व्रज – माघ शुक्ल तृतीया
Saturday, 01 February 2025
इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व होगा.
चूंकि माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन प्रभु श्री मुकुंदरायजी (काशी) का पाटोत्सव व पुष्टि सृष्टि के अग्रेश श्री दामोदरदास हरसानीजी का प्राकट्य दिवस होता है परंतु बसंत पंचमी के पर्व के कारण चतुर्थी का राग, भोग व श्रृंगार का संपूर्ण सेवाक्रम आज ही लिया जाएगा.
शिशिर रितुको आगम भयो प्यारी बीदा भयो हेमंत ।
विरहिनके भाग्यते आलि आवत चल्यो वसंत ।।१।।
ताहि दुतिकाके भवन बसे जहां भांवर लीने कंत ।
कुम्भनदास प्रभु वा जाडेको आय रह्यो हे अंत ।।२।।
प्रभु के सेवाक्रम में प्रत्येक ऋतु का परिवर्तन उसके आगमन और प्रस्थान के समय अद्भुत क्रमानुसार होता है.
जिस प्रकार कोई भी ऋतु एकदम से नहीं परिवर्तित नहीं हो जाती वरन धीरे धीरे कई भागों में परिवर्तित होती है उसी प्रकार पुष्टिमार्ग में प्रभु का सेवाक्रम इस प्रकार निर्धारित किया गया है कि ऋतु के प्रत्येक भाग के बदलाव के अनुसार सेवाक्रम में भी बदलाव होता है.
बसंत पंचमी से बसंत ऋतु का आगमन और शीत ऋतु के प्रस्थान की उल्टी गिनती शुरू हो रही है तो प्रभु के सेवाक्रम में भी कुछ परिवर्तन होते हैं.
विजयदशमी के दिन प्रभु को ज़री के वस्त्र धराये जाने आरम्भ होते हैं जो कि आज अंतिम बार धराये जाते हैं. कल बसंत-पंचमी से वस्त्रों में ज़री का प्रयोग वर्जित होगा.
देव-प्रबोधिनी एकादशी के दिन से प्रतिदिन निज-मंदिर में प्रभु स्वरुप के सम्मुख से शैया मंदिर तक बिछाई जाने वाली लाल तेह (चित्र में द्रश्य) भी आज अंतिम बार धरी जाएगी.
श्रीजी का सेवाक्रम – आज प्रभु में गेंद, चौगान, दिवला सोने के आते हैं. दिन में दो समय आरती थाली की आती है.
आज बसंत-पंचमी के एक दिन पूर्व श्रीजी में शीतकाल की पांचवी चौकी होती है.
मार्गशीर्ष एवं पौष मास में जिस प्रकार सखड़ी के चार मंगलभोग होते हैं उसी प्रकार शीतकाल में पांच द्वादशियों को पांच चौकी (दो द्वादशी मार्गशीर्ष की, दो द्वादशी पौष की एवं माघ शुक्ल चतुर्थी सहित) श्रीजी को अरोगायी जाती है.
इन पाँचों चौकी में श्रीजी को प्रत्येक द्वादशी के दिन मंगला समय क्रमशः तवापूड़ी, खीरवड़ा, खरमंडा, मांडा एवं गुड़कल अरोगायी जाती है.
आज पांचवी एवं अंतिम चौकी है जिसमें श्रीजी को मंगलभोग में गुड़कल अरोगायी जाती है. श्रीजी प्रभु को नियम से गुड़कल वर्षभर में केवल आज अरोगायी जाती है.
ऐसा कहा जाता है कि गुड़कल के द्वारा प्रभु शीत को लुढ़का देते हैं अर्थात आज से प्रतिदिन शीत कम ही होगी.
आज नियम से श्रीजी को लाल सलीदार ज़री का सूथन, श्वेत फुलकशाही ज़री के चोली व चागदार वस्त्र, मेघश्याम ठाड़े वस्त्र, पटका सुनहरी ज़री का, श्रीमस्तक पर हीरा का किरीट पान व भारी आभरण धराये जायेंगे.
आज शीतकाल का किरीट का अंतिम श्रृंगार है. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं :
मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.
मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से बसंत-पंचमी तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार अथवा घेरदार वागा धराये जा सकते हैं.
मुकुट धराया जावे तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत जामदानी (चिकन) के धराये जाते है परन्तु किरीट धराया जावे तब किसी भी अनुकूल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जा सकते हैं.
मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.
राजभोग में प्रभु की पीठिका पर हीरा का रत्नजड़ित चौखटा धराया जाता है.
भोग विशेष में राजभोग की सखड़ी में श्याम-खटाई, रतालू प्रकार व श्री नवनीतप्रियाजी के घर से सिद्ध होकर पधारी गुड़कल अरोगायी जाती है.
दिन के अनोसर में अरोगायी जाने वाली शाकघर की सौभाग्यसूंठ आज अंतिम बार अरोगायी जाएगी. यद्यपि रात्रि अनोसर में शीत रहने तक प्रतिदिन सौभाग्य सूंठ जारी रहेगी.
कल बसंत-पंचमी है और कल श्रीजी में विशेष रूप से नौ दर्शन खुलेंगे.
वर्ष में केवल बसंत-पंचमी के दिन ही प्रभु के नौ दर्शन होते हैं.
प्रभु के सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे जिनके विषय में कल की post में बताने का प्रयास करूंगा.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : पंचम/मालकौंस)
बोलत श्याम मनोहर बैठे कदंबखंड और कदंब की छैंया l
कुसुमित द्रुम अलि गुंजत सखी कोकिला कलकुजत तहियां ll 1 ll
सूनत दुतिकाके बचन माधुरी भयो है हुलास जाके मनमहियां l
‘कुंभनदास’ व्रजकुंवरि मिलन चलि रसिककुंवर गिरिधरन पैयां ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में फुलकशाही ज़री की सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल सलीदार ज़री का सूथन, दीपावली वाला फुलकशाही ज़री की चोली, चागदार वागा एवं मोजाजी जड़ाऊ के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, पन्ना, माणक, मोती के मिलवा आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर हीरा का किरीट पान (शरद वाला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में उत्सव के हीरा के बड़े मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
उत्सव की हीरे की चोटी बायीं ओर धरायी जाती है. श्रीकंठ में नीचे पदक एवं ऊपर हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
रंग-बिरंगी पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जड़ाऊ की आरसी शृंगार में सोने की डांडी की एवं राजभोग में चार झाड़ की आती है.
संध्या-आरती दर्शन उपरान्त श्रीकंठ के आभरण, किरीट, टोपी व मोजाजी बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल गोल-पाग के ऊपर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.
श्रीकंठ में छेड़ान के श्रृंगार व मोजाजी रुपहली ज़री के धराये जाते हैं.
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