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Friday, 25 December 2020

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी
Saturday, 26 December 2020

शीतकाल की द्वितीय चौकी

विशेष –मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है. 

इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है. 

यह सामग्री प्रभु श्रीकृष्ण के ननिहाल से अर्थात यशोदाजी के पीहर से आती है. श्रीजी में इस भाव से चौकी की सामग्री श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध हो कर आती है, अनसखड़ी में अरोगायी जाती है परन्तु सखड़ी में वितरित की जाती है. 

इन सामग्रियों को चौकी की सामग्री इसलिए कहा जाता है क्योंकि श्री ठाकुरजी को यह सामग्री एक विशिष्ट लकड़ी की चौकी पर रख कर अरोगायी जाती है. 

उस चौकी का उपयोग श्रीजी में वर्ष में उन किया जाता है जब-जब श्री ठाकुरजी के ननिहाल के सदस्य आमंत्रित किये जायें. इन चौकी के अलावा यह चौकी श्री ठाकुरजी के मुंडन के दिवस अर्थात अक्षय-तृतीया को भी धरी जाती है.

देश के बड़े शहर प्राचीन परम्पराओं से दूर हो चले हैं पर आज भी हमारे देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ऐसी मान्यता है कि अगर बालक को पहले ऊपर के दांत आये तो उसके मामा पर भार होता है. इस हेतु बालक के ननिहाल से काले (श्याम) वस्त्र एवं खाद्य सामग्री बालक के लिए आती है. 

यहाँ चौकी की सामग्रियों का एक यह भाव भी है. बालक श्रीकृष्ण को भी पहले ऊपर के दांत आये थे. अतः यशोदाजी के पीहर से श्री ठाकुरजी के लिए विशिष्ट सामग्रियां विभिन्न दिवसों पर आयी थी. 

खैर....यह तो हुई भावना की बात....बालक श्रीकृष्ण तो पृथ्वी से अपने मामा कंस के अत्याचारों का भार कम करने को ही अवतरित हुए थे जो कि उन्होंने किया भी. ऊपर के दांत आना तो एक लौकिक संकेत था कि प्रभु पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्ति दिलाने आ चुके हैं.

आज द्वितीय चौकी है जिसमें श्रीजी को मंगलभोग में खीरवड़ा अरोगाये जाते हैं. प्रभु को खीरवड़ा वर्षभर में केवल आज के दिन ही अरोगाये जाते हैं. 

चौकी के भोग धरने और सराने में लगने वाले समय के कारण पंद्रह मिनिट का अतिरिक्त समय लिया जाता है. 

श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी होता है.

आज का श्रृंगार भी ऐच्छिक है और संभवतया निम्न वर्णित श्रृंगार लिया जा सकता है.

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं जिन्हें प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगाया जाता है. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज तवापूड़ी (इलायची, मावे व तुअर की दाल के मीठे मसाले से भरी पूरनपोली जैसी सामग्री जिसमें आंशिक रूप में कस्तूरी भी मिलायी जाती है) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी.

उत्थापन में फलफूल के साथ अरोगाये जाने वाले फीके के स्थान पर आज छप्पनभोग के लिए सिद्ध की जा रही उड़द की दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – कीर्तन – (राग : खट)

सुनोरी आज नवल वधायो है l
श्रीवल्लभगृह प्रकट भये पुरुषोत्तम जायो है ll 1 ll
नयननको फल लेउ सखी भयो मन को भायो है l
गिरिधरलाल फेर प्रगटे है भाग्य ते पायो है ll 2 ll
मणिमाला वंदन माला द्वारद्वार बंधायो है l
श्रीगोकुल में घरघरन प्रति आनंद छायो है ll 3 ll
द्विजकुल उदित चंद सब विश्वको तिमिर नसायो है l
भक्त चकोर मगन आनंदित हियो सिरायो है ll 4 ll
महाराज श्रीवल्लभजी दान देत मन भायो है l
जो जाके मन हुती कामना सो तिन पायो है ll 5 ll
जाके भाग्य फले या कलिमें तिन दरशन पायो है l
करि करुणा श्रीगोकुल प्रगटे सुखदान दिवायो है ll 6 ll
मर्यादा पुष्टिपथ थापनको आपते आयो है l
अब आनंद वधायो हैरी दुःख दूर बहायो है ll 7 ll
रानी धन्य धन्य भाग सुहागभरी जिन गोद खिलायो है l
‘रसिक’ भाग्यते प्रकट भये आनंद दरसायो है ll 8 ll   

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की साटन (Satin) की गुलाबी रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया के दोनों ओर रुपहली ज़री की किनारी लगी होती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग की साटन (Satin) का लाल गॉट वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, गुलाबी किनारी से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी भी गुलाबी फून्दों से सुसज्जित होते हैं. लाल दरियाई वस्त्र के बन्ध धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, दोहरा मोर कतरा सुनहरी दोहरी फोदना को एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज त्रवल की जगह कंठी धराई जाती हैं.श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में सुआ के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाती हैं.   
पट हरा एवं गोटी सोना की आती है.

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