व्रज - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा
Friday, 05 November 2021
अन्नकूट कोटिन भांतनसो भोजन करत गोपाल ।
आपही कहत तात अपनेसों गिरि मूरति देखो तत्काल ।।१।।
सुरपति से सेवक इनही के शिव विरंची गुण गावे ।
इनहीते अष्ट महा सिध्धि नवनिधि परम पदारथ पावे ।।२।।
हम गृह बसत गोधन बन चारत गोधन ही कुलदेव ।
इने छांड जो करत यज्ञ विधि मानो भींतको लेव ।।३।।
यह सुन आनंदे ब्रजवासी आनंद दुंदुभी बाजे ।।
घरघर गोपी मंगल गावे गोकुल आन बिराजे ।।४।।
गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव, गुजराती नववर्ष आरम्भ
आज शंखनाद होने के पश्चात श्रीनवनीतप्रियाजी अपने निज मंदिर में पधारते हैं.
आज लगभग 6.30 बजे के उपरांत मंगला दर्शन खुलते हैं जो लगभग 1.30 घंटे खुले रहते हैं.
विगत कल (दीपावली की रात्रि) वस्त्र, श्रृंगार बड़े नहीं किये जाते अतः आज मंगला दर्शन उन्हीं वस्त्र, श्रृंगार में होते हैं.
मंगला दर्शन उपरांत डोल-तिबारी में अन्नकूट भोग सजाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं अतः अन्य सभी समां के दर्शन भीतर होते हैं. दिन भर का पूरा सेवाक्रम भीतर होता रहता है.
रात्रि लगभग 8.30 बजे पश्चात अन्नकूट के दर्शन खुलते हैं जो कि लगभग 1 बजे तक होते हैं.
महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
कार्तिक कृष्ण दशमी से आज कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं.
ये सामग्रियां आज अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में धांस (उड़द दाल) की बूंदी के लड्डू व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
राजभोग पश्चात गोवर्धन पूजा की जाती है.
राजभोग दर्शन –
साज - श्रीजी में सर्व साज दीपावली के दिवस धरा हुआ ही आज भी धराया जाता है.
वस्त्र – श्रीजी को आज दीपावली के दिवस धरे गये श्वेत ज़री के वस्त्र ही धराये जाते हैं.
श्रृंगार वृद्धि में राजभोग के पश्चात ऊर्ध्व भुजा की ओर लाल रंग का ज़री का बिना तुईलैस किनारी बिना का पीताम्बर धराया जाता है जिनके दो अन्य छोर चौखटे के ऊपर रहते हैं.
ऐसा पीताम्बर वर्ष में दो बार (आज के दिन व जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन) धराया जाता है.
जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन यह केवल चौखटे पर धराया जाता है परन्तु आज यह श्रीहस्त में भी धराया जाता है.
प्रभु यह पीताम्बर गायों, ग्वालों और निजजनों पर फिरातें हैं जिससे उनको नज़र ना लगे.
चतुर्भुजदास जी ने इस भाव का एक पद भी गाया है.
खेली बहु खेली गाय, बुलाई घुमर घोरी ।
बछरा ऊपर 'ऊपरना फेरत’ दाढ़ मेल के डोरी ।।
आप गोपाल फ़ूक मारत है गौ सुत भरत अंकोरी ।
घों घों करत लकुट कर लीने ‘मुख फेरत पिछोरी’ ।।
श्रृंगार – आज अभ्यंग नहीं होता. सर्व श्रृंगार दीपावली के दिवस के ही रहते हैं.
आज दो जोड़ी के एक माणक और एक पन्ना की प्रधानता वाले शृंगार धरे जाते हैं. दोनो हालरा नहीं धराये जाते हैं.
केवल श्रीमस्तक के ऊपर लाल रंग की ज़री की तुई की किनारी वाला गौकर्ण धराया जाता है.
इसी प्रकार कुल्हे के ऊपर सिरपैंच बड़ा कर दिया जाता है और इसके बदले जड़ाव पान धराया जाता है.
कमलछड़ी एवं पुष्प मालाजी दीपावली के दिवस के होते हैं अतः बदले जाते हैं.
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