इतना विश्वास वैष्णव को रखना चाहिए कि भगवान कभी भी हमे कर्म के आधीन नहीं रखते । पुषिजीव का जीवन केवल कर्माधीन नहीं 'कृष्णाधीन" है।
कई बार हम कहते हैं कि कर्मों का फल है लेकिन हम पुष्टि जीव हैं , "श्रीठाकुर जी " दुख सुख के झूले में हमें नहीं झुलाते । "श्री कृष्ण" हम जीवों के सुख दुख के पीछे बराबर दृष्टि रखते हैं।
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