व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी(द्वादशी क्षय)
Saturday, 12 December 2020
शीतकाल की प्रथम चौकी
कल की पोस्ट मेंये बताना रह गया था कल के दिन विक्रमाब्द 2063 में श्री नवनीतप्रियाजी व्रज-विहार पूर्ण कर सकुशल नाथद्वारा पधारे व निज मंदिर में विराजे थे.
इस भाव का उत्सव कल मनाया जाता है. प्रभु को मनोरथ के रूप में अधिक सामग्रियां अरोगायी जाती है.
मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी की) श्रीजी को अरोगायी जाती है.
इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है.
यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है. श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है.
इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है.
उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में उन किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें.
इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.
देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है.
इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है.
यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी.
खैर....यह तो हुई भावना की बात....बालक श्रीकृष्ण तो पृथ्वी से अपने मामा कंस के अत्याचारों का भार कम करने को ही अवतरित हुए थे जो कि उन्होंने किया भी. ऊपर के दांत आना तो एक लौकिक संकेत था कि प्रभु पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने आ चुके हैं.
आज की चौकी में श्रीजी को मंगलभोग में तवापूड़ी अरोगायी जाती है. चौकी के भोग धरने और सराने में लगने वाले समय के कारण पंद्रह मिनिट का अतिरिक्त समय लिया जाता है.
श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी होता है.
आज के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं.
आज प्रभु को बैंगनी घेरदार वस्त्र पर सुनहरी ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) धरायी जाती है. प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष हीरे का चपड़ास (गुंडी-नाका) श्रीमस्तक पर बैंगनी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर लूम की सुनहरी किलंगी धरायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आशावरी)
व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में बेंगनी रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग का बिना किनारी का सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं सुनहरी ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी एवं बैंगनी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर बैंगनी रंग के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.आज फ़तवी धराए जाने से कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्तं में हीरा की मुठ के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती हैं.
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