व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी
Wednesday, 02 June 2021
श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव का क़तरा का श्रृंगार
जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव का क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.
राजभोग दर्शन –
साज – (राग : सारंग)
चलो सखी कुंज गोपाल जहाँ l
तेरी सों मदनमोहनमें चल ले जाऊं तहां ll 1 ll
आछे कुसुम मंद मलयानिल तरु कदम्ब की छांह l
तहां निवास कियो नंदनंदन चित्त तेरे मन मांह ll 2 ll
ऐसीरी बात सुनत व्रजसुंदरी तोहि रह्यो क्यों भावे l
‘परमानंद’ स्वामी मन मोहन भाग्य बड़े ते पावे ll 3 ll
साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के पतले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर श्वेत छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार की एक व एक कमलमाला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
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