By Vaishnav, For Vaishnav

Friday, 31 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल एकादशी

व्रज - चैत्र शुक्ल एकादशी
Saturday, 01 April 2023

कामदा एकादशी, श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई बैठे, बालभाव के श्रृंगार आरंभ

विशेष - आज कामदा एकादशी है. 
आज से श्रीजी में श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई पंद्रह दिवस की बैठती है. अगले पंद्रह दिवस श्री महाप्रभुजी की एवं जन्माष्टमी की बधाईयाँ गायी जातीं हैं. 

आज से प्रभु को बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं. जैसे श्रृंगार हो उस भाव के बधाई के कीर्तन गाये जाते हैं. 

आज से आगामी पंद्रह दिन तक श्याम, बादली, नीले आदि अमंगल रंगों के वस्त्र नहीं धराये जाते हैं एवं इस अवधि में अशुभ में गये सेवक की दंडवत (सेवा में पुनः प्रवेश) भी वर्जित होती है.

प्राकट्योत्सवों के पूर्व बधाई बैठने के कारण कुछ यूं है कि भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ उसके पूर्व ब्रह्माजी, इन्द्र, शिवजी आदि सभी देवों द्वारा देवकीजी के गर्भ में विराजित प्रभु की स्तुति की गयी थी तब प्रभु का प्राकट्य हुआ. इस प्रकार पहले बधाई बैठती है, बधाईयाँ गायी जाती हैं और प्रभु की वंदना करने, गुणगान करने से प्रभु अवतरित होते हैं.

महाप्रभुजी के उत्सव की  पंद्रह दिवस की बधाई बैठने का एक प्रमुख कारण यह है कि श्री महाप्रभुजी के लौकिक पिता श्री लक्ष्मणभट्टजी को उनके द्वारा किये सौ सोमयज्ञों के फलस्वरुप प्रभु ने रामनवमी के दिन स्वप्न में माला-बीड़ा देकर आज्ञा की थी कि मैं तुम्हारे घर प्रकट होने वाला हूँ. 
इस भाव से श्री महाप्रभुजी के उत्सव की बधाई पंद्रह दिवस पूर्व बैठती है.

सेवा क्रम - उत्सव की बधाई बैठने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

दो समय आरती थाली में की जाती है.

पिछवाई पलना के भाव के चित्रांकन की, नियम के घेरदार वस्त्र एवं श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन नीचे दिया गया है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

धन्य यशोदा भाग्य तिहारो जिन ऐसो सुत जायो l
जाके दरस परस सुख उपजत कुलको तिमिर नसायो ll 1 ll
विप्र सुजन चारन बंदीजन सबै नंदगृह आये l
नौतन सुभग हरद दूब दधि हरखित सीस बंधाये ll 2 ll
गर्ग निरुप किये सुभ लच्छन अविगत हैं अविनासी l
‘सूरदास’ प्रभुको जस सुनिकें आनंदे व्रजवासी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की प्रभु को पलना झुलाते पूज्य गौस्वामी बालकों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, जड़ाव की गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी चांदी की आती है.

Thursday, 30 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल दशमी

व्रज - चैत्र शुक्ल दशमी
Friday, 31 March 2023

रामनवमी का परचारगी श्रृंगार

सेवाक्रम -गेंद, चौगान व दिवला सभी सोने के आते हैं. दो समय की आरती थाल में की जाती है. राजभोग में पीठका पर पुष्पों का चौखटा आता हैं.

विशेष – आज श्रीजी में सम्पूर्ण रामलीला के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. यही पिछवाई श्रीजी में विजयादशमी के एक दिन पूर्व महा-नवमी के दिन भी धरायी जाती है.

आज पिछवाई के अलावा सभी वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. 

श्रीजी में अधिकतर बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है. 
परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत
नारद शुकव्यास रटत पावत नही पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत 
द्रुपद सुता रटत नाथ, अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत 
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में सम्पूर्ण रामलीला के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल के सूथन, चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. आज पटका नहीं धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी के धराये जाते हैं.

 श्रृंगार– आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 नीचे पदक, ऊपर माला, दुलड़ा व हार उत्सववत धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में उत्सव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है. 
बाजु, पौंची व पान हीरा-माणक के धराये जाते हैं.
आज त्रवल की जगह टोडर धराया जाता हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है. श्रीहस्त में मोती का कमल भी धराया जाता है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डांडी की आती है.

Wednesday, 29 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी

व्रज - चैत्र शुक्ल नवमी 
Thursday, 30 March 2023

नौमी चैत की उजियारी ।
दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी ll 1 ll
राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी l
ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी ll 2 ll
मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी l
पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी ll 3 ll
कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी l
घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी ll 4 ll

रामनवमी

आज श्रीजी में जन्माष्टमी के दिन धरायी जाने वाली लाल पिछवाई साजी जाती है. इसके अतिरिक्त आज प्रभु को नियम के केसरी जामदानी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी भी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज अयोध्या प्रगटे राम।
दशरथ वंश उदय कुल दीपक शिव विरंची मुनि भयो विश्राम।।१।।
घर घर तोरन वंदनमाला मोतिन चौक पुरे निज धाम।
परमानंददास तिहि अवसर, बंदीजन के पूरत काम।।२।।
                                         
साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
यही पिछवाई जन्माष्टमी पर आती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - आज श्रीजी को केसरी जामदानी के चोली तथा खुलेबंद के (तनी बाँध के धराये जाते हैं) चाकदार वागा धराये जाते हैं. सूथन लाल छापा का धराया जाता हैं.सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा की प्रधानता सहित एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 
श्रीमस्तक पर केसरी जामदानी की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर हीरा एवं माणक के शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में उत्सव के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है. 
बाजु, पोची, पान हीरा माणक के धराये जाते हैं.
नीचे पदक ऊपर हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.
पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की व राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती है.
आज मोती का कमल धराया जाता हैं.

Tuesday, 28 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल अष्टमी

व्रज - चैत्र शुक्ल अष्टमी
Wednesday, 29 March 2023

रामनवमी के आगम का श्रृंगार

विशेष – कल रामनवमी है और आज श्रीजी को उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला आगम का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिकतर बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज की बानिक कही न जाय, बैठे निकस कुंजद्वार l
लटपटी पाग सिर सिथिल चिहुर चारू खसित बरुहा चंदरस भरें ब्रजराजकुमार ll 1 ll
श्रमजल बिंदु कपोल बिराजत मानों ओस कन नीलकमल पर l
‘गोविंद’ प्रभु लाडिलो ललन बलि कहा कहों अंग अंग सुंदर वर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग सुनहरी लप्पा की, सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्व भुजा की ओर कटि-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
आज चार माला धरावे.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी छोटी सोने की व आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Monday, 27 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल सप्तमी

व्रज - चैत्र शुक्ल सप्तमी
Tuesday, 28 March 2023

स्याम चुंदड़ी का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को स्याम चुंदड़ी के खुलेबंध के चाकदार वागा एवं चोली का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नयनन लागी हो चटपटी l
मदनमोहन पिय नीकसे द्वार व्है, शोभित पाग लटपटी ll 1 ll
दूर जाय फीर चितयेरी मो तन, नयन कमल मनोहर भृकुटी l
'गोविंद' प्रभु पिय चलत ललित गति, कछुक सखा अपनी गटी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में स्याम चुंदड़ी की सुनहरी तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को स्याम चुंदड़ी का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं.  सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्याम चुंदड़ी की छज्जेदार  पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का कतरा,तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट स्याम व गोटी चाँदी की आती है.

Sunday, 26 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी

व्रज - चैत्र शुक्ल षष्ठी
Monday, 27 March 2023

चतुर्थ (काजली, श्याम अथवा केसरी) गणगौर

आज काजली (श्याम) गणगौर है और श्री यमुनाजी के भाव की है अतः इसे घर की गणगौर भी कहा जाता है.

पारंपरिक रूप से इस दिन महिलाएं श्याम चौफूली चूंदड़ी के वस्त्र धारण करती आयी हैं.

परन्तु वर्ष 1950 में जब वर्तमान तिलकायत श्री राकेशजी महाराज का जन्म हुआ तो उनके जन्म के लगभग एक माह उपरान्त ही गणगौर  का त्यौहार था.
तब उनकी मातृचरण अ. सौं. नित्यलीलास्थ विजयलक्ष्मी बहूजी के कथनानुसार श्याम के स्थान पर केसरी पहना जाने लगा.
और तब से नाथद्वारा में केसरी गणगौर की परंपरा आरंभ हुई.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
दिन में सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवा युक्त बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सेवककी सुखराशि सदा श्री वल्लभ राजकुमार l
दरसन ही प्रसन्न होत मन पुरुषोत्तम अवतार ll 1 ll
सुदृष्टि चित्तै सिद्धांत बतायो, लीला जग विस्तार l
ईह तजि आन, ज्ञान कहां धावत भूले कुमति विचार ll 2 ll
‘चत्रभुज’ प्रभु उद्धरे पतित श्रीविट्ठल कृपा उदार l
जाके चरन गहि भुज दृढ करी, गिरधर नंद दुलार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में एक ओर श्रीकृष्ण एवं दूसरी ओर श्रीबलरामजी के साथ घूमर नृत्य करती व्रजललनाओं (गोपियों) और गणगौर के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी रंग की मलमल का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे पर माणक का पान, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल और उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
 श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना को) धराये जाते हैं.
पट पिला गोटी स्याम मीना की व आरसी श्रृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं.  कुल्हे रहे लूम-तुर्रा नहीं धराया जाता है.

Saturday, 25 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल पंचमी

व्रज - चैत्र शुक्ल पंचमी
Sunday, 26 March 2023

रंगीली गुलाबी गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥

तृतीय (गुलाबी) गणगौर

विशेष – आज गुलाबी गणगौर है और ललिताजी के भाव की है अतः आज सर्व साज एवं वस्त्र गुलाबी घटावत धराये जाते हैं

आज के वस्त्र शीतकाल की गुलाबी घटा जैसे ही होते हैं परन्तु उन दिनों शीतकाल होने से वस्त्र साटन (Satin) के धराये जाते हैं और आज उष्णकाल के कारण मलमल के वस्त्र धराये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त शीतकाल की गुलाबी घटा के दिन किनारी वाले वस्त्र नहीं होते जबकि आज के वस्त्र सुनहरी ज़री की किनारी से सुशोभित होते हैं. 

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चैत्री गुलाब का सीरा अरोगाया जाता है.

आज श्रीजी में नियम की चैत्री गुलाब की मंडली आती है. 
श्रृंगार समय धरायी पिछवाई ग्वाल बाद बड़ी कर (हटा) दी जाती है और चैत्री गुलाब से निर्मित मंडली (बंगला) में प्रभु विराजित होते हैं. 
मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां प्रभु को अरोगायी जाती हैं. राजभोग से संध्या-आरती तक प्रभु मंडली में विराजते हैं एवं आरती दर्शन के पश्चात मंडली हटा दी जाती है. 
आज विशेष रूप से प्रभु में गोखड़े (तिबारी) वाली मंडली धरायी जाती है. इस प्रकार की मंडली में श्रीजी वर्ष में केवल आज के दिन ही विराजते हैं.

शयनभोग की सखड़ी में श्री नवनीतप्रियाजी में सिद्ध होकर श्रीजी के अरोगने के लिए गुलाब का सीरा आता है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

कमलमुख देखत कौन अघाय l
सुनही सखी लोचन अलि मेरे मुदित रहे अरुझाय ll 1 ll
सोहति मुक्तामाल श्याम तन जनु बन फूली वनराय l
गोवर्धनधर के अंग अंग पर ‘कृष्णदास’ बल जाय ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी गुलाबी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. हीरे की हमेल धरायी जाती है. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, तथा गोल चमक की चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी और गोटी चांदी की आती हैं.

Friday, 24 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्थी

व्रज - चैत्र शुक्ल चतुर्थी
Saturday, 25 March 2023

रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥१॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥२॥

द्वितीय (हरी) गणगौर

विशेष – आज हरी गणगौर है. आज की गणगौर चन्द्रावलीजी के भाव की है अतः श्रीजी को नियम के पंचरंगी लहरिया वस्त्र धराये जाते हैं.

पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान
जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन 
अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll
‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल
कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में एक ओर श्रीकृष्ण एवं दूसरी ओर श्रीबलरामजी के साथ घूमर नृत्य करती व्रजललनाओं (गोपियों) और गणगौर के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया का सूथन, चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफ़ेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर पन्ना का कंठा धराया जाता है.
गुलाबी एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी लहरिया की आती है.

Thursday, 23 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल तृतीया

व्रज - चैत्र शुक्ल तृतीया 
Friday, 24 March 2023

छबीली राधे,पूज लेनी गणगौर ।
 ललिता विशाखा,सब मिल निकसी,
आइ वृषभान की पोर,
सधन कुंज गहवर वन नीको,
मिल्यो नंदकिशोर ।।
" नंददास " प्रभु आये अचानक,
 घेर लिये चहुं ओर ।।

प्रथम (चुंदड़ी) गणगौर

राजस्थान का रंग-बिरंगा पर्व गणगौर आज से आरम्भ हो रहा है.
सामान्यतया राजस्थान में चार (चूंदड़ी, हरी, गुलाबी एवं काजली) गणगौर होती है.
विश्व के सभी हिस्सों में बसे राजस्थानी विवाहित स्त्रियाँ गणगौर का पूजन करती हैं.

नाथद्वारा में भी पूज्य श्रीतिलकायत के निजी आवास मोती-महल में ईशरजी व गणगौर की सुसज्जित प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है. 

श्रीजी में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है यद्यपि गणगौर के चौथे दिन श्रीजी में श्री गुसांईजी के छठे पुत्र श्री यदुनाथजी का उत्सव होता है अतः श्रीजी में चौथी गणगौर काजली (श्याम) के स्थान पर केसरी रंग की मानी गयी है.

आज से प्रभु को चूंदड़ी व लहरिया के वस्त्र भी धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. पहली गणगौर स्वामिनीजी के भाव की है अतः आज श्रीजी को लाल चूंदड़ी के खुलेबंद के चाकदार वस्त्र धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर डांख का कतरा धराया जाता है.

आज श्रीजी को विशेष रूप से चूंदड़ी के भाव से ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चिरोंजी (चारोली) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 
चिरोंजी (चारोली) के लड्डू श्रीजी प्रभु को आज के अतिरिक्त वर्ष में चार और बार अरोगाये जाते हैं.

पहली तीनों गणगौरों (चूंदड़ी, हरी व गुलाबी) में रात्रि के अनोसर में श्रीजी को सूखे मेवे (बादाम, पिस्ता, काजू, किशमिश, चिरोंजी आदि), खसखस, मिश्री की मिठाई के खिलौने, ख़ासा भण्डार में सिद्ध मेवा-मिश्री के लड्डू, माखन-मिश्री आदि से सज्जित थाल अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंवर बैठे प्यारीके संग अंग अंग भरे रंग,
बल बल बल बल त्रिभंगी युवतीन के सुखदाई l
ललित गति विलास हास दंपती मन अति हुलास
विगलित कच सुमनवास स्फुटित कुसुम निकट तैसीये सरद रेन सुहाई ll 1 ll
नवनिकुंज भ्रमरगुंज कोकिला कल कूजन पुंज
सीतल सुगंध मंद बहत पवन सुखदाई l
‘गोविंद’ प्रभु सरस जोरी नवकिशोर नवकिशोरी
निरख मदन फ़ौज मोरी छेल छबीलेजु नवलकुंवर व्रजकुल मनिराई ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सूवापंखी (तोते के पंख जैसे हल्के हरे रंग) रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. छेड़ान के हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की चौफूली चूंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम-तुर्री रूपहरी, डांख का नागफणी (जमाव) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
चैत्री गुलाब के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मीना की चूंदड़ी भांत की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Wednesday, 22 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वितीया

व्रज - चैत्र शुक्ल द्वितीया 
Thursday, 23 March 2023

स्याम चुंदड़ी का सूथन चोली तथा खुलेबंद के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को स्याम चुंदड़ी के खुलेबंध के चाकदार वागा एवं चोली का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नयनन लागी हो चटपटी l
मदनमोहन पिय नीकसे द्वार व्है, शोभित पाग लटपटी ll 1 ll
दूर जाय फीर चितयेरी मो तन, नयन कमल मनोहर भृकुटी l
'गोविंद' प्रभु पिय चलत ललित गति, कछुक सखा अपनी गटी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में स्याम चुंदड़ी की सुनहरी तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को स्याम चुंदड़ी का सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं.  सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्याम चुंदड़ी की छज्जेदार  पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का कतरा,तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट स्याम व गोटी चाँदी की आती है.

Tuesday, 21 March 2023

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०८०

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०८०
Wednesday, 22 March 2023

भारतीय नव-संवत्सर २०८०

चैत्र मास संवत्सर परवा, वरस प्रवेश भयो है आज l
कुंज महल बैठे पिय प्यारी, लालन पहेरे नौतन साज ll 1 ll
आपुही कुसुम हार गुही लीने, क्रीड़ा करत लाल मन भावत l
बीरी देत दास ‘परमानंद’, हरखि निरखि जश गावत ll 2 ll

आप सभी वैष्णवों को नव-संवत्सर २०८० की ख़ूबख़ूब बधाई 

श्रृंगार समय प्रभु के मुख्य पंड्याजी श्रीजी के सम्मुख नववर्ष का पंचांग वाचन करते हैं एवं न्यौछावर की जाती है.

आज से आरती में एक खंड कम रखा जाता हैं

श्रृंगार दर्शन 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

नवनिकुंज देवी जय राधिका, वरदान नीको देहौ, प्रिय वृन्दावन वासिनी l
करत लाल आराधन, साधन करी प्रन प्रतीत, नामावली मंत्र जपत जय विलासीनी ll 1 ll
प्रेम पुलक गावत गुन, भावत मन आनंद भर, नाचत छबि रूप देखी मंद हासिनी l
अंगन पर भूषण पहिराई, आरसी दिखाई, तोरत तृन लेत बलाई सुख निवासीनी ll 2 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल पर लाल छापा की हरी किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा, झारीजी आदि स्वर्ण जड़ाव के धरे जाते हैं. प्रभु के सम्मुख चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो प्रतिदिन राजभोग पश्चात अनोसर में धरे जाते हैं. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, लाल छापा की चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता, मोती, माणक, पन्ना एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पान, टीका, दोहरा त्रवल, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में पदक, हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली वाली व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है. पीठिका पर लाल छापा का सेला धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते हैं.
आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है

सभी वैष्णवों को भारतीय नववर्ष की मंगल कामना

Monday, 20 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण अमावस्या

व्रज - चैत्र कृष्ण अमावस्या
Tuesday, 21 March 2023

स्याम सलीदार ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को स्याम सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :सारंग)

मेरी अखियन के भूषण गिरिधारी ।
बलि बलि जाऊ छबीली छबि पर अति आनंद सुखकारी ।।१।।
परम उदार चतुर चिंतामनिवदरस दरस दुं
दु़:खहारी ।
अतुल प्रताप तनक तुलसी दल मानत सेवा भारी ।।२।।
छीतस्वामी गिरिधरन विसद यश गावत गोकुलनारी ।
कहा वरनौ गुन गाथ नाथके श्रीविट्ठल ह्रदय विहारी ।।३।।

साज – श्रीजी में आज मेघस्याम ज़री की हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज स्याम सलीदार ज़री पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्याम ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, बांकी (तिरछी) गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. 
गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी चाँदी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Sunday, 19 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण त्रयोदशी

व्रज - चैत्र कृष्ण त्रयोदशी 
Monday, 20 March 2023

मुकुट काछनी का श्रृंगार

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 
जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 
जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मुकुट की छांह मनोहर कीये l
सघन कुंजते निकस सांवरो संग राधिका लीये ll 1 ll
फूलन के हार सिंगार फूलन के खोर चंदन की कीये l
'परमानंद दास'को ठाकुर ग्वालबाल संग लीये ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्री यमुना जी एवं प्रभु की सेवा में पधारती गोपियों के चित्रांकन की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद ज़री का सूथन, काछनी, सफ़ेद रंग का रास-पटका एवं मेघश्याम दरियाई की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर डाँख की मुकुट टोपी के ऊपर मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी नाचते मोर की आती है

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण, मुकुट, टोपी, पीताम्बर, चोली व दोनों काछनी बड़े किये जाते हैं.

शयन दर्शन में  मेघश्याम चाकदार वागा व लाल तनी धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आभरण छेड़ान के (छोटे) धराये जाते हैं.

Saturday, 18 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वादशी

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वादशी 
Sunday, 19 March 2023

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से  गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल ज़री का सूथन, गोल-काछनी (मोर काछनी) तथा रास-पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

श्रृंगार –  प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल ज़री की टिपारे की टोपी के ऊपर पीले रंग के सुनहरी किनारी वाले गौकर्ण, रूपहरी घेरा एवं बायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलडा धराया जाता हैं.सफेद एवं पीले पुष्पों के रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.पट लाल एवं गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती हैं.
आरसी शृंगार में सोना की डांडी की व राजभोग में चार झाड़ की आती हैं.
कंदराजी पर उस्ताजी का चौखटा आता हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Friday, 17 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण एकादशी

व्रज - चैत्र कृष्ण एकादशी 
Saturday, 18 March 2023

सेहरा के शृंगार

विशेष – आज पापमोचनी एकादशी है. 
श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.
श्रीजी के अलावा नाथद्वारा में अन्य सभी पुष्टि स्वरूपों जैसे श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी, श्री मदनमोहनजी, श्री वनमालीजी आदि को नित्य की सामग्री के अलावा राजभोग समय फलाहार का भोग लगाया जाता है.
एकादशी फलाहार में पुष्टि स्वरूपों को विशेष रूप से सिंघाड़े के आटे का सीरा (हलवा), सिंगाड़े के आटे की मीठी सेव, विविध प्रकार के शाक, सिंघाड़े के आटे की मोयन की पूड़ी, तले हुए कंद (रतालू, सूरण, अरबी), सिंघाड़े के आटे की राब, रायता आदि आरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतरत मैया ll 1 ll
नित प्रति मौतिन चौक पुरावत नित प्रति विप्रन वेद पढ़ैया l
नित ही राई लोन उतारत नित ही 'गदाधर' लेत बलैया ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में विवाह खेल लीला की, विवाह मंडप के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. श्रीजी लग्न-मंडप में विराजित हैं, श्री स्वामिनी जी एवं श्री यमुना जी सेहरा के श्रृंगार में दोनों ओर खड़े हैं. गोपियाँ विवाह के मंगल गीत गाती हुई इस अद्भुत शोभा को निरख रहीं हैं. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीली ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. फ़िरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीले दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा दो तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में फ़िरोज़ा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी राग रंग की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के आभरण पटका सेहरा बड़े कर के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं.
पाग पर सिरपेच, टीका धराये जाते हैं, लूम तुर्रा नहीं आवे.

Thursday, 16 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण दशमी

व्रज - चैत्र कृष्ण दशमी 
Friday, 17 March 2023

फ़िरोज़ी ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को फ़िरोज़ी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में एक दुलड़ा एक नौलड़ा धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट फ़िरोज़ी एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है

Wednesday, 15 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी

व्रज - चैत्र कृष्ण नवमी 
Thursday, 16 March 2023

बेंगनी ज़री के चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर ग़्वाल पगा और पगा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को बेंगनी ज़री ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पाग पर पगा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

आज शृंगार निरख श्यामा को नीको बन्यो श्याम मन भावत ।
यह छबि तनहि लखायो चाहत कर गहि के मुखचंद्र दिखावत ।।१।।
मुख जोरें प्रतिबिम्ब विराजत निरख निरख मन में मुस्कावत ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर श्री राधा अरस परस दोऊ रीझि रिझावत ।।२।।

साज – श्रीजी को आज बैंगनी ज़री की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज बैंगनी ज़री पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर बैंगनी रंग के ग्वाल पगा पर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की गुलाबी थागवाली दो सुन्दर मालाजी व कमल माला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट बेंगनी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर पगा रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

Tuesday, 14 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण अष्टमी

व्रज - चैत्र कृष्ण अष्टमी 
Wednesday, 15 March 2023

हरी ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाबी रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Monday, 13 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण सप्तमी

व्रज - चैत्र कृष्ण सप्तमी 
Tuesday, 14 March 2023

समस्त वैष्णव सृष्टि को प्रधान गृह युवराज श्री विशाल बावाश्री के गो. चि. श्री लाल गोविन्दजी (लालबावा साहब) के पाँचवे जन्मदिन की ख़ूबख़ूब बधाई

श्री वल्लभ कल्पद्रुम फल्यो, फल लाग्यो विट्ठलेश ।
शाखा सब बालक भये, ताको पार ना पावत शेष ।।
श्री वल्लभ को कल्पद्रुम, छाय रह्यो जग मांहि।
पुरुषोत्तम फल देत हैं, नेक जो बैठों छांह ॥ 

गो. चि. श्री लाल गोविन्दजी (लालबावा साहब) का पाँचवा जन्मदिन

सेवाक्रम - श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज प्रभु को नियम के लाल सलीदार चाकदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सिरपैंच, सुनहरी भीमसेनी कतरा  धराया जाता हैं.

आज प्रभु को चेती गुलाब की छड़ी गेंद बसंत वत विशेष धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में चेती गुलाब की छड़ी धरायी जाती हैं. 

आज राजभोग में चैत्री-गुलाब की छज्जे वाली बड़ी फूल मंडली आती हैं.

पूरे दिन प्रभु के सम्मुख खिड़क (काष्ट की गौमाता का समूह) बिरजायी जाती है.

सभी समां में 'गोविन्द' शब्द प्रयुक्त होवे ऐसे सुन्दर कीर्तन गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनमनोहर (केशर बूंदी) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी और चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में बड़े टुक पाटिया व छह-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात व नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं. 
भोग में फीका की जगह चालनी अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन -     

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर, जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनि कान मानो लागे मदनबान, प्रानहुकी कहा कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
लाल काछनी कटि किंकिणी पग नूपुर झंझनन, सिर टिपारो अति खरोई सुरंग ll 2 ll
उरप तिरप मंद चाल मुरलिका मृदंग ताल, संग मुदित गोपग्वाल आवत तान तरंग l
व्रजजन सब हरखनिरख जै जै कहि कुसुम बरखि, 'गोविंदप्रभु' पर वारौ कोटि अनंग ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गौचारण के भाव की सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाएगी.
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा व पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सिरपैंच, सुनहरी भीमसेनी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.
कंठला एवं उत्सव की पन्ना की मालाये धरायी जाती है.
हास की जगह पन्ना को कंठा एवं हीरा का त्रवल धराया जाता हैं.
एक कली का हार एवं कमल माला धरायी जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
हीरा की मुठ के  वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल का एवं गोटी सोना की बाघ बकरी की आती हैं.
आरसी बावा साहब वाली काँच के टुकड़ों की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर दुमाला रहे लूम-तुर्रा नहीं आवे.

Sunday, 12 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण षष्ठी

व्रज - चैत्र कृष्ण षष्ठी 
Monday, 13 March 2023

केसरी ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. हरे रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट केसरी एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Saturday, 11 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण पंचमी

व्रज - चैत्र कृष्ण पंचमी 
Sunday, 12 March 2023

रंग पंचमी

विशेष – आज की पंचमी को रंग-पंचमी कहा जाता है. उत्तर भारत में विशेषकर मध्य-प्रदेश, राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज के दिन सूखे और गीले रंगों से होली खेली जाती है.
पुष्टिसंप्रदाय के अलावा अन्य मर्यादामार्गीय मंदिरों में आज रंगपंचमी को प्रभु स्वरूपों को होली खेलायी जाती है और आगामी चैत्र कृष्ण एकादशी को डोल झुलाये जाते है.

श्री गुसांईजी के चतुर्थ पुत्र श्री गोकुलनाथजी माला-तिलक रक्षण हेतु कश्मीर पधारे थे. श्री गोवर्धनधरण प्रभु ने आपको वसंत खेलाने और डोल झुलाने की आज्ञा की. 
आपश्री डोल पश्चात पधारे और लौटने में विलम्ब होने से प्रभु ने पुनः अपनी इच्छा दोहराई अतः आपने उस वर्ष श्रीजी को आज के दिन पुनः वसंत खेलाये और आगामी एकादशी को डोल झुलाये.

श्री गोवर्धनधरण प्रभु जतीपुरा से राजस्थान पधारे उपरांत राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति से प्रेरित श्री दामोदरलालजी महाराज ने अपनी कुमारावस्था में फाग की सवारी का प्रारंभ किया.

इस सवारी के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में साजी जाती है. यह पिछवाई इसके अतिरिक्त कुंज-एकादशी के दिन शयन समय भी साजी जाती है.

आज नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है.

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कुंजभवन तें निकसे माधो राधापे चले मेलि गले बांह l
जब प्यारी अरसाय पियासो मंदमंद त्यों स्वेदकन वदन निहारत करत मुकुटकी छांह ll 1 ll
श्रमित जान पटपीत छोरसों पवन ढुरावे व्रजवधु वनमांह l
‘जगन्नाथ कविराय’ प्रभुको प्यारी देखत नयन सिराह ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में हाथी के ऊपर सवारी, पृष्ठभूमि में महल, व्रजभक्तों के साथ होली खेल आदि के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सतरंगी ज़री की दोनों काछनी सुथन, लाल रास-पटका एवं मेघश्याम दरियाई वस्त्र की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद लट्ठा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के 
 सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना की मुकुट टोपी के ऊपर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी नाचते मोर की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण, मुकुट, टोपी, पीताम्बर, चोली व दोनों काछनी बड़े किये जाते हैं.

शयन दर्शन में मेघश्याम चाकदार वागा व लाल तनी ऐव लाल गोल पाग धरायी जाती है. पुष्प के आभरण एव श्रीमस्तक के ऊपर पुष्प के लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Thursday, 9 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण तृतीया

व्रज - चैत्र कृष्ण तृतीया 
Friday, 10 March 2023

मेघस्याम ज़री के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को मेघस्याम ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में मेघस्याम ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मेघस्याम रंग की ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाबी रंग के ठाडे वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मेघस्याम रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, चमकनी गोल-चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में एक दुलड़ा एक सतलड़ा धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट मेघस्याम एवं गोटी चाँदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Wednesday, 8 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वितीया

व्रज - चैत्र कृष्ण द्वितीया 
Thursday, 09 March 2023

लाल नेक भवन हमारे आवो ।
जो मांगो सो देहो मोहन ले मुरली कल गावो ।।१।।
मंगलचार करो गृह मेरे संगके सखा बुलावो ।
करो विनोद सुंदर युवतीनसों प्रेम पीयूष पीवावो ।।२।।
बलबल जाऊं मुखारविंदकी ललित त्रिभंग दीखावो ।
परमानंद सहचरी रसभर ले चली करत उपावो ।।३।।

द्वितीया पाट

आज प्रभु को नियम के सुनहरी ज़री के चाकदार वस्त्र और श्रीमस्तक पर हीरा की कुल्हे पर सुनहरी घेरा धराये जाते हैं.

उत्सव के कारण गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में चाशनी लगे पक्के गुंजा अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

श्रृंगार दर्शन 

साज – आज श्रीजी में फूलक शाही ज़री की हरे हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर से सफेदी बड़ी कर (हटा) दी जाती है. उत्सव के दिवसों में मलमल के गादी-तकियों में सफ़ेद बिछावट नहीं की जाती इसलिए ऐसा कहा जाता है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सुनहरी ज़री के बिना किनारी के सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका रूपहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता के मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव स्वर्ण की कुल्हे के ऊपर सुनहरी जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटीजी धरायी जाती है.
नीचे सात पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व माला धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि माला धरायी जाती हैं.
 चैत्री गुलाब के पुष्प की सुन्दर थागवाली वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ की आती है. 
आरसी चार झाड़ की दिखाई जाती है. 

Tuesday, 7 March 2023

व्रज - चैत्र कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - चैत्र कृष्ण प्रतिपदा
Wednesday, 08 March 2023

मनमोहन अद्भुत डोल बनी ।
तुम झुलो हों हरख झुलाऊं वृन्दावन चंद धनी ।।१।।
परम विचित्र रच्यो विश्वकर्मा हीरा लाल मनी ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधरन लाल छबि कापे जात गनी ।।२।।

दोलोत्सव ( डोल का उत्सव) 

सामान्यतया होलिकोत्सव तिथी प्रधान होने से फ़ाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन और डोलोत्सव नक्षत्र प्रधान होने के कारण जिस दिन सूर्योदय के समय उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होवे उस दिन मनाया जाता है.

आज डोलोत्सव अर्थात काम पर प्रभु की विजय का उत्सव मनाया जाएगा.

परम्परानुसार मंदिर दोलोत्सव के पश्चात ख़ासा (साफ़) किया जायेगा.

पुष्टिमार्ग में दोलोत्सव को काम-विजय उत्सव भी कहा जाता है. 
बसंत-पंचमी (जिसे मदन-पंचमी भी कहा जाता है) पर कामदेव का प्रादुर्भाव हुआ और उन्होंने हमारे योगेश्वर प्रभु श्रीकृष्ण को अपने अर्थात काम के वश में करने की ठानी. 
गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन, अरगजा आदि सुगन्धित साधन एवं रंग कामोद्दीपक माने जाते हैं और प्रतिदिन इनके प्रयोग से प्रभु काम के वश में होंगे ये कामदेव का भ्रम था. 
इसके अलावा स्त्री वेश (विविध भांति की चोलियाँ) आदि पहना कर भी कामदेव ने प्रभु को काम के वश में करने की कुचेष्टा की परन्तु श्री कृष्ण को योगेश्वर ऐसे ही नहीं कहा जाता. 
कुछ वाद्य यंत्रों की ध्वनि भी कामोद्दीपक मानी जाती है अतः ढप, ढ़ोल बजा कर, रसिया (बैठे और ठाडे), धमार और अमर्यादित गालियाँ गाकर प्रभु को भोगी सिद्ध करने का निरर्थक प्रयास किया. 
अंततोगत्वा चालीस दिन के निरर्थक प्रयास के पश्चात कामदेव ने प्रभु से क्षमा मांगी. तब योगेश्वर प्रभु श्रीकृष्ण ने दोलोत्सव के रूप में काम-विजय उत्सव मनाया. आज सबसे अधिक गुलाल काम पर विजय के भाव से उड़ायी जाती है.

सभी वैष्णवों को दोलोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाईयाँ

आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी का सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. मोठड़ा का पटका, श्रीमस्तक पर चिल्ला की छज्जेदार पाग पर मोर चन्द्रिका धरायी जाती है.

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केसरी चन्द्रकला, केशर-युक्त बासोंदी की हांडी व विविध फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

डोल झुलावत लाल बिहारी,नाम लेले बोले लालन
प्यारी ।
हे दुल्हा दुलहनी दुलारी सुंदर सरस कुमारी ।।
नखसिख सुंदर सिंगारी केसु कुसुम सुहस्त सम्हारी ।
श्याम कंचुकी सुरंग सारी चाल चले छबि न्यारी।।१।।
वारंवार बदन निहारी अलक तिलक झलमलारी ।
रीझ रीझ लाल ले बलिहारी पुलकित भरत अंकवारी ।।
कोककला निपुन नारी कंठ सरस सुरहि भारी ।
सुयश गावत लाल बिहारी बिहारिन की बलिहारी ।।२।।

राजभोग दर्शन –

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की चार तह की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. गुलाल खेल इतना अधिक होता है कि पिछवाई और साज का मूल रंग दिखायी ही नहीं पड़ता.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी के सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का धराया जाता है जिसके दोनों छोर आगे की ओर रहते हैं. सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर, एवं चोवा आदि से भारी खेल किया जाता है. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिनपर गुलाल, अबीर आदि से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल और दाढ़ी भी रंगे जाते हैं.  

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, सफ़ेद व मेघश्याम मीना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सफ़ेद चिल्ला की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाऊ के चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में नीचे दस पदक ऊपर ग्यारह माला सोने एवं मोती की धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में चंद्रहार एवं हमेल आदि धराये जाते हैं.
 गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली बड़ी मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (स्वर्ण के बटदार व एक नाहरमुखी) धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर भी गुलाब के पुष्पों की एक मोटी मालाजी धरायी जाती है. 
पट चीड़ का व गोटी चांदी की आती है. आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की आती है.
 भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 

दोलोत्सव

दोलोत्सव महामहोत्सव कहलाता है. श्री चन्द्रावली जी की सेवा का यह मुख्य उत्सव है. श्री हरिराय महाप्रभु की दोलोत्सव भावना के अनुसार यह अत्यंत गोपनीय लीला है. 

श्री वृषभानजी एवं श्री कीर्तिजी प्रभु श्री कृष्ण को अपने यहाँ आमंत्रित करते हैं. अपने जंवाई को आमंत्रित कर विविध प्रकार की सामग्रियां अरोगाते हैं एवं तत्पश्चात गुलाल, अबीर छांटकर होली खेलाते हैं. 
इस भाव से श्री नवनीतप्रियाजी आज प्रथम राजभोग में श्रीजी की गोदी में विराजते हैं. बाद में प्रभु नंदालय में पधारते हैं जहाँ नंदरायजी एवं यशोदाजी उन्हें अपने वात्सल्यरस से खेलाते हैं और विविध सामग्रियां अरोगाते हैं. तत्पश्चात निकुंज में, वृन्दावन में, श्री गोवर्धन की तलहटी में (जहाँ सुन्दर झरने बह रहे हैं, सदा बसंत खिला रहता है, वातावरण में शीतल सुगन्धित पवन बह रही है, अनेक प्रकार की माधुरी लताएँ, द्रुम बेलें, पुष्प एवं फलों से युक्त खिल रहे हैं) सुन्दर डोल (पुष्प पत्तियों से निर्मित झूले) की रचना व्रजभक्त करते हैं. श्री ठाकुरजी को डोल में पधराकर व्रजभक्त झुलाते हैं. प्रभु भक्तों के मनोरथ-पूरक हैं और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने के लिए सर्व स्थानों पर डोल झूलते हैं. डोल के चार दर्शन होते हैं.

श्री नवनीतप्रियाजी आज अपने मंदिर में गुलाल नहीं खेलते हैं. वहां कल रात्रि को ही गुलाल साफ़ कर ली गयी है. आज श्री नवनीतप्रियाजी पलना नहीं होता और लाड़ले लाल प्रभु अपने घर राजभोग अरोग कर श्रीजी में पधारते हैं और श्रीजी की गोदी में विराजित होते हैं. 

प्रथम नियम के राजभोग सरे उपरान्त डोल का अधिवासन किया जाता है.
पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री अथवा मुखियाजी आरती करते हैं, सूक्ष्म खेल होता है. यह दर्शन सामान्य वैष्णवों के लिये बाहर नहीं खोले जाते. 

डोलतिबारी के पीछे के दो खण्डों (जहाँ श्रावण मास में हिंडोलना बंधता है) में डोल (एक पुष्प-पत्तियों से निर्मित झूला) बाँधा जाता है जिसमें श्री नवनीतप्रियाजी विराजित हो डोल झूलते हैं और आगे के एक खंड में वैष्णव दर्शनों का लाभ लेते हैं. दर्शनों के दौरान दोनों ओर से अनवरत अबीर, गुलाल उड़ाए जाते हैं और अत्यधिक मात्रा में उड़ाए जाते हैं जिससे डोल तिबारी में अँधेरा सा छा जाता है.

उसके बाद अन्य तीन भोग में प्रभु उत्सव भोग अरोगते हैं और भोग सरे पश्चात बाहर दर्शन भी देते हैं.
शंखोदक, धूप, दीप होते हैं. दूसरे भोग सरते हैं, दर्शन खुलते हैं, पहली पान की बीड़ी अरोगायी जाती है. पिछवाई, चंदुवा छांटे जाते हैं और भारी खेल होता है.

 फिर दूसरी पान की बीड़ी अरोगायी जाती हैं, उसी क्रम से खेल होता है, गुलाल, अबीर उड़ाए जाते हैं. पुष्प उड़ाए जाते हैं और धूप, दीप, शंखोदक होते हैं.
इसके उपरांत तीसरे भोग आते हैं जिसमें दूसरे भोग से दोगुने भोग आते हैं.

उत्सव भोग में श्रीजी को कड़क मठड़ी, सेव गोली (छोटे लड्डू), कूर के पकागुंजा, कड़क शक्करपारा, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरी चन्द्रकला, रसखोरा, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, श्रीखंडवड़ी, छाछवड़ा, कांजीवड़ा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल आदि अरोगाये जाते हैं.

भोग सरते हैं, नयी मालाजी धरायी जाती है, ऊपर के क्रम में दो-दो पान की बीड़ी अरोगायी जाती हैं. गुलाल खेल होता है, आरती होती है.

 चौथे भोग आते हैं, वही क्रम से खेल व दर्शन होते हैं.

उसके बाद श्री नवनीतप्रियाजी श्रीजी की गोदी में बिराजते हैं, आरती होती है, भारी खेल होता है और लालन अपने घर पधार जाते हैं.

मंगला के पश्चात श्रृंगार, ग्वाल व प्रथम भोग भीतर होते हैं. दूसरे, तीसरे और चौथे भोग के दर्शन बाहर खुलते हैं.

Sunday, 5 March 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी 
Monday, 06 March 2023

होली का उत्सव

सामान्यतया होलिकोत्सव तिथी प्रधान होने से फ़ाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन और डोलोत्सव नक्षत्र प्रधान होने के कारण जिस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होवे उस दिन मनाया जाता है.
यद्यपि इस वर्ष होलिकोत्सव आज फ़ाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी के दिन व होलिका प्रदीपन (दहन) कल फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार, 7 मार्च 2023 को सूर्योदय पूर्व होगा.
डोलोत्सव उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में बुधवार, 08 मार्च 2023 को होगा.

आज प्रभु को नियम से पाग-चन्द्रिका, सूथन व घेरदार वागा धराये जाते हैं

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 
इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मीठे कटपूवा अरोगाये जाते हैं. 
इसके अतिरिक्त आज उत्सव के कारण प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग खेल में पिछवाई को गुलाल से पूरा रंगा जाता है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है. चंदवा पर चंदन छांटा जाता है.

श्रीजी की दाढ़ी पर तीन बिंदी लगायी जाती है. प्रभु के सम्मुख चार पान के बीड़ा सिकोरी (स्वर्ण के जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं.

आज गुलाल, अबीर का खेल अन्य दिनों की तुलना में अत्यन्त भारी होता है. वैष्णवजनों पर भी गुलाल पोटली भर कर उड़ाई जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

डोल झूलत है प्यारो लाल बिहारी पहोपवृष्टि होती l
सुरपुर गंधर्व तिनकी नारी देखके वारत है लर मोती ll 1 ll
घेरा करत परस्पर सबमिल नहीं देखीयत युवती ऐसी जोती l
‘हरिदास’ के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सादाचूरी खुभी पोती ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. गुलाल खेल इतना अधिक होता है कि पिछवाई और साज का मूल रंग दिखायी ही नहीं पड़ता.  

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा का सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का धराया जाता है जिसके दोनों छोर आगे की ओर रहते हैं. 
सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर, एवं चोवा आदि से भारी खेल किया जाता है. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिनपर गुलाल, अबीर आदि से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (छेड़ान से दो आंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, सफ़ेद व मेघश्याम मीना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सफ़ेद छज्जेदार श्याम झाईं वाली पाग के ऊपर हरा पट्टीदार सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में सात पदक, नौ माला धरायी जाती है. दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (स्वर्ण के बटदार व एक नाहरमुखी) धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर भी गुलाब के पुष्पों की एक मोटी मालाजी धरायी जाती है. 
पट चीड़ का व गोटी चांदी की आती है. आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की आती है.
भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. गठेली की हमेल धरायी जाती है.

श्रीजी की एक अद्भुत परंपरा

....श्रीजी में होली के त्यौहार के दिन शयन के दर्शन में परम्परागत रूप से परमपूज्य श्रीतिलकायत प्रभु श्री गोवर्धनधरण की दाढ़ी रंगेंगे अर्थात प्रेम से प्रभु की दाढ़ी पर गुलाल लगाकर डोलोत्सव की परंपरागत शुरुआत करेंगे.

आज के दिन शयन में भी गुलाल खेल होता है और खूब गुलाल उड़ायी जाती है. आज शयन दर्शन में प्रभु को एक वेत्र श्रीहस्त में धरायी जाती है जिससे प्रभु व्रजभक्तों को घेर सके.

आज होली का त्यौहार है परन्तु शुभ मुहुर्तानुसार होलिका दहन कल अर्थात मंगलवार, 7 मार्च 2023 प्रातःकाल 6.56 बजे के पूर्व होगा. 
कल प्रातः श्रीजी के मुख्य पंड्याजी, खर्च-भंडारी, घी-घरिया, मशाल-वाला, श्रीनाथ गार्ड्स, श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के किर्तनिया आदि कीर्तन गाते हुए सूर्यास्त के समय श्रीजी मंदिर से होली-मगरा जाकर मंत्रोच्चार और कीर्तन की मधुर ध्वनि के बीच पूजन कर व भोग धरकर प्रदीपन करेंगे. होलिका प्रदीपन के पश्चात उपस्थित श्रीनाथ गार्ड होली-मगरा से हवा में गोली चलाकर सलामी देंगे. 

Saturday, 4 March 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी 
Sunday, 05 March 2023

आप (तिलकायत श्री) के (चतुर्दशी के श्रृंगार)

फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो गये हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये शृंगार  द्वितीया पाट तक धराये जायेंगे.  ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी शृंखला में आज चतुर्दशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.

सभी समय की झारीजी यमुनाजल से भरी जाएगी. दो समय आरती थाली में की जाएगी.

आज नियम का श्रृंगार है जिसमें श्वेत चंदन की बुटी के किनारी वाले वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग एवं मच्छीघाट का सुनहरी कतरा धराया जाता हैं. 

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 

इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में घेवर अरोगाया जाता हैं.

राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है.
 
प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री / हिंडोल)

झुलत युग कमनीय किशोर सखी चहुँ ओर झुलावत डोल l
ऊंची ध्वनि सुन चकृत होत मन सब मिल गावत राग हिंडोल ll 1 ll
एक वेष एक वयस एक सम नव तरुनि हरनी दग लोल l
भांत भांत कंचुकी कसे तन वरन वरन पहेरे वलिचोल ll 2 ll
वन उपवन द्रुमवेळी प्रफुल्लित अंबमोर पिकन कर कलोल l 
तैसेही स्वर गावत व्रज वनिता झुमक देत लेत मन मोल ll 3 ll
सकल सुगंध सवार अरगजा आई अपने अपने टोल l
तक तकजु पिचकाईन छिरकत एक भरे भर कनक कचोल ll 4 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत चंदन की बुटी के किनारी का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे स्याम रंग के धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर मच्छीघाट का सुनहरी कतरा  एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है.
पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है. 
आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी डांडी की आती है. 
भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Friday, 3 March 2023

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वादशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल द्वादशी 
Saturday, 04 March 2023

खेलतु फाग लख्यौ पिय प्यारी कों,
 ता सुख की उपमा किहीं दीजै।
देखत ही बनि आवै भलै 'रसखान' ,
कहा है जो वारि न कीजै।।
ज्यौं ज्यौं छबीली कहै पिचकारी लै ,
एक लई यह दूसरी लीजे।
त्यौं त्यौं छबीलो छकै छाक सौं ,
हेरै हंसे न टरै खरौ भीजे।

आप (तिलकायत श्री) के श्रृंगार (त्रयोदशी का  श्रृंगार)

नवमी से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी शृंखला में आज त्रयोदशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.

विशेष – आज सभी समय झारीजी यमुनाजल से भरी जाती है और दो समय आरती थाली में होती है.

इन दिनों प्रभु को आपके श्रृंगार धराये जा रहे हैं. 
इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को नियम के श्वेत जामदानी के चाकदार वागा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सुनहरी जमाव का कतरा का श्रृंगार धराया जाता है. आभरण छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक धराये जाते हैं.

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 

इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दही की सेव (पाटिया) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज के अतिरिक्त दही की सेव (पाटिया) के लड्डू केवल डोलोत्सव, अक्षय नवमी व नागपंचमी के दिन अरोगाये जाते हैं.

राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है.
 
प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

हरिको डोल देख व्रजवासी फूले l गोपी झुलावे गोविंद झूले ll 1 ll
नंद चंद गोकुल में सोहे l मुरली मन्मथ मन मोहे ll 2 ll
कमलनयन को लाड़ लड़ावे प्रमुदित गीत मनोहर गावे ll 3 ll
रसिक शिरोमनि आनंद सागर l ‘सूरदास’ प्रभु मोहननागर ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद जामदानी का छींट वाला सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.
प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. अत्यधिक गुलाल खेल के कारण वस्त्र लाल प्रतीत होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर स्याम खिड़की की सफ़ेद छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी नागफणी (जमाव) का कतरा व तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मीना के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में एक अक्काजी की माला धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते है.
यदि सर्दी कम हो और कोई मनोरथी हो तो श्री तिलकायतजी की आज्ञा लेकर शयन में पुष्पों के आभरण धराये जा सकते हैं.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...