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Saturday, 12 March 2022

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी
Sunday, 13 March 2022

खेलतु फाग लख्यौ पिय प्यारी कों,
 ता सुख की उपमा किहीं दीजै।
देखत ही बनि आवै भलै 'रसखान' ,
कहा है जो वारि न कीजै।।
ज्यौं ज्यौं छबीली कहै पिचकारी लै ,
एक लई यह दूसरी लीजे।
त्यौं त्यौं छबीलो छकै छाक सौं ,
हेरै हंसे न टरै खरौ भीजे।

आप (तिलकायत श्री) के श्रृंगार (त्रयोदशी का  श्रृंगार)

नवमी से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी शृंखला में आज त्रयोदशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.

विशेष – आज सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है और दो समय आरती थाली में होती है.

इन दिनों प्रभु को आपके श्रृंगार धराये जा रहे हैं. 
इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को नियम के श्वेत जामदानी के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सुनहरी जमाव का कतरा का श्रृंगार धराया जाता है. आभरण छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक धराये जाते हैं.

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 

इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज के अतिरिक्त दही की सेव (पाटिया) के लड्डू केवल डोलोत्सव, अक्षय नवमी व नागपंचमी के दिन अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है.
 
प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

हरिको डोल देख व्रजवासी फूले l गोपी झुलावे गोविंद झूले ll 1 ll
नंद चंद गोकुल में सोहे l मुरली मन्मथ मन मोहे ll 2 ll
कमलनयन को लाड़ लड़ावे प्रमुदित गीत मनोहर गावे ll 3 ll
रसिक शिरोमनि आनंद सागर l ‘सूरदास’ प्रभु मोहननागर ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी का छींट वाला सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. अत्यधिक गुलाल खेल के कारण वस्त्र लाल प्रतीत होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर स्याम खिड़की की सफ़ेद छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी नागफणी (जमाव) का कतरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मीना के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में एक अक्काजी की माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते है.
यदि सर्दी कम हो और कोई मनोरथी हो तो श्री तिलकायतजी की आज्ञा लेकर शयन में पुष्पों के आभरण धराये जा सकते हैं. 

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