

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी शारदा कन्या जाई l
भादों सुदि षष्ठी है शुभ नक्षत्र वर आई ll 1 ll
भेरि मृदंग दुंदुभी बाजत नंदकुंवर सुखदाई l
गोपीजन प्रफुल्लित भई गावत मंगल गीत बधाई ll 2 ll
नामकरनको गर्ग पराशर गौतम वेद पढ़ाई l
दीने दान पिता विशोकजु नारद बीन बजाई ll 3 ll
आभूषण पाटंबर बहुविध गो भू दान कराई l
नंदराय वृषभानराय मीली विशोक ही देत बधाई ll 4 ll
सकल सुवासिनी धरत साथिये कीरति पंजरी धाई l
'व्रजपति' की स्वामिनी यह प्रगटी ललिता नाम धराई ll 5 ll

साज – श्रीजी में आज पंचरंगी लहरिया की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के होते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है. त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणु, वेत्र (व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की व राजभोग में सोना की डाँडी की आती  है.

Wednesday, 27 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण पंचमी
Thursday, 28 August 2025

श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव, नील-पीत के पगा, पिछोड़ा का श्रृंगार

विशेष – आज राधिकाजी की परमसखी श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव है. आज से राधाष्टमी की चार दिवस की झांझ (एक प्रकार का वाध्य) की बधाई बैठती है.

श्री विट्ठलनाथजी (गुसांईजी) श्री चन्द्रावलीजी का प्राकट्य स्वरुप है. श्री चन्द्रावलीजी का उत्सव स्वामिनीजी के उत्सव की भांति मनाया जाता है. 

आपका स्वरुप गौरवर्ण है अतः आज हाथीदांत के खिलौने और श्वेत वस्तुएं श्रीजी के सम्मुख श्री चन्द्रावलीजी के भाव से धरी जाती है. ( विस्तुत जानकारी अन्य आलेख में)

इसी भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज श्रीजी को नील-पीत के वस्त्र एवं ग्वाल-पगा का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में यह श्रृंगार आज ही धराया जाता है जिसमें नीले (मेघश्याम) रंग के हांशिया वाले पीले रंग के पगा, वस्त्र और पिछवाई धरायी जाती है. पगा पर नीले रंग की बिंदी होती है.

निम्नलिखित कीर्तन के आधार पर आज का यह श्रृंगार धराया जाता है.

किशोरीदास छाप का यह कीर्तन आज श्रीजी में गाया जाता है.

हो व्रज बासन को मगा l
वल्लभराज गोप कुल मंडन ईन दे घर को जगा ll 1 ll
नंदराय ऐक दियो पिछोरा तामे कनक तगा l
श्री वृषभान दिये कर टोडर हीरा जरत नगा ll 2 ll
किरत दई कुंवरि की झगुली जसुमत सुत को जगा l
‘किशोरीदास’ को पहरायो नील पीत को पगा ll 3 ll

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी सुखमा कन्या जाई l
भादो सुदि पांचे शुभ लग्न चंद्रभान गृह आई ll 1 ll
नामकरनको गर्ग पराशर नारदादि सब आये l
चंद्रावली नाम सुख सागर कोटिक चंद लजाये ll 2 ll
सुनि वृषभान नंद मिलि आये कीरति जसोदा आई l
मंगल कलश सुवासिन सिर धारी मोतिन चौक पुराई ll 3 ll
देत दान और धरत साथिये गोपी सब हरखानी l
निगम सार जोरी गिरिधरकी व्रजपति के मनमानी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस और आसमानी हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीली मलमल का आसमानी हांशिये वाला पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक के आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर पीले रंग का आसमानी किनारी और टिपकियों वाला ग्वालपाग (पगा) धराया जाता है जिसके ऊपर चमकना टिपारा का साज - मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में जड़ाव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में टोडर धराया जाता हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी बाघ बकरी की आती है.

शयन में कीर्तन - (राग : कान्हरो)

प्रकट भई शोभा त्रिभुवन की श्री वृषभान गोपके आई l
अद्भुत रूप देखि व्रजवनिता रीझी रीझी के लेत बलाई ll 1 ll
नहीं कमला नहीं शची रति रंभा उपमा उर न समाई l
जातें प्रकट भये व्रजभूषन धन्य पिता धनि माई ll 2 ll 
युग युग राज करौ दोऊ जन इत तुम उत नंदराई l
उनके मदनमोहन इत राधा ‘सूरदास’ बलिजाई ll 3 

Tuesday, 26 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी               
Wednesday, 27 August 2025

डंडा चौथ (गणेश चतुर्थी )

विशेष – आज गणेश चतुर्थी है. पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में ‘गण’ का अर्थ समूह अथवा यूथ से एवं ‘पति’ का अर्थ गोपियों के नाथ श्री प्रभु से है. 

गोपालदासजी ने वल्ल्भाख्यान में गाया है जिसका भावार्थ यह है कि “श्याम वर्ण के श्रीजी प्रभु गोपीजनों के समूह के मध्य अत्यंत शोभित हैं. 
यह ‘गणपति’ रूप में प्रभु का स्वरुप कामदेव को भी मोहित करता है. गौरवर्ण गोपियाँ और मध्य में श्यामसुन्दर प्रभु.”

नाथद्वारा में कई वर्षों पहले यह परम्परा थी कि गणेश चतुर्थी के दिन नाथद्वारा के सभी स्कूलों और आश्रमों के बालक विविध वस्त्र श्रृंगार धारण कर के अपने गुरुजनों के साथ मंदिर के गोवर्धन पूजा के चौक में आते और डंडे (डांडिया) से खेलते थे. 
उन्हें गुड़धानी के लड्डू पूज्य श्री तिलकायत की ओर से दिए जाते थे. इसी भाव से आज डंके के खेल के चित्रांकन की पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त अपने निज आवास मोतीमहल की छत पर खड़े हो कर तिलकायत गुड़धानी के लड्डू मंदिर पिछवाड़े में बड़ा-बाज़ार में खड़े नगरवासियों को देते थे जिन्हें सभी बड़े उत्साह से लेकर उल्हासित होते थे. 

आज श्रीजी को नियम से लाल चूंदड़ी का किनारी के धोरे वाला सूथन, छज्जे वाली पाग और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो. 

इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. 

आज के दिन की एक और विशेषता है कि आज सूथन के साथ श्रीमस्तक पर छज्जे वाली पाग और जमाव का कतरा धराया जाता है. 

आज भोग में कोई विशेष सामग्री नहीं अरोगायी जाती है. केवल यदि कोई मनोरथी हो तो ठाकुरजी को सखड़ी अथवा अनसखड़ी में बाटी-चूरमा की सामग्री अरोगायी जा सकती है.

सायंकाल संध्या-आरती समय मंदिर के श्रीकृष्ण-भंडार और खर्च-भंडार में लौकिक रूप में भगवान गणेश के चित्रों का पूजन किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

तू देख सुता वृषभान की l
मृगनयनी सुन्दर शोभानिधि अंग अंग अद्भुत ठानकी ll 1 ll
गौर बरन बहु कांति बदनकी शरद चंद उनमानकी l
विश्व मोहिनी बालदशामें कटि केसरी सुबंधानकी ll 2 ll
विधिकी सृष्टि न होई मानो यह बानिक औरे बानकी l
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर लायक व्रज प्रगटी जोरी समान की ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज व्रजवासियों के समुदाय की डंडाखेल के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई है.

वस्त्र - श्रीजी को आज रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित लाल चोफुली चूंदड़ी के वस्त्र पर किनारी के धोरे वाला सूथन और पटका धराया है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराये है. हीरे के सर्व आभरण धराये हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल चूंदड़ी की छज्जे वाली पाग के ऊपर मोरशिखा, जमाव का कतरा लूम तथा तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं.
 श्रीकर्ण में दो जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये हैं. 
श्रीकंठ में तिमनिया वाला सिरपेंच धराया हैं.
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना  के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना आती हैं.

Monday, 25 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल तृतीया

व्रज – भाद्रपद शुक्ल तृतीया
Tuesday, 26 August 2025

गुलाबी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के श्रृंगार

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

महारास पूरन प्रगट्यो आनि l
अति फूली घरघर व्रजनारी श्री राधा प्रगटी जानि ll 1 ll
धाई मंगल साज सबे लै महा ओच्छव मानि l
आई घर वृषभान गोप के श्रीफल सोहत पानि ll 2 ll
कीरति वदन सुधानिधि देख्यौ सुन्दर रूप बखानि l
नाचत गावत दै कर तारी होत न हरख अघानि ll 3 ll
देत असिस शीश चरनन धर सदा रहौ सुखदानि l
रसकी निधि व्रजरसिक राय सों करो सकल दुःख हानि ll 4 ll 

साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज गुलाबी मलमल का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल पाग धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र फ़िरोज़ी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली चार मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती हैं.

Sunday, 24 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वितीया

व्रज – भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
Monday, 25 August 2025

हरे एवं सफ़ेद रंग के लहरिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा व तुर्री के श्रृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

महारास पूरन प्रगट्यो आनि l
अति फूली घरघर व्रजनारी श्री राधा प्रगटी जानि ll 1 ll
धाई मंगल साज सबे लै महा ओच्छव मानि l
आई घर वृषभान गोप के श्रीफल सोहत पानि ll 2 ll
कीरति वदन सुधानिधि देख्यौ सुन्दर रूप बखानि l
नाचत गावत दै कर तारी होत न हरख अघानि ll 3 ll
देत असिस शीश चरनन धर सदा रहौ सुखदानि l
रसकी निधि व्रजरसिक राय सों करो सकल दुःख हानि ll 4 ll 

साज – श्रीजी में आज हरे एवं श्वेत रंग के लहरिया की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे एवं श्वेत रंग के लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कमल माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर हरे एवं श्वेत लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक लाल मीना व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की छोटी आती है.

Saturday, 23 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा
Sunday, 24 August 2025

राधाष्टमी की झाँझ की बधाई बैठे

आज से राधाष्टमी की आठ दिवस की झाँझ की बधाई बैठती है. आज से प्रतिदिन अष्ट सखियों का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है. इस भाव से आठ दिवस तक नित्य नूतन श्रृंगार, भोग और कीर्तनगान होता है.
 
पुष्टिमार्ग में श्रीस्वामनिजी(राधाजी) को श्रीकृष्ण की अभिन्न मुख्य शक्ति मानते है। जिनका सहज निवास श्रीकृष्ण के साथ सर्वत्र है।
आज के दर्शन एवं पोस्ट इसी आनंद से परिपूर्ण हैं इसे पूरा पड़े.

राधाष्टमी की बधाई आठ दिवस की ही क्यों होती है ?

श्री राधिकाजी प्रभु श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी हैं. 
षोडश कलायुक्त प्रभु श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ जिसका अर्धांग श्रीराधा हैं. श्री गुसांईजी ने अष्टयाम सेवा, अष्टसखा, अष्टछाप के कवि तथा भौतिक रूप में अष्टसिद्धि एवं अष्टांग योग रूप सेवा की स्थापना की थी. 
जिससे आठ दिवस की बधाई बैठती है. 
श्री राधिकाजी की सखियाँ भी आठ है, इस भावना से आठ दिवस की झांझ की बधाई बैठती है.

श्रीजी में आज श्रीमस्तक का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु लाल, केसरी अथवा पीले रंग का धोती-उपरना अवश्य धराया जाता है. 
आज श्रीजी को केसरी मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर क़तरा या चन्द्रिका धराये जायेंगे.

सभी बड़े उत्सवों की बधाई की भांति ही आज से आठ दिन अमंगल (श्याम, नीले या गहरे हरे) रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते.
आज भोग विशेष कुछ नहीं पर राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

सभी वैष्णवों को राधाष्टमी की बधाई बैठवे की बधाई

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : धनाश्री)

बरसाने वृषभान गोपके आनंद की निधि आई l
धन्य धन्य कूख रानी कीरति की जिन यह कन्या जाई ll 1 ll
इन्द्रलोक भुवलोक रसातल देखि सुनि न गाई l
सिंधुसुता, गिरिसुता सची रति इन सामान कोऊ नाई ll 2 ll
आनंद मुदित जसोदा रानी लालकी करों सगाई l
प्रभु कल्यान गिरिधरकी जोरी विधना भली बनाई ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी-तकिया के ऊपर लाल एवं चरण चौकी के ऊपर सफेद बिछावट होती है. 
सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के आते हैं. चांदी की त्रस्टीजी भी धरी जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा बाँकी गोल चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. हीरे-मोती की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.

Friday, 22 August 2025

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या
(कुशग्रहणी अमावस्या)
Saturday, 23 August 2025

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका के शृंगार

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल सफ़ेद टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में हरे मीना के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
श्री कंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी और वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

Thursday, 21 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी 
Friday, 22 August 2025

क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।

श्री काका-वल्लभजी ने यह श्रृंगार श्री गोविन्दस्वामी के उपरोक्त पद के आधार पर किया था 
आज के श्रृंगार की यह विशेषता है कि वर्षभर में केवल आज ही के दिन कुल्हे और वस्त्र अलग-अलग रंग के होते हैं. 

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री काका-वल्लभ जी का उत्सव है. 
आपका जन्म विक्रम संवत 1703 में गोकुल में हुआ था. 

आप टिपारा वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी विट्ठलेशरायजी के सबसे छोटे पुत्र एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरजी महाराज (जिन्होंने श्रीजी को व्रज से मेवाड़ में पधराये) के काकाजी थे. 
आपके 68 वचनामृत बहुत प्रसिद्ध हैं. 
आपने महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य के ग्रंथ सुबोधिनीजी' पर "व्याख्यात्मक निबन्ध" लिखा इसीलिए आप 'श्री वल्लभजी लेखवाले' के नाम से जानें गए ।

आपने व्रज से मेवाड़ पधारते समय श्रीजी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न हो कर श्रीजी ने उनको आज्ञा करके स्वयं के श्रृंगार धरवाये. 
मेवाड़ पधारने के बाद आपने श्रीजी को आज का पीत पिछोड़ा एवं लाल कुल्हे का श्रृंगार धराया. तब से यह श्रृंगार प्रतिवर्ष आज के दिन होता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

क्रीड़त मनिमय आँगन रंग l
पीत ताप को बन्यो झगुला, कुल्हे लाल सुरंग ।।१।।
कटि किंकिनी घोष विस्मित सखी धाय चलत संग ।
गोसुत पुच्छ भ्रमावत कर ग्रही पंकराग सोहे अंग ।।२।।
गजमोतिन लर लटकत भ्रोंहपें सुन्दर लहर तरंग ।
‘गोविन्द’ प्रभुके अंग अंग पर वारों कोटिक अनंग ।।३।।

साज - श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज रुपहली किनारी से सुसज्जित पीले मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, रुपहली घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी भी धरायी जाती है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फ़िरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट पीला, गोटी राग-रंग की एवं आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Wednesday, 20 August 2025

व्रज – भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी
Thursday, 21 August 2025

गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी तकिया के ऊपर सफेद मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर श्वेत मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा,लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और वेत्रजी धराये जाते हैं.. 
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

Tuesday, 19 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी 
Wednesday, 20 August 2025

वत्स द्वादशी (बच्छ बारस)

ऐसा कहा जाता है कि जब प्रभु श्रीकृष्ण अढाई वर्ष के थे तब आज के दिन ही यशोदाजी ने भी गाय और बछड़े का पूजन कर शगुन के रूप में उनको वन में बछड़े चराने को भेजा था. 
इस कारण से आज का दिवस वत्स द्वादशी कहलाता है. 

इसके अतिरिक्त लाला अक्षय तृतीया को अपने मुंडन के दिवस भी वन में गौ-चारण को गये परन्तु भीषण गर्मी से बेहाल प्रभु को थोड़े ही समय में लौट कर आना पड़ा. 
यह प्रसंग मैं अक्षय तृतीया को बता चुका हूँ. 
यद्यपि लाला ने यथाविधि गौ-चारण गोपाष्टमी के दिवस से प्रारंभ किया था और उसी दिन से गोपाल कहाए थे.

गुजरात में गौ-वत्स द्वादशी दीपावली के पहले आने वाली कार्तिक कृष्ण द्वादशी को होती है.

श्रीजी में सेवाक्रम - आज श्रीजी को नियम की गौ पूजन की पिछवाई, लाल चौफूली चूंदड़ी की लाल गोल-काछनी, सूथन और श्रीमस्तक पर हीरा की तिलक वाली टोपी धरायी जाती है.

बालभाव के कीर्तन गाये जाते हैं जिसमें गौ-पूजन को जाते बालक श्री श्यामसुंदर के श्रृंगार, सुन्दर वस्त्रों, आभूषणों एवं यशोदाजी के बड़े भाग्य का अद्भुत वर्णन किया गया है. 
नीचे वर्णित कीर्तन को भावपूर्वक पढ़ें और सुन्दर शब्दों को समझने का प्रयास कर उनका आनंद लें. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ठाडी लिये खिलावत कनियां l
प्रेममुदित मन गावत यशोदा हरि लीला मोहनियां ll 1 ll
काजर तिलक पीत तन झगुली कणित पाई पैजनिया l
हंसुली हेम हमेल बिराजत झर झटकन मनि मनिया ll 2 ll
हुलरावति हसि कंठ लगावत प्रीति रीति अति धनियां l
चुंबत मुख ‘रघुनाथदास’ बलि बड़ भागिन नंद रनियां ll 3 ll

साज – नन्दभवन की तिबारी में बछड़े सहित गाय का तिलक कर पूजन करती श्री यशोदा माँ, रोहिणी माँ तथा दूसरी ओर गायों के साथ ग्वाल-बालों के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की चौफूली चुन्दडी के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन एवं गोल काछनी (मोर काछनी) धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी एवं कमल माला आती है.
श्रीमस्तक हीरा की टोपी तिलक व फूंदा वाली पर जाली(net) की तीन तुर्री और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं एवं स्वरुप की बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लहरिया व एक सोना के) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी मोर की व आरसी बावा साहब द्वारा पधराई कांच के कलात्मक काम की आती है.

Monday, 18 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण एकादशी (अजा एकादशी)

व्रज - भाद्रपद कृष्ण एकादशी (अजा एकादशी)
Tuesday, 19 August 2025

आज अजा एकादशी हैं. महापापी अजामिल के प्रसंग में प्रभु के जीव पर अनुग्रह को आत्मसात करे.

अजा एकादशी

विशेष – महापापी अजामिल जिसने अपने अंतिम समय में अपने स्वयं के पुत्र ‘नारायण’ के नामोच्चारण के निमित प्रभु का नाम उच्चारण किया था. प्रभु की दयालुता देखें कि केवल अंत समय में ‘नारायण’ के नाम के उच्चारण मात्र से उन्होंने आज के दिन अपने देवदूत भेज अजामिल पर अनुग्रह कर उसका उद्धार किया था. प्रभु ने यह अपना अनुग्रह प्रकट करने के लिए किया इसी लिए कहते हे की प्रभु कर्तुम अकर्तुम अन्यथाकर्तुम सर्वसमर्थ है।आज की एकादशी उसी अजामिल के नाम से अजा एकादशी कहलाती है.
ये अध्याय से यह सीख मिलती है कि  हम सब पुष्टि वैष्णवो को ठाकुरजी की सेवा और नाम किर्तन सतत अंतिम श्र्वास तक करना है , कितनी भी विषम परिस्थिति हमारे जीवन में क्यों न आए ? 
ठाकुरजी की सेवा और ठाकुरजी से स्नेह यही पुष्टि जीव का लक्ष्य होना चाहिए ।
मनुष्य चाहे जितना बड़ा पापी हो , चाहे जितना नि:साधन हो ; यदि सच्चे ह्रदय से एकबार भी प्रभु की शरण स्वीकार ले तो प्रभु उसको " स्वजन " मान लते हैं . इसीलिए महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी  ने "कृष्णाश्रयस्तोत्र" में कहा हैं :-

"पापसक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम" 

भावार्थ :- सुखी हो या दु:खी , पापी हो या निष्पाप , धनवान हो या निर्धन , साधन-सम्पन्न हो या नि:साधन ; सभी को श्रीकृष्ण की शरण में ही जाना चाहिए .
          सब देवें के देव , सर्वशक्तिमान , सर्वकारण ऐसे श्रीकृष्ण को छोड़ कर अन्य किसी की शरण में क्यों जाएँ ?
      इसीलिए पुष्टिमार्ग श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति का मार्ग 
दिखाता/सिखाता है .

आज से अमावस्या तक प्रभु को बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं बाल-लीला के ही अद्भुत पद गाये जाते हैं. 

आज श्रीजी प्रभु को नियम से यह हल्का श्रृंगार धराया जाता है जिसमें लाल पिछोड़ा, जन्माष्टमी वाला केसरी गाती का पटका, श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर पन्ना की गोटी लूम की रुपहली किलंगी धरायी जाती है. नन्दउत्सव के भाव के चित्रांकन की पिछवाई आती है. 

जन्माष्टमी के उपरांत आज मंगला के पश्चात सभी साज पर सफेदी चढ़े. टेरा, चौरसा आदि सभी नित्य के आ जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन : (राग – सारंग)

जब मेरो मोहन चलेगो घुटुरुवन तब हो री करोंगी वधाई l
सर्वसु बारि देहूंगी तिहि छिनु मैया कहे तुतुराई ll 1 ll
यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l
नंद सुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंदललाई ll 2 ll

साज – नन्दभवन में बधाई देने एवं दर्शन करने को आये व्रजभक्तों की भीड़ एवं दूसरी ओर छठी पूजन और लालन को पलना झुलाते नंदबाबा और यशोदाजी के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में आती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पड़घा, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा (षष्ठी उत्सव वाला) धराया जाता है. जन्माष्टमी वाला केसरी रंग का गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सुवापंखी हरे (तोते के पंखों के जैसे हल्के हरे) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती तथा सोने के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, पन्ना की गोटी, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हालरा बघनखा और हमेल धराये जाते हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. 

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी चांदी की आती है.

Sunday, 17 August 2025

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल दशमी
Monday, 18 August 2025

जन्माष्टमी का परचारगी श्रृंगार

विशेष – जन्माष्टमी के चार श्रृंगार चार यूथाधिपति स्वामिनीजी के भाव से होते हैं. प्रथम बधाई का श्रृंगार श्री यमुनाजी के भाव से, दूसरा जन्माष्टमी के दिन श्री राधिकाजी के भाव से, तीसरा नन्द महोत्सव का श्री चन्द्रावलीजी के भाव से और चौथा आज का श्री ललिताजी के भाव से होता है. 

आज श्रीजी में सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार  पिछली कल की भांति ही होते हैं. 
इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. श्रीजी में अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है. 

परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी अगर उपस्थित  हो तो श्रीजी  के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं.

कल नन्दोत्सव से अमावस्या तक प्रभु की बाल-लीला के श्रृंगार धराये जाते हैं एवं कीर्तनों में बाल-लीला के ही पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नंद बधाई दीजे ग्वालिन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गोदान l
गोकुल मंगल महामहोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंद गोप के लाल ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग के  जामदानी के, रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार वागा एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशमी सुनहरी छापा का होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं. आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सव का दो जोड़ (विगत कल चार जोड़) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे और माणक तथा स्वर्ण जड़ाव के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जड़ाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर उत्सव की माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर हीरे का चौखटा धराया जाता है.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी हीरे के आते हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में स्वर्ण की बड़ी डाँडी की आती  है.

Saturday, 16 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण नवमी
Sunday, 17 August 2025      

नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की l
हाथी दीने, घोड़ा दीने और दीनी पालकी ll

सभी वैष्णवों को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व नन्द महोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

नंद महोत्सव

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l

आज की Post को गत रात्रि से प्रारंभ करता हूँ. गत रात्रि शयनभोग अरोगकर प्रभु रात्रि लगभग 9.30 बजे जागरण में बिराज जाते हैं. 
रात्रि लगभग 11.45 को जागरण के दर्शन बंद होते हैं, भीतर रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है. 

श्रीजी में जन्म के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते जबकि श्री नवनीतप्रियाजी में जन्म के दर्शन सीमित व्यक्तियों को होते हैं.

प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं. 

रात्रि 12 बजे पश्चात जन्म के समय श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के तृतीय अध्याय के साढ़े आठ श्लोक तीन बार बोल कर निज मन्दिर के पट खुलते हैं.
शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है. 

श्रीजी में प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, तदुपरांत महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, कई प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं. 

प्रातः लगभग 5.30 बजे महाभोग सराये जाते हैं. भोग सरे पश्चात नन्दबाबा (श्रीजी के मुखियाजी), यशोदाजी (श्री नवनीतप्रियाजी के मुखियाजी), गोपियों एवं ग्वाल (श्रीजी व नवनीतप्रियाजी के सेवक व उनके परिवारजन) को गहनाघर, दर्ज़ीखाना, उस्ताखाना आदि के सेवक तैयार करते हैं. 

अनोसर नहीं होने से श्रीजी में जगावे के कीर्तन नहीं गाये जाते. 
महाभोग सराने के पश्चात झारीजी नई आती है और श्रीकंठ में मालाजी नई धराई जाती हैं एवं आरसी चार झाड़ की आती है.
इसके अलावा नंदमहोत्सव मे श्रृंगार, वस्त्र, साज़ इत्यादि जन्माष्टमी के दिन वाले ही रहते है. 

प्रातः लगभग 6.30 बजे नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी लालन में छठी पूजन को पधारते हैं और छठी पूजन के उपरांत पूज्य श्री तिलकायत श्री नवनीतप्रियाजी को श्रीजी में पधराते हैं.
नंदबाबा व यशोदाजी श्रीजी के सम्मुख सोने के पलने में प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी को झुलाते है.

नंदमहोत्सव के भोग में पलने की दाई तरफ रंगीन वस्त्र से ढँक कर दूधघर एवं खांडघर की सामग्री, माखन मिश्री तथा पंजीरी धरी जाती है वहीँ पलने की बायीं ओर पडघा के ऊपर झारीजी पधराये जाते है.
१२ बिड़ी अरोगाई जाती हैं और चार आरती करके न्योछावर करके राई लोन (नमक) से नज़र उतारी जाती हैं.
 
सभी भीतरिया, अन्य सेवक व उनके परिवारजन गोपियाँ ओर ग्वाल-बाल का रूप धर कर मणिकोठा में घेरा बनाकर नाचते-गाते हैं और दर्शनार्थी वैष्णवों पर हल्दी मिश्रित दूध-दही का छिडकाव करते हैं.

कीर्तन – (राग : सारंग)

हेरि है आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

कीर्तन – (राग : सारंग) 

आज महा मंगल मेहराने l
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बैरख बाने ll 1 ll
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll 

सभी वैष्णव नाचते, गाते आनंद से "लालो आयो रे...लालो आयो रे" गाते हैं.
नंदमहोत्सव के दर्शन लगभग 11 बजे तक खुले रहते हैं व दर्शन के उपरांत श्री नवनीतप्रियाजी अपने घर पधारकर मंगलभोग अरोगते हैं. 
वहीँ दूध-दही से सरोबार मणिकोठा, डोल-तिबारी रतन-चौक, कमल-चौक सहित पूरे मंदिर को जल से धोया जाता है.

नंदमहोत्सव के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत एवं श्री विशालबावा, नंदबाबा बने श्रीजी के मुखियाजी को कीर्तन समाज व ग्वाल-बाल की टोली के साथ श्री महाप्रभुजी की बैठक में पधराते हैं

मंगला के दर्शन लगभग 12.15 बजे खुलते हैं. आज के दिन मंगला और श्रृंगार दोनों दर्शन साथ में होते हैं. उसी दर्शन में केवल टेरा लेकर मालाजी धरायी जाती है और श्रृंगार के कीर्तन गाये जाते हैं. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को कूर के गुंजा, कठोर मठड़ी, सेव के लड्डू व दूधघर में सिद्ध बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

ग्वाल दर्शन नहीं खोले जाते व राजभोग दर्शन दोपहर लगभग 2.15 बजे खुलते हैं. आगे का क्रम अन्य दिनों के जैसे ही होता है. 

राजभोग से शयन तक सभी समां में बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. 
जन्माष्टमी के दिन धराया हुआ श्रृंगार आज शयन मे बड़ा होता है.

Friday, 15 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी
Saturday, 16 August 2025

सभी वैष्णवजन को प्रभु के आगमन की ख़ूब ख़ूब बधाई

जय श्री कृष्ण

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

सेवाक्रम – आज का उत्सव महा-महोत्सव कहलाता है. पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए यह महोत्सव सबसे अधिक महत्व का होता है. 

बीच में एक बात... 

कुछ वैष्णवों ने पूछा था कि प्रभु का जन्म रात्रि को होता है तो पंचामृत स्नान प्रातः क्यों होता है ?

-आज प्रभु को उनके जन्मदिन के महात्म्य स्वरूप यशोदोत्संगलालित स्वरूप के आधार रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण के रूप में पंचामृत स्नान कराया जाता है.
रात्रि को प्रभु जन्म उपरांत तो श्री बालकृष्णलालजी के स्वरुप को पंचामृत होता है.

कुछ का प्रश्न यह भी था कि प्रभु जन्म के शुभ दिन फलाहार करना कैसे उचित है ?

- पुष्टिमार्ग में चारों जयंतियों (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीरामनवमी, श्री वामन द्वादशी व श्री नृसिंह जयंती) के दिन फलाहार किया जाता है.
इसका भाव यह है कि जब हम प्रभु के सम्मुख जाएँ अथवा प्रभु हमारे घर पधारें तब तन, मन से शुद्ध हों और आयुर्वेद में भी कहा गया है कि उपवास अथवा फलाहार से तन व मन की शुद्धि होती है.

पंचामृत को दर्शन के पश्चात् श्रीजी के पातलघर से सभी वैष्णवों को वितरित किया जाता है जिसे प्रभु प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.

श्रृंगार काफी देर से लगभग 9.30 बजे खुलते हैं क्योंकि पंचामृत स्नान के पश्चात प्रभु स्वरुप अत्यधिक चिकना हो जाता है. साथ ही आज का श्रृंगार, आभरण आदि भी अत्यधिक भारी में भारी होते हैं

श्रृंगार दर्शन में श्रीजी को तिलक एवं अक्षत किया जाता है, भेंट रखी जाती है. इस दौरान शंख, झालर, धंटा आदि बजाये जाते हैं और वैष्णव मंगलगान गाते हैं. 
प्रभु के सम्मुख हल्दी से चौक पुराया जाता है. राई, लोन से प्रभु की नज़र उतारी जाती है. 

श्रीजी के मुख्य पंड्याजी वर्षपत्र पढ़ते हैं.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त चन्द्रकला एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, चार प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी भोग में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. राजभोग दर्शन लगभग 12.30 को खुलते हैं.

संध्या आरती में जयंती के फलाहार के रूप में मलाई की बासोंदी और खोवा और फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा आरोगाया जाता है.

संध्या-आरती दर्शन लगभग रात्रि 7.30 बजे खुलते हैं और लगभग रात्रि 8.30 बजे से जागरण के दर्शन होते हैं जो कि रात्रि लगभग 11.45 तक खुले रहते हैं.

तदुपरांत रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है.

प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं. 

प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.
 महाभोग की सखड़ी में राजभोग की भांति सखड़ी की सामग्री, पांचभात, मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.

वैष्णवों के घर श्री ठाकुरजी को शयन पश्चात पोढ़ा दिया जाता है और जागरण नहीं किया जाता. नवमी के दिन श्री ठाकुरजी को जगाकर, मंगल भोग धर कर, सरा कर श्रृंगार किया जाता है. राजभोग में अदकी सामग्रियां धर कर पलने में झूला कर नन्दोत्सव मनाया जाता है परन्तु मंदिरों – हवेलियों आदि में अष्टमी के रात्रि को महाभोग, नवमी के दिवस प्रातः नन्दोत्सव, इसके पश्चात मंगला, श्रृंगार एवं राजभोग आदि का सेवाक्रम किया जाता है. 
इस उत्सव में सेवाक्रम मंदिरों में और वैष्णवों के घरों में थोड़ा अलग-अलग होता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. लाल रंग का पीताम्बर चौखटे के ऊपर धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी से भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के तीन जोड़ी के हीरा, पन्ना एवं माणक नवरत्नों के आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे तेरह पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक एवं मोती के हार, माला आदि धराये जाते हैं.
हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं. वैजयंतीमाला धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जमाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मानक की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. प्रभु के मुखारविंद पर केशर से कपोलपत्र किये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में उस्ताजी की बड़ी दिखाई जाती है.

जागरण कीर्तन – (राग : मालव)

 पद्म धर्यो जन ताप निवारण ।
चक्र सुदर्शन धर्यो कमल कर भक्तनकी रक्षा के कारण ॥१॥
शंख धर्यो रिपु उदर विदारन गदाधरी दुष्टन संहारन ।
चारौ भुजा चारौ आयुध धरे नारायण भुव भार उतारन ॥२॥
दीनानाथ दयाल जगत गुरू आरति हरन  चिंतामनि ।
परमानंद दासकौ ठाकुर यह औसर छांडो जिन किनि ॥३॥

Thursday, 14 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी
Friday, 15 August 2025

षष्ठी उत्सव

“षष्टी देवी नमस्तुभ्यं सूतिकागृह शालिनी l
पूजिता परमयाभक्त्या दीर्घमायु: प्रयच्छ मे ll”  

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है पर आज श्री यशोदाजी के भाव से भावित साज आता है. 

साज, पिछवाई, खण्डपाट, ठाड़े वस्त्र सभी पीले रंग के आते हैं. इसका यह भाव है कि माता यशोदाजी पीले वस्त्र धारण कर लाला को गोद में ले कर छठ्ठी पूजन करने विराजित है. 
इसी प्रकार प्रत्येक उत्सव के एक दिन पहले पन्ना एवं मोती के आभरण धराये जाते हैं परन्तु आज हीरे-मोती के आभरण धराये जाते हैं. इस प्रकार आज अनोखा-अद्भुत भावभावित श्रृंगार धराया जाता है.

भोग – आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरिया घेवर अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन - 
कीर्तन – (राग : देवगंधार)

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l
व्रज पूरव पूरे पुन्य रुपी कुल, सुथिर थुनी, ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि, कीनी वेद ध्वनी ll 1 ll  
सुनि धाई सबे व्रजनारी, सहज सिंगार कियें, तन पहेरे नौतन चीर, काजर नैन दिये l
कसि कंचुकी तिलक लिलाट, शोभित हार हिये, कर कंकण कंचन थार, मंगल साज लिये ll 2 ll....अपूर्ण

कीर्तन – (राग : सारंग)

घरघर ग्वाल देत हे हेरी l
बाजत ताल मृदंग बांसुरी ढ़ोल दमामा भेरी ll 1 ll
लूटत झपटत खात मिठाई कहि न सकत कोऊ फेरी l
उनमद ग्वाल करत कोलाहल व्रजवनिता सब घेरी ll 2 ll
ध्वजा पताका तोरनमाला सबै सिंगारी सेरी l
जय जय कृष्ण कहत ‘परमानंद’ प्रकट्यो कंस को वैरी ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल रंग का डोरिया का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छेड़ान का  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली एवं ऊपर मोतियों की माला धरायी जाती हैं.
त्रवल नहीं धरावें परन्तु हीरा की बघ्घी धरायी जाती है.
गुलाब के पुष्पों की एक मालाजी एवं दूसरी श्वेत पुष्पों की कमल के आकार की मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
 आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Wednesday, 13 August 2025

व्रज - भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (पंचमी क्षय)

व्रज - भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (पंचमी क्षय)
Thursday, 14 August 2025

विशेष – जन्माष्टमी के पूर्व श्रीजी को घर के श्रृंगार धराये जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ भी कहा जाता है.
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को हरा सफ़ेद लहरिया और श्रीमस्तक पर पाग और सुनहरी जमाव का कतरा धराया जाता है. 
आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
आज श्रीजी में जन्माष्टमी की पानघर की सेवा की जाती हैं.
आज प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी (मेवा मिश्रित खस्ता ठोड़) अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज - श्रीजी में आज हरे-श्वेत रंग के लहरिया की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज हरे-श्वेत लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
माणक तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे-सफेद लहरिया की पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सुनहरी जमाव का कतरा एवं सुनहरी तुर्री तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मानक के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में हार एवं दुलड़ा धराया जाता हैं.
पीले पुष्पों की विविध रंग की थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है एवं इसी प्रकार की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट शतरंज का हरा एवं गोटी स्वर्ण की शतरंज की धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है.

Tuesday, 12 August 2025

व्रज – भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी

व्रज – भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी
Wednesday, 13 August 2025        

आज से आपके श्रृंगार प्रारम्भ

विशेष – आज के दिन श्रीजी में चंदरवा, टेरा, वंदनमाल, कसना, तकिया के खोल आदि बदले जाते हैं.
आज से भाद्रपद कृष्ण नवमी के दिन तक सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
सभी बड़े उत्सवों के पूर्व श्रीजी को नियम के घर के श्रृंगार धराये जाते हैं जिन्हें घर के श्रृंगार भी कहा जाता है और इन पर श्रीजी के तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.

जन्माष्टमी के पूर्व आज से घर के श्रृंगार धराये जाते हैं. इस श्रृंखला में आज श्रीजी को लाल एवं पीले रंग की इकदानी चूंदड़ी का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की छज्जेदार पाग  के ऊपर लूम की किलंगी धरायी जाती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू आरोगाये जाते हैं.

आज ही जन्माष्टमी के दिन श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र एवं साज के लिए सफेद मलमल एवं डोरिया के वस्त्र केसर से रंगे जाते हैं. 
वस्त्र रंगते समय नक्कारे, थाली एवं मादल बजाये जाते हैं एवं सभी वैष्णव बधाईगान करते हैं. 

राजभोग आरती पश्चात पूज्य तिलकायत परिवार के सदस्य, मुखियाजी वस्त्र रंगते हैं, वैष्णवजन और दर्जीखाना के सेवकगण अपने हाथ में रख के सुखाते हैं. 

भाद्रपद कृष्ण पंचमी के दिन ये वस्त्र रंगे जाते हैं इसका यह भाव है कि “हे प्रभु, जिस प्रकार ये श्वेत वस्त्र आज केशर के रंग में रंगे जा रहे हैं, मेरी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ भी आज पंचमी के दिवस आपके रंग में रंग जाएँ.”

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आँगन नंदके दधि कादौ l
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रगटे जगमे जादौ ll 1 ll
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन मांट संयुत l
घर घर ते सब गावत आवत भयो महरि के पुत ll 2 ll
बाजत तूर करत कुलाहल वारि वारि दे दान l
जायो जसोदा पुत तिहारो यह घर सदा कल्यान ll 3 ll
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास l
‘मेहा’ आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ll 4 ll  

साज - श्रीजी में आज लाल एवं पीले रंग की मलमल पर इकदानी चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर मेघश्याम  मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल एवं पीले रंग की इकदानी चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
आज चार माला धरायी जाती हैं.
पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी स्वर्ण की छोटी धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में स्वर्ण की छोटी एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Monday, 11 August 2025

व्रज – भाद्रपद कृष्ण तृतीया

व्रज – भाद्रपद कृष्ण तृतीया 
Tuesday, 12 August 2025

गुलाबी मलमल की धोती, पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर दोहरा क़तरा के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है.
गादी तकिया के ऊपर सफेद मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा क़तरा ,लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज श्रीकंठ में चार माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और वेत्रजी धराये जाते हैं.. 
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

Sunday, 10 August 2025

व्रज – भाद्रपद कृष्ण द्वितीया

व्रज – भाद्रपद कृष्ण द्वितीया 
Monday, 11 August 2025     

हिंडोलना विजय के दिन, प्रथम हिंडोलना रोपण के दिन धराये गये साज दीवालगरी, वस्त्र, श्रृंगार आदि सभी वैसे ही धराये जाते हैं.
 श्रीजी को सुनहरी लप्पा से सुसज्जित लाल पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर आसमानी बाहर की खिड़की वाली लाल छज्जेदार पाग पर सादी मोर-चन्द्रिका धरायी जाती है.

चांदी को शुभ माना जाता है अतः प्रथम हिंडोलने की भांति ही हिंडोलना विजय के दिन भी श्री मदनमोहनजी चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज महा मंगल महराने ।
पंच शब्द ध्वनि भीर वधाई घर घर बैरख बाने ।।१।।
ग्वाल भरे कांवरि गोरसकी वधू सिंगारत वाने ।
गोपी गोप परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ।।२।।
नामकरन जब कियो गर्ग मुनि नंद देत बहु दाने ।
पावन जस गावति कटहरिया जाहि परमेश्वर माने ।।३।।

साज – श्रीजी में आज साज लाल रंग की मलमल की सुनहरी लप्पा की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा से सुसज्जित  पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को हीरों का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है.
 हीरे के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर आसमानी मलमल की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
मोतियों की माला के ऊपर चार पान घाट की जुगावली धराई जाती हैं.श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराया जाता हैं. हीरे की बघ्घी धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी छोटी स्वर्ण की छोटी धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Saturday, 9 August 2025

व्रज – भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा 
Sunday, 10 August 2025

स्वर्णयुगदाता नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का प्राकट्योत्सव, स्वर्ण(हेम) हिंडोलना

विशेष – आज नाथद्वारा के स्वर्णयुग दाता नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का उत्सव है. 

आज श्रीजी को नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव, केसरी पेठा व छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll
हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll
हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll
ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll
अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll
वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll
सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll
सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll

साज – श्रीजी में आज सखीभाव से खड़ी अष्टसखी के भाव से व्रज की गोपीजनों के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी और कमल माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर टंकमां हीरा की टोपी व मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
दो हार पाटन वाले धराए जाते हैं.
 सफेद पुष्पों की एवं लाल गुलाब की थागवाली मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी, गोटी राग-रंग की व आरसी सोने की डांडी की आती है. श्रृंगार समय आरसी चार झाड की आती है.

Friday, 8 August 2025

व्रज - श्रावण शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - श्रावण शुक्ल पूर्णिमा
Saturday, 09 August 2025

बहेन सुभद्रा राखी बांधत बल अरु श्री गोपाल के ।
कनकथार अक्षतभर कुंकुंम तिलक करत नंदलाल के।।१।।
आरती करत देत न्योछावर वारत मुक्ता मालके ।
आसकरण प्रभु मोहन नागर प्रेम पुंज व्रजलालके ।।२।।

सभी वैष्णवों को रक्षाबंधन एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी के प्राकट्योत्सव की बधाई

रक्षाबंधन, नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव

श्रीजी प्रभु को नियम से लाल मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

आज नियम से श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहनजी कांच के हिंडोलने में झूलते हैं. 

श्रीजी में पवित्रा की भांति ही रक्षा (राखी) भी शुभमुहूर्त से कभी प्रातः श्रृंगार दर्शन में और कभी उत्थापन दर्शन में धरायी जाती है. 

पुष्टिमार्ग में सूर्योदय के समय की तिथि से त्यौहार मनाया जाता है व भद्रा रहित समय में  श्रीनाथजी को रक्षा (राखी) धरायी जाती है
अतः श्रीनाथजी में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (शनिवार, 09 अगस्त 2025) को श्रृंगार समय में श्रीजी को रक्षा (राखी) धरायी जाएगी

श्रृंगार के दर्शन में सुबह 7:45 बजे के आसपास झालर,घण्टा बजाते हुए व शंखध्वनि के साथ श्रीजी को तिलक, अक्षत कर दोनों श्रीहस्त में एवं दोनों बाजूबंद के स्थान पर रक्षा (राखी) बांधी जाएगी. तदुपरांत भेंट की जाएगी और दर्शन उपरांत उत्सव भोग धरे जाएंगे.
श्रीजी को रक्षा (राखी) धराए जाने के पश्चात सभी स्वरूपों को रक्षा (राखी) धराई जाती हैं.

उत्सव भोग में विशेष रूप से गुलपापड़ी (गेहूं के आटे की मोहनथाल जैसी सामग्री), दूधघर में सिद्ध केशर-युक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना और फल आदि अरोगाये जाते हैं.
अनोसर में श्रीजी के सनमुख अत्तरदान,
मिठाई का थाल, चोपड़ा,चार बीड़ा आरसी इत्यादि धरे जाते हैं.

आज के अलावा श्रीजी को गुलपापड़ी केवल घर के छप्पनभोग (माघशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा) के दिन ही आरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर सफेद और तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका और पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र - श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का रूपहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार –  प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता से  मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.नीचे पाँच पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.श्वेत पुष्पों की मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की आती हैं.

Thursday, 7 August 2025

व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्दशी
Friday, 08 August 2025

प्रथम तिलकायत नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री विट्ठलेशरायजी महाराज (१६५७) का उत्सव

आज श्रीजी को नियम का पिले रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर सुनहरी घेरा का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रावण शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन श्रृंगार समय मिश्री की गोल-डली का भोग अरोगाया जाता है.
 
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र और आज के उत्सव नायक के पितृचरण गौस्वामी दामोदरजी का भी कल प्राकट्योत्सव है. 

विश्व में अधिकांश भागों पर रक्षाबंधन आज माना गयी है परंतु बुधवार, 30 अगस्त 2023 को
सूर्योदय के समय चतुर्दशी तिथि है.
पूर्णिमा तिथि के आरम्भ से
अर्थात प्रातः 10 बजकर 58 मिनिट से
रात्रि 9 बजकर 1 मिनिट तक भद्राकाल है.

पुष्टिमार्ग में सूर्योदय के समय की तिथि से त्यौहार मनाया जाता है व भद्रा रहित पूर्णिमा में श्रीनाथजी को रक्षा (राखी) धरायी जाती है
अतः श्रीनाथजी में
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (गुरुवार, 31 अगस्त 2023) को श्रृंगार समय (प्रातः 7 बजकर 4 मिनिट पूर्व) श्रीजी को रक्षा (राखी) धरायी जाएगी

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आंगन नंद के दधि कादौ ।
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रकटे जगमें जादौ ।१।।
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन माट संयुत ।
घर घरते सब गावत आवत भयो महरि के पुत्र ।।२।।
बाजत तूर करत कोलाहल वारि वारि दै दान ।
जीयो जशोदा पूत तिहारो यह घर सदा कल्यान ।।३।।
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास ।
मेहा आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ।।४।।

साज – श्रीजी में आज पिले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. 
पीठिका व पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र - श्रीजी को आज पिले रंग रंग का रूपहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज मध्य (घुटने तक) का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पिले रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली की मालाजी धराई जाती हैं. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं.बग्घी धरायी जाती हैं.पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
 पट पिला एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.

Wednesday, 6 August 2025

व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - श्रावण शुक्ल त्रयोदशी
Thursday, 07 August 2025

किंकोडा तेरस, चतुरा नागा के श्रृंगार

आज किंकोड़ा तेरस है. आज के दिन व्रज में विराजित श्रीजी यवनों के उपद्रव का नाश कर पाड़े (भैंसे) के ऊपर बैठकर रामदासजी, कुम्भनदासजी आदि को साथ लेकर चतुरा नागा नाम के विरक्त योगी को दर्शन देने एवं उक्त पाड़े (भैंसे) का उद्धार करने टॉड का घना नाम के घने वन में पधारे थे. 

चतुरा नागा श्रीजी के दर्शन को लालायित थे परन्तु वे श्री गिरिराजजी पर पैर नहीं रखते थे जिससे श्रीजी के दर्शन से विरक्त थे. 
भक्तवत्सल प्रभु अत्यन्त दयालु हैं एवं अपने सभी भक्तों को मान देते हैं अतः वे स्वयं अपने भक्त को दर्शन देने पधारे. चतुरा नागा की अपार प्रसन्नता का कोई छोर नहीं था. 
वर्षा ऋतु थी सो चतुरा नागा तुरंत वन से किंकोडा के फल तोड़ लाये और उसका शाक सिद्ध किया. रामदासजी साथ में सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) सिद्ध कर के लाये थे सो श्रीजी को सीरा एवं किंकोडा का शाक भोग अरोगाया. 

तब कुम्भनदासजी ने यह पद गाया – 
“भावत है तोहि टॉडको घनो ।
कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।।
सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो । 
‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।।

कुछ देर पश्चात समाचार आये कि यवन लश्कर फिर से बढ़ गया है जिससे तुरंत श्रीजी को पुनः मंदिर में पधराया गया. 

आज भी राजस्थान में भरतपुर के समीप टॉड का घना नमक स्थान पर श्रीजी की चरणचौकी एवं बैठकजी है जो कि अत्यंत रमणीय स्थान है.

आज श्रीजी को मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है.

उपरोक्त प्रसंग की भावना से ही आज के दिन श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में किंकोडा का शाक एवं सीरा (गेहूं के आटे का हलवा) अरोगाया जाता है.

अद्भुत बात यह है कि आज भी प्रभु को उसी लकड़ी की चौकी पर यह भोग रखे जाते हैं जिस पर सैंकड़ों वर्ष पूर्व चतुरा नागा ने प्रभु को अपनी भाव भावित सामग्री अरोगायी थी.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज महा मंगल महराने l
पंच शब्द ध्वनि भीर बधाई घर घर बेरखबाने ll 1 ll
ग्वाल भरे कांवरि गोरस की वधु सिंगारत वाने l
गोपी ग्वाल परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ll 2 ll
नाम करन जब कियो गर्गमुनि नंद देत बहु दाने l
पावन जश गावति ‘कटहरिया’ जाही परमेश्वर माने ll 3 ll

साज – चतुरा नागा के भाव चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. (चित्र में भिन्न)
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका के ऊपर व इसी प्रकार से पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज चौफूली चूंदड़ी की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरीया के धराये जाते है.

श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. आभरण हीरा मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सलमा सितारा का मुकुट व टोपी एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं आती हैं.श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थाग वाली दो सुन्दर मालाजी एवं कमल के फूल की मालाजी धरायी जाती है. श्रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी ( एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी मीना की धराई जाती हैं.

व्रज – पौष कृष्ण दशमी

व्रज – पौष कृष्ण दशमी Sunday, 14 December 2025 श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृं...