By Vaishnav, For Vaishnav

Thursday, 29 February 2024

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी
Friday, 01  March 2024

श्री गोकुल राजकुमार लाल रंग भीने हें ।
खेलत डोलत फाग सखा संग लीने हें  ।।१।।
चित्र विचित्र सुदेश सबे अनुकुले हें  ।
राजत रंग विरंग सरोजसे फुले हें ।।२।।
अेकनके कर कंठण जोरी जराय की ।
अेकनके पिचकाई सु हेम भराय की ।।३।।
अेसोई ध्यान सदा हरीको जीय जो रहे ।
तापे गदाधर याके भाग्यकी को रहे ।।४।।

चढ़ीहस्ती (चढ़ी आस्तीन) के वस्त्र का श्रृंगार

कल श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी का पाटोत्सव है और इसके एक दिन पूर्व, आज श्रीजी प्रभु को नियम के वस्त्र, श्रृंगार धराये जाते हैं.
इसे ‘चढ़ीहस्ती के वस्त्र का श्रृंगार’ कहा जाता है. आज के वस्त्रों की विशेषता यह है कि प्रभु की चोली की बाहें चोवा में भीगी होती है. 
यह इस भाव से होता है कि प्रभु चोवा, गुलाल एवं अबीर से खेलते हुए अपनी बांह भर बैठे हैं. 

इसके अतिरिक्त आज की एक और विशेषता है कि आज शीतकाल में श्रीजी को नियम से अंतिम बार मोजाजी धराये जाते हैं अर्थात कल मोजाजी नहीं धराये जायेंगे.
यद्यपि आने वाले दिनों में यदि अधिक शीत शेष हो तो कल का दिन (श्रीजी का पाटोत्सव) छोड़कर प्रभु सुखार्थ शीत रहने तक मोजाजी धराये जा सकते हैं.

आज राजभोग के खेल में प्रभु की कटि पर गुलाल व अबीर की पोटली बांधी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll
फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll
काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll
पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग का सूथन, चढ़ी आस्तीन की चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. मोज़ाजी एवं पटका गुलाबी रंग के धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर जड़ाव टिपारा का साज – गुलाबी रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरियाँ  के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

राजभोग खेल में एक गुलाल व एक अबीर की पोटली प्रभु की कटि पर बांधी जाती है. प्रभु के कपोल भी मांडे जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं.

Wednesday, 28 February 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण पंचमी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण पंचमी
Thursday, 29 February 2024

दोहरा मनोरथ ( भलका चौथ) के वस्त्र का शृंगार

आज श्रीजी को दोहरा मनोरथ ( भलका चौथ) के केसरी डोरिया के दोहरी किनारी का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग एवं मोर चंद्रिका धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को दोहरा मनोरथ ( भलका चौथ) के केसरी डोरिया  एवं सफ़ेद ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं कटि-पटका धराये जाते हैं. 
लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना एवं सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Tuesday, 27 February 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी

व्रज - फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी
Wednesday, 28 February 2024
                
श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गुलाबी ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

श्याम सुभगतन शोभित छींटे नीकी लागी चंदनकी ।
मंडित सुरंग अबीरकुंकुमा ओर सुदेश रजवंदनकी ।।१।।
कुंभनदास मदन तनमन बलिहार कीयो नंदनंदनकी ।
गिरिधरलाल रची विधि मानो युवति जन मन कंदनकी ।।२।।

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, बीच की  चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं.
आज एक माला अक्काजी की धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़िरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पगा रहे  लूम तुर्रा नहीं आवे.

Monday, 26 February 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण तृतीया

व्रज - फाल्गुन कृष्ण तृतीया
Tuesday, 27 February 2024

फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।
हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ।।१।।
लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ।।२।।

गुलाल की चोली

विशेष – फाल्गुन मास में होली की धमार एवं विविध रसभरी गालियाँ भी गायी जाती हैं. विविध वाद्यों की ताल के साथ रंगों से भरे गोप-गोपियाँ झूमते हैं. कई बार गोपियाँ प्रभु को अपने झुण्ड में ले जाती हैं और सखी वेश पहनाकर नाच नचाती हैं और फगुआ लेकर ही छोडती हैं.

इसी भाव से आज श्रीजी को हरे घेरदार वागा पर गुलाल की चोली धरायी जाती है. चोली की गुलाल में गुलाब का इत्र मिश्रित होता है. चोली को गुलाल से ही खेलाया जाता है जबकि अन्य सभी वस्त्र गुलाल, अबीर, चन्दन व चोवा से खेलाए जाते हैं.

फाल्गुन मास में श्रीजी चोवा, गुलाल, चन्दन एवं अबीर की चोली धराकर सखीवेश में गोपियों को रिझाते हैं.

राजभोग समय अष्टपदी गाई जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री/घनाश्री)

रिझावत रसिक किशोर को खेलतरी प्यारी राधा फाग l पहेरे नवरंग चूनरी अंगियारी आछे अंग लाग ll 1 ll
कनिक खचित खुभिया बनी दुलरीरी मोतिन बिच लाल l किकिंनी नूपुर मेखला लोचनरी शुभ सुखद विशाल ll 2 ll
गौर गातकी कहा कहु बेसरि रही कच अरुझाय l सब सुंदरी मिलि गावही, देखत हु मनमथ हिल जाय ll 3 ll
मृदुमुसकनि मुख पटदयो पिचकारी कर लई है दुराय l बंदनबुकी अंजुली नागरि ले दई उड़ाय ll 4 ll
मिडत लोचन नागरि पकरयो पीताम्बर धाय l सबे सखी जुरि आय गई, घेरे हो मोहन बलिआय ll 5 ll
मुरली छीनी चुम्बन दीयो कीनों अधरामृत पान l कमल कोष ज्यों भृंगको छांड़त नहीं बिन भये विहान ll 6 ll
मानो बहुरंग विकसत कमल मधुकर मन मोहनलाल l नयनन स्वाद सबे गहे पीवत मकरंद रसाल ll 7 ll
ऋतु वसंत बन गहगह्यो कूजत शुकपिक अलिमोर l तान मानगति भेदसों गावत गिरिधर पियजोर ll 8 ll
बेन झांझ डफ झालरी गोमुख ताल मुरंज मुखचंग l युवती युथ बजावही निर्तत मधि साल अंग ll 9 ll
त्रिगुण समीर त्यहां बहे सुंदर कालिंदीकूल l सुर सुरपति सुरअंगना डारत जयजय कहि फूल ll 10 ll
निरख निरख सचुपावही मनभये खगमृग व्रजवास l श्रीवल्लभ पदरज प्रतापबल गावत ‘विष्णुदास’ रसरास ll 11 ll 

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज के वस्त्रों में लाल एवं हरे रंगों का सुन्दर संयोजन होता है. आज श्रीजी को हरे रंग का सूथन एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. गुलाल की लाल चोली धरायी जाती है. रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित लाल कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व दूसरा बगल में होता है. 
लाल रंग के मोजाजी एवं पीले रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. चोली को गुलाल से ही खेलाया जाता है और अन्य सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की हरी खिड़की वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लाल रंग का रेशम का जमाव (नागफणी) का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराये जाते व कंठी धरायी जाती है. सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं परन्तु गुलाल की चोली नहीं खोली जाती है. 
शयन समय श्रीमस्तक पर रुपहली लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Sunday, 25 February 2024

व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वितीया

व्रज - फाल्गुन कृष्ण द्वितीया
Monday, 26 February 2024

लाल लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर  गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं. पटका लाल रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मीना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Saturday, 24 February 2024

व्रज – फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा
Sunday, 25 February 2024          

श्री गोकुल राजकुमार लाल रंग भीने हें ।
खेलत डोलत फाग सखा संग लीने हें  ।।१।।
चित्र विचित्र सुदेश सबे अनुकुले हें  ।
राजत रंग विरंग सरोजसे फुले हें ।।२।।
अेकनके कर कंठण जोरी जराय की ।
अेकनके पिचकाई सु हेम भराय की ।।३।।
अेसोई ध्यान सदा हरीको जीय जो रहे ।
तापे गदाधर याके भाग्यकी को रहे ।।४।।

श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव का क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : बिलावल)

वंदो मुनसाई नंदके जुवती झंडा केसें लेहोजु l ये सब सुंदरि घोखकि क्यों परिरंभन देहो ll 1 ll
फाल्गुन मास देत फगुआ अति क्रीड़ा रस खेलो l तनकी गति ओर भई बोली ढोली मेलो ll 2 ll
काहेको अकुलात हो मन को भायो करि हैं l हो भैया बलदेवको पृथक पृथक करि धरि है ll 3 ll
पांच सखी मिलि एक व्है बीच झंडा ले रोप्यो l फरहर रतिपति ऊपरे बहोत नगन जट ओप्यो ll 4 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा रूपहरी आवे.

Friday, 23 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा 
Saturday, 24 February 2024

चटकीली चोली पहेरें बीच बीच चोवा लपटानो ।
परम प्रिय लागत प्यारीको अपने प्रीतम को बानो ।।१।।
देखत शोभा अंगअंगकी मनसिज मन हिल जानो ।
सुधरराय प्रभु प्यारीकी छबि निरखत मोह्यो गोवर्धनरानो ।।२।।

होली डांडा रोपण (रोपणी को उत्सव), छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

विशेष – बसंत पंचमी से आज माघ शुक्ल पूर्णिमा तक के दिन बसंत के खेल के कहे जाते हैं. 
इन दस दिनों में प्रिया-प्रीतम को युगल स्वरुप के रूप में पधराकर शांत भाव से सूक्ष्म खेल किया जाता है. प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन का आनंद विशेष प्रकार से लिया जाता है जो कि बसंत के कीर्तनों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. 
श्यामसुंदर को मूर्तिमंत बसंत स्वरुप जान के भक्तजन इसका वर्णन कर प्रभु को रिझाते हैं. 

“देखो प्यारी कुंजविहारी मूरतिमंत वसंत l
मोर तरुन तरुलता तन में मनसिज रस वरसंत ll”

आज माघ शुक्ल पूर्णिमा को होली डांडा रोपण के पश्चात से दस दिन धमार खेल के होंगे. तत्पश्चात फाल्गुन कृष्ण एकादशी से आगामी दस दिन फाग के और फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से अंतिम दस दिन होली के खेल होते हैं. 

इस प्रकार 40 दिनों की होली खेल की सेवा चार (बसंत, धमार, फाग एवं होली) रीतियों से की जाती हैं. होली खेल की लीला का स्वरुप ऐसा है कि जैसे-जैसे दिन व्यतीत होते जाते हैं, वैसे-वैसे होली के खेल में वृद्धि होती जाती है. 
बसंत का खेल नन्दभवन में, धमार का खेल पोल (पोरी) में, तीसरा फाग का खेल गली में और चौथा होली का खेल गाँव के बाहर के चौक में खेला जाता है.

श्रीजी में आज रोपणी का उत्सव है अर्थात आज होली डांडा रोपण किया जाता है. 
व्रज में प्राचीन परम्परानुसार होली-डांडा रोपण होली के एक मास पूर्व आज पूर्णिमा के दिन गाँव के चौक अथवा गाँव के बाहर किया जाता है. 
यमुना पुलिन, गिरिराज जी, वृन्दावन, कुंज-निकुंजों आदि में डांडा रोपण किया जाता है. 

इसके पीछे यह भावना है कि व्रजभक्तों को सुख-दान हेतु प्रभु रसक्रीड़ा करते हैं तब एक मास तक निर्विध्न सब खेल हों इसके लिए ब्राह्मण स्वस्तिवाचन, मंत्रोच्चार एवं वेद-ध्वनि कर डांडा रोपण करते हैं. 
डांडा के ऊपर लाल रंग की ध्वजा फहरायी जाती है जो कि हार-जीत की प्रतीक है अर्थात योगी प्रभु श्रीकृष्ण को अपने वश में करने आये कामदेव की चुनौती प्रभु ने स्वीकार कर ली है. 
नंदरायजी, वृषभानजी, बड़े गोप, यशोदाजी, गोपी-ग्वाल, गोपाल, बलदेव आदि सभी दंडवत प्रणाम कर धमार का प्रारंभ करते हैं.

आज से प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के मुखारविंद (कपोल) पर गुलाल लगायी जाती है.

आज से श्रीजी में गुलाल की फेंट (पोटली) भरी जाती है, पुष्प की छड़ी एवं गुलाल पिचकारी धरी जाती है, गुलाल-अबीर का खेल भारी होता जाता है, होली की गालियाँ भी गायीं जाती है और झांझ, मृदंग, ढप बांसुरी आदि वाध्य बजाये जाते हैं. 

आज का उत्सव श्री यमुनाजी की सेवा के दस दिन की पूर्णता का उत्सव है. फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा से दस दिन धमार के दिन कहे जाते हैं और ये श्री चन्द्रावलीजी की सेवा के दिवस हैं. 

श्रीजी में बसंत पंचमी से केवल वसंत राग के पद गाये जाते हैं जबकि होली-डांडा रोपण के पश्चात धमार का प्रारंभ हो जायेगा अर्थात आज से अन्य राग के पद भी गाये जा सकेंगे. धमार एक विशिष्ट ताल होती है और आज से दस दिनों तक इस ताल के पद भी गाये जायेंगे. आज से डोलोत्सव तक मान के पद नहीं गाये जाते हैं.

आज से एक मास तक श्रीजी को कुल्हे का श्रृंगार नहीं धराया जाता क्योंकि कुल्हे का श्रृंगार बाल-भाव का श्रृंगार माना जाता है और होली-खेल की लीला किशोर-भावना की है अतः सेहरा, मुकुट, टिपारा आदि के श्रृंगार धराये जाते हैं. घेरदार वागा अधिक धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर मोरचन्द्रिका के बदले कतरा, मोरशिखा, गोल-चंद्रिका, चमक की चंद्रिका आदि धराये जाते हैं.

आज प्रभु को नियम के श्वेत घेरदार वस्त्रों के ऊपर चोवा की चोली धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की पाग के ऊपर मोरपंख का दोहरा कतरा धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में सिकोरी (मूंग की दाल, इलायची व मावे के मीठे मसाले से भरी तवापूड़ी जैसी सामग्री) व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है एवं सखड़ी में केसरी पेठा एवं मीठी सेव आरोगाये जाते हैं.
भोग में फीका की जगह चालनी अरोगायी जाती हैं.

छप्पनभोग (बड़ा) मनोरथ

आज श्रीजी में श्रीजी में अंबानी परिवार द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत)

लालन संग खेलन फाग चली l
चोवा चन्दन अगर कुंकुमा छिरकत गोख गली ll 1 ll
ऋतु वसंत आगम नव नागरी जोबन भार भरी l
देखत चली लाल गिरिधरको नंदजुके द्वार खरी ll 2 ll
रातीपीरी चोली पहेरें नौतन झुमक सारी l
मुखहि तंबोल नेनमें काजर देत भामती गारी ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग बांसुरी गावत गीत सुहाये l
नवल गुपाल नवल व्रजवनिता निकसि चोहटे आये ll 4 ll
देखो आई कृष्णजुकीलीला विहरत गोकुल माहीं l
कहत न बने दास ‘परमानंद’ यह सुख अनतजु नाहीं ll 5 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रेशम का सूथन, चोवा की श्याम चोली एवं सफ़ेद घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सफ़ेद मोठड़ा का कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. मेघश्याम रंग के मोजाजी एवं लाल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत स्याम खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी फ़ोन्दना का दोहरा मोरपंख का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार माला तायत वाली धरायी जाती हैं. आज त्रवल नहीं धराया जाता हैं कंठी धरायी जाती हैं.
 लाल एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के बटदार वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट चीड़ का एवं गोटी चाँदी की आती हैं.
आरसी बड़ी डाँडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Thursday, 22 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल चतुर्दशी

व्रज – माघ शुक्ल चतुर्दशी 
Friday, 24 February 2024

श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा ,लाल बंध एवं श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर क़तरा के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा, लाल बंध एवं श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

नंदसुवन व्रजभामते फाग संग मिल खेलोजु l
आज हमें तुम जानि है जो युवती दल पेलोजु ll 1 ll
रसिक सिरोमनि सांवरे श्रवन सूनत उठि धाये l
बलि समेत सब टेरिके घरघर तें सखा बुलाये ll 2 ll
बाजे बहुविध बाजही ताल मृदंग उपंग l
डिमडिम दुंदुभी झालरी आवाज कर मुख चंग ll 3 ll...(अपूर्ण)

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. लाल बंध धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज त्रवल नहीं धराया जाता हैं कंठी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 21 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल त्रयोदशी

व्रज – माघ शुक्ल त्रयोदशी
Thursday, 22 February 2024

सेहरा के शृंगार

आज श्रीजी को केसरी लट्ठा का सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मीना का सेहरा धराया जाता है.
आज कपोल पर कमल पत्र नहीं मंडे,रोपणी से मंडे.
राजभोग में दुमाला को सब से खिलाया जाता हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

देखो राधा माधो,सरस जोर,
खेलत बसंत पिय नवल किशोर।।ध्रु।
  ईत हलधर संग,समस्त बाल।।
मधि नायक सोहे नंदलाल।।
उत जुवती जूथ,अदभूत रूप।।
मधि नायक सोहें,स्यामा अनूप।।१।।
  बहोरि निकसि चले जमुनातीर,।।
मानों रति नायक जात धीर।।
देखत रति नायक बने जाय।।
संग ऋतु बसंत ले परत पाय।।२।।
  बाजत ताल,मृदंग तूर,।।
पुनि भेरि निसान रवाब भूर।।
डफ सहनाई,झांझ ढोल।।
हसत परस्पर करत बोल।।३।।
  जाई जूही,चंपक रायवेलि।।
रसिक सखन में करत केलि।।४।।
  ब्रज बाढ्यो कोतिक अनंत।।
सुंदरि सब मिलि कियो मंत।।
तुम नंदनंदन को पकरि लेहु।।
सखी संकरषन को माखेहु।।५।।
  तब नवलवधू कींनो उपाई।।
चहुँ दिशते सब चली धाई।।
श्रीराधा पकरि स्याम कों लाई।।
सखी संकरषन ,जिन भाजिपाई।।६।
  अहो संकरषन जू सुनो बात बात।।
नंदलाल छांडि,तुम कहां जात।।
दे गारी बोहो विधि अनेक।।
तब हलधर पकरे सखी अनेक।।७।।
  अंजन हलधर नेन दीन।।
कुंकुम मुख मंजन जू किन।।
हरधवजू फगवा आनी देहु।।
जुम कमल नेन कों छुडाई लेहु।।८।।
      जो मांग्यो सो़ं फगूआ दीन ।।
नवललाल संग केलि कौन हसत,
खेलत चले अपने धाम।।
व्रज युवती भई पूरन काम।।९।।
  नंदरानी ठाडी पोरि द्वार।।
नोछावरि करि देत वार ।।
वृषभान सुता संग रसिकराय।।
जन माणिक चंद बलिहारि जाय।।१०।।

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं लाल मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. लाल रंग के मोजाजी भी धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) फागुण का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मीना का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है. 
आज त्रवल की जगह स्वर्ण की चंपाकली धरायी जाती हैं.
श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है. 
लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक लाल मीना का) धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.
दुमाला रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

Tuesday, 20 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल द्वादशी

व्रज – माघ शुक्ल द्वादशी
Wednesday, 21 February 2024

श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा ,केसरी पटका एवं श्रीमस्तक पर केसरी गोल पाग पर मोर चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का रंगों की छांट वाला एवं सफ़ेद ज़री की तुईलैस की दोहरी किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं केसरी रंग का कटि-पटका धराये जाते हैं. 
ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के लाल एवं सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Monday, 19 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल एकादशी

व्रज – माघ शुक्ल एकादशी 
Tuesday, 20 February 2024
                  
जया एकादशी 

श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल टीपारा के ऊपर केसरी गौकर्ण और सुनहरी घेरा के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत)

नृत्यत गावत बजावत मधुर मृदंग, सप्तस्वरन मिलि राग हिंडोल l
पंचमस्वर ले अलापत उघटत है सप्तान मान, थेईता थेईता थेई थेई कहति बोल ll 1 ll
कनकवरन टिपारो सिर कमलवदन काछनी कटि, छिरकत राधा करत कलोल l
‘कृष्णदास’ नटवर गिरिधरपिय, सुरबनिता वारत अमोल ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का  सूथन, चोली, चाकदार वागा तथा लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे, लाल व सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर केसरी गौकर्ण, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. गुलाबी, सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टीपारा रहे  लूम तुर्रा नहीं आवे.

Sunday, 18 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल दशमी

व्रज – माघ शुक्ल दशमी
Monday 19 February 2024        

                
श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गुलाबी ग्वालपगा के ऊपर पगा चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर गुलाबी ग्वालपगा  के ऊपर पगा चंद्रिका का शृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : आसावरी)

श्याम सुभगतन शोभित छींटे नीकी लागी चंदनकी ।
मंडित सुरंग अबीरकुंकुमा ओर सुदेश रजवंदनकी ।।१।।
कुंभनदास मदन तनमन बलिहार कीयो नंदनंदनकी ।
गिरिधरलाल रची विधि मानो युवति जन मन कंदनकी ।।२।।

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग के ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, बीच की  चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पगा रहे  लूम तुर्रा नहीं आवे.

Saturday, 17 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल नवमी

व्रज – माघ शुक्ल नवमी
Sunday, 18 February 2024                 

श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा ,कटि (कमर) पर एक विशेष स्वर्ण का चपड़ास (घुंडी-नाका) एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा, प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष स्वर्ण का चपड़ास (घुंडी-नाका) का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

श्याम सुभगतन शोभित छींटे नीकी लागी चंदनकी ।
मंडित सुरंग अबीरकुंकुमा ओर सुदेश रजवंदनकी ।।१।।
कुंभनदास मदन तनमन बलिहार कीयो नंदनंदनकी ।
गिरिधरलाल रची विधि मानो युवति जन मन कंदनकी ।।२।।

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष सोने का चपड़ास (घुंडी-नाका) धराए जाने से त्रवल नहीं धराया जाता हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में स्वर्ण के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. घुंडी-नाका रहे. श्रीमस्तक 
पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Friday, 16 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी

व्रज – माघ शुक्ल अष्टमी
Saturday, 17 February 2024                  

श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल फेटा पर फेटा के साज के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) 

श्रीवृंदावन खेलत गुपाल, बनि बनि आई व्रजकी बाल ll 1 ll
नवसुंदरी नवतमाल, फूले नवल कमल मधि नव रसाल ll 2 ll
अपने कर सुंदर रचित माल, अवलंबित नागर नंदलाल ll 3 l
नव गोप वधू राजत हे संग, गजमोतिन सुंदर लसत मंग ll 4 ll
नवकेसर मेद अरगजा धोरि, छिरकत नागरिकों नवकिशोर ll 5 ll
तहां गोपीग्वाल सुंदर सुदेश, राजत माला विविध केस ll 6 ll
नंदनंदन को भूवविलास, सदा रहो मन 'सूरदास' ll 7 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. कटि पटका लाल रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में लोलक बिंदी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना के) धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी हाथीदाँत की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फेटा रहे लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Thursday, 15 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी

व्रज – माघ शुक्ल सप्तमी
Friday, 16 February 2024
                  
और राग सब भये बाराती दूल्हे राग बसंत।
मदन महोत्सव आज सखि री बिदा भयो हेमंत।।
मधुरे सुर कोकिल कल कूजत बोलती मोर हँसत।।
गावती नारि पंचम सुर ऊँचे जैसे पिक गुनवंत ।।
हाथन लइ कनक पिचकाई मोहन चाल चलंति।।
कुम्भनदास श्यामा प्यारी कों मिल्यो हे भांमतो कंत।।

बसंत पंचमी के दो दिन बाद आज श्रीजी में नियम से श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा के ऊपर गुलाबी झाँई फ़तवी धरायी जाती है. फ़तवी आधी बाँहों वाली एक बंडी या जैकेट जैसी पौशाक होती है जो कि शीतकाल में चोली और घेरदार वागा के ऊपर धरायी जाती है. 
फ़तवी सदैव घेरदार वागा से अलग रंग की होती है. शीतकाल में फ़तवी के चार श्रृंगार धराये जाते हैं. 

आज की फ़तवी द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आती है जबकि घेरदार वागा श्रीजी में ही सिद्ध होते हैं.
फ़तवी के संग श्रीजी के भोग हेतु  गुड़कल और घी की कटोरी भी पधारती है जो कि प्रभु को मंगलभोग में आरोगायी जाती है और सखड़ी में वितरित होती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा के ऊपर गुलाबी झाई की फ़तवी धरायी जाती है. लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) का फ़ागुन का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज फ़तवी धराए जाने से त्रवल, कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.
 श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्तं में सुआ वाले एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी मीना की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Wednesday, 14 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी

व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी
Thursday, 15 February 2024             

श्वेत रंग के गुलाबी आभा युक्त चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे जोड़ के ऊपर सुनहरी घेरा के शृंगार

आज श्रीजी को नियम से गुलाबी आभायुक्त चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे जोड़ के ऊपर सुनहरी घेरा धराया जाता है. यह श्रृंगार प्रतिवर्ष बसंत-पंचमी के एक दिन पश्चात नियम से होता है.
आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

आज से डोलोत्सव तक प्रतिदिन श्रीजी प्रभु में राजभोग दर्शन में गुलाल खेल होगा. श्री नवनीतप्रियाजी को ग्वाल व राजभोग दोनों समां में गुलाल खेलायी जाएगी. श्री नवनीतप्रियाजी में आज से डोलोत्सव तक फूल-पत्तियों का ही पलना होगा. 

कीर्तन – (राग : वसंत)

बसंत अष्टपदी
हरिरिह व्रजयुवती शतसंगे ।
विलसति करिणी गणवृतवारण वर ईव रतिपति मान भंगे।।ध्रु।।
विभ्रम संभ्रम लोल विलोचन सूचित संचितभावं ।
कापिदगंचल कुवलयनिकरै रंचति तं कलराव ।।१।। हरिरिह व्रजयुवती ०
स्मित रुचि रुचि रतरानन कमलमुदीक्ष्य हरे रति कंद ।
चुंबति कापि नितंब वती करतल धृत चिबुकममंदं ।।२।। हरिरिह व्रजयुवती ०
उद् भट भाव विभावित चापल मोहन निधु वन शाली ।
रमयति कामपि पीनधनस्तन विलुलित नव वनमाली ।।३।। हरिरिह व्रजयुवती ०
निजपरिरंभकृते नुद्रुतमभिवीक्ष्य हरिंसविलासं ।
कामपिकापि बलाद करोदग्रे कुतुकेन
सहास ।।४।। हरिरिह व्रजयुवती ०
कामपि नीवीबंध विमोकस संभ्रम लज्जित नयनां ।
रमयति संप्रति सुमुखि बलादपि,
करतल धृत निज वसनां ।।५।। हरिरिह व्रजयुवती ०
पिय परिरंभ विपुल पुलकावलि
द्विगुणित सुभग शरीरा ।
उद् गायति सखि कापि समं हरिणा रति रणधीरा।।६।। हरिरिह व्रजयुवती ०
विभ्रम संभ्रम गलदंचलमल यांचित मंग मुदारं ।
पश्यति सस्मित मति विस्मित मनसा सुदेशः सविकारं।।७।।हरिरिह व्रजयुवती ०
चलति क्यापि समं सकरग्रह मल सत रंस विलासं ।
राधे तव पूरयतु मनोरथ मुदितमिदं हरिरासं।।८।।हरिरिह व्रजयुवती ०

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुन्दर गुलाबी झाई के (आभायुक्त )होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सफ़ेद कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी ज़री (चमक) का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.
आज अक्काजी वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी चांदी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे धरायी जाती है परन्तु लूम तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Tuesday, 13 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल पंचमी

व्रज – माघ शुक्ल पंचमी
Wednesday, 14 February 2024

बसंत-पंचमी

नवल वसंत नवल वृंदावन खेलत नवल गोवर्धनधारी ।
हलधर नवल नवल ब्रजबालक नवल नवल बनी गोकुल नारी ।।१।।
नवल जमुनातट नवल विमलजल नौतन मंद सुगंध समीर ।
नवल कुसुम नव पल्लव साखा कुंजत नवल मधुप पिक कीर ।।२।।
नव मृगमद नव अरगजा वंदन नौतन अगर सुनवल अबीर ।
नवचंदन नव हरद कुंकुमा छिरकत नवल परस्पर नीर ।।३।।
नवलधेनु महुवरि बाजे, अनुपम भूषण नौतन चीर ।
नवलरूप नव कृष्णदास प्रभुको, नौतन जस गावत मुनि धीर ।।४।।

सभी वैष्णवजन को बसंतोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

नियम के श्वेत अड़तु के सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर श्याम खिड़की की श्वेत पाग के ऊपर सादी मोर-चंद्रिका धरायी जाती है.
 
आज से प्रतिदिन छोगा व श्रीहस्त में पुष्पों की छड़ी धरी जाती है.
आज से 10 दिन तक जैसे श्रृंगार हों उसी भाव के बसंत के पद गाये जाते हैं. 
प्रत्येक पद बसंत राग में ही गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

श्रीपंचमी परममंगल दिन, मदन महोच्छव आज l
वसंत बनाय चली व्रजसुंदरी ले पूजा को साज ll 1 ll
कनक कलश जलपुर पढ़त रतिकाममन्त्र रसमूल l
तापर धरी रसाल मंजुरी आवृत पीत दुकूल ll 2 ll
चोवा चंदन अगर कुंकुमा नव केसर घन सार l
धुपदीप नाना निरांजन विविध भांति उपहार ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग मुरलिका बीना पटह उमंग l
गावत वसंत मधुर सुर उपजत तानतरंग ll 4 ll
छिरकत अति अनुराग मुदित गोपीजन मदनगुपाल l
मानों सुभग कनिकदली मधि शोभित तरुन तमाल ll 5 ll
यह विधि चली रति राज वधावन सकल घोष आनंद l
‘हरिजीवन’ प्रभु गोवर्धनधर जय जय गोकुल चंद ll 6 ll 

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत अड़तु का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का आता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के माणक, स्वर्ण एवं लाल मीना के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत पाग (श्याम खिड़की की) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पट्टीदार जड़ाऊ कटिपेंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है. 

श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, सोना के  बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रीमस्तक पर सिरपैंच में आम के मोड़ धराये जाते हैं.
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है.

Monday, 12 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल चतुर्थी

व्रज – माघ शुक्ल चतुर्थी
Tuesday, 13 February 2024

शिशिर रितुको आगम भयो प्यारी बीदा भयो हेमंत ।
विरहिनके भाग्यते आलि आवत चल्यो वसंत ।।१।।       
 ताहि दुतिकाके  भवन बसे जहां भांवर लीने कंत ।
कुम्भनदास प्रभु वा जाडेको आय रह्यो हे अंत ।।२।।

श्री मुकुन्दरायजी (काशी) का पाटोत्सव, श्री दामोदरदासजी हरसानी का प्राकट्य दिवस

विशेष – आज श्री मुकुंदरायजी (काशी) का पाटोत्सव व पुष्टि सृष्टि के अग्रेश श्री दामोदरदास हरसानीजी का प्राकट्य दिवस है.

प्रभु के सेवाक्रम में प्रत्येक ऋतु का परिवर्तन उसके आगमन और प्रस्थान के समय अद्भुत क्रमानुसार होता है. 

जिस प्रकार कोई भी ऋतु एकदम से नहीं परिवर्तित नहीं हो जाती वरन धीरे धीरे कई भागों में परिवर्तित होती है उसी प्रकार पुष्टिमार्ग में प्रभु का सेवाक्रम इस प्रकार निर्धारित किया गया है कि ऋतु के प्रत्येक भाग के बदलाव के अनुसार सेवाक्रम में भी बदलाव होता है.

बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन और शीत ऋतु के प्रस्थान की उल्टी गिनती शुरू हो रही है तो प्रभु के सेवाक्रम में भी कुछ परिवर्तन होते हैं.

विजयदशमी के दिन प्रभु को ज़री के वस्त्र धराये जाने आरम्भ होते हैं जो कि आज अंतिम बार धराये जाते हैं. कल बसंत-पंचमी से वस्त्रों में ज़री का प्रयोग वर्जित होगा. 

देव-प्रबोधिनी एकादशी के दिन से प्रतिदिन निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख से शैया मंदिर तक बिछाई जाने वाली लाल तेह (चित्र में द्रश्य) भी आज अंतिम बार धरी जाएगी.

श्रीजी का सेवाक्रम – आज प्रभु में गेंद, चौगान, दिवला सोने के आते हैं. दिन में दो समय आरती थाली की आती है.  

आज बसंत-पंचमी के एक दिन पूर्व श्रीजी में शीतकाल की पांचवी चौकी होती है. 
मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार शीतकाल में पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है. 

इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है.

आज पांचवी एवं अंतिम चौकी है जिसमें श्रीजी को मंगलभोग में गुड़कल अरोगायी जाती है. श्रीजी प्रभु को नियम से गुड़कल वर्षभर में केवल आज अरोगायी जाती है. 
ऐसा कहा जाता है कि गुड़कल के द्वारा प्रभु शीत को लुढ़का देते हैं अर्थात आज से प्रतिदिन शीत कम ही होगी. 

आज नियम से श्रीजी को लाल सलीदार ज़री का सूथन, श्वेत फुलकशाही ज़री के चोली व चागदार वस्त्र, मेघश्याम ठाड़े वस्त्र, पटका सुनहरी ज़री का, श्रीमस्तक पर हीरा का किरीट पान व भारी आभरण धराये जायेंगे. 

आज शीतकाल का किरीट का अंतिम श्रृंगार है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :

मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.
मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से बसंत-पंचमी तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार अथवा घेरदार वागा धराये जा सकते हैं.
मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं.
मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

राजभोग में प्रभु की पीठिका पर हीरा का रत्नजड़ित चौखटा धराया जाता है.

भोग विशेष में राजभोग की सखड़ी में श्याम-खटाई, रतालू प्रकार व श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध होकर पधारी गुड़कल अरोगायी जाती है.

दिन के अनोसर में अरोगायी जाने वाली शाकघर की सौभाग्यसूंठ आज अंतिम बार अरोगायी जाएगी. यद्यपि रात्रि अनोसर में शीत रहने तक प्रतिदिन सौभाग्य सूंठ जारी रहेगी.

कल बुधवार, 14 फ़रवरी 2024 को बसंत-पंचमी है और कल श्रीजी में विशेष रूप से नौ दर्शन खुलेंगे. 
वर्ष में केवल बसंत-पंचमी के दिन ही प्रभु के नौ दर्शन होते हैं.

प्रभु के सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे जिनके विषय में कल की post में बताने का प्रयास करूंगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : पंचम/मालकौंस)

बोलत श्याम मनोहर बैठे कदंबखंड और कदंब की छैंया l
कुसुमित द्रुम अलि गुंजत सखी कोकिला कलकुजत तहियां ll 1 ll
सूनत दुतिकाके बचन माधुरी भयो है हुलास जाके मनमहियां l
‘कुंभनदास’ व्रजकुंवरि मिलन चलि रसिककुंवर गिरिधरन पैयां ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में फुलकशाही ज़री की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री का सूथन, दीपावली वाला फुलकशाही ज़री की चोली, चागदार वागा एवं मोजाजी जड़ाऊ के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, पन्ना, माणक, मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा का किरीट पान (शरद वाला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में उत्सव के हीरा के बड़े मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
उत्सव की हीरे की चोटी बायीं ओर धरायी जाती है. श्रीकंठ में नीचे पदक एवं ऊपर हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.  
रंग-बिरंगी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जड़ाऊ की  आरसी शृंगार में सोने की डांडी की एवं राजभोग में चार झाड़ की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीकंठ के आभरण, किरीट, टोपी व मोजाजी बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल गोल-पाग के ऊपर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. लूम तुर्रा नहीं धराये जाते. 
श्रीकंठ में छेड़ान के श्रृंगार व मोजाजी रुपहली ज़री के धराये जाते हैं.  

शयन उपरान्त अनोसर के पूर्व खंडपाट, चौकी, पडघा आदि सभी साज स्वर्ण के बदल कर चांदी के आयेंगे. चंदुवा श्वेत मलमल का बाँधा जायेगा.

Sunday, 11 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया 
Monday, 12 February 2024

कत्थई ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को कत्थई ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर क़तरा या चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

गोपालको मुखारविंद जियमें विचारो ।
कोटि भानु कोटि चंद्र मदन कोटि वारो ।।१।।
कमलनैन चारूबैन मधुर हास सोहे ।
बंक अवलोकन पर जुवती सब मोहे ।।२।।
धर्म अर्थ काम मोक्ष सब सुख के दाता ।
 चत्रभूज प्रभु गोवर्धनधर गोकूलके त्राता।।३।।

साज – श्रीजी में आज कत्थई रंग की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को कत्थई ज़री का सूथन, चोली, तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कत्थई रंग के छज्जेदार चीरा के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, चाँदी के वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट लाल एवं गोटी चाँदी की आती है.

Saturday, 10 February 2024

व्रज– माघ शुक्ल द्वितीया

व्रज– माघ शुक्ल द्वितीया
Sunday, 11 February 2024

छप्पनभोग मनोरथ (बड़ा मनोरथ)

आज श्रीजी में श्रीजी में किन्हीं वैष्णव द्वारा आयोजित छप्पनभोग का मनोरथ होगा.
नियम (घर) का छप्पनभोग वर्ष में केवल एक बार मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा को ही होता है. इसके अतिरिक्त विभिन्न खाली दिनों में वैष्णवों के अनुरोध पर श्री तिलकायत की आज्ञानुसार मनोरथी द्वारा छप्पनभोग मनोरथ आयोजित होते हैं. 
इस प्रकार के मनोरथ सभी वैष्णव मंदिरों एवं हवेलियों में होते हैं जिन्हें सामान्यतया ‘बड़ा मनोरथ’ कहा जाता है.
 
बड़ा मनोरथ के भाव से श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.

मणिकोठा, डोल-तिबारी, रतनचौक आदि में छप्पनभोग के भोग साजे जाते हैं अतः श्रीजी में मंगला के पश्चात सीधे राजभोग अथवा छप्पनभोग (भोग सरे पश्चात) के दर्शन ही खुलते हैं.
श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध चार विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में मीठी सेव, केसरयुक्त पेठा व पाँच-भात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात) अरोगाये जाते हैं. 

छप्पनभोग दर्शन में प्रभु सम्मुख 25 बीड़ा सिकोरी (सोने का जालीदार पात्र) में रखे जाते है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से  गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल सलीदार ज़री के टिपारा के ऊपर पीले सलीदार ज़री का गौकर्ण, रूपहरी ज़री का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
चोटीजी मीना की बायीं ओर धरायी जाती है.
कमल माला धरायी जाती हैं. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.
टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

Friday, 9 February 2024

व्रज – माघ शुक्ल प्रतिपदा (अमावस्या क्षय)

व्रज – माघ शुक्ल प्रतिपदा (अमावस्या क्षय)
Saturday, 10 February 2024

फूली फूली डोले सोने के सदन मदन मोहन रसमाती ।
रसबस कीये सुहाग बिहारन मंदमद मुसकायनी ।।१।।
बैयां जोर परस्पर दोऊ लाडिली फेर जु लड़ाती ।
हरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी रस बरसत वो हो माती ।।२।।

एकादश (सुनहरी) घटा

विशेष – आज श्रीजी में शीतकाल की अंतिम सुनहरी घटा है. 

विशेष – ‘फूली फूली डोले सोने के सदन मदन मोहन रसमाती’ उपरोक्त कीर्तन के भाव के आधार पर प्रभु स्वर्ण भवन में व्रजभक्तों के साथ विहार कर रहे हैं इस भाव से आज श्रीजी में सुनहरी ज़री की घटा के दर्शन होते हैं.

जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज हेम कुंज की भावना से श्रीजी में सुनहरी घटा होगी. पिछवाई, वस्त्र आदि सभी सुनहरी ज़री के होते हैं वहीं गादी, तकिया, खण्डपाट आदि सभी साज केसरी साटन के आते हैं. सर्व आभरण सोनेला एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं.
आज सभी समां में केसरी पुष्प की माला धरायी जाती है.

सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है. 
आज से माघ शुक्ल चतुर्थी तक पाँच दिन प्रभु को ज़री के वस्त्र धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : धनाश्री) 

गोपाल को मुखारविंद जियमें विचारो l
कोटि भानु कोटि चंद्र मदन कोटि वारो ll 1 ll
कमलनैन चारू बैन मधुर हास सोहै l
बंकन अवलोकन पर जुवती सब मोहे ll 2 ll
धर्म अर्थ काम मोक्ष सब सुखके दाता l
'चत्रभुज' प्रभु गोवर्धनधर गोकुल के त्राता ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज सुनहरी ज़री की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं खण्डपाट केसरी साटन के आते है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सुनहरी ज़री का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी सुनहरी ज़री के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण सोनेला एवं स्वर्ण के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की गोल-पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में सोनेला के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
आज पूरे दिन केसरी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट सुनहरी, गोटी सोने की चिड़िया की व आरसी सोने की आती है. 

Thursday, 8 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – माघ कृष्ण चतुर्दशी 
Friday, 09 February 2024

स्याम सलीदार ज़री के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोर चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को स्याम सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोर चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :सारंग)

मेरी अखियन के भूषण गिरिधारी ।
बलि बलि जाऊ छबीली छबि पर अति आनंद सुखकारी ।।१।।
परम उदार चतुर चिंतामनिवदरस दरस दुं
दु़:खहारी ।
अतुल प्रताप तनक तुलसी दल मानत सेवा भारी ।।२।।
छीतस्वामी गिरिधरन विसद यश गावत गोकुलनारी ।
कहा वरनौ गुन गाथ नाथके श्रीविट्ठल ह्रदय विहारी ।।३।।

साज – श्रीजी में आज मेघस्याम ज़री की हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज स्याम सलीदार ज़री पर रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर स्याम ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोर चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं. 
गुलाबी एव पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट स्याम व गोटी चाँदी की आती है.

Tuesday, 6 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण द्वादशी

व्रज – माघ कृष्ण द्वादशी 
Wednesday, 07 February 2024

अंगूरी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी पाग पर क़तरा के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को अंगूरी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर दुरंगी पाग पर क़तरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

जाको मन लाग्यो गोपाल सों ताहि ओर कैसें भावे हो ।
 लेकर मीन दूधमे राखो जल बिन सचु नहीं पावे हो ।।१।।
ज्यो सुरा रण घूमि चलत है पीर न काहू जनावे हो ।
ज्यो गूंगो गुर खाय रहत है सुख स्वाद नहि बतावे हो ।।२।।
जैसे सरिता मिली सिंधुमे ऊलट प्रवाह न आवे हो । 
तैसे सूर  कमलमुख निरखत चित्त ईत ऊत न डुलावे हो ।।३।।

साज – आज श्रीजी में अंगूरी रंग की रूपहरी ज़री के भरतकाम की शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अंगूरी रंग की साटन (Satin) का सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, रूपहरी किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर हरे व सफ़ेद रंग की दुरंगी पाग के ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत एवं पीले एव सफ़ेद पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाती हैं.   
पट अंगूरी एवं गोटी मीना की आती है.

Monday, 5 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण एकादशी

व्रज – माघ कृष्ण एकादशी 
Tuesday, 06 February 2024

आज हरि रैन उनींदे आये ।
अटपटी पाग लटपटी अलकें
भृकुटि अंग नचाये ।।१।।
अंजन अधर ललाट महावर
नयन तम्बोल खवाये ।
सूरदास कहे मोहे अचम्भो
हरि रात रात में तीन तिलक
कहांते पाये ।।२।।

षट्तिला एकादशी, डोलोत्सव का प्रतिनिधि का श्रृंगार

बड़े उत्सवों के पहले उस श्रृंगार का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है. 

विक्रमाब्द १९७३-७४ में तत्कालीन परचारक श्री दामोदरलालजी ने प्रभु प्रीति के कारण अपने पिता और तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी से विनती कर इस श्रृंगार की आज्ञा ली और यह प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया था. 

तदुपरांत यह श्रृंगार प्रतिवर्ष धराया जाता है.

बसंत-पंचमी के पूर्व श्रीजी में गुलाल वर्जित होती है अतः पिछवाई एवं वस्त्रों पर सफ़ेद और लाल रंग के वस्त्रों को काट कर ऐसा सुन्दर भरतकाम (Work) किया गया है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो.

श्रीजी को आज के दिन षट्तिला एकादशी के कारण विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तिलवा (तिल) के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं, 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सुधराई)

आज बने नवरंग छबीले डगमगात पग अंग-अंग ढीले ll 1 ll
जावक पाग रंगी धों कैसेरी जैसे करी कहो पिय तैसे ll 2 ll
बोलत वचन बहुत अलसाने पीक कपोल अधर लपटाने ll 3 ll
कुमकुम हृदय भूजन छबि वंदन ‘सूरश्याम’ नागर मनरंजन ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में पतंगी (गुलाल जैसे) रंग की, अबीर व चूवा के भाव से सफ़ेद एवं श्याम रंग की टिपकियों के भरतकाम से डोल उत्सव सी सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. इसे देख के ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु ने गुलाल खेली हो. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को पतंगी रंग का डोल उत्सव का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराया जाता है. पटका मोठड़ा का धराया जाता है. सभी वस्त्र सफ़ेद अबीर एवं श्याम चूवा की टिपकियों के भरतकाम से सुसज्जित होते हैं. मोजाजी पतंगी रंग के एवं ठाड़े वस्त्र पतंगी रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की, श्वेत-श्याम टिपकियों वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पन्ना का पट्टीदार कटिपेच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका पर रंगीन तिकड़ी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में माणक के लोलकबंदी – लड़वाले चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में सोने का डोरा, हमेल, चन्द्रहार अक्काजी का आदि धराये जाते हैं. लाल, पीले एवं श्वेत रंग के पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में सोने के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की, पट चीड का, गोटी चांदी की और वस्त्र के छोगा आते हैं. आज छड़ी नहीं धरायी जाती है.

Sunday, 4 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण दशमी

व्रज – माघ कृष्ण दशमी 
Monday, 05 February 2024

हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वालपगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को हरे साटन के चागदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ग्वालपगा और पगा चंद्रिका (मोरशिखा) का श्रृंगार धराया जायेगा. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग :आसावरी)

चल री सखी नंदगाव जई बसिये,खिरक खेलत व्रजचंद सो हसिये ।।१।।
बसत बठेन सब सुखमाई,कठिन ईहै दुःख दूरि कन्हाई ।।२।।
माखन चोरत दूरि दूरि देख्यों,सजनी जनम सूफल करि लेखों ।।३।।
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा, कठिन प्रीति परमानंददासा ।।४।।

साज – श्रीजी में आज सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली (शीतकाल की) एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका हरे रंग का मलमल का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान के (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच तथा पगा चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी एवं कमल माला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गुलाबी मीना के वेणुजी (एक सोना का) एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी चाँदी की बाघ बकरी के आते है.

Saturday, 3 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण नवमी

व्रज – माघ कृष्ण नवमी 
Sunday, 04 February 2024

अमरसी साटन के घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर बाँकी चंद्रिका के शृंगार

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को अमरसी साटन का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर बाँकी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी/तोड़ी) 
माईरी लालन आये आयेरी मया कर तन मन धन सब वारो।
 हों बलिगई सखी आजकी आवनी पर पलकसों मग झारो।।१।।
 अति सुकुमार कोमल पद कारण सखीरी कंकर गुन सब तारो।
नन्ददास प्रभु नंदनंदन सों ऐसी प्रीति नित धारो।।२।।

साज – श्रीजी में आज केसरी रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी रंग की साटन (Satin) का सूथन, चोली, घेरदार वागा तथा मोजाजी धराये जाते हैं. घेरदार वागा, रूपहरी किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) चार माल का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर अमरसी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, बाँकी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धरायी जाती हैं.   
पट अमरसी एवं गोटी चाँदी की आती है.

Friday, 2 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण अष्टमी

व्रज – माघ कृष्ण अष्टमी
Saturday, 03 February 2024

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोदरजी (दाऊजी) महाराज का उत्सव 

विशेष – श्री गोवर्धनधरण प्रभु जिनके यहाँ व्रज से मेवाड़ पधारे, आज श्रीजी में उन नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े दामोदरजी (दाऊजी) का उत्सव है. 
आपका प्राकट्य श्री लाल-गिरधरजी महाराज के यहाँ विक्रम संवत १७११ में गोकुल में हुआ. 
आप अद्भुत स्वरुपवान थे एवं सदैव अदरक एवं गुड़ अपने साथ रखते थे एवं अरोगते थे. 
इसी भाव से आज श्रीजी को विशिष्ट सामग्रियां भी अरोगायी जाती है जिसका विवरण मैं नीचे सेवाक्रम में दे रहा हूँ.

श्रीजी को नियम से लाल रंग की खीनखाब के बड़े बूटा वाले चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव माणक की कुल्हे के ऊपर स्वर्ण जड़ाव का घेरा धराया जाता है. 

प्रभु को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
इसके अतिरिक्त आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही केशरयुक्त संजाब (गेहूं के रवा) की खीर व श्रीखंड-वड़ा भी अरोगाये जाते हैं. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता एवं सखड़ी में आदा प्रकार अर्थात अदरक की विविध सामग्रियां जैसे अदरक का शाक व अदरक के गुंजा व अदरक भात अरोगाये जाते हैं.
श्रीजी को अदरक के गुंजा आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगाये जाते हैं.

उत्सव भोग के रूप में आज श्रीजी को संध्या-आरती में विशेष रूप से आदा (अदरक के रस से युक्त) की केसरी मनोर के लड्डू एवं आज अरोगाये जाने वाले ठोड़ के स्थान पर गुड़ की बूंदी के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. ये दोनों सामग्रियां श्रीजी को वर्षभर में केवल आज के अतिरिक्त केवल मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा (घर के छप्पनभोग) के दिन ही अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सेवक की सुख रास सदा श्रीवल्लभ राजकुमार l
दरसन ही प्रसन्न होत मन पुरुषोत्तम अवतार ll 1 ll
सुदृष्टि चित्ते सिद्धांत बतायो लीला जग विस्तार l
यह तजि अन्य ज्ञानको ध्यावत, भूल्यो कुमति विचार ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ उद्धरे पतित श्रीविट्ठल कृपा उदार l
इनके कहे गही भुज दृढ करि गिरधर नन्द दुलार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में कत्थई रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी रेशम से भरे छोटे-छोटे कूंडों (पात्रों) व हंसों की सज्जा से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. कत्थई एवं श्याम रंग के हांशिया के ऊपर भी सुन्दर सज्जा की हुई है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की, बड़े बूटा के खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मलमल का पटका धराये जाते हैं. टंकमा हीरा के मोजाजी एवं मेघश्याम रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सव का भारी श्रृंगार धराये जाते हैं. मिलवा – प्रधानतया हीरा, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर जड़ाव हीरा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, स्वर्ण का जड़ाव का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. स्वरुप की बायीं ओर उत्सव की हीरा की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हार, माला आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
गुलाबी गुलाब की एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व पन्ना के) धराये जाते हैं.
आरसी श्रुंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की, पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी जाली की आती है.

Thursday, 1 February 2024

व्रज – माघ कृष्ण सप्तमी

व्रज – माघ कृष्ण सप्तमी 
Friday, 02 February 2024

पीरेही कुंडल नूपुर पीरे पीरो पीतांबरो ओढे ठाडो ।
पीरीही पाग लटक सिर सोहे पीरो छोर रह्यो कटि गाढो ।।१।।
पीरी बनी कटि काछनी लालके पीरो छोर रच्यो पटुकाको ।
गोविन्द प्रभुकी लीला दरसत पीरोही लकुट लिये कर ठाडो ।।२।।

दशम (पीली/बसंती) घटा

विशेष – आज श्रीजी में शीतकाल की दशम (पीली) घटा है. विगत कल ही श्रीजी ने बसंत के आगम का श्रृंगार धराया है और बसंत ऋतु का आभास हो और हम तत्परता से बसंत का स्वागत करें इस भाव से आज श्रीजी में पीली घटा के दर्शन होंगे. 

श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं. घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं. 

कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये.
इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने अपने पुत्र श्री दामोदरलालजी की विनती और आग्रह पर निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ (दूज का चंदा सहित) कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ (हरी, श्याम, लाल, अमरसी, रुपहली व बैंगनी) नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ (गुलाबी, पतंगी, फ़िरोज़ी, पीली और सुनहरी घटा) ऐच्छिक है जो बसंत-पंचमी से पूर्व खाली दिनों में ली जाती हैं. 

ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.
जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में आज वसंत कुंज की भावना से श्रीजी में पीली घटा होगी. साज, वस्त्र आदि सभी पीले रंग के होते हैं. सर्व आभरण स्वर्ण के धराये जाते हैं. 

शीतकाल में द्वादश घटाएँ होती हैं जिनमें केवल आज की पीली घटा में ही पीला मलमल का कटि-पटका भी धराया जाता है. 
अन्य किसी घटा में कटि-पटका नहीं धराया जाता.
आज पूरे दिन पिले फूलो की मालाजी आती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री/धनाश्री) 

देखत व्रजनाथ वदन मदन कोटि वारो l
जलज निकट नयन मीन उपमा बिचारो ll 1 ll
कुंडल ससि सूर उदित अघटनकी घटना l
कुंतल अलिमाल तामें मुरली कल रटना ll 2 ll
जलद खंड सुंदर तन पीत बसन दामिनी l
वनमाला सक्र चाप मोही सब भामिनी ll 3 ll
मुक्तामनि हार-मंडित तारागन पांति l
‘परमानंद स्वामी’ गोपाल सब विचित्र भांति ll 4 ll

साज – श्रीजी में आज पीले रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर पीली बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले रंग के दरियाई वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. पीले मलमल का कटि-पटका भी धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र भी पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण स्वर्ण के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पीले रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, पीले रेशम के दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. अलख धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में सोना के दो कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. आरसी सोने की, पट पीला व गोटी छोटी सोने की आती है.

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...