By Vaishnav, For Vaishnav

Tuesday, 31 October 2023

व्रज – कार्तिक कृष्ण चतुर्थी

व्रज – कार्तिक कृष्ण चतुर्थी
Wednesday, 01 November 2023

दीपावली के पूर्व कार्तिक कृष्ण वत्स द्वादशी का प्रतिनिधि श्रृंगार

 विशेष – दशहरा के अगले दिन से दीपावली के उत्सव के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
इनमें कार्तिक कृष्ण दशमी से दीपावली तक धराये जाने वाले सभी छह श्रृंगारों के प्रतिनिधि के श्रृंगार आगामी दिनों में धराये जाएंगे. इनमें कुछ श्रृंगार के दिन नियत व कुछ खाली दिनों में धराये जाते हैं. 
प्रतिनिधि श्रृंगार में वस्त्र, साज और श्रृंगार आदि मुख्य श्रृंगार जैसे ही होते हैं.

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली वत्स द्वादशी को धराये जाने वाले वस्त्र और श्रृंगार धराया जाता है जिसमें पिली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की कशी के काम की चन्द्रिका धरायी जाती है. 

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की वत्स द्वादशी को भी धराये जायेंगे. 

इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.
अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी का है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

सुनरी सेन दई ग्वालन को मोहनलाल बजायो बेन ।
प्रातसमे जागे अनुरागे वृंदावन आनंद माई चले चरावन घेन ।।१।।
बरन बरन बानिक बनि आये पटभूखण जसुमति पहेराये भाल तिलक के आंजे नैन ।
हरिनारायण श्यामदासके प्रभु माई प्रगट भये, धरी सीस चंद्रिका सब व्रजजन सुख देन ।।२।।

साज – श्रीजी में आज कत्थाई (brown) तथा श्याम आधार (base) पर सुनहरी सुरमा सितारा के भरतकाम और हांशिया वाली (कला बत्तू के काम की) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पिली सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, कड़ा,हस्त सांखला आदि धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले रंग के सलीदार चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, पन्ना की कशी के काम की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.
कली की मालाजी धरायी जाती है. 
 गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण के (एक पन्ना का) वेणुजी एवं बेंतजी धराये जाते हैं.
पट प्रतिनिधि का एवं गोटी सोना की  आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण व श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराकर शयन दर्शन खुलते हैं.

Monday, 30 October 2023

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया
Tuesday, 31 October 2023

राते पीरे टिपारा को शृंगार 

आज प्रभु को 'राते पीरे टिपारा' का श्रृंगार धराया जाता है.
'राते पीरे' देशी ब्रजभाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ 'लाल पीला' होता है.

आज से प्रतिदिन सरसलीला के कीर्तन गाये जाते हैं. 
प्रातः राग–बिलावल में, राजभोग आवें तब राग-सारंग में एवं शयन भोग आवें तब राग कान्हरो के कीर्तन गाये जाते हैं. ओसरा (बारी-बारी) से दो अथवा चार पद गाये जाते हैं.

दीपावली के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. 

जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. 
आज का श्रृंगार श्री स्वामिनीजी के भाव से धराया जाता है जिसमें लाल ज़री के चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर (राते पीरे) लाल ज़री का टिपारा, पीले तुर्री व पेच (मोरपंख का टिपारा का साज), गायों के घूमर में प्रभु विराजित हैं ऐसी पिछवाई एवं श्वेत वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फिरोज़ा के धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले (लीम्बोई) रंग के धराये जाते हैं.पटका पिला धराया जाता हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती हैं.
श्रीमस्तक पर मोर के टिपारा का साज – लाल ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, पीले तुर्री व पेच (मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. बायीं ओर मीना की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं और शयन दर्शन खुलते हैं.

Sunday, 29 October 2023

व्रज – कार्तिक कृष्ण द्वितीया

व्रज – कार्तिक कृष्ण द्वितीया
Monday, 30 October 2023

पीत दुमालो बन्यो,कंठ मोतीनकी माला ।
सुंदर सुभग शरीर,झलमले नयन विशाला ।।

पीत दुमाला के शृंगार

विशेष – आज श्रीजी को अन्नकुट पर गोवर्धन लीला के अन्तर्गत गाए जाने वाले   ‘अपने अपने टोल क़हत ब्रिजवासिया’ के उपरोक्त पद के आधार पर पीत दुमाला का श्रृंगार धराया जाता है. जिसमें प्रभु को श्रीमस्तक पर पीले मलमल का बीच का दुमाला, पटका व तनिया धराया जाता है. 
वस्त्र व आभरण ऐच्छिक होते हैं प्रभु को आज के दिन पीले रंग का दुमाला धराया जाता है और आसमानी ज़री के चाकदार वागा धराये जायेंगे.

गोवर्धन पूजा के पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सुनिये तात हमारो मतो श्रीगोवर्धन पूजा कीजे l
जो तुम यज्ञ रच्यो सुरपति को सोई याहि दे दीजे ll 1 ll
कंदमूल फल पहोपनकी निधि जो मागे सो पावे l
यह गिरी वास हमारो निशदिन निर्भय गाय चरावे ll 2 ll...अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में लाल रंग के हांशिया वाली श्याम मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. जिसमें गायों का चित्रांकन किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे श्रीजी गायों के मध्य विराजित हों. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को मेघस्याम सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्री मस्तक पर पीले मलमल का बीच का दुमाला मोर चन्द्रिका, एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ तथा झुमकी वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
 सफेद एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट चांदी का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.आरसी नित्य की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते. 

Saturday, 28 October 2023

व्रज - कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा

व्रज - कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा
Sunday, 29 October 2023

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता, इन बातन न रीजैयें ॥१॥
सतकुल जन्म करम शुभ लक्षण, वेद पुरान पढ़ैये ।
“गोविंदके प्रभु” बिना स्नेह सुवालों, रसना कहा जू नचैये ॥२॥

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

द्रश्य शरदोत्सव, शरद का परचारगी श्रृंगार, कार्तिक स्नान आरंभ

विशेष – आज से कार्तिक स्नान आरंभ हो रहा है. यशोदाजी एवं गोपियों ने आज से व्रत आरंभ कर कार्तिक कृष्ण सप्तमी व अष्टमी को मानसी-गंगा में स्नान कर, श्री कृष्ण-बलराम को भी स्नान करा कर इंद्रपूजन की शुरुआत कार्तिक कृष्ण नवमी के दिन से की थी. 

इस भाव से अन्नकूट महायज्ञ की शुरुआत आज अथवा कल के दिन से की जाती है.
अन्नकूट की सेवा में बालभोग की सेवा दशहरा से आरंभ हो जाती है.
घन की सेवा भी समान्यतया द्वितीया या तृतीया से आरम्भ होती है.
सखड़ी रसोई की भट्टी पूजा समान्यतया नवमी से आरंभ होती है.

*इस वर्ष शरद पूर्णिमा के चंद्र ग्रहण के कारण यह सारे सेवाक्रम भी श्री तिलकायत महाराज की आज्ञानुसार शास्त्र सम्मत परिवर्तित तिथियों से आरंभ होंगे.*

आज श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज से प्रतिदिन भीतर की देहरी हल्दी से लीपी जाती है, अन्नकूट के कीर्तन गाये जाते हैं एवं श्रीमस्तक के श्रृंगार में विशेष श्रृंगार मोरपंख की चन्द्रिका एवं कतरा के धराये जाते हैं.

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. इसी श्रृंखला में आज महारास की सेवा का पंचम एवं अंतिम अध्याय का मुकुट का श्रृंगार है जिसमें शरद का दूसरा वैसा ही श्रृंगार और शयन में चन्द्रावलीजी के भाव से ठाकुरजी को श्वेत उपरना धरावे का वर्णन है.

आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. 

सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है. 
परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज चिरंजीवी श्री विशालबावा होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll  

साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है. आज सर्व साज शरद का ही आता है परन्तु दीवालगिरी, चंदरवा आदि बिछात नहीं होती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज कल की ही भाँति सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की  रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है. लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज कल जैसा ही भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के  सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं. आज पीठिका के ऊपर हीरे का जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट श्वेत ज़री का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.

Friday, 27 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – आश्विन शुक्ल पूर्णिमा 
Saturday, 28 October 2023

 ग्रस्तोदित खग्रास चन्द्रग्रहण       
                   
दीपावली के आगम के श्रृंगार आरम्भ 

(प्रथम कार्तिक कृष्ण दशमी का आगम का श्रृंगार)

सभी बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार के आगम के श्रृंगार धराये जाते हैं.
आगम का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है कि प्रभु के उत्सव की अनुभूति मन में जागृत हो जाए कि उत्सव आने वाला है और हम उसकी तैयारी आरंभ कर दें.

आज से दीपावली के उत्सव के आगम के श्रृंगार आरम्भ होते हैं. 
इसी श्रृंखला में पहला आगम का श्रृंगार कार्तिक कृष्ण दशमी का आज श्रीजी को धराया जाता है जिसमें श्वेत एवं सुनहरी ज़री से सुसज्जित साज, चिरा (ज़री की छज्जेदार पाग) एवं वस्त्र धराये जाते हैं और कर्णफूल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की दशमी को भी धराये जायेंगे. 

इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.

आज से अन्नकूट तक अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार विशाखाजी का है और उनकी प्रिय सखी आच्छादिकाजी की ओर से किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll
अद्भुत अवधि कहां लगी वरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज सफेद रंग की मलमल की पिछवाई धरी जाती है जो कि सुनहरी सुरमा-सितारा के ज़रदोज़ी का काम तथा सुनहरी कशीदे की पुष्पलता से सुसज्जित है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत रंग की कारचोव के दोहरी (रुपहली और सुनहरी) ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे लाल रंग के दरियाई के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री के चिरा (छज्जेदार पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार मालाजी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत गोटी छोटी सोने की आती हैं.
आरसी शृंगार में सोने की छोटी एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती हैं.

अनोसर में चिरा (छज्जेदार पाग) बड़ी करके गोल पाग धराई जाती हैं.

Thursday, 26 October 2023

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी (शरद का उत्सव)

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी (शरद का उत्सव)
Friday, 27 October 2023
(चतुर्दशी क्षय एवम् पूर्णिमा को ग्रस्तोदित खग्रास चन्द्रग्रहण होने से शरद का उत्सव क्रम आज लिया गया है)

पूरी पूरी पूरण मासी पूरयो पूरयौ शरदको चंदा,
पूरयौ है मुरली स्वर केदारो कृष्णकला संपूरण भामिनी रास रच्यो सुख कंदा.

           शरद पूर्णिमा (रासोत्सव)
                    
आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. इसके साथ शाकघर के मीठा में आज के दिन सीताफल का रस भी श्रीजी को विशेष रूप से अरोगाया जाता है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.
आज श्रीजी को सखड़ी में केसर युक्त पेठा, मीठी सेव, श्याम खटाई, कचहरिया आदि आरोगाया जाता हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है. लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज उत्सव के भारी श्रृंगार धराये जाते है. हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं. 
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती हैं
हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.

Wednesday, 25 October 2023

व्रज - अश्विन शुक्ल द्वादशी

व्रज - अश्विन शुक्ल द्वादशी  
Thursday, 26 October 2023

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

साज – श्रीजी में आज रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. चोली स्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा - हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. शरद के दिनो में  चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज हास एवं त्रवल नहीं धराये जाते हैं.
कली कस्तूरी एवं कमल माला धरायीं जाती हैं.
हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मोर की आती है.
आरसी काच के कलात्मक की बाबा साहब वाली दिखाई जाती है.

Tuesday, 24 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल एकादशी

व्रज – आश्विन शुक्ल एकादशी
Wednesday, 25 October 2023

पापांकुशा एकादशी

विशेष - आज पापांकुशा एकादशी है. 
रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं.

आज महारास की सेवा का द्वितीय मुकुट का श्रृंगार है जिसमें लघुरास, रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. 
आज मुकुट धराया जाता है एवं श्री ललिताजी के भाव से शयन में गुलाबी उपरना धराया जाता है. 

इसके पूर्व प्रथम मुकुट का श्रृंगार आश्विन शुक्ल अष्टमी को था जिसमें प्रथम वेणुनाद, प्रश्न, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. 

आज की सेवा श्री ललिताजी के भाव से होती है. वस्त्र का रंग एवं आभरण ऐच्छिक है परन्तु श्रृंगार ड़ाख का मुकुट-काछनी का ही धराया जाता है. 

आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

राजभोग दर्शन – 

साज – “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े रास कर रहें हैं ऐसी रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा - हीरे एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. शरद के दिनो में  चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज हास एवं त्रवल नहीं धराये जाते हैं.
कली कस्तूरी एवं कमल माला धरायीं जाती हैं.
हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत सारे वस्त्र, शृंगार ठाड़े वस्त्र पिछवाई बड़े कर के  शयन के दर्शन में मंगला के दर्शन की भांति गुलाबी उपरना एवं गोल पाग एवं हीरा मोती के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आज से कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा तक आठों दर्शनों में रास के कीर्तन गाये जाते हैं.

Monday, 23 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल दशमी

व्रज – आश्विन शुक्ल दशमी
Tuesday, 24 October 2023  

 दशहरे के  परचारगी शृंगार, श्रीगुसाँईजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गिरधरजी के प्रथम लालजी श्रीमुरलीजी का उत्सव

विशेष – आज का श्रीजी का श्रृंगार कल के श्रृंगार का परचारगी श्रृंगार है.

अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन उपरांत उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. 

इसमें सभी वस्त्र एवं श्रृंगार लगभग सम्बंधित उत्सव की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं.

सेवाक्रम - पर्वरुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll
अद्भुत अवधि कहां लगी वरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज रुपहली ज़री का चोली घेरदार वागा एवं सूथन लाल सलीदार ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना का टीका, माणक का पट्टीदार सिरपैंच व नवरत्न की किलंगी एव काच के जवारे धराये जाते हैं. बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

कली, कस्तूरी,वल्लभी, जूही, चंद्रहार, अक्काजी की सात बालकन की माला धरायी जाती हैं.
 श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं. 
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दिखाई जाती है.

Sunday, 22 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी

व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी  
Monday, 23 October 2023

विजयदशमी(दशहरा), नित्यलीलास्थ श्री मुरलीधरजी का उत्सव

आज की पोस्ट आज के विजयदशमी पर्व  की अद्भुत विलक्षणता को समाहित करते हुए  कुछ लम्बी परन्तु बहुत सुन्दर व अर्थपूर्ण है. समय देकर पूरी अवश्य पढ़ें

आज असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयदशमी (दशहरा) है.

आज से ही प्रतिदिन खिड़क से गौमाता पधारें इस भाव से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गाय पधरायी जाती है.

हल्की ठण्ड आरम्भ हो गयी है अतः आज से मंगला समय प्रभु स्वरुप की पीठिका पर दत्तु ओढाया जाता है.

आज से तीन माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल एकादशी को तुलसी के बीज बोये जाते हैं एवं उनकी अभिवृद्धि और रक्षा हेतु प्रयत्न किये जाते हैं. कन्यावत उनका पालन कर कार्तिक शुक्ल एकादशी को उनका विवाह प्रभु के साथ किया जाता है. 
इससे श्रीजी में यह परंपरा है कि आज से एक माह तक समस्त पुष्टि-सृष्टि के वैष्णवों की ओर से सभी जीवों के कृतार्थ हेतु मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी के श्रीचरणों में प्रतिदिन सवा लाख (1,25,000) तुलसी दल (पत्र) समर्पित किये जाते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को केसर युक्त चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज से प्रभु को ज़री के वागा धराये जाने आरम्भ हो जाते हैं जो कि बसंत पंचमी से एक दिन पूर्व तक धराये जायेंगे. ठाडे वस्त्र भी दरियाई के आरम्भ हो जाते हैं.

ज़री के वस्त्र प्रभु के श्रीअंग पर चुभें नहीं इस भाव से आज से प्रतिदिन प्रभु को सामान्य वस्त्रों के भीतर आत्मसुख के वागा धराये जाते हैं. 
आत्मसुख के वागा विजयदशमी से कार्तिक शुक्ल दशमी तक (मलमल के) व कार्तिक शुक्ल (देवप्रबोधिनी) एकादशी से डोलोत्सव तक (शीत वृद्धि के अनुसार रुई के) धराये जाते हैं.

आज के दिन सुदर्शनजी की सभी सात ध्वजाएं स्वर्ण की ज़री की चढ़ाई जाती है.

आज निर्गुण भक्तों के भाव की सेवा है अतः श्रीजी को नियम के रुपहली ज़री के श्वेत घेरदार वागा धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरायी जाती है.
आज श्रृंगार में विशेष यह है कि आज प्रभु के दायें श्रीहस्त में प्राचीन पन्ना की जडाऊ कटार धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. 
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है. आज से राजभोग समय अरोगाये जाने वाले फीका, थपडी के स्थान पर तले जमीकंद (सूरण, अरबी, रतालू व शकरकन्द) अरोगाये जाते हैं.

शक्तिरूपेण भाव से राजभोग समय प्राचीन मगर की खाल से बनी ढाल (जिसमें स्वर्ण का अद्भुत काम किया हुआ है) को तबकड़ी पर प्रभु के सम्मुख रखा जाता है एवं राजभोग पश्चात हटा लिया जाता है.

इसी भाव से एक दिवस पूर्व संध्या काल में प्रभु के स्वरुप के पीछे एक लकड़ी के लम्बे संदूक में विभिन्न आकारों की ढालें, तलवारें, अद्भुत काम से सुसज्जित कटारें, धनुष-बाण, चाकू आदि विभिन्न अस्त्र-शस्त्र रखे जाते हैं जिन्हें दशहरा के दिन संध्या-आरती दर्शन के उपरांत हटा लिया जाता है. 

तृतीय गृह प्रभु श्री द्वारकाधीशजी आदि कुछ पुष्टि स्वरूपों में नवरात्रि के अंतिम दिनों में अस्त्र, शस्त्र प्रभु के सम्मुख रखे जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : नट बिलावल)

आन और आन कहत भेचक रहत व्रजनारी नर l
कटु तिकत आम्ल मधुर खारे सलोने प्रकार खटरसको प्रीतसों आरोगत सुन्दरवर ll 1 ll
गिरिराज बरन बरन शिला जु सहस्त्रन मोदक ठोर ठोर बेसन गुंजा बाबरन l
‘राजाराम’के प्रभु को अचवावन कारन इन्द्र झारी भर लायो जलधर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज रुपहली ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
किलंगी नवरत्न की धराई जाती हैं.
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कली, कस्तूरी वल्लभी आदि माला धरायी जाती हैं.
 श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं. 
दायें श्रीहस्त में ही आज विशेष रूप से पन्ने की कटार (श्री मुरलीधरजी वाली) धरायी जाती है.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दिखाई जाती है.

Saturday, 21 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी
Sunday, 22 October 2023

आठों विलास कियौ श्यामाजू,
शांतनकुंड प्रवेशजू ।
उनकी मुख्य भामा सारंगी,
खेलत जनित आवेशजू  ।।१।।
सूरज मंदिर पूजन कर मेवा,
सामग्री भोगधरी ।
आनँद भरी चली व्रज ललना,
क्रीडन बनकों उमगि भरी ।।२।।
भद्रबन गमन कियौ बनदेवी,,
पूजन चंदनबंदन लीन ।
भोग स्वच्छ फेनी एनी,
सब अंबर अभरनचीने ।३।।
गावत आवत भावत चितवन,
नंदलालके रसमाती ।
कृष्णकला सुंदर मंदिरमें,
युवती भयी सुहाती।।४।।
देखी स्वरूप ठगी ललनाते,
चकचोंधीसी लाई ।
अँचवत दृगन अघात "दास रसिक,"
विहारीन राई ।।५।।

विशेष – आज दुर्गाष्टमी है. नवविलास के अंतर्गत पुष्टिमार्ग में आज अष्टम विलास का लीलास्थल शांतन कुंड है. 
आज के मनोरथ की मुख्य सखी भामाजी (भावनी जी) हैं और सामग्री चंद्रकला (सूतरफेणी) है. यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ में डेढ़ बड़ी आरोगाया जाता हैं.
आज श्रीजी को सखड़ी में अठपुड़ा प्रकार आरोगाया जाता हैं.

नवरात्रि में मर्यादामार्गीय शक्ति पूजन के मूल में शिव है जबकि पुष्टिमार्गीय शक्ति की लीला प्रकार के मूल में स्वयं नंदनंदन प्रभु श्रीकृष्ण है l

‘तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे कोटिक मन्मथ मोहै l’

आज श्रीजी की पिछवाई के सुन्दर चित्रांकन में गोपियाँ समूह में भद्रवन में वनदेवी के पूजन हेतु जा रही हैं किन्तु चिंतन एवं गुणगान नंदनंदन श्रीकृष्ण का ही कर रही हैं. 

आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन मैं आगे भी दूंगा. आज महारास की सेवा का प्रथम मुकुट का श्रृंगार है जिसमें प्रभु प्रथम वेणुनाद करते हैं, गोपियाँ प्रश्न करती हैं, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. 

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll
अद्भुत अवधि कहां लगी बरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज वेणुनाद सुन कर दोनों दिशाओं से प्रभु की ओर आते गोपियों के समूह की, रास के प्रारंभ के भाव की भद्रवन की लीला के अद्भुत चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी छापा के
 रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, एवं काछनी धरायी जाती है. चोली  श्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. अमरसी रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत छापा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज अलख (घुंघराले केश) धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी एवं गोटी नाचते मोर की  आती हैं.

Friday, 20 October 2023

व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी

व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी
Saturday, 21 October 2023

सातौ विलास कियौ श्यामाजू, गह्वर वनमें मतौजू कीन ।
मुख्य कृष्णावती सहचरी, लघु लाघव अति ही प्रवीन ।। १ ।।
बनदेवी हे गुंजा कुंजा, पुहुपन गुही सुमाल ।
चंद्रावली प्रमुदित बिहसत मुख, मुख ज्यों मुनिया लाल ।। २ ।।
रच्यौ खेल देवी ढिंग युवती, कोक कला मनोज ।
अति आवेश भये अवलोकत, प्रगटे मदन सरोज ।। ३ ।।
कोऊ भुजधर कर चरन उर कोऊ, अंग अंग मिलाय ।
कुंवर किशोरकिशोरी रसिकमणि, दास रसिक दुलराय ।। ४ ।।

विशेष – आज नवविलास के अंतर्गत सप्तम विलास का लीला स्थल गहवर वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी कृष्णावतीजी हैं और सामग्री वड़ी एवं बूंदी है. 
यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

आगम के शृंगार

इस वर्ष आश्विन शुक्ल नवमी (सोमवार, 23 अक्टूबर 2023) के दिन विजय दशमी (दशहरा) और नित्यलीलास्थ श्री मुरलीधरजी का उत्सव है और कल अष्टमी (रविवार, 22 अक्टूबर 2023) के दिन नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है अतः उत्सव पूर्व धराया जाने वाला आगम का श्रृंगार आज सप्तमी के दिन धराया जाएगा.

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार प्रभु को अनुराग के भाव से धराया जाता है. 

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में नवविलास के भाव से विशेष रूप से मोहनथाल अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग के छापा वाली सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी और हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के छापा के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के  कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
आज चार माला पन्ना की धराई जाती हैं.
 विविध पुष्पों की एक एवं दूसरी गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी छोटी सोना की आती है.
आरसी शृंगार में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Thursday, 19 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी
Friday, 20 October 2023

छठो विलास कियो श्यामा जु 
गौधन वन चली भामा जु ।
पहेरे रंग रंग सारी  हाथन पूजन थारी ।
ताकी मुख्य सहचरी राई  खेलनमें बहुत सुधराई ।।१।।
चली बन बन बिहसी सुंदरी  हार कंकन जगमगे ।
आई मंदिर पूजन देवी  भोग सिखरन सगमगे ।।२।।
ता समे प्रभु पधारे  कोटि मन्मथ मोहे ही ।
निरखी सखियन कमल मुख मानो  निर्धन धन जो सोहे ।।३।।
खेलको आरंभ कीनो  राधा माधो बीच किये ।
वाकी परछाई परी तब रसिक चरनन चित दिये ।।४।।

विशेष - आज छठे विलास का लीला स्थल गोवर्धन वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी राईजी हैं और सामग्री मोहनथाल एवं दूधपूवा है यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के बहूजी का उत्सव है जिसे राणीजी का उत्सव भी कहा जाता हैं.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से सिकोरी (मूंगदाल, मावे, इलायची के मीठे मसाले से निर्मित पूरणपूड़ी जैसी सामग्री) अरोगायी जाती है.
आज श्रीजी को सखड़ी में पत्तरवेला प्रकार आरोगाया जाता हैं.

श्रीजी में सभी देवों को मान दिया जाता है और महाप्रभुजी ने भी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीवामन एवं श्रीनृसिंह) को मान्यता दी है. 
इसी सन्दर्भ में आज श्रीजी में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी को मान देती आज श्री रामचंद्रजी के जीवन चरित्र का दर्शन कराती पिछवाई धरायी जाती है. 
इसी प्रकार रामभक्त हनुमान जी के गुणगान एवं अन्य रामभक्त जानकीजी को खोज रहे हैं ऐसी लीला के कीर्तन संध्या-आरती में मारू राग में गाये जाते हैं.

पायं तो पूजि चले रघुनाथ  
हनुमान आदि ले बडरे योद्धा लीने साथ।।
से तू  बांधि के लंका लूटी, रावण के काटे माथ।
कृष्ण दास सीता घर लाये, विभीषण  कियो सनाथ।।

आज प्रभु श्री रामचन्द्रजी के पराक्रम की भावना को दर्शाता मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

आज के इस श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज मल्लकाछ के ऊपर चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि विशिष्ट वीर-रस का धोतक है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनी कान मानो लागे मैंनबान, प्राननकी कासौ कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
व्याप्यो जु अनंग ताते अंग सुधि भूल गई कौऊ वंदो कोऊ निंदो करौ उपहासरी l
ऐसे ‘व्रजाधीश’सों प्रीति नई रीति बाढ़ी जाके उर गढ़ रही प्रेम पुंज गांसरी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में प्रभु श्री रामचंद्रजी के जन्म से रावण वध एवं उनके राज्याभिषेक तक के विविध प्रसंगों को दर्शाते चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं इसी प्रकार गुलाबी रंग के छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका लाल रंग का एक ही धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के छापा की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
आज चड़ी आस्तीन का बागा धराने से हीरा की एक ही गोल पहुची धराई धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी  व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Wednesday, 18 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी
Thursday, 19 October 2023

पाँचो विलास कियौ शयामाजू,
कदली वन संकेत ।
ताकी मुख्य सखी संजावलि,
पिया मिलनके हेत ।।१।।
चली रली उमगी युवती सब,
पूजन देवी निकसीं ।
धूप,दीप,भोग,संजावलि,
कमल कली सों विकसीं ।।२।।
आनँद भर नाचत गाबत,
वधू रस में रस उपजाती ।
मंडलमें हरी ततच्छि आये,
हिल मिल भये एकपाँती ।।३।।
द्वै युग जाम श्यामश्या
संग भाभिनी यह रस पीनौ ।
उनकी कृपा द्रष्टि अवलोकत,
रसिक दास रस भीनौ ।।४।।

विशेष - आज पंचम विलास का लीला स्थल कदलीवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी संजावलीजी हैं और सामग्री मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधपूआ है. 

मनोर के लड्डू श्रीजी में नहीं अरोगाये जाते परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को दोनों सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधपूआ (दूध में मेदे के घोल से सिद्ध मालपूए जैसी सामग्री) आरोगाए जाते हे 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहा कहो लाल सुघर रंग राख्यो मुरलीमें l
तान बंधान स्वर भेदलेत अतिजित
बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखनीकी रेख तामे गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी,
‘गोविंदप्रभु’ व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की, चाँद-सितारे और सूर्य की छापवाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें पीठिका के आसपास पुष्प-पत्रों का हांशिया बना है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम रंग के छापा का सूथन, श्याम छापा के वस्त्र की चोली एवं खुलेबंद का चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (छेड़ान) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर लाल रंग का छापा वाला ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में सोना की लोलकबिन्दी धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों वाले पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Tuesday, 17 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी (दुहरा मनोरथ)

व्रज – आश्विन शुक्ल चतुर्थी (दुहरा मनोरथ)
Wednesday, 18 October 2023

चौथौ विलास कियौ श्यामाजू,
परासौली बन माँई ।
ताके वृक्षलता द्रुमवेली,
तन पुलकित आनंद न समाईं ।।१।।
चंद्रभगा मुख्य यथावलि,
अपनी सखी सब न्यौति बुलाई ।
खंडमंडा,जलेबी लडुआ,
प्रत्येक अंगकौ भाव जनाई ।।२।।
साज कियौ पूजन देविकौ,
बहू उपहार भेट लै आई ।
खेलन चली बनी तिहिंशोभा,
ज्यों धनमें चपला चमकाई ।।३।।
पोहोंची जाय दरस देवी तब है,
गये श्यामकिशोर कन्हाई ।
मनकौ चीत्यौ भयौ लालनकौ,
हास बिलास करत किलकाई ।।४।।
श्यामाश्याम भुज भर भेटे,
तृण तोरत,और लेत बलाई ।
कही न जाय शोभा ता सुख की.
कुंजन दुरे रसिक निधिपाई ।।५।।

विशेष – आज चतुर्थ विलास का लीलास्थल परासोली है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चंद्रभागाजी हैं और सामग्री खरमंडा, जलेबी और लड्डू हैं यद्यपि ये भोगक्रम श्रीजी में नहीं होता परन्तु कई अन्य गृहों में यह सेवाक्रम होता है.

ठाकुरजी को आज केसरी डोरिया के घेरदारवस्त्र भी दोहरी किनारी वाले धराये जाते हैं. प्रभु समक्ष वेणुजी, वैत्रजी भी दो धराये जाते हैं.

कीर्तन भी दोगुने होते हैं.आज पूरे दिन झांझ (एक प्रकार का वाध्य) बजे
ग्वाल समय होने वाले धूप दीप भी दो बार होते हैं.
मंगलाभोग से ले कर संध्या आरती के पश्चात धैया (दूध) अरोगे तब तक सभी ‘नित्य-नियम के भोग’ भी दोहरा (दोगुना) अरोगाये जाते हैं. 

शयन भोग में पुनः भोग का क्रम पूर्ववत हो जाता है. केवल शयन की बासोंदी दोहरी अरोगायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से नवविलास के भाव से केशर की चाशनी युक्त घेवर व प्राकट्योत्सव के भाव से  केशर-युक्त जलेबी के टूक और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की दो हांडियां अरोगायी जाती है.

राजभोग समय अनसखड़ी में दाख (किशमिश) और दूसरा केले का रायता अरोगाया जाता है. 

राजभोग में नियम का सभी सखड़ी महाप्रसाद भी दोहरा (दोगुना) अरोगाया जाता है जिसमें विशेष मीठा में बूंदी प्रकार आरोगाया जाता हैं.

आज की एक अति विशिष्ट प्राचीन परम्परा है कि आज के द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी व तृतीय गृहाधीश्वर श्री द्वारकाधीश प्रभु को धराये जाने वाले केसर से रंगे डोरिया के वस्त्र भी श्रीजी से सिद्ध होकर जाते हैं. इसके साथ प्रभु के अरोगवे की सामग्री भी पधारती है. 
प्रधानगृह, द्वितीय गृह और तृतीय गृह में पधारने वाले ये वस्त्र विगत आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को केसर से रंगे जाते हैं.
 
वर्ष में केवल दो बार श्रीजी से इन दोनों गृहों के वस्त्र पधारते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सदा व्रजहीमें करत विहार l
तबके गोप भेख वपु धार्यो अब द्विजवर अवतार ll 1 ll
तब गोकुलमें नंदसुवन अब श्रीवल्लभ राजकुमार l
आपुन चरित्र सिखावत औरन निजमत सेवा सार ll 2 ll
युगलरूप गिरिधरन श्रीविट्ठल लीला ईक अनुसार l
‘चत्रभुज’ प्रभु सुख शैल निवासी भक्तन कृपा उदार ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज नन्दमहोत्सव और छठी पूजन के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी घेरदार वागा, रुपहली ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी वाला जामदानी का सूथन, चोली, एवं पटका धराये जाते हैं. पटका का एक छोर  ऊर्ध्व भुजा की ओर और एक शैया मन्दिर की और धराया जाता है. 
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के जामदानी के  धराये जाते है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के डोरिया की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के  कर्णफूल धराये जाते हैं. विविध पुष्पों की चार सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
आज अलक धराया जाता हैं.
श्रीहस्त में दो कमलछड़ी, पन्ना एवं हरे मीना के दो वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गोटी राग रांग की आती हैं.

Monday, 16 October 2023

व्रज - आश्विन शुक्ल तृतीया

व्रज - आश्विन शुक्ल तृतीया
Tuesday, 17 October 2023

तृतिय विलास कियो श्यामाजू प्रविन ।
खेलनको उत्साह सखी एकत्र किन ।।१।।
तिनमे मुख्यसखी विशाखाजू ऐन ।
चलीनिकुंज महेलमें कोकिला ज्यौं बैंन ।।२।।
भोग धरी सँवार बासोंधी सनी । 
कुसुमरंग अनेक गुही कामिनी ।।३।।
गानस्वर कियो बनदेवी बिहार । 
नव त्रियाकौ वेष कोटि काम वार ।।४।।
ढिंग आसन कराय प्यारीकों बेठाय । 
दोउ एकत्र किन निरखत लेत बलाय ।।५।।
यह लीलाको द्यान मम ह्रदय ठहराय । 
देखत सुरनर मुनिभूले रसिक बलबल जाय ।।६।।

विशेष – आज तृतीय विलास का लीला स्थल निकुंज महल है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी विशाखाजी हैं और सामग्री बासुंदी है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में प्रभु स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ‘चाशनीयुक्त कूर के गुंजा’ अरोगाये जाते हैं l
यह एक समोसे जैसी सामग्री है जिसके भीतर कूर (घी में सेका कसार और कुछ सूखा मेवा) भरा होता है. इसके ऊपर चाशनी चढ़ी होती है l

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधा संग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई l
मोहन अति ही सुजान परम चतुर गुन निधान
जान बुझ एक तान चूकके बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुन प्रवीन 
अति नवीन रूप सहित, वही तान सूनाई ll 2 ll
‘वल्लभ’ गिरिधरन लाल रिझ दई अंकमाल
कहत भले भले जु लाल सुंदर सुखदाई ll 3 ll

साज – श्रीजी को आज हरे रंग के छापा की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाला सूथन और इसी प्रकार हरे रंग के छापा के वस्त्र पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाले खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे रंग का छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का नागफणी का कतरा व लूम और तुर्री सुनहरी जरी की एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल के दो जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत रंग के पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी मीना की आती है. 

Sunday, 15 October 2023

व्रज - अश्विन शुक्ल द्वितीया

व्रज - अश्विन शुक्ल द्वितीया 
Monday, 16 October 2023

द्वितीय विलास कियौ श्यामाजू, खेल
समस्या कीनी ।
ताकी मुख्य सखी ललिताजू, आनंद महारस भीनी ।। १ ।।
चली संकेत बिहार करन बलि, पूजा साजि संपूरन ।
बहु उपहार भोग पायस लै, बाँह हलावत मूर ।।२।।
मंदिर देवी गान करत यश, आय मिले गिरिधारी ।
मन कौ भायौ भयौ सबन कौ, काम वेदना टारी ।।३।।
स्यामा कौ शृंगार श्याम कौ,
ललिता नीवी खोली ।
लीला निरखत दास रसिकजन, श्रीमुख
स्यामा बोली ।। ४ ।।

द्वितीय विलास के अंतर्गत सेहरा के शृंगार, छप्पनभोग (बड़ा मनोरथ)

नवविलास के अंतर्गत द्वितीय विलास के आधार पर आज द्वितीय विलास की भावना का स्थल व्रज में संकेत वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री ललिताजी है और सामग्री खीर की है. यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती परन्तु कई गृहों में नवविलास में अरोगायी जाती है.

आज श्रीजी प्रभु को नियम के पीले छापा के वस्त्र, पीला खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा और आभरण में विशेष पन्ना के कुंडल व पन्ना की जोड़ी धरायी जाती है.
लगभग 2 माह 12 दिन पश्चात प्रभु आज पुनः सेहरा का श्रृंगार धरायेंगे. 
पूर्व में श्रावण कृष्ण षष्ठी के दिन भी संकेत वन में प्रभु सेहरा का श्रृंगार धरा कर श्रीस्वामिनीजी के संग झूले थे. 
आज भी प्रभु संकेत वन में ही स्वामिनीजी संग मंडप में विराजे हैं.

प्रभु को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से बाबर (सूखे घेवर के ऊपर ठंडा घी और मिश्री का बूरा डाल कर बनाया खाद्य) का भोग अरोगाया जाता है.

बड़े मनोरथ के भाव से विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.

राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में सखड़ी भोग में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं.

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l 
नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll
नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l
नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll
नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l
नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की छापा की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी वाली धोती और इसी प्रकार का राजशाही पटका धराया जाता है. आज के वस्त्र विशिष्ठता लिए हुए है. आज विशेष रूप से धोती के ऊपर पीले रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी वाला खुलेबंद के चाकदार वागा एवं चोली भी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीले रंग का छापा का खूंट का दुमाला के ऊपर हीरो का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में पन्ना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
 श्वेत रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी राग रांग की आती हैं.

Saturday, 14 October 2023

व्रज – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा 
Sunday, 15 October 2023

प्रथम विलास कियो श्यामाजू 
                  किनौ विपिन विहारजू ।।
उनके बिधकी शोभा बरनो 
               कहत न आवे पारजू ।।१।।
बाके युथकी गणना नाहीं
                      निर्गुण भक्ति कहावे ।।
तारी संख्या कहत न आवै
                    शेषहू पार न पावे ।।२।।
घोषघोष प्रति गलिनगलिन प्रति
                         रंगरंग अंबर साजें ।।
कियौ शृंगार नखशिख अंग युवती
              ज्यों करनी गण साजें ।।३।।
बहु पूजा लै चली वृंदावन
                        पान फूल पकवानै ।।
तारे यूथ मुख्य संजावलि 
                     चंद्रकलासी बानै ।।४।।
पोहौंची जाय निकुंज भवनमें
                             दरसी वृंदादेवी ।।
तारे पद बदन करि माँग्यौ
                श्याम सुंदर वर एवा ।।५।।
तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे
                     कोटिक मन्मथ मोहै ।।
अंगअंग प्रति रुपरुप प्रति
              उपमा रवि शशि कोहै ।।६।।
द्वैजुग जाम श्याम श्यामा संग
                   केलि बिबिध रंग कीने ।।
उठत तरंग रंगरस उछलित 
               दास रसिक रस पीने ।।७।।

आजसे नौ दिन तक नव विलास की भाव भावना का आनंद ले

आश्विन नवरात्रि स्थापना, नवविलास आरम्भ

श्री हरिराय महाप्रभु ने इस नवविलास के भाव से नव पद की रचना की है. हालांकि श्रीजी मंदिर में ये पद नहीं गाये जाते परन्तु अन्यत्र कई वैष्णव मंदिरों में प्रतिदिन एक विलास गाया जाता है.

आज प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंजभवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी है. आज से मुरली एवं रास के पद गाये जाते हैं. इकाइयों के पद सायं भोग समय गाये जाते हैं और रास-पंचाध्यायी का पाठ भोग दर्शन का टेरा आये पश्चात एवं प्रभु शयन भोग अरोगें तब किया जाता है.

आज श्रीजी को नियम के लाल छापा के केसरी सूथन, चोली एवं चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर कुल्हे धरायी जाती है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेणी) और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर-युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.भोग आरती में फीका में चालनी (तला हुआ मेवा )आरोगाया जाता हैं.
सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं.

आज से प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा (रुई से भरी पतली गादी) बिछाई जाती है जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बल बल आज की बानिक लाल l
कसुम्भी पाग पीत कुलह भरित कुसुम गुलाल ll 1 ll
विश्वमोहन नवकेसर को तिलक ललित भाल l
सुन्दर मुख कमल हि लपटावत मधुप जाल ll 2 ll
बरुनी पीत विथुरित बंद सुभग उर विसाल l
‘गोविंद’ प्रभुके पदनख परसत तरुन तुलसीमाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की छापा की त्रिशूल वाली सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित एवं हरे रंग के हांशिया वाली (किनारी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 
सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि सर्वसाज जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं. 
प्रभु के सम्मुख चांदी की त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो कि दिन के अनोसर में ही धरे जाते हैं. 

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी की चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन हरे रंग का आता हैं.
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल छापा के कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरा का जड़ाव का चौखटा सुशोभित होता है. 
एक दुलड़ा एवं सतलड़ा धराया जाता हैं.
नीचे सात पदक एवं ऊपर हीरा पन्ना, मानक एवं मोती के हार धराए जाते है 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी सोने की जाली वाली आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.व्रज – आश्विन शुक्ल प्रतिपदा 
Sunday, 15 October 2023

प्रथम विलास कियो श्यामाजू 
                  किनौ विपिन विहारजू ।।
उनके बिधकी शोभा बरनो 
               कहत न आवे पारजू ।।१।।
बाके युथकी गणना नाहीं
                      निर्गुण भक्ति कहावे ।।
तारी संख्या कहत न आवै
                    शेषहू पार न पावे ।।२।।
घोषघोष प्रति गलिनगलिन प्रति
                         रंगरंग अंबर साजें ।।
कियौ शृंगार नखशिख अंग युवती
              ज्यों करनी गण साजें ।।३।।
बहु पूजा लै चली वृंदावन
                        पान फूल पकवानै ।।
तारे यूथ मुख्य संजावलि 
                     चंद्रकलासी बानै ।।४।।
पोहौंची जाय निकुंज भवनमें
                             दरसी वृंदादेवी ।।
तारे पद बदन करि माँग्यौ
                श्याम सुंदर वर एवा ।।५।।
तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे
                     कोटिक मन्मथ मोहै ।।
अंगअंग प्रति रुपरुप प्रति
              उपमा रवि शशि कोहै ।।६।।
द्वैजुग जाम श्याम श्यामा संग
                   केलि बिबिध रंग कीने ।।
उठत तरंग रंगरस उछलित 
               दास रसिक रस पीने ।।७।।

आजसे नौ दिन तक नव विलास की भाव भावना का आनंद ले

आश्विन नवरात्रि स्थापना, नवविलास आरम्भ

श्री हरिराय महाप्रभु ने इस नवविलास के भाव से नव पद की रचना की है. हालांकि श्रीजी मंदिर में ये पद नहीं गाये जाते परन्तु अन्यत्र कई वैष्णव मंदिरों में प्रतिदिन एक विलास गाया जाता है.

आज प्रथम विलास की भावना का स्थल निकुंजभवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी चन्द्रावलीजी है. आज से मुरली एवं रास के पद गाये जाते हैं. इकाइयों के पद सायं भोग समय गाये जाते हैं और रास-पंचाध्यायी का पाठ भोग दर्शन का टेरा आये पश्चात एवं प्रभु शयन भोग अरोगें तब किया जाता है.

आज श्रीजी को नियम के लाल छापा के केसरी सूथन, चोली एवं चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर कुल्हे धरायी जाती है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चन्द्रकला (सूतर फेणी) और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर-युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.भोग आरती में फीका में चालनी (तला हुआ मेवा )आरोगाया जाता हैं.
सखड़ी में केसरी पेठा व मीठी सेव खडंरा प्रकार इत्यादि अरोगाया जाता हैं.

आज से प्रतिदिन दोनों अनोसर में सिंहासन से शैयाजी तक पेंडा (रुई से भरी पतली गादी) बिछाई जाती है जिससे हल्की ठंडी भूमि पर ठाकुरजी को शीत का आभास ना हो.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बल बल आज की बानिक लाल l
कसुम्भी पाग पीत कुलह भरित कुसुम गुलाल ll 1 ll
विश्वमोहन नवकेसर को तिलक ललित भाल l
सुन्दर मुख कमल हि लपटावत मधुप जाल ll 2 ll
बरुनी पीत विथुरित बंद सुभग उर विसाल l
‘गोविंद’ प्रभुके पदनख परसत तरुन तुलसीमाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की छापा की त्रिशूल वाली सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित एवं हरे रंग के हांशिया वाली (किनारी वाली) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 
सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि सर्वसाज जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं. 
प्रभु के सम्मुख चांदी की त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो कि दिन के अनोसर में ही धरे जाते हैं. 

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी की चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन हरे रंग का आता हैं.
ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल छापा के कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरा का जड़ाव का चौखटा सुशोभित होता है. 
एक दुलड़ा एवं सतलड़ा धराया जाता हैं.
नीचे सात पदक एवं ऊपर हीरा पन्ना, मानक एवं मोती के हार धराए जाते है 
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी सोने की जाली वाली आती हैं.
 आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Friday, 13 October 2023

व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या

व्रज – आश्विन कृष्ण अमावस्या 
Saturday, 14 October 2023

अहो विधना तोपै अँचरा पसार माँगू, जनम-जनम दिजौ याहि बृज बसिबौ।
अहिर की जात समीप नन्दघर, घरि-घरि घनस्याम सौं हेरि -हेरि हसिबौ॥
दधि के दान मिष बृजकी बिथीन माँझ झकझौरन अँग-अँगकौ परसिबौ। 
छीतस्वामी गिरधारी विठ्ठलेश वपुघारी,सरदरैंन माँझ रस रास कौ बिलसिबौ॥

सर्वपितृ अमावस्या, कोट की आरती, सांझी की समाप्ति

विशेष – आज सर्वपितृ अमावस्या है. पुष्टिमार्ग में आज दानलीला का अंतिम दिन है और इस कारण श्रीजी में आज श्री हरिरायजी कृत बड़ी दानलीला गायी जाती है.

आज श्रृंगार दर्शन में जब प्रभु को आरसी दिखावें तब स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के निकट धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी लकुटी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे. दान के दिनों में जब भी वनमाला का भारी श्रृंगार धरा जावे तब यह छड़ी श्रीजी के निकट धरी जाती है.
आज प्रभु द्वारा दूधघर का महादान अंगीकार किया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं. 
दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को दूधघर की कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दान निवेरी लाल घर आये l
आरती करत नंदजु की रानी और हँसी हँसी मंगल गीत गवाये ll 1 ll
ऐसे वचन सुने में श्रवणन बड़े महरि के पुत कहावे l
फिर फिर राय बात हँसि बूझत हमको कहौ कहा तुम लाये ll 2 ll
लाऊ कहा सुनों किन में छीन छीन सबकी दधि खाये l
‘श्रीविट्ठल गिरिधरलालने’ बातन ही दोऊ बौराये ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की मलमल पर सुनहरी सूरजमुखी के फूल के छापा और सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज कोयली रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जमदानी के होते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर नीलम जड़ित स्वर्ण का मुकुट और मुकुट पर मुकुट पिताम्बर एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी दान की आती है. 

Thursday, 12 October 2023

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – आश्विन कृष्ण चतुर्दशी 
Friday, 13 October 2023

ऋतु का छेला (अंतिम) पिछोड़ा का शृंगार

चौफ़ुली चूंदड़ी का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के  श्रृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकन दान देरी महादान वृखभान दुल्हारी । 
तृषित लोचन चकोर मेरे तू व बदन इन्दु किरण पान देरी ॥१॥
सबविध सुघर सुजान सुन्दर सुनहि बिनती कानदेरी ।
गोविन्द प्रभु पिय चरण परस कहे जाचक को तू मानदेरी ॥२॥

साज - श्रीजी में आज चौफ़ुली चूंदड़ी की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल चौफ़ुली चूंदड़ी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चुंदड़ी की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की धराई जाती हैं.

Wednesday, 11 October 2023

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – आश्विन कृष्ण त्रयोदशी 
Thursday, 12 October 2023

नित्यलीलास्थ गौस्वामी बालकृष्णजी का उत्सव

विशेष – आज श्री गुसांईजी के तृतीय पुत्र बालकृष्णजी का उत्सव है. 

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

श्री गुसांईजी के सभी सात पुत्रों के जन्मोत्सव सभी गृहों में मनाये जाते हैं परन्तु आपश्री तृतीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री द्वारकाधीशजी के आचार्य थे अतः आज का उत्सव श्री द्वारकाधीश मंदिर (कांकरोली) में भव्य रूप से मनाया जाता है और इस अवसर पर वहां से जलेबी के टूक की सामग्री श्रीजी के भोग हेतु आती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखद एक रसना कहां लो वरनो ‘गोविंद’ बलबल जाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल पर लाल रंग की गायों, हरे रंग की लता के भरतकाम वाली एवं लाल रंग के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल का रूपहरी किनारी से सुशोभित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
श्वेत पुष्पों और कमल की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी,माणक के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का)धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं. आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Tuesday, 10 October 2023

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी

व्रज – आश्विन कृष्ण द्वादशी 
Wednesday, 11 October 2023

“श्रीवल्लभप्रतिनिधिं तेजेराशिं दयार्णवम् l
गुणातीतं गुणनिधिं श्रीगोपीनाथमाश्रये ll”

भावार्थ - श्रीवल्लभ के प्रतिनिधि स्वरुप, तेज के भंडाररूप, दया के सागर, सत्वादि गुणों के बल पर सत्ता भोगने वाले, सद्गुणों के भंडाररूप ऐसे श्री गोपीनाथजी का मैं आश्रय करता हूँ.  

(दशदिंगत विजयी पुरुषोत्तमजी महाराज द्वारा अपने ग्रन्थ ‘अणुभाष्य प्रकाश’ में की गई आपकी स्तुति)

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी का उत्सव

विशेष – आज श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र गोपीनाथजी का उत्सव है. 

श्रीजी को दान की हांडियों के अतिरिक्त गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.

संध्या आरती पश्चात चीर घाट की सांझी मांडी जाती है.

नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री गोपीनाथजी

श्री महाप्रभुजी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गोपीनाथजी का प्राकट्य विक्रमाब्द 1567 में आज के दिन प्रयाग (इलाहबाद) के निकट अडेल में हुआ था. उनके जन्म पर सभी को अपार आनंद अनुभव हुआ अतः महाप्रभुजी ने ब्राह्मणों, याचकों, गरीबों को खूब दान-दक्षिणा दी थी. 

7 वर्ष की आयु में आपका यज्ञोपवीत संस्कार कर स्वयं महाप्रभुजी ने आपको विद्याभ्यास प्रारंभ कराया. आप पर महाप्रभुजी की विद्वता एवं अनन्य भक्ति का बहुत प्रभाव पड़ा. 

महाप्रभुजी प्रतिदिन श्रीमद्भागवत का परायण करते. उन्हें देखकर आपने भी बाल्यावस्था में ही श्रीमद्भागवत का परायण करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करने का नियम लिया जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी वे तीन-चार दिवस बिना भोजन के भागवत परायण करते रहते. 

इससे व्यथित आपकी माताश्री को देख श्री महाप्रभुजी ने श्रीमद्भागवत साररूप ‘श्री पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम’ नामक ग्रन्थ की रचना की एवं गोपीनाथजी को ग्रन्थ दे कर आज्ञा की कि तुम प्रतिदिन इस ग्रन्थ का पाठ करो एवं इससे श्रीमदभागवत के पाठ का फल मिलेगा. 

श्री महाप्रभुजी ने आसुरव्यामोह लीला की तब आपकी आयु 19 वर्ष थी. इस अल्पायु में आपको आचार्य पद प्राप्त हुआ. 

आपकी बहूजी का नाम पयाम्मा जी था. आपको पुरुषोत्तमजी नाम के एक पुत्र, लक्ष्मी और सत्यभामा नाम की दो पुत्रियाँ हुई. 

आप शांत एवं गंभीर प्रवृति के विद्वान थे. आपकी रूचि ग्रंथों के अभ्यास एवं तीर्थयात्रा में विशेष रूप से थी. आप कई बार जगन्नाथपुरी एवं द्वारका की यात्रा को पधारते थे. 

एक बार आपश्री जगन्नाथपुरी की यात्रा को पधारे तब आपको एक लाख रुपये की धनराशि चरण भेंट में प्राप्त हुई. आपने इस राशी से सोने-चांदी के बर्तन एवं सेवा में आवश्यक सामग्रियां क्रय कर प्रभु को अर्पण कर दिए. तब से प्रभु का वैभव दिनोंदिन बढ़ने लगा.

आपके द्वारा रचित कई ग्रंथों में आज ‘साधन-दीपिका’ नाम का ग्रन्थ प्राप्त है. जिसमें भक्ति की साधना का स्वरुप सेवाविधि बतायी गयी है.

आप केवल 31 वर्ष भूतल पर विराजित रहे और जगन्नाथपुरी में ही नित्यलीला में पधारे. ऐसा कहा जाता है कि आप सदेह श्री जगन्नाथ भगवान के स्वरुप में अंतर्ध्यान हो गये थे. 

श्री गोपीनाथजी त्याग की मूर्ति, वैराग्यपूर्ण हृदय वाले भगवद सेवा परायण, समग्र परिवार को सुख देने वाले, एवं शिष्टबद्ध जीवन व्यतीत करने वाले थे. आपके बारे में श्री गुसांईजी ने कहा है :

“यदुग्रहतो जंतु: सर्व दु:खातिगोभवेत l
तमहं सर्वदा वंदे श्रीमद्वल्लभनंदनम् ll”

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्म धोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महाभाग्यवान ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हल्के आसमानी रंगी की छापा वाली तथा लाल एवं रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की ज़री की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली आदि मालाए धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी श्याम मीना की आती हैं.
 आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Monday, 9 October 2023

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी

व्रज – आश्विन कृष्ण एकादशी 
Tuesday, 10 October 2023

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील 
सुघरता ईन बातन न रीजैयें ।।१।।
सतकुल जन्म कर्म शुभ लच्छन
वेद पुरान पढ़ैये ।
गोविंद प्रभु बिना स्नेह सुवालों
रसना कहाजु नचैये ।।२।।

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

महादान एकादशी

विशेष – आज इंदिरा एकादशी है. इसे पुष्टिमार्ग में महादान एकादशी भी कहा जाता है.

आज दान का नियम का छटा मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

दान के दिनों के मुकुट काछनी के श्रृंगार की कुछ और विशेषताएँ भी है. 

इन दिनों में जब भी मुकुट धराया जावे तब मुकुट को एक वस्त्र से बांधा जाता है जिससे जब प्रभु मटकी फोड़ने कूदें तब मुकुट गिरे नहीं. 
इसके अतिरिक्त दान के दिनों में मुकुट काछनी के श्रृंगार में स्वरुप के बायीं ओर चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती. इसके पीछे यह भाव है कि यदि चोटी (शिखा) रही तो प्रभु जब मटकी फोड़कर भाग रहे हों तब गोपियाँ उनकी चोटी (शिखा) पकड़ सकती हैं और प्रभु भाग नहीं पाएंगे.

Post में प्रदर्शित चित्र में द्रश्य नहीं हैं परन्तु आज प्रभु के स्वरुप से भी लम्बी एक लकुटी (छड़ी) प्रभु के पीठिका के सहारे खड़ी धरी जाती है जिसका भाव यह है कि भारी श्रृंगार के रहते प्रभु उछल के मटकी नहीं फोड़ पाएंगे अतः लम्बी वेत्रजी (छड़ी) पास में होगी होगी तो खड़े-खड़े ही प्रभु मटकी फोड़ देंगे.

आज प्रभु द्वारा शाकघर का महादान अंगीकार किया जाता है. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को शाकघर और दूधघर में विशेष रूप से सिद्ध किये गये दूध, दही, केशरिया दही, श्रीखंड, केशरी बासोंदी, मलाई बासोंदी, गुलाब-जामुन, छाछ, खट्टा-मीठा दही के बटेरा आदि अरोगाये जाते हैं. 
दान के अन्य दिनों के अपेक्षा आज प्रभु को कई गुना अधिक हांडियां अरोगायी जाती है.

आज व्रज के गोवर्धन के दान का भाव है. कीर्तनों में श्री हरिरायजी रचित बड़ी दानलीला गायी जाती है.

श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

कृपा अवलोकनि दान दै री महादानी श्रीवृषभान कुमारी l
त्रिषित लोचन चकोर मेरे तुव वदन इंदु किरन पान दैरी ll 1 ll
सबविधि सुधर सुजान सुन्दरि सुनि विनति तू कान दैरी l
‘गोविंद’ प्रभु पिय चरण परस कह्यौ याचक को तू मान दैरी ll 2 ll

साज – आज प्रातः श्रीजी में गहरवन में दूध-दही बेचने जाती गोपियों के पास से दान मांगते एवं दूध-दही लूटते श्री ठाकुरजी एवं सखा जनों के सुन्दर चित्रांकन वाली दानलीला की प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है.
गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज केसरी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन व केसरी काछनी दूसरी काछनी लाल तथा केसरी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भातवार के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा एवं जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हीरा एवं स्वर्ण का जड़ाऊ मीनाकारी वाला मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी कली एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी मोर की आती है. 

Sunday, 8 October 2023

व्रज – आश्विन कृष्ण दशमी

व्रज – आश्विन कृष्ण दशमी 
Monday, 09 October 2023

लाल पीले लहरियाँ का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर कलगा (भीमसेनी क़तरा) के श्रृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

ग्वालिनी मीठी तेरी छाछि l
कहा दूध में मेलि जमायो साँची कहै किन वांछि ll 1 ll
और भांति चितैवो तेरौ भ्रौह चलत है आछि l
ऐसो टक झक कबहु न दैख्यो तू जो रही कछि काछि ll 2 ll
रहसि कान्ह कर कुचगति परसत तु जो परति है पाछि l
‘परमानंद’ गोपाल आलिंगी गोप वधू हरिनाछि ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल पीले लहरियाँ की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल पीले लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के आते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल पीले लहरियाँ के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, कलगा (भीमसेनी कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं. 
पट लाल व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी  Friday, 07 March 2025 होलकाष्टकारंभ विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने व...