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Thursday, 9 December 2021

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी
Friday, 10 December 2021

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का उत्सव है.
पुष्टिसम्प्रदाय के हितों के रक्षणकर्ता, श्री वल्लभ के सिद्धांतों को वार्ता आदि के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले श्री गोकुलनाथजी का यह पुष्टिमार्ग सदा ऋणी रहेगा.

ऐसे पुष्टि के यश स्वरुप वैष्णव प्रिय श्री गोकुलनाथजी के प्राकट्योत्सव की बधा

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. 

दिनभर के सभी कीर्तनों में झांझ बजायी जाती है. सभी समय के कीर्तनों में गोकुल शब्द वाले बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

विगत रात्रि से पौष कृष्ण अष्टमी तक श्रीजी को प्रतिदिन शयन के अनोसर में व राजभोग पश्चात अनोसर में दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध की गयी सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाती है.
केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, विभिन्न सूखे मेवों, घी व मावा सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. 
पौष कृष्ण नवमी को श्री गुसांईजी के उत्सव के दिवस से शाकघर की सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी.

श्री गोकुलनाथजी ने श्रीजी को मुकुट, कुल्हे, मोजाजी एवं तोड़ा आदि जड़ाव स्वर्ण के भेंट किये थे उसमें से आज जड़ाव की कुल्हे एवं मोजाजी प्रभु को धराये जाते हैं.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

अनसखड़ी में राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरणकमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वार वार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला निज प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावन चंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करूणामय नाथ सदा आनंद निधि कंदे ।
वारते भगवानदास विहरत सदा रसिकरास जय जय यश बोल बोल गावते श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल के आधारवस्त्र के ऊपर सुरमा सितारा की, कशीदे की पुष्प-लताओं के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के छापा के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. जड़ाऊ मोजाजी के ऊपर लाल रंग के फूंदे शोभित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु टोडर धराया जाता है. आज श्रीकंठ में बघनखा भी धराया जाता है.
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में माणक के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (माणक व हीरा) धराये जाते हैं.
आरसी चार झाड की, पट उत्सव का व गोटी सोने की जाली की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार, जड़ाऊ मोजाजी व कुल्हे बड़े किये जाते हैं. आभरण छेड़ान के धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे व मोजाजी भी लाल छापा के ही धराये जाते हैं. 

आज से बसंत पंचमी तक श्रीजी में शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 
कई लोगों में यह भ्रांति है कि इन दिनों श्रीजी शयन समय व्रज पधारते हैं इसलिए नाथद्वारा में शयन के दर्शन नहीं होते. 

इस विषय में मैं स्पष्ट कर दूं कि नाथद्वारा में शयन पूरे वर्ष होते हैं, केवल प्रभु सुखार्थ कुछ विशिष्ट कारणों से आज से बसंत पंचमी व रामनवमी से आश्विन शुक्ल नवमी (मातृनवमी) तक शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

दर्शन के अतिरिक्त शयन का सभी सेवाक्रम (शयनभोग, शयन-आरती व अनोसर का क्रम) पूर्ववत ही रहता है.

शीतकाल में शयन के दर्शन बाहर नहीं खोलने का मुख्य कारण यह है कि शीत से बचाव के लिए संध्या-आरती दर्शन के पश्चात भीतर की सोहनी कर सभी द्वार बंद कर दिए जाते हैं. डोल-तिबारी, मणिकोठा आदि विभिन्न स्थानों पर अंगीठी रखी जाती है. 

यदि शयन के दर्शन खोले जाएँ तो इस क्रम (सोहनी करने, द्वार बंद करने व अंगीठी रखने का) में देरी हो जाएगी और भीतर शीत भी प्रवेश कर जाएगी.

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