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Saturday, 19 November 2022

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी ( उत्पति एकादशी व्रत)
Sunday, 20 November 2022

बात हिलगही कासों कहिये।
सुनरी सखी बिवस्था या तनकी समझ समझ मन चुप करी रहिये ॥१॥ 
मरमी बिना मरम को जाने यह उपहास जग जग सहिये।
चतुर्भुजप्रभु गिरिधरन मिले जबही, तबही सब सुख पहिये ॥२॥

उत्पति एकादशी

आज की एकादशी को उत्पति एकादशी कहा जाता हैं. व्रज-कन्याओं ने प्रभु श्री कृष्ण को अपने पति रूप में पाने के लिए देवी कात्यायनी का व्रत किया था. तत्समय अन्याश्रय ना हो अतः आज के दिन श्री यमुना जी ने रेणु (रज़) से कात्यायनी देवी की प्रतिमा बना कर उनकी प्रथम उत्पत्ति की थी अतः इस एकादशी को उत्पत्ति एकादशी कहा जाता है. कात्यायनी देवी तामसी जीवों को वांछित फल देने वाली आधिदैविक तामसी शक्ति है.

आज उत्पत्ति एकादशी है परन्तु श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.
श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है.
एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं.

आज का श्रृंगार ऐच्छिक है परन्तु किरीट, खोंप, सेहरा अथवा टिपारा धराया जाता है. रुमाल एवं गाती का पटका भी धराया जाता है. श्रृंगार जड़ाव का धराया जाता है. 

आज की सेवा श्री ललिता जी की सखी कुंजरी जी की ओर से होती है.

आज श्रीजी को फ़िरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ा के टीपारा का साज धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ।
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुण निधान जानबुझ एक तान चूक के बजाई ।। १ ।।
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन अति नवीन रूप सहित वही तान सूनाई ।
वल्लभ गिरिधरनलाल रीझ दई अंकमाल
कहत भले भले लाल सुंदर सुखदाई ।।२।।

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज फ़िरोज़ी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं एवं पीले ज़री का गाती का रुमाल (पटका) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा के टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोर-चन्द्रिका, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. गुलाब के पुष्पों की एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी और दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी व गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फ़ीरोज़ा का टीपारा एवं रूमाल बड़ा करके छज्जेदार पाग धराई जाती हैं. लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

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