By Vaishnav, For Vaishnav

Wednesday, 30 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी
Thursday, 01 December 2022

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप का उत्सव

सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप के उत्सव की बधाई

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनेशजी महाराज कृत सात स्वरुप के उत्सव का दिवस है. श्री गोवर्धनेशजी महाराज श्री ने मेवाड़ में सर्वप्रथम वि.सं.1796 में आज के दिन सप्तस्वरूपोत्सव किया था.
 
श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं.

सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है. 

श्रीजी को नियम के लाल खीनखाब के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे धरायी जाती है. 

मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी से मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा तक पूर्णिमा को होने वाले घर (नियम) के छप्पनभोग उत्सव के लिए विशेष सामग्रियां सिद्ध की जाती हैं. 
ये विशेष रूप से सिद्ध हो रही सामग्रियां प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं. 
इसी श्रृंखला में श्रीजी को आज दहीथड़ा (दही के मोयन युक्त खस्ता ठोड़) का भोग अरोगाया जाता है. यह सामग्री छप्पनभोग के दिवस भी अरोगायी जाएगी. 

इसके अतिरिक्त उत्सव भाव से श्रीजी को आज विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है.

कल मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी (नवमी क्षय) को श्री गुसाईजी के उत्सव की बधाई बैठेगी. श्रीजी में तृतीय (लाल) घटा होगी.

राजभोग दर्शन – 

साज – आज श्रीजी में गहरे लाल रंग के मखमल के वस्त्र के ऊपर कांच के टुकड़ों के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल खीनख़ाब की बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग का सुनहरी ज़री के बूटों वाला खीनख़ाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं टंकमा हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. पटका केसरी धराया जाता है.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सबकी माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जड़ाऊ व आरसी चार झाड की आती है.

Tuesday, 29 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी
Wednesday, 30 November 2022                      

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी का उत्सव है.
पुष्टिसम्प्रदाय के हितों के रक्षणकर्ता, श्री वल्लभ के सिद्धांतों को वार्ता आदि के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने वाले श्री गोकुलनाथजी का यह पुष्टिमार्ग सदा ऋणी रहेगा.

ऐसे पुष्टि के यश स्वरुप वैष्णव प्रिय श्री गोकुलनाथजी के प्राकट्योत्सव की बधाई
( गोकुलनाथजी का विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में )

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल वंदनमाल बाँधी जाती हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सोने के आते हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. 

दिनभर के सभी कीर्तनों में झांझ बजायी जाती है. सभी समय के कीर्तनों में गोकुल शब्द वाले बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं.

विगत रात्रि से पौष कृष्ण अष्टमी तक श्रीजी को प्रतिदिन शयन के अनोसर में व राजभोग पश्चात अनोसर में दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध की गयी सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाती है.
केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, विभिन्न सूखे मेवों, घी व मावा सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है. 
पौष कृष्ण नवमी को श्री गुसांईजी के उत्सव के दिवस से शाकघर की सौभाग्य-सूंठ अरोगायी जाएगी.

श्री गोकुलनाथजी ने श्रीजी को मुकुट, कुल्हे, मोजाजी एवं तोड़ा आदि जड़ाव स्वर्ण के भेंट किये थे उसमें से आज जड़ाव की कुल्हे एवं मोजाजी प्रभु को धराये जाते हैं.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

अनसखड़ी में राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है.

राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीविट्ठलेश चरणकमल पावन त्रैलोक करण दरस परस सुंदर वर वार वार वंदे ।
समरथ गिरिराज धरण लीला निज प्रकट करण संतन हित मानुषतनु वृंदावन चंदे ।।१।।
चरणोदक लेत प्रेत ततक्षण ते मुक्त भये करूणामय नाथ सदा आनंद निधि कंदे ।
वारते भगवानदास विहरत सदा रसिकरास जय जय यश बोल बोल गावते श्रुति छंदे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज लाल मखमल के आधारवस्त्र के ऊपर सुरमा सितारा की, कशीदे की पुष्प-लताओं के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के छापा के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जड़ाऊ मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. जड़ाऊ मोजाजी के ऊपर लाल रंग के फूंदे शोभित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. त्रवल नहीं धराये जाते परन्तु टोडर धराया जाता है. आज श्रीकंठ में बघनखा भी धराया जाता है.
श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में माणक के वेणुजी एवं दो वैत्रजी (माणक व हीरा) धराये जाते हैं.
आरसी चार झाड की, पट उत्सव का व गोटी सोने की जाली की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार, जड़ाऊ मोजाजी व कुल्हे बड़े किये जाते हैं. आभरण छेड़ान के धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे व मोजाजी भी लाल छापा के ही धराये जाते हैं. 

आज से बसंत पंचमी तक श्रीजी में शयन दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 
कई लोगों में यह भ्रांति है कि इन दिनों श्रीजी शयन समय व्रज पधारते हैं इसलिए नाथद्वारा में शयन के दर्शन नहीं होते. 

इस विषय में मैं स्पष्ट कर दूं कि नाथद्वारा में शयन पूरे वर्ष होते हैं, केवल प्रभु सुखार्थ कुछ विशिष्ट कारणों से आज से बसंत पंचमी व रामनवमी से आश्विन शुक्ल नवमी (मातृनवमी) तक शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

दर्शन के अतिरिक्त शयन का सभी सेवाक्रम (शयनभोग, शयन-आरती व अनोसर का क्रम) पूर्ववत ही रहता है.

शीतकाल में शयन के दर्शन बाहर नहीं खोलने का मुख्य कारण यह है कि शीत से बचाव के लिए संध्या-आरती दर्शन के पश्चात भीतर की सोहनी कर सभी द्वार बंद कर दिए जाते हैं. डोल-तिबारी, मणिकोठा आदि विभिन्न स्थानों पर अंगीठी रखी जाती है. 

यदि शयन के दर्शन खोले जाएँ तो इस क्रम (सोहनी करने, द्वार बंद करने व अंगीठी रखने का) में देरी हो जाएगी और भीतर शीत भी प्रवेश कर जाएगी.

Sunday, 27 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी
Monday, 28 December 2022

श्रीजी में श्रीनवनीतप्रियाजी का द्वितीय मंगलभोग, श्री मदनमोहनजी (कामवन) का पाटोत्सव

आज श्रीजी को पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की किनारी के फूलों से सुसज्जित सूथन, चोली घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

सुन मेरो वचन छबीली राधा, तै पायो रससिन्धु अगाधा ।।१।।
जे रस निगम नेति नेति भाख्यो ताकौ ते अधरामृत चाख्यो ।।२।।
शिव विरंचि के ध्यान न आवे,ताकौ कुंजनि कुसुम बिनावे ।।३।।
तू वृषभानु गोपकी बेटी मोहनलाल को भावते भेटी ।।४।।
तेरो भाग्य नहि कहत आवे कछुक रस परमानंद पावे ।।५।।

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का सुनहरी ज़री के पुष्पकाम के वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते है.

श्रीमस्तक पर हीरा की जड़ाऊ गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, चमकनी गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में झुमका के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 लाल रंग एवं श्वेत रंग के पुष्पों की दो अत्यंत सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

 श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी ( भाभीजी वाले) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर हीरा की पाग बड़ी कर के गुलाबी गोल पाग धरा कर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

Saturday, 26 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी
Sunday, 27 November 2022

 शीतकाल के सेहरा को प्रथम शृंगार

मंगल भीनी प्यारी रात। 
नवल रंग देखो, देखो कुंज सुहात ।।ध्रु।। 
दुल्हनि प्यारी राधिका दुल्हे नंद सुजान । 
ब्याह रच्यो संकेत सदन ललिता रचित बितान ।। 
चहल पहल आनंद महेलमें जों न रूप दरसात । 
दुलहनिको मुख निरखके पिय ईकटक रही जात।। 
अंस भुजा कर दोऊ चलत हंसगती चाल । 
गावत मंगल रीत सों चलेहें भावते भवन ।। 
कुसुम सेज विहरत दोऊ जहां न कोऊ पांस । 
यह जोरी छबी देख कें बल बल "नागरीदास"।। 
मंगल भीनी प्यारी रात ।।

शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को साठा के रस की लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.

आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विवाह के सेहरा के शृंगार में विराजमान हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. केसरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट केसरी एवं गोटी उत्सव की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं पर दुमाला बड़ा नहीं किया जाता हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर दुमाला पर टिका एवं सिरपेच धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.
अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

Friday, 25 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया
Saturday, 26 November 2022

हरे साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और चंद्रिका या क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर चंद्रिका या क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

चलरी सखी नंदगाम जाय बसिये ।खिरक खेलत व्रजचन्दसो हसिये ।।१।।
बसे पैठन सबे सुखमाई ।
ऐक कठिन दुःख दूर कन्हाई ।।२।।
माखनचोरे दूरदूर देखु ।
जीवन जन्म सुफल करी लेखु ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा ।
कठिन प्रीति परमानंद दासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हल्के हरे रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरी गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,जमाव का क़तरा एवं चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल के एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Thursday, 24 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया
Friday, 25 November 2022

    दूज को चंदा (चंदा उगे को श्रृंगार) 
                                                  
बनठन कहां चले अैसी को मन भायी सांवरेसे कुंवर कन्हाई ।
मुख तो सोहे जैसे दूजको चंदा छिप छिप देत दिखाई ।।१।।
चले ही जाओ नेक ठाड़े रहो किन अैसी शिख शिखाई ।
नंददास प्रभु अबन बनेगी निकस जाय ठकुराई ।।२।।

( आज शयन समय प्रभु के सनमुख गाये जाने वाला अद्भुत कीर्तन )

विशेष – नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी की भावना के आधार पर चन्द्रमा के पदों पर आधारित यह ‘पांच चन्द्र (पिछवाई पर, कतरा में, शीशफूल में, वक्षस्थल पर और स्वयं श्रीप्रभु का मुखचंद्र)’ (दूज को चंदा) चंदा उगे को शृंगार विक्रम संवत १९७४ में आज के दिन किया था. 
तब से प्रतिवर्ष यह श्रृंगार आज के दिन धराया जाता है. 

इस श्रृंगार के पीछे यह भावना है कि बालक श्रीकृष्ण ने मैया यशोदाजी से चन्द्रमा को लेने की जिद की तब यशोदाजी ने उन्हें ये पांच चंद्रमा बताये.

इसकी अन्य भावना यह है कि स्वामिनीजी नंदालय में आधा नीलाम्बर ओढ़कर अपने चन्द्र स्वरुप प्राण प्रिय प्रभु के दर्शन कर रहीं हैं. 
प्रभु के चन्द्र समान मुखारविंद के भाव से यह श्रृंगार धराया जाता है (इस भाव का कीर्तन नीचे देखें). 

सभी घटाओं की भांति आज भी श्रृंगार से राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में कुछ जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

आधो मुख नीलाम्बरसो ढांक्यो बिथुरी अलके सोहे l
एक दिसा मानो मकर चांदनी घन विजुरी मन मोहे ll 1 ll
कबहु करपल्लवसो केश निवारत निकसत ज्यों शशि जोहे l
‘सूरदास’ मदनमोहन ठाड़े निहारत त्रिभुवन में उपमा को है ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज धरायी जाने वाली श्याम मखमल की पिछवाई में चन्द्रमा एवं तारों का सलमा-सितारा का रुपहली ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. श्री स्वामिनीजी एवं श्री चन्द्रावलीजी दोनों प्रभु के दोनों ओर फ़िरोज़ी रंग का नीलाम्बर ओढ़ कर खड़े हैं ऐसा सुन्दर चित्रांकन पिछवाई में किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज बिना किनारी का रुपहली ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का परन्तु कलात्मक श्रृंगार धराया जाता है. मोती के आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर आज विशिष्ट श्रृंगार किया जाता है. रुपहली ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, चन्द्र घाट का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल के ऊपर भी चन्द्रमा धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर अलख धराये जाते हैं. 
दूज के चंद्रमा के आकार का जड़ाव स्वर्ण का हांस (जुगावाली) धराया जाता है एवं वक्षस्थल पर चन्द्रहार धराया जाता है.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 

सभी समय सफेद मनका की माला आती है. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज दिनभर सभी समय में चन्द्रमा के भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.
शयन समय एक अद्भुत कीर्तन प्रभु सम्मुख गाया जाता है -
बन ठन कहाजु चले लाल ऐसी को मन भायी
सांवरे हो कुंवर कनहाई...

आज के दिन भी संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

Wednesday, 23 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा
Thursday, 24 November 2022

पीले साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग और जमाव का क़तरा एवं  रूपहरी तुर्री के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग और जमाव का क़तरा एवं  रूपहरी तुर्री का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

अबही डार देरे ईडुरिया मेरी पचरंगी पाटकी ।
हाहाखात तेरे पैया परत हो इतनो लालच मोहि मथुरा नगरके हाटकी ।।१।।
जो न पत्याऊ जाय किन देखो मनमोहन हैज़ु नाटकी ।
मदन मोहन पिय झगरो कौन वध्यो सो देखेंगी लुगाई वाटकी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग के साटन पर  सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका पीले मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पचरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच और जमाव का क़तरा व रूपहरी तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल की धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. रेशम की लूम धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 22 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या(चतुर्दशी क्षय)
Wednesday, 23 November 2022

अरि हों श्याम रंग रंगी ।
रिझवे काई रही सुरत पर सुरत मांझ पगी ।।१।।
देख सखी अेक मेरे नयनमें बैठ रह्यो करी भौन ।
घेनु चरावन जात वृंदावन सौंधो कनैया कोन ।।२।।
कौन सुने कासौ कहे सखी कौन करे बकवाद ।
तापे गदाधर कहा कही आवे गूंगो गुड़को स्वाद ।।३।।

द्वितीय (श्याम) घटा

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं.

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. 
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में श्याम कुंज के भाव से आज श्रीजी में श्याम घटा होगी. 

आज सभी साज, वस्त्र, श्रृंगार आदि श्याम रंग के होते हैं. कीर्तन भी श्याम घटा की भावना के ऐसे गाये जाते हैं जिनमें ‘श्याम’ शब्द आवे अथवा ‘श्याम’ का नाम आवे. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

माई मेरो श्याम लग्यो संग डोले l
जहीं जहीं जाऊं तहीं सुनी सजनी बिनाहि बुलाये बोले ll 1 ll
कहा करो ये लोभी नैना बस कीने बिन मोले l
‘हित हरिवंश’ जानि हितकी गति हसि घुंघटपट खोले ll 2 ll 

स्यामा स्याम आवत कुंज महल ते रंगमगे-रंगमगे ।
मरगजी वनमाल सिथिल कटि किंकिन, अरुन नैन मानौं चारौ जाम जगे ।।१।।
सब सखी सुघराई गावत बीन बजावत, सब सुख मिली संगीत पगे ।
श्रीहरिदास के स्वामी स्याम कुंजबिहारी  की कटाक्ष सों कोटि काम दगे ।।२।।

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की साटन (दरियाई) की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर श्याम बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की साटन (दरियाई) का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी श्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. एक हार एवं पंचलड़ा धराया जाता है.
श्वेत रंग के पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. सभी समाँ में तुलसी की माला धरायी जाती है. हीरा की हमेल भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के हीरा के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराये जाते हैं.

आज के दिन विशेष रूप से संध्या-आरती व शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में हीरे के आभरण व प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है.

Monday, 21 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी
Tuesday, 22 November 2022

श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव, बड़ा मनोरथ (छप्पनभोग) 

विशेष – आज श्री गुसांईजी के सप्तम लालजी श्री घनश्यामजी का प्राकट्योत्सव है. श्री गुसांईजी ने आपको श्री मदनमोहनजी का स्वरुप सेवा हेतु प्रदान किया था. 

आज श्री घनश्यामजी की ओर से श्रीजी को कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है. 
श्री घनश्यामजी षडऐश्वर्य में वैराग्य के स्वरुप थे अतः प्रभु को मयूरपंख की जोड़, प्रभु में आपका अनुराग था अतः अनुराग के भाव के लाल वस्त्र एवं उभय स्वामिनी जी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 

आज गोपमास के भाव से श्री नवनीतप्रियाजी और कई अन्य कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में विशेष रूप से उड़द दाल की कचौरी अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी को नियम के लाल साटन के चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पन्ना की जडाऊ कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ भोग में ही श्री नवनीतप्रियाजी में से उड़द दाल की कचौरी व छुकमां दही श्रीजी के भोग हेतु आते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी पुत्रों के उत्सव सातों गृहों में मनाये जाते हैं अतः आज द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी एवं तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु सामग्री आती है. 

बड़ा मनोरथ (छप्पनभोग) 

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
 नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
 श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के पणा (मुरब्बा) का भोग अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात ) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं. 
प्रातः लगभग 11.30 बजे मनोरथी वैष्णव अपने मेहमानों के साथ बैंड-बाजे के साथ श्रीजी मंदिर की परिक्रमा कर श्री नवनीतप्रियाजी के बगीचे में एकत्र होंगे. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जयति रुक्मणी नाथ पद्मावती प्राणपति व्रिप्रकुल छत्र आनंदकारी l
दीप वल्लभ वंश जगत निस्तम करन, कोटि ऊडुराज सम तापहारी ll 1 ll
जयति भक्तजन पति पतित पावन करन कामीजन कामना पूरनचारी l
मुक्तिकांक्षीय जन भक्तिदायक प्रभु सकल सामर्थ्य गुन गनन भारी ll 2 ll
जयति सकल तीरथ फलित नाम स्मरण मात्र वास व्रज नित्य गोकुल बिहारी l
‘नंददास’नी नाथ पिता गिरिधर आदि प्रकट अवतार गिरिराजधारी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल साटन की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं इसी प्रकार के टंकमां हीरा के काम वाले मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (सोने व पन्ना के) धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे धरायी जाती है परन्तु लूम तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Sunday, 20 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी 
Monday, 21 November 2022

प्रथम द्वादशी (चोकी) के शृंगार

आज प्रभु को बैंगनी घेरदार वस्त्र पर सुनहरी ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) धरायी जाती है. प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष हीरे का चपड़ास (गुंडी-नाका) श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर लूम की सुनहरी किलंगी धरायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l
नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll
जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l
मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll
दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l
कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में बेंगनी रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग का बिना  किनारी का सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं सुनहरी ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी एवं बैंगनी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.आज फ़तवी धराए जाने से कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में हीरा की मुठ के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बैंगनी एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.
आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. अनोसर में श्रीमस्तक पर चीरा रहता हैं एवं आड़ी एवं ठाड़ी लड़ धरायी जाती हैं.लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 19 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी ( उत्पति एकादशी व्रत)
Sunday, 20 November 2022

बात हिलगही कासों कहिये।
सुनरी सखी बिवस्था या तनकी समझ समझ मन चुप करी रहिये ॥१॥ 
मरमी बिना मरम को जाने यह उपहास जग जग सहिये।
चतुर्भुजप्रभु गिरिधरन मिले जबही, तबही सब सुख पहिये ॥२॥

उत्पति एकादशी

आज की एकादशी को उत्पति एकादशी कहा जाता हैं. व्रज-कन्याओं ने प्रभु श्री कृष्ण को अपने पति रूप में पाने के लिए देवी कात्यायनी का व्रत किया था. तत्समय अन्याश्रय ना हो अतः आज के दिन श्री यमुना जी ने रेणु (रज़) से कात्यायनी देवी की प्रतिमा बना कर उनकी प्रथम उत्पत्ति की थी अतः इस एकादशी को उत्पत्ति एकादशी कहा जाता है. कात्यायनी देवी तामसी जीवों को वांछित फल देने वाली आधिदैविक तामसी शक्ति है.

आज उत्पत्ति एकादशी है परन्तु श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.
श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है.
एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं.

आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाव का धराया जाता है. 

आज की सेवा श्री ललिता जी की सखी कुंजरी जी की ओर से होती है.

आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ा के टीपारा का साज धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ।
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुण निधान जानबुझ एक तान चूक के बजाई ।। १ ।।
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन अति नवीन रूप सहित वही तान सूनाई ।
वल्लभ गिरिधरनलाल रीझ दई अंकमाल
कहत भले भले लाल सुंदर सुखदाई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं पीले ज़री का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का टीपारा एवं रूमाल बड़ा करके छज्जेदार पाग धराई जाती हैं. लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 18 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी
Saturday, 19 November 2022

प्रथम घटा (हरी)

विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. 
घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ कर दी जो कि आज भी चल रही हैं. 
इनमें कुछ घटाएँ नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ ऐच्छिक है जो खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –
अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में हरित कुंज के भाव से आज श्रीजी में हरी घटा होगी. 

इसका एक भाव और है कि प्रभु श्री श्यामसुंदर नीलवर्ण हैं और श्री स्वामिनी पीत वर्ण. दोनों वर्णों के मिलने से हरा रंग बनता हैं अतः आज सर्वप्रथम हरी घटा होती है. 

साज, वस्त्र, श्रृंगार, मालाजी आदि सभी हरे रंग के होते हैं. 
कीर्तन भी हरी घटा की भावना के गाये जाते हैं. 

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

मेरो माई हरि नागर सो नेह l
एक बैर कैसे छूटत है पूरब बढ्यो सनेह ll 1 ll
अंग अंग निपुन बन्यो जदुनंदन श्याम बरन सब देह l
जबते दृष्टि परे नंद नंदन विसर्यो गेह ll 2 ll
कोऊ निंदो कोऊ वंदौ मो मन गयो संदेह l
सरिता सिंधु मिलि ‘परमानंद’ भयो एक रस नेह ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज हरे रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर हरी बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग के दरियाई वस्त्र का रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार, एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, हरा रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 

श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हरे रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी हरे मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

आज के दिन विशेष रूप से शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. आरती की लौ की रौशनी में प्रभु के अद्भुत स्वरुप की अलौकिक छटा वास्तव में अद्वितीय होती है. इसी प्रकार आगामी अमावस्या को भी श्याम घटा के दिन भी विशेष रूप से शयन की आरती सभी बत्तियां (Lights) बुझा कर की जाती है. उसके बाद की सभी घटाओं में शयन के दर्शन बाहर होते ही नहीं अतः यह आनंद केवल दो घटाओं में ही प्राप्त हो सकता है.

Thursday, 17 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी
Friday, 18 November 2022

शीतकाल का प्रथम सखड़ी मंगलभोग

आज की सेवा श्री कृष्णावतीजी की ओर से होती है. आज विशेष रूप से मोती के काम वाले वस्त्र, गोल-पाग एवं श्रृंगार आदि नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराजश्री की आज्ञा से धराये जाते हैं. 
कीर्तन भी मोती की भावना वाले गाये जाते हैं.

कल मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को श्रीजी में प्रथम (हरी) घटा होगी.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

मोती तेहू ठोर सबरारे l
जबहि तेरे गई चितवत उत जब नंदलाल पधारे ll 1 ll
अर्ध प्रोवत म श्याम मनोहर निकसे आय सवारे l
आधी लट कर लेव चली है जित व्रजनाथ सिधारे ll 2 ll
‘दास चतुर्भुज’ प्रभु चित्त चोर्यो गेह के काज बिसारे l
गिरिधरलाल भेंट बनमें तृन तौर सबै व्रत डारे ll 3 ll

साज – श्रीजी को आज श्याम रंग की साटन की, रुपहले मोतियों की बूटियों वाली तथा रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्याम रंग की साटन के ऊपर ‘बसरा’ के मोतियों के सुन्दर काम वाला सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की मोती के काम वाली गोल-पाग, सिरपैंच, दोहरा मोतियों का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में मोती के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी चांदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 16 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी (द्वितीय)

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी (द्वितीय)
Thursday, 17 November 2022

बादामी साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को बादामी साटन  का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : तोड़ी)

अबही डार देरे ईडुरिया मेरी पचरंगी पाटकी ।
हाहाखात तेरे पैया परत हो इतनो लालच मोहि मथुरा नगरके हाटकी ।।१।।
जो न पत्याऊ जाय किन देखो मनमोहन हैज़ु नाटकी ।
मदन मोहन पिय झगरो कौन वध्यो सो देखेंगी लुगाई वाटकी ।।२।।

साज – श्रीजी में आज बादामी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बादामी रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर दुरंगी छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बादामी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 15 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी
Wednesday, 16 November 2022

श्रीविठ्ठलनाथजुके आज बधाई ।
मार्गशिर कृष्ण अष्टमीको शशी उदयो पूरण माई ।।१।।
पूरे चोक धाम मोतिनके बंदनवार बंधाई ।
ध्वजा पताका दीप कलश सज धूप सुगंध महाई ।।२।।
बाजत ढोल निशान नगारे झांझ झमक सहनाई ।
गगन विमानन छाय रह्यो है देव कुसुम बरखाई ।।३।।
श्रुति मुख बोलत जय जय बोलत डोलत चहुर्दिश धाई ।
रसिकदास मतिहीन दीन अति गोविंद नाम कहाई ।।४।।

श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोविन्दरायजी का प्राकट्योत्सव है. (विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

श्री गुसांईजी के सभी सात लालजी के प्राकट्योत्सव सभी सात गृहों में उत्सववत मनाये जाते हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

नियम के वस्त्र केसरी साटन के सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी कुल्हे पर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है.

आज श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. 

वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.
साथ ही आज प्रभु श्री द्वारिकाधीशजी (कांकरोली) के घर से भी श्रीजी के भोग हेतु जलेबी के टूक की सामग्री आती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोवल्लभ गोवर्धन वल्लभ श्रीवल्लभ गुन गिने न जाई l
भुवकी रेनु तरैया नभकी घनकी बूँदें परति लखाई ll 1 ll
जिनके चरन कमल रज वन्दित संतन होत सदा चितचाई l
‘छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल’ नंदनंदन की सब परछाई ll 2 ll  

साज – श्रीजी में आज पीली साटन के वस्त्र पर कत्थइ(मैरून) हांशिया वाली एवं रुपहली ज़री की चौकड़ी की सज्जा वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पिले साटन का सुनहरी तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं जडाऊ मोजाजी (गोकुलनाथजी के) धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे (गोकुलनाथजी की) के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पीला, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.  

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीजी के श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े किये जाते हैं और श्रीकंठ में छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं वहीँ श्रीमस्तक पर जड़ाव की कुल्हे के स्थान पर केसरी कुल्हे व जड़ाव मोजाजी के स्थान पर केसरी मोजाजी धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं. 

Monday, 14 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी
Tuesday, 15 November 2022

नाथद्वारा के युगपुरुष नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज वर्तमान पूज्य तिलकायत गौस्वामी श्री राकेशजी महाराजश्री के पितृचरण एवं नाथद्वारा के इतिहास के युगपुरुष कहलाने वाले नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज श्री का प्राकट्योत्सव है.(विस्तुत विवरण अन्य पोस्ट में)

आज की सेवा श्री रसालिकाजी एवं श्री ललिताजी के भाव से होती है.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में होती है.

आज से मंगला भोग में श्रीजी को गेहूं के आटे (चून) का सीरा का डबरा डोलोत्सव तक प्रतिदिन नियम से अरोगाया जाता है.

श्रीजी को नियम के पतंगी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छोरवाली गोल पाग के ऊपर गोल-चंद्रिका धरायी जाती है. उत्सव की बधाई के रूप में बाललीला के पद गाये जाते हैं.

सामान्यतया सभी बड़े उत्सवों पर प्रभु को भारी श्रृंगार धराया जाता है परन्तु आपश्री का भाव था कि भारी आभरण से प्रभु को श्रम होगा अतः आपश्री ने आपके जन्मदिवस पर प्रभु को हल्का श्रृंगार धरा कर लाड़ लडाये.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को केशरयुक्त जलेबी के टूक, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व चार फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव व छःभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) आरोगाये जाते हैं. 

सामान्यतया उत्सवों पर पांचभात ही अरोगाये जाते हैं. छठे भात के रूप में (नारंगी भात) शीतकाल में कुछेक विशेष दिनों में ही अरोगाये जाते हैं. 

श्रृंगार से राजभोग के भोग आवे तब तक पलना के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभनंदन रूप अनुप स्वरूप कह्यो न जाई । 
प्रगट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत को जो सुखदाई ।।१।।
भक्ति-मुक्ति देत सबको निजजन को कृपा प्रेम बरखत अधिकाई ।
सुखमय सुखद एक रसना कहांलो वरनौ गोविंद बलि जाई ।।२।।

श्रृंगार दर्शन –

साज – आज श्रीजी में केसरी साटन की सलमा-सितारा के भरतकाम वाली पिछवाई साजी जाती है जिसमें नन्द-यशोदा प्रभु को पलना झुला रहे हैं और पलने के ऊपर मोती का तोरण शोभित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी रंग की साटन का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पीला मलमल का रुपहली ज़री की किनारी वाला कटि-पटका धराया जाता है. मोजाजी भी पीले मलमल के एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पीले मलमल की छोरवाली (ऊपर-नीचे छोर) गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच की जगह हीरा का शीशफूल पर हीरा की दो तुर्री, घुंडी की लूम एवं चमक की गोल-चन्द्रिका धरायी जाती हैं. अलख धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में हीरा की बद्दी व एक पाटन वाला हार धराया जाता है.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली एक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में द्वादशी वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का, गोटी कांच की व आरसी शृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है

Sunday, 13 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी
Monday, 14 November 2022

केसरी साटन के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और जमाव के क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव के क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।
पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।
जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।
पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।
जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।
नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।
जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।
"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की साटन (Satin) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की साटन (Satin) का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कमल माला एवं श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 12 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी
Sunday, 13 November 2022

(कीर्तन शृंगार दर्शन राग-: खट)

पाछली रात परछाही पातन की,लालजू रंगभीने डोलत, द्रुम द्रुमन तरन ।
बने देखत बने लगत अद्भुत मने,जात की सोत में निकस रही सब धरन ।।१।।
कृष्णके दरसकों अंगके परसकों,महा आरति मान चली मज्जन करन ।
नूपुर धून सुनत चक्रत व्हे थकी रही,परि गयो दृष्टि गोपाल साँवल वरन ।।२।।
जरकसी पाग पर मोरचन्द्रिका बनी,कमलदल भ्रू बंक छबि मन हरन ।
धाई सब गहनकों रसबचन कहन कों,भामिनी बनी अति छबि सुधारत चरन ।।३।।
रोम रोम रमी रह्यो, मेरो मन हरि लियो,नाहि विसरत वाकी झुकनमें भुज भरन ।
कहे भगवान हित रामराय प्रभुसों,मिलि लोक लाज भाजी गई प्राण परबस परन ।।४।।

इस कीर्तन में ‘भगवानराय’ प्रातः पूर्व की प्रभु की लीला बहुत सुंदर करते हुए कह रहे है कि अभी थोड़ा अँधेरा हैं, वृक्षों के पतों की परछाई पड़ रही है,ऐसे समय प्रभु वृक्ष के नीचे से पधार रहे हैं जिन्होंने सुंदर ज़रकसी पाग एवं मोर चन्द्रिका धारण की हुई है.
प्रभु को अपने मन में बसाये, उनका वरण करने की चाह लिए नूपुर की ध्वनि करते हुए यमुना स्नान करने जाती व्रजभक्त गोपियों की दृष्टि सांवरे गोपाल पर पड़ी और वे कमल नयन घनश्याम को पकड़ने के लिए दौड़ती हैं परन्तु राधिकाजी सबके  साथ नहीं दौड़ी और अपने पैरो के नूपुर ठीक करने के बहाने पीछे ही रुक गयी. श्याम सुंदर वहाँ पधारे हैं ओर राधिकाजी को दोनों श्रीहस्त से गोद में उठा लिया.
सभी सखियों के सामने प्रीतम द्वारा इस प्रकार उठाये जाने से आल्हादित राधिकाजी की लोक-लाज जाती एवं प्राण परवश (प्रभु के वश में)हो गये.

इसी अद्भुत कीर्तन के आधार नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराज ने आज का श्रृंगार धराया एवं तब से यह सेवाक्रम परंपरागत रूप से प्रति वर्ष किया जाता है. 
इस श्रृंगार को 'पाछली रात का श्रृंगार' कहा जाता है. इसी में प्रभु ने गोपिका वस्त्रहरण लीला की थी. पाछली रात के श्रृंगार में इसी गोपिका वस्त्रहरण लीला का भाव है.

पाछली रात के श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को नियम का ‘पाछली रात का श्रृंगार’ धराया जाएगा. 
इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं परंतु इन दिनों में अवश्य धराया जाता है. इस शृंगार में चीरा एवं मोजाजी सुनहरी धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर चन्द्रिका एवं पिछवाई नियम के धराये जाते हैं. घेरदार वागा एवं ठाड़े वस्त्र इच्छा अनुसार धराये जासकते हैं.

ये व्रतचर्या के दिन हैं. व्रतचर्या के दिनों में गोप-कुमारियाँ प्रातः अँधेरे यमुना स्नान करने जाती हैं. प्रभु भी उनके पीछे पधारते हैं इस भावना के एक कीर्तन के आधार पर आज प्रातः श्रृंगार के दर्शन सामान्य दिनों की अपेक्षा कुछ जल्दी खोले जाते हैं.

इसी अद्भुत कीर्तन के आधार पर तत्कालीन परचारक महाराज श्री दामोदरलालजी की प्रार्थना पर तत्कालीन तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री ने आज का श्रृंगार अंगीकार कराया और तब से यह सेवाक्रम परंपरागत रूप से प्रतिवर्ष किया जाता है. 

आज सभी दर्शनों में इसी भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.
कई वर्ष पूर्व आज के दिन श्रीजी के राजभोग लगभग सात बजे के पूर्व हो चुकते थे परन्तु अब प्रभु वैभव वृद्धि के कारण राजभोग तक का सेवाक्रम नियमित दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होता है.
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञानुसार राजभोग अन्य दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होते हैं जिससे बाहर से आने वाले वैष्णव प्रभु दर्शनों से वंचित न रहें.

कीर्तन – राजभोग (राग : तोड़ी)

कछु अब कहीं ना जय तेरी ऊनकी एक बिकट बात।
 आन आन प्रकृति कैसै बनि आवे जो तू डार तो हैंरी वै पात पात ।।१।।
 अब कहा कहत सोई जोई कहौ प्रीतमसो छाड़ि देरी ईत ऊतकी पांच सात।
अब ऎते पर गोविंद प्रभु पिय सुमुखि मनाई लैहै बातनि बातनि भयो प्रात।।२।।

राजभोग दर्शन –

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base) पर केले के पत्तों, गायों, मयूर तथा पुष्प-लताओं के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम की पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया श्याम रंग का होता है जिसमें पुष्प-लताओं का सुन्दर ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 पन्ना की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 11 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी
Saturday, 12 November 2022

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी कृत छह स्वरुप का उत्सव

विक्रमाब्द १८७९ में आज के दिन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी ने श्री गोवर्धनघरण प्रभु श्रीजी तथा श्री नवनीतप्रियाजी के साथ श्री मथुरेशजीजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री द्वारकाधीशजी, श्री गोकुलनाथजी, श्री गोकुलचन्द्रमाजी तथा श्री मदनमोहनजी को पधराकर छप्पनभोग सहित विविध मनोरथ अंगीकृत कराये. 
इन सभी निधि स्वरूपों के साथ काशी के श्री मुकुंदरायजी को छठे घर के स्वरुप के रूप में पधराये थे. 

इस उपरांत अन्य गोदी के स्वरूपों सहित कुल 14 स्वरुप पधारे थे परन्तु आज का उत्सव छह स्वरूपोत्सव ही कहा जाता है. 

उस दिन आपके द्वारा अंगीकार कराया लाल ज़री का साज एवं वनमाला का श्रृंगार आज भी धराया जाता है.

आज का सेवाक्रम चन्द्रावलीजी की ओर से होता है. 

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
पूरे दिन यमुना जल की झारी भरी जाती है. दो समय की आरती थाली से करी जाती हैं.
आज से नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविंदलालजी महाराजश्री के उत्सव की पाँच दिन की बधाई बेठती हैं.

आज नूतन उत्सव के कारण नूतन श्रृंगार अंगीकार किया जाता है. सामान्यतया श्रीजी में दुमाला के साथ कुंडल नहीं धराये जाते परन्तु आज ज़री के बीच के दुमाला के साथ मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
चन्द्रावलीजी के भाव से श्वेत ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है. 

छह स्वरूपों के छप्पनभोग में बीच को दुमाला एवं सुनहरी ज़री के वस्त्र व्रजलीला के भाव से धराये जाते हैं.

आज के दिन छः स्वरुप पधारे थे अतः श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चन्द्रावलीजी के भाव से यशस्वरुप चन्द्रमा की भांति स्वच्छ सफेद चाशनी वाली चन्द्रकला और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है वहीँ सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.  

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ श्रीवल्लभ मुख जाके l
सुन्दर नवनीत के प्रिय आवत हरि ताही के हिय 
जन्म जन्म जप तप करि कहा भयो श्रम थाके ll 1 ll
मन वच अध तूल रास दाहन को प्रकट अनल पटतरको 
सुरनर मुनि नाहिन उपमा के l
‘छीतस्वामी’ गोवर्धनधारी कुंवर आये सदन प्रकट भये 
श्रीविट्ठलेश भजन को फल ताके ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल आधारवस्त्र (Base) पर सुनहरी ज़री के बूटों के ज़रदोज़ी के काम (Work) वाली तथा श्याम आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी ज़री की पुष्प-लता की सुन्दर सज्जा वाले हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं ऊर्ध्वभुजा की ओर रुपहली ज़री का अंतवर्ती पटका धराया जाता है. श्वेत एवं सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. उत्सववत हीरा की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के बीच के दुमाला के ऊपर पन्ना का सिरपैंच (रूप-चौदस को आवे वह), सुनहरी जमाव की बीच की चन्द्रिका (काशी की), एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हीरा के वेणुजी एवं हीरा व पन्ना के वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट काशी का एवं गोटी कूदती हुई गायों की आती हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में आरसी सोना के डांडी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. श्रीकंठ में छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. दुमाला बड़ा नहीं किया जाता और लूम-तुर्रा भी नहीं धराये जाते. 

Thursday, 10 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया
Friday, 11 November 2022
          
फ़िरोज़ी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और चंद्रिका या क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर चंद्रिका या क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

सुनि मेरो वचन छबीली राधा, ते पायो रससिन्धु अगाधा।।१।।
जे रस निगम नेति नेति भाख्यो, ताकौ तै अधरामृत चाख्यो।।२।।
सिवविरंचि के ध्यान न आवै, ताको कुंजनि कुसुम बिनावे।।३।।
तु वृषभान गोपकी बेटी, मोहन लालको भावते भेटी।।४।।
तेरो भाग्य मोहि क़हत न आवे, कछुक रस परमानंद गावै ॥॥५॥॥

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी साटन पर  रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं  घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की  गोल पाग के ऊपर सिरपैंच क़तरा या चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी  धरायी जाती हैं. 
 श्रीकंठ में श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 9 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया
Thursday, 10 November 2022

हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का जड़ाऊ ग्वालपगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का जड़ाऊ ग्वालपगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :आसावरी)

चल री सखी नंदगाव जई बसिये,खिरक खेलत व्रजचंद सो हसिये ।।१।।
बसत बठेन सब सुखमाई,कठिन ईहै दुःख दूरि कन्हाई ।।२।।
माखन चोरत दूरि दूरि देख्यों,सजनी जनम सूफल करि लेखों ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा, कठिन प्रीति परमानंददासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज चिरहरण के भाव की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली (शीतकाल की) एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका हरे रंग का मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के जड़ाऊ ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच तथा पगा चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी एवं कमल माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ बकरी के आते है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण एवं फ़ीरोज़ा के जड़ाऊ ग्वालपगा  को बड़ा कर के छज्जेदार पाग धराई जाती हैं एवं शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 8 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा
Wednesday, 09 November 2022

व्रतचर्या/गोपमास आरम्भ

मार्गशीर्ष अर्थात ‘गोपमास’ एवं पौष अर्थात ‘धनुर्मास’ अत्यधिक सर्दी वाले मास हैं, अतः देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से बसंत पंचमी तक पुष्टि स्वरुप निज मंदिर से बाहर नहीं पधारते. 
श्री नवनीतप्रियाजी आदि जो स्वरुप पलना झूलते हैं उनके पलना के दर्शन भी निज मंदिर में ही होते हैं.

आज श्रीजी को नियम के पतंगी (गहरे लाल) रंग के साटन के वस्त्र एवं मोरचन्द्रिका धरायी जाती है. 
लाल रंग अनुराग का रंग है. श्री ललिताजी का स्वरुप अनुराग के रंग का है. 

आज से श्रीजी सम्मुख व्रतचर्या के पद गाये जाते हैं.

गोपिकाओं के अनुराग का प्रारंभ भी आज से होने से आज लाल रंग के वस्त्र धराये जाते हैं. 
गोप-कन्याएँ व्रजराज की निष्काम भक्त हैं एवं उनके प्रतीक के रूप में आज के वस्त्रों में सुनहरी पुष्प हैं. 
ये व्रजभक्त बालाएं श्री स्वामिनीजी की कृपा से प्रभुसेवा में अंगीकृत हुई अतः उनके यशस्वरुप ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं. 
आज सारे दिन की सेवा श्री ललिताजी की है जिससे आपके स्वरुप एवं श्रृंगारवत प्रभु के श्रृंगार होते हैं.

गोपमास के आरंभ पर श्रीजी को आज विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग की सखड़ी में मूंग की द्वादसी व खाडवे को अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : टोडी)

आये अलसाने लाल जोयें हम सरसाने अनत जगे हो भोर रंग राग के l
रीझे काहू त्रियासो रीझको सवाद जान्यो रसके रखैया भवर काहू बाग़ के ll 1 ll
तिहारो हु दोस नाहि दोष वा त्रिया को जाके रससो रस पागे जाग के l
‘तानसेन’ के प्रभु तुम बहु नायक आते जिन बनाय सांवरो पेच पाग के ll 2 ll 

साज – श्रीजी में आज लाल साटन की सुनहरी ज़री के ज़रदोज़ी के जायफल की बेल वाली एवं हरे रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है. चरणचौकी, पडघा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी (गहरे लाल) रंग की साटन का सुनहरी ज़री की बूटी के काम (Work) वाले व रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. लाल एवं सफेद रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी (गहरे लाल) साटन की सुनहरी ज़री की बूटी वाले चीरा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. एक रंग-बिरंगे पुष्पों की एवं दूसरी पीले पुष्पों की कलात्मक मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल, गोटी छोटी सोना की व आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.
चोरसा स्याम सुरु का आता हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं. त्रवल बड़े नहीं किये जाते और श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Monday, 7 November 2022

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा
Tuesday, 08 November 2022
    

कार्तिक पूर्णिमा, गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव ग्रस्तोदित खग्रास चन्द्रग्रहण

विशेष – आज कार्तिक पूर्णिमा है. आज कार्तिक मास (व्रज अनुसार) का अंतिम दिन है. 
कल से गोपमास प्रारंभ हो जायेगा. ललित, पंचम आदि शीतकाल के राग व खंडिता, हिलग आदि कीर्तन गाये जाते हैं. 
कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष, ये तीनों मास ललिताजी की सेवा के मास हैं. इनमें से एक मास आज पूर्ण होता है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराजश्री कृत चार स्वरूपोत्सव का दिन है.
आज के दिन नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविंदलालजी कृत चार स्वरुप के उत्सव में श्री विठ्ठलेशरायजी, श्रीद्वारकाधीशजी एवं श्री बालकृष्णलालजी (सूरत) से पधारे और श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के संग छप्पनभोग का भव्य मनोरथ हुआ था।

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज नियम से श्रीजी को किरीट धराया जाता है. किरीट को ‘खूप’ या ‘पान’ भी कहा जाता है. 
मैं पूर्व में भी कई बार बता चुका हूँ कि अधिक गर्मी व अधिक शीत के दिनों में श्रीजी को मुकुट नहीं धराया जाता अतः उसके स्थान पर इन दिनों किरीट धराया जा सकता है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

चार स्वरुप के उत्सव के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोवर्धन गिरी पर ठाड़े लसत l
चंहु दिस धेनु धरनी धावत तब नवमुरली मुख लसत ll 1 ll
मौर मुकुट मरगजी कछुक फूल सिर खसत l
नव उपहार लिये वल्लभप्रिय निरख दंगचल हसत ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ वस कियो चाहत है संग सखा गुन ग्रसत l
झूठे मिस कर इत उत चाहत श्रीविट्ठल मन वसत ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी को मेघश्याम मखमल के आधारवस्त्र पर सलमा-सितारा के सूर्य, चन्द्र व तारों के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को रुपहली ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका श्वेत मलमल का धराया जाता है. मोजाजी गुलाबी रंग के एवं ठाड़े वस्त्र पतंगी या मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. मोजाजी के ऊपर हीरे के तोड़ा-पायल धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर जड़ाव का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरे की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली आदि व कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ज़री का व गोटी मोर की आती है.

Sunday, 6 November 2022

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी
Monday, 07 November 2022

विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दजी (१८७६) का उत्सव है.

श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

श्रीजी को नियम के पीले खीनखाब के चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर लाल माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है. 

माणक की कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा वर्षभर में केवल आज के दिन धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बर्षन अधिकाई l
सुखद रसना एक कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में पीले रंग की खीनख़ाब की लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर आज से पुनः सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले खीनखाब के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोजाजी लाल खीनखाब के धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की माणक की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, माणक का दुलड़ा, सुनहरी चमक का घेरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (लाल मीना व स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी श्याम मीना की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी गोलपाग सिरपेच टीका एवं एक पंख की (सादी) मोर चन्द्रिका व मानक का झोरा धराये जाते हैं. आज लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

Saturday, 5 November 2022

व्रज - कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी
Sunday, 06 November 2022

फ़िरोज़ी खिनख़ाब के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी खिनख़ाब का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :सारंग)

अनत न जैये पिय रहिये मेरे ही महल l
जोई जोई कहोगे पिय सोई सोई करूँगी टहल ll१ll
शैय्या सामग्री बसन आभूषण सब विध कर राखूँगी पहल l
चतुरबिहारी गिरिधारी पिया की रावरी यही सहल ll२ll

साज – श्रीजी में आज फ़िरोज़ी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी खिनख़ाब पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की ज़री की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी मीना की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर लूम तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 4 November 2022

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी

व्रज - कार्तिक शुक्ल द्वादशी 
Saturday, 05 November 2022

मोर के चंदन मोर बन्यौ है
        दिन दूल्हे हैं अलि नंद को नंदन।
श्री वृषभानु सुता दुलही
         दिन जोड़ी बनी विधना सुखकंदन।।
आवै कह्यौ न कछु रसखानि हो
         दोऊ बंधे छवि प्रेम के फंदन ।
जाहि विलोकें सबै सुख पावत
           ये ब्रजजीवन हैं दुखदंदन ।।

गुसांई जी के प्रथम पुत्र श्री गिरधरजी एवं पंचम पुत्र श्री रघुनाथजी (कामवन) के प्राकट्योत्सव के शृंगार, लालाजी का अन्नकूट,
घेरदार वागा एवं चीरा के साथ सेहरा का श्रृंगार 

आज सायंकाल श्री नवनीतप्रियाजी के प्रसादी भंडार के समीप विराजित प्रभु श्री लालाजी का अन्नकूट मनोरथ होता है.

श्रीजी का सेवाक्रम - पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी की मेढ़ से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गादीजी, खंड आदि मखमल के आते हैं. गेंद, दिवाला चौगान सभी सोने के आते हैं.

चारों दर्शनों (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) में आरती थाली में की जाती है. 
प्रभु की झारीजी सारे दिन यमुना जल से भरी जाती हैं.

सेवाक्रम - अक्षय नवमी की भांति आज भी श्रीजी की दिन भर की सेवा द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर की होती है अर्थात यदि द्वितीय पीठ के गौस्वामी परिवार के सदस्य नाथद्वारा में हों तो आज मंगला से शयन तक श्रीजी की सेवा के अधिकारी होते हैं अतः मंगला से शयन तक सभी समां में सेवा हेतु श्री विट्ठलनाथजी के मंदिर में खबर भेजी जाती है एवं द्वितीय गृहाधीश श्री कल्याणरायजी व उनके परिवारजन सभी समां में श्रृंगार धरने प्रभु को भोग धरने व आरती करने पधारते हैं.

आज प्रभु को धराये जाने वाले वस्त्र भी द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आते हैं. वस्त्र के साथ जलेबी घेरा की एक छाब भी श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु वहाँ से आती हैं.

आज श्रीजी में विवाह के भाव से मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की पिछवाई एवं संकेत वन में विवाह के भाव से विवाह का श्रृंगार एवं सेहरा धराये जाते हैं. 

श्रृंगार समय विवाह के कीर्तन गाये जाते हैं.

आज के श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया जाता है. इसका कारण यह है कि कल के उत्सवनायक श्री गिरधरजी जिस दिन अपने सेव्य स्वरुप श्री मथुराधीश जी के मुखारविंद में सदेह प्रवेश कर नित्यलीला में पधारे उस दिन श्री मथुराधीशजी ने घेरदार वागा के साथ सेहरा का श्रृंगार धराया था. 

आज उन्हीं श्री गिरधरजी का उत्सव का श्रृंगार होने से वही श्रृंगार श्रीजी को धराया जाता है.

कल के उत्सव के भोगक्रम के रूप में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त जलेबी के टूक पाटिया और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का अरोगायी जाएगी. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में मीठी सेव स्यामखटाई अरोगाये जायेंगे

विवाह के पश्चात श्री ठाकुरजी सपरिवार वृषभानजी के घर भोजन को पधारते हैं इस भाव से राजभोग आवे तब आसावरी राग में यह कीर्तन गाया जाता है.

श्रीवृषभानसदन भोजन को नंदादिक मिलि आये हो l
तिनके चरनकमल धरिवे को पट पावड़े बिछाये हो ll 1 ll
रामकृष्ण दोऊ वीर बिराजत गौर श्याम दोऊ चंदा हो l
तिनके रूप कहत नहीं आवे मुनिजन के मनफंदा हो ll 2 ll
चंदन घसि मृगमद मिलाय के भोजन भवन लिपाये है l
विविध सुगंध कपूर आदि दे रचना चौक पुराये हो ll 3 ll
मंडप छायो कमल कोमल दल सीतल छांहु सुहाई हो l
आसपास परदा फूलनके माला जाल गुहाई हो ll 4 ll....अपूर्ण

इसके अतिरिक्त शयन तक विवाह के ही कीर्तन गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर मोरछल करती एवं चँवर डुलाती गोपियों की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर हरे रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी लाल ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – प्रधानतया हीरा, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी लाल ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा को सेहरा, दो तुर्री, मोती की लूम एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर हीरा की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, माणक और मोती के हार, दुलड़ा आदि उत्सववत धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं. 
पट काशी का गोटी राग रंग के आते हैं.
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर टिका एवं सिरपेच एवं लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

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