व्रज – ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या
Thursday, 06 June 2024
स्वेत रंग का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का साज के श्रृंगार
उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
पनिया न जैहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकिके पटकी l
ठीक दुपहरीमें अटकी कुंजनमें कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll
कहारी करो कछु बस नहि मेरो नागर नटसों अटकी l
‘नंददास’ प्रभुकी छबि निरखत सुधि न रही पनघटकी ll 2 ll
साज - आज श्रीजी में स्वेत रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को स्वेत मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर टिपारा का साज (मोती की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में श्वेत रेशम की मोरशिखा तथा दोनों ओर श्वेत रेशम के दोहरा कतरा) धराये जाते हैं. बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.
कली, तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी की आती है.
आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं.
उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं.
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