व्रज - श्रावण शुक्ल द्वितीया
Tuesday, 06 August 2024
पचरंगी लहरियाँ का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर कल्गा (भीमसेनी क़तरा) के श्रृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : मल्हार)
चल सखी देखन नंद किशोर l
श्रीराधाजु संग लीये बिहरत रुचिर कुंज घन सोर ll 1 ll
उमगी घटा चहुँ दिशतें बरखत है घनघोर l
तैसी लहलहातसों दामन पवन नचत अति जोर ll 2 ll
पीत वसन वनमाल श्याम के सारी सुरंग तनगोर l
जुग जुग केलि करो ‘परमानंद’ नैन सिरावत मोर ll 3 ll
साज – श्रीजी में आज पचरंगी लहरियाँ की पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज पचरंगी लहरियाँ का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के आते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है. गुलाबी मीना के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर भोपालशाही लहरियाँ के दुमाला के ऊपर सिरपैंच, कल्गा (भीमसेनी कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
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