व्रज - श्रावण शुक्ल पूर्णिमा
Friday, 12 August 2022
बहेन सुभद्रा राखी बांधत बल अरु श्री गोपाल के ।
कनकथार अक्षतभर कुंकुंम तिलक करत नंदलाल के।।१।।
आरती करत देत न्योछावर वारत मुक्ता मालके ।
आसकरण प्रभु मोहन नागर प्रेम पुंज व्रजलालके ।।२।।
सभी वैष्णवों को रक्षाबंधन एवं नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी के प्राकट्योत्सव की बधाई
रक्षाबंधन, नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव
श्रीजी में पवित्रा की भांति ही रक्षा (राखी) भी शुभमुहूर्त से कभी प्रातः श्रृंगार दर्शन में और कभी उत्थापन दर्शन में धरायी जाती है.
विश्व में अधिकांश भागों पर रक्षाबंधन विगत कल गुरुवार, 11 अगस्त को मानी गयी है परंतु पुष्टिमार्ग में सूर्योदय के समय की तिथि से त्यौहार मनाया जाता है व भद्रा रहित काल में श्री ठाकुरजी को रक्षा धरायी जाती है अतः श्रीजी में आज श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (शुक्रवार, 12 अगस्त) को प्रातः श्रृंगार समय श्रीजी को रक्षा (राखी) धरायी जाएगी.
सभी वैष्णव अपने सेव्य ठाकुरजी को शृंगार दर्शन के पश्चात रक्षा (राखी) धरा सकते हैं.
वैष्णव अपनी बहनो से राखी शृंगार में श्रीजी को राखी धराने के उपरान्त अपने सेव्य ठाकुरजी को रक्षा (राखी) धराने के पश्चात बंधाते हैं.
विशेष – आज रक्षाबंधन का पर्व है.
बहन अपने भाई की मंगलकामना हेतु राखी बांधती है इस भाव से बहन सुभद्रा राखी बांधती है, गर्गादिक ऋषि भी राखी बांधते हैं, माता यशोदा भी लालन की रक्षा हेतु राखी बांधती है.
इन सभी भावनाओं के कीर्तन अष्टसखाओं ने गाये हैं. यह पर्व व्रज में सर्वत्र मनाया जाता है.
आज श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री दामोदरजी का प्राकट्योत्सव भी है.
आप का प्राकट्य विक्रम संवत १६३२ में आज के दिन हुआ था.
आपने अपने जीवनकाल में श्रीजी के विविध मनोरथ किये थे. आपश्री वेदज्ञ, मन्त्रज्ञ, अत्यंत तेजस्वी एवं सरल स्वाभाव के थे.
एक बार आपश्री से छुपा कर श्रीजी के तत्कालीन अधिकारी ने प्रभु सेवा के तीन लाख रुपये एक वृक्ष के नीचे गाड़ दिए थे तब श्रीजी ने स्वयं आपश्री को यह बात बतायी और आपने तुरंत रुपये मंगाकर श्रीजी को अर्पण कर दिए थे.
आज से श्रीजी में जन्माष्टमी की बड़ी बधाई बैठती भी है जिससे पिछवाई, गादी, तकिया आदि सर्व साज लाल मखमल के आते हैं. जड़ाव स्वर्ण के पात्र, चौकी, पडघा, शैयाजी आदि आते हैं.
आज से नवमी तक आगे के सर्वसाज पर श्वेत की जगह लाल रंग की मख़मल के साज आते हैं.
श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समां (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) में आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दीवला सभी सोने के आते हैं.
आज से नवमी तक आगे सफ़ेदी नहीं चढ़ती हैं एवं तकिया लाल मख़मल के आते हैं.
मंगला के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
श्रीजी प्रभु को नियम से लाल मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
शृंगार दर्शन में सुबह 6.45 बजे के आसपास झालर,घण्टा बजाते हुए व शंखध्वनि के साथ श्रीजी को तिलक, अक्षत कर दोनों श्रीहस्त में एवं दोनों बाजूबंद के स्थान पर रक्षा (राखी) बांधी जाएगी. तदुपरांत भेंट की जाएगी और दर्शन उपरांत उत्सव भोग धरे जाएंगे.
श्रीजी को रक्षा (राखी) धराए जाने के पश्चात सभी स्वरूपों को रक्षा (राखी) धराई जाती हैं.
उत्सव भोग में विशेष रूप से गुलपापड़ी (गेहूं के आटे की मोहनथाल जैसी सामग्री), दूधघर में सिद्ध केशर-युक्त बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, घी में तले बीज-चालनी के सूखे मेवे, विविध प्रकार के संदाना और फल आदि अरोगाये जाते हैं.
अनोसर में श्रीजी के सनमुख अत्तरदान,
मिठाई का थाल, चोपड़ा,चार बीड़ा आरसी इत्यादि धरे जाते हैं.
आज के अलावा श्रीजी को गुलपापड़ी केवल घर के छप्पनभोग (माघशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा) के दिन ही आरोगायी जाती है.
आज नियम से श्रीजी में प्रभु श्री मदनमोहनजी कांच के हिंडोलने में झूलते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l
नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll
राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l
चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll
माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l
बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll
हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l
हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll
चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l
‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll
साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी के ऊपर सफेद और तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. पीठिका और पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.
वस्त्र - श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का रूपहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता से मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार चिल्ला वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.नीचे पाँच पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.श्वेत पुष्पों की मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
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