By Vaishnav, For Vaishnav

Thursday, 31 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण अमावस्या

व्रज - कार्तिक कृष्ण अमावस्या
Friday, 01 November 2024

गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव

अन्नकूट कोटिन भांतनसो भोजन करत गोपाल ।
आपही कहत तात अपनेसों गिरि मूरति देखो तत्काल ।।१।।
सुरपति से सेवक इनही के शिव विरंची गुण गावे ।
इनहीते अष्ट महा सिध्धि नवनिधि परम पदारथ पावे ।।२।।
हम गृह बसत गोधन बन चारत गोधन ही कुलदेव ।
इने छांड जो करत यज्ञ विधि मानो भींतको लेव ।।३।।
यह सुन आनंदे ब्रजवासी आनंद दुंदुभी बाजे ।।
घरघर गोपी मंगल गावे गोकुल आन बिराजे ।।४।।

मंगला दर्शन उपरांत डोल-तिबारी में अन्नकूट भोग सजाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं अतः अन्य सभी समां के दर्शन भीतर होते हैं. दिन भर का पूरा सेवाक्रम भीतर होता रहता है.

महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

साज - श्रीजी में सर्व साज दीपावली के दिवस धरा हुआ ही आज भी धराया जाता है.

वस्त्र – श्रीजी को आज दीपावली के दिवस धरे गये श्वेत ज़री के वस्त्र ही धराये जाते हैं. 

श्रृंगार वृद्धि में राजभोग के पश्चात ऊर्ध्व भुजा की ओर लाल रंग का ज़री का बिना तुईलैस किनारी बिना का पीताम्बर धराया जाता है जिनके दो अन्य छोर चौखटे के ऊपर रहते हैं. 
ऐसा पीताम्बर वर्ष में दो बार (आज के दिन व जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन) धराया जाता है. 
जन्माष्टमी, नन्दोत्सव के दिन यह केवल चौखटे पर धराया जाता है परन्तु आज यह श्रीहस्त में भी धराया जाता है. 
प्रभु यह पीताम्बर गायों, ग्वालों और निजजनों पर फिरातें हैं जिससे उनको नज़र ना लगे.
चतुर्भुजदास जी ने इस भाव का एक पद भी गाया है.

खेली बहु खेली गाय, बुलाई घुमर घोरी ।
बछरा ऊपर 'ऊपरना फेरत’ दाढ़ मेल के डोरी ।।
आप गोपाल फ़ूक मारत है गौ सुत भरत अंकोरी ।
घों घों करत लकुट कर लीने ‘मुख फेरत पिछोरी’ ।।

श्रृंगार – आज अभ्यंग नहीं होता. सर्व श्रृंगार दीपावली के दिवस के ही रहते हैं. 
आज दो जोड़ी के एक माणक और एक पन्ना की प्रधानता वाले शृंगार धरे जाते हैं. दोनो हालरा नहीं धराये जाते हैं.
केवल श्रीमस्तक के ऊपर लाल रंग की ज़री की तुई की किनारी वाला गौकर्ण धराया जाता है. 
इसी प्रकार कुल्हे के ऊपर सिरपैंच बड़ा कर दिया जाता है और इसके बदले जड़ाव पान धराया जाता है. 
कमलछड़ी एवं पुष्प मालाजी दीपावली के दिवस के होते हैं अतः बदले जाते हैं. 
श्रीहस्त में जड़ाव सोने के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Wednesday, 30 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (दीपावली)

व्रज - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (दीपावली)
Thursday, 31 October 2024

यह दिवारी वरस दिवारी, तुमको नित्य नित्य आवो ।
नंदराय और जसोदारानी, अति सुख पूजही पावो ।।१।।  
पहले न्हाय तिलक गोरोचन,देव पितर पूजवो ।
 श्रीविट्ठलगिरिधरन संग ले गोधन पूजन आवो ।।२।।

दीपोत्सव, कानजगाई, हटड़ी

विशेष – आज हमारे सर्वाधिक आनंद का दिन है. प्रभु प्रातः जल्दी उठकर सुगन्धित पदार्थों से अभ्यंग कर, श्रृंगार धारण कर खिड़क में पधारते हैं, गायों का श्रृंगार करते हैं, उनको खूब खेलाते हैं.

श्रीजी का सेवाक्रम - महोत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

शंखनाद प्रातः 4.30 बजे व मंगला दर्शन प्रातः लगभग 5.15 बजे खोले जाते हैं.
मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रीजी को नियम के लाल सलीदार ज़री की सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कुल्हे के ऊपर पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं.

ये सामग्रियां कल अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में दीवला व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. 

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.
आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूँ के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

आज राजभोग आरती के पश्चात पूज्य श्री तिलकायत अन्नकूट महोत्सव के लिए चांवल पधराने जाते हैं. 
उनके साथ चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी के मुखियाजी व अन्य सेवक श्रीजी के ख़ासा भण्डार में जा कर टोकरियों में भर कर चांवल भीतर की परिक्रमा में स्थित अन्नकूट की रसोई में जाकर पधराते हैं. 
तदुपरांत नगरवासी व अन्य वैष्णव भी अपने चांवल अन्नकूट की रसोई में अर्पित करते हैं. आज सायं से अन्नकूट की चांवल की सेवा प्रारंभ होती है.

आज श्रीजी में राजभोग दर्शन पश्चात कोई दर्शन बाहर नहीं खोले जाते. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll

साज – आज श्रीजी में नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री दाऊजी महाराज (द्वितीय) कृत जड़ाव की, श्याम आधारवस्त्र पर कूंडों में वृक्षावली एवं पुष्प लताओं के मोती के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया जडाऊ एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री का सूथन, फूलक शाही श्वेत ज़री के रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी (माणक, हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फूलकशाही श्वेत ज़री की जडाव की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तथा पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. 
श्रीकंठ में बघनखा धराया जाता है. गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर थागवाली मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
आरसी जड़ाऊ की आती हैं.

Tuesday, 29 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (रूप चौदस के आपके शृंगार)

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (रूप चौदस के आपके शृंगार)   
Wednesday, 30 October 2024

न्हात बलकुंवर कुंवर गिरिधारी ।
जसुमति तिलक करत मुख चुंबत, आरती  नवल उतारी ॥ १ ॥
आनंद राय सहित गोप सब, नंदरानी  व्रजनारी ।
जलसों घोर केसर कस्तुरी, सुभग  सीसतें   ढारी ॥ २ ॥
बहोर करत शृंगार सबे मिल, सब मिल रहत निहारी ।
चंद्रावलि  व्रजमंगल रस भर, श्रीवृषभान दुलारी ॥ ३ ॥
मनभाये पकवान जिमावत, जात सबें  बलहारी ।
श्रीविठ्ठलगिरिधरन सकल व्रज, सुख मानत छोटी दिवारी ॥ ४ ॥

नरक चतुर्दशी, रूप चौदस

*आज रूप चौदस के राग, भोग व श्रृंगार का सेवाक्रम लिया जा रहा है*
जिसमें मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को फुलेल समर्पित कर तिलक किया जाता है. तत्पश्चात बीड़ा पधराकर चन्दन, आवंला एवं उपटना से दोहरा अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

अधिकांश पुष्टिमार्गीय मंदिरों में दशहरा के दिन तैयार कर सुखाकर रखे 10 गोबर के कंडों को जलाकर उन पर प्रभु स्वरूपों के आज के अभ्यंग स्नान के लिए जल गर्म किया जाता है.

विशेषकर सूर्योदय से पूर्व हल्दी से चौक लीप कर उसके ऊपर लकड़ी की चौकी बिछाकर, चारों ओर दीप जलाकर, श्री ठाकुरजी को चौकी के ऊपर पधराकर, तिलक, अक्षत एवं आरती कर अभ्यंग स्नान कराया जाता है. 
स्नान पश्चात प्रभु को सुन्दर वस्त्राभूषण धराये जाते हैं जिससे श्री ठाकुरजी का स्वरुप खिल उठता है इस भाव से आज के उत्सव को रूप चतुर्दशी कहा जाता है. 

अपने बालकों को भी इसी शास्त्रोक्त विधि से स्नान कराने से बालकों का स्वास्थ्य उत्तम होता है और रोगादि से मुक्ति मिलती है.
ऐसी भी मान्यता है कि इस प्रकार शास्त्रोक्त विधि के अनुसार स्नान करने से नर्क-यातना एवं रोगादि से मुक्ति मिलती है. इसी कारण आज के दिवस को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है.

आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र पर भीम पक्षी के पंख के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई आती है. आज श्रीजी को सुनहरी फुलकशाही ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है.

कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 
ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. 
इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कटपूवा अरोगाये जाते हैं. 
उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव, आधे नेग की श्याम-खटाई आदि अरोगाये जाते हैं. 
अदकी में संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.
प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है. 

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं. आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूं के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र (Base fabric) पर भीम पक्षी के पंख के काम (work) वाली एवं लाल रंग के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल एवं सुनहरी फुलक शाही ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना के थेगडा वाला सिरपैंच, केरी घाट की लटकन वाला लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, मोती के हार, दुलड़ा माला, कस्तूरी, कली आदि की माला धरायी जाती हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का गोटी जडाऊ, आरसी शृंगार में चार झाड की एवं राजभोग में सोन की डांडी की आती है.

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. आज श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.

शयन समय निज मन्दिर के बाहर दीपमाला सजायी जाती है. मणिकोठा में रंगोली का पाट व दीपक सजाये जाते हैं.

Monday, 28 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार)

व्रज - कार्तिक कृष्ण द्वादशी(धनतेरस के आपके शृंगार) 
Tuesday, 29 October 2024

इस वर्ष चतुर्दशी (गुरुवार, 31 अक्टूबर) के दिन दीपावली होने के कारण श्रृंगार का क्रम परिवर्तित हुआ है जिसमें आज द्वादशी के दिन धनतेरस के उत्सव का राग, भोग व श्रृंगार का क्रम होगा. यद्यपि धनतेरस का उत्सव बुधवार, 30 अक्टूबर 2024 को है.

आज माई धन धोवत नंदरानी ।
कार्तिक वदि तेरस दिन उत्तम गावत मधुरी बानी ।।१।।
नवसत साज श्रृंगार अनुपम करत आप मन मानी । 
कुम्भनदास लालगिरिधर को देखत हियो सिरानी ।।२।।

धनतेरस, धन्वन्तरी जयंती

आज मनमोहन रूपी धन को अपने ह्रदय  में आत्मसात करते हुए धनतेरस के श्रृंगार के दर्शन का आनंद ले 

विशेष – आज धनवन्तरी जयन्ती है. श्री धनवन्तरी, भगवान विष्णु के 17वें अवतार, देवों के वैध व प्राचीन उपचार पद्दति आयुर्वेद के जनक हैं.

आज के दिन को धनतेरस भी कहा जाता है. व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिवस दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.

आज नन्दरानी यशोदाजी भौतिक लक्ष्मीजी की प्रतिमा को स्नान करा, श्रृंगार कर प्रभु के सम्मुख रखती हैं एवं बालक के पहनने के आभूषण को धोती हैं जिससे श्रीजी में मंगला दर्शन उपरांत ‘धन धोवत व्रजरानी’ जैसे पद गाये जाते हैं.

श्रीस्वामिनीजी ने श्रीठाकुरजी को अपना सर्वस्व मान कर धन के रूप में प्राप्त किया है ऐसा भाव भी है जिसे प्रदर्शित करते पद भी प्रभु के सम्मुख गाये जाते हैं – ‘राधा मन अति मोद बढ्यो है, मनमोहन धन पाई.’

आज की सेवा ललिताजी के भाव की है.

विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.
गेंद, चौगान, दिवाला सभी सोने के आते हैं. आज दिनभर प्रभु को भोग स्वर्ण पात्रों में धरे जाते हैं.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी को आज नियम के हरी सलीदार ज़री के चाकदार वागा एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया पर मखमल की खोल आती है.

आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरयुक्त चन्द्रकला अरोगायी जाती है. 
उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. 
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव आदि अरोगाये जाते हैं. अदकी में गेहूं के रवा की खीर अरोगायी जाती है.
भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोधन पूजा करके गोविंद सब ग्वालन पहेरावत l
आवो सुबाहु सुबल श्रीदामा ऊंचे लेले नाम बुलावत ll 1 ll
अपने हाथ तिलक दे माथे चंदन और बंदन लपटावत l
वसन विचित्र सबन के माथें विधिसों पाग बंधावत ll 2 ll
भाजन भर भर ले कुनवारो ताको ताहि गहावत l
‘चत्रभुज’प्रभु गिरिधर ता पाछे धोरी धेनु खिलावत ll 3 ll

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मखमल के ऊपर सुनहरी सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल रंग की मखमल की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा - हीरा, मोती, प्रमुखतया माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर हरे रंग की सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर अनारदाना को पट्टीदार सिरपैंच (दोनों ओर मोती की माला से सुसज्जित), पन्ना की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में टोडर धराया जाता है. हांस, कड़ा, हस्त सांखला आदि सर्व श्रृंगार धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर स्वर्ण का हीरा जड़ित चौखटा धराया जाता है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व पन्ना के) धराये जाते हैं.
पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी लाल मखमल की आती है.

शयन समय मणिकोठा में हांडी में रौशनी की जाती है, दीपक का पाट साजा जाता है और रंगोली मांडी जाती है. निज मन्दिर में रौशनी का झाड़ आता है. 
डोलतिबारी में आज से रौशनी नहीं की जाती.

आज से श्रीजी को प्रतिदिन उत्थापन के फल भोग में गन्ना के टूक (छीले हुए गन्ना के टुकड़े) अरोगाये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. ये सामग्री प्रतिदिन आगामी डोलोत्सव तक अरोगायी जाती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़ेकर छोटे (छेडान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम, तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. 

शयन समय प्रभु बंगले (हटड़ी) में बिराजते हैं. मनोरथ के रूप में विविध सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

आज शयन उपरांत नाथद्वारा के आसपास के विभिन्न गावों से ग्रामीण लोग अपने खेतों से और श्रीजी के बगीचों से ठाकुरजी को अन्नकूट पर अरोगाने के लिए आज बैलगाड़ियों में भरकर पालक की भाजी लाते हैं. चतुर्दशी के पूरे दिन भाजी की सेवा चलती है.

दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.

इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Sunday, 27 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (द्वितीय) रमा एकादशी व्रत

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (द्वितीय) रमा एकादशी व्रत 
Monday, 28 October 2024

आज रमा एकादशी है लेकिन दीपावली चतुर्दशी को होने के कारण द्वादशी का शृंगार आज लिया गया हैं.

विशेष – आज की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन रमा नाम की व्रजगोपी ने श्री यशोदाजी को नंदालय में दीपावली की बधाई दी थी जिससे नंदालय में नगाड़े बजाये जाते हैं.
दीपावली तक प्रतिदिन रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.

सेवाक्रम - विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं.

आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी की ओर है और आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें पीली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पीला चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की सीधी चन्द्रिका धरायी जाती है. 
तकिया पर मखमल की खोल आती है.

व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिन दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – लाल रंग के आधारवस्त्र पर सुनहरी सीलमाँ-सितारा के विद्रुम के जाल के ज़रदोज़ी के काम की एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र- श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री की सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.

कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी आती है.
आरसी चाँदी की काँच के कलात्मक काम  की आती है. 

विगत दशमी से ही प्रतिदिन प्रभु के सम्मुख उत्थापन उपरांत पुष्प-पत्तियों की बाड़ी धरी जाती है जो शयन उपरांत बड़ी कर दी जाती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

शयन दर्शन में मणिकोठा व डोलतिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीं निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.

दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.

इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Saturday, 26 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (प्रथम)

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (प्रथम)
Sunday, 27 October 2024

एकादशी के आपश्री के श्रृंगार

*तिथि वृद्धि के कारण इस वर्ष दो एकादशी है व चतुर्दशी के दिन दीपावली होने के कारण श्रृंगार का क्रम परिवर्तित हुआ है जिसमें आज कार्तिक कृष्ण एकादशी के दिन नियम का एकादशी का श्रृंगार धराया जा रहा है, यद्यपि पुष्टि वैष्णवों में रमा एकादशी व्रत कार्तिक कृष्ण एकादशी (द्वितीय) (सोमवार , 28 अक्टूबर 2024) के दिन ही है.*

पुष्टि प्रणालिका के आधार पर जहाँ निधि स्वरुप विराजित हों उन सभी मंदिरों में मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं एवं रात्रि को रौशनी की जाती है.

विगत कल से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं.
आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं.
आज की सेवा चम्पकलताजी के भाव की है आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें श्याम ज़री के चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं श्रीमस्तक पर श्याम चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर नागफणी का कतरा धराया जाता है. तकिया पर लाल मखमल कि खोल आती है.

से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक के सात दिन श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 
ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. 
इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी (सूखे मेवों से भरा लड्डू के आकार का खस्ता ठोड़) अरोगायी जाती है.

कल से पुष्टिमार्ग में गोवर्धन-लीला प्रारंभ हो गयी है. प्रभु श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत धारण किया था इस भाव से विगत कल से सात दिन तक विशेषतया गोवर्धन-पूजन के पद गायन होता है.
कीर्तनों में राजभोग समय गोवर्धन-पूजा के पद गाये जाते हैं. भोग-आरती में गौ-क्रीड़ा के पद एवं शयन में रौशनी, दीपदान एवं हटड़ी के पद गाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोवर्धन पूजन चलेरी गोपाल l
मत्त गयंद देख जिय लज्जित निरख मंदगति चाल ll 1 ll
व्रज नारिन पकवान बहुत कर भर भर लीने थाल l
अंग सुगंध पहर पट भूषण गावत गीत रसाल ll 2 ll
बाजे अनेक वेणु रवसो मिलि चलत विविध सुर ताल l
ध्वजा पताका छत्र चमर धर करत कुलाहल ग्वाल ll 3 ll
बालक वृंद चंहुदिश सोहत मानो कमल अलिमाल l
‘कुंभनदास’ प्रभु त्रिभुवन मोहन गोवर्धनधर लाल ll 4 ll

साज – श्रीजी में आज गेरू (कत्थई) रंग की धरती पर वृक्ष, पुष्प, पत्तियों और ऊंची सूंड के हाथियों आदि के ज़रदोज़ी के अद्भुत काम वाली एवं ज़रदोज़ी के ही काम वाले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी-तकिया के ऊपर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम सलीदार ज़री की सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर श्याम सलीदार ज़री का चीरा (श्याम ज़री की पाग) के ऊपर किलंगी वाला सिरपैंच, डाख (ज़री के काम) का जमाव का कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.
नीचे चार हीरा की जुगावली, ऊपर सात मोती की माला व हार धराये जाते हैं. हीरा की बग्घी व कंठी धरायी जाती है. पीले एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (श्री विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.
पट प्रतिनिधि का व गोटी श्याम मीना की आती है. 

प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृंगार संध्या-आरती उपरांत बड़े कर शयन समय हल्के श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम तुर्रा धराये जाते हैं. 

शयन समय मणिकोठा व डोल तिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है.

कल से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है.
इसके अतिरिक्त कल से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Friday, 25 October 2024

व्रज - कार्तिक कृष्ण दशमी

व्रज - कार्तिक कृष्ण दशमी
Saturday, 26 October 2024
                   
आपश्री (तिलकायत) के श्रृंगार आरम्भ

पुष्टिमार्ग में कोई भी उत्सव ऐसे ही नहीं मना लिया जाता वरन पुष्टि के नियम कुछ इस प्रकार बनाये गए हैं कि प्रभु सेवा के हर क्रम में उस उत्सव के आगमन का आभास होता है.

दीपावली का आभास भी प्रभु के सेवाक्रम में दशहरा से ही आरम्भ हो जाता है.

इसी क्रम में आज से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रतिदिन प्रभु की झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है.

उत्सव का आभास जागृत करने के भाव से प्रभु सम्मुख के गादी, चरणचौकी खंडपाट आदि की खोल पर से सफेदी उतार कर मखमल के खोल चढ़ाये जाते हैं. तकिया पर लाल मखमल की खोल आती है.

आज से पुष्टिमार्ग में गोवर्धन-लीला प्रारंभ हो जाएगी. प्रभु श्रीकृष्ण ने सात दिन तक गोवर्धन पर्वत धारण किया था इस भाव से आज से सात दिन तक गोवर्धन-पूजन के पद गाये जाते हैं.

इस वर्ष दीपावली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन है अतः दशमी को आरम्भ होने वाले दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार आज कार्तिक कृष्ण नवमी से ही प्रारंभ हो जाएंगे. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन्हें आपके श्रृंगार इसलिए कहा जाता है क्योंकि पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री को इन श्रृंगार का विशेषाधिकार प्राप्त है.

श्रीजी को आज का श्रृंगार श्री विशाखाजी की भावना से धराया जाता है. श्री विशाखाजी अत्यंत गौर श्रीअंग वाले थे अतः आपके भाव से आज श्वेत कारचोव के वस्त्र, सुनहरी टिपकी वाले एवं दोहरी सुनहरी किनारी वाले धराये जाते हैं.

आज श्री विशाखाजी के भाव से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

आज द्वितीय गृह प्रभु श्री विट्ठलनाथजी से श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु बूंदी के लड्डू की छाब पधारती है.

आज से किर्तनिया राजभोग के दर्शन उपरांत भीतर से कमलचौक तक ‘कीर्तन करते’ हुए निकलते हैं और शयन समय कीर्तन समाज किर्तनिया गली में बैठते हैं.
आज से दीपावली की रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l
मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll 1 ll
बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll 2 ll
टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l
‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज सफेद रंग की कारचोव के वस्त्र की पिछवाई के ऊपर सुनहरी ज़री की तुईलैस का हांशिया एवं ज़रदोज़ी का काम किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम, गादी के ऊपर लाल एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद रंग की मखमल की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज श्वेत ज़री (कारचोव) के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. उर्ध्वभुजा की ओर मलमल का कटि-पटका (जिसका एक छोर आगे और एक बग़ल की तरफ़) धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण पन्ना तथा सोने के धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सफेद रंग की कारचोव के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. पन्ना की चार माला धराई जाती हैं.
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत एवं गोटी स्वर्ण की आती हैं.
आरसी शृंगार में सोना की एवं राजभोग में चाँदी की बटदार दिखाई जाती हैं.

प्रातः धराये श्रीमस्तक के श्रृंगार संध्या-आरती उपरांत बड़े कर शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं. 
उत्थापन के पश्चात फूल पत्तो की बाड़ी आती हैं.
शयन समय मणिकोठा व डोल तिबारी में नित्य हांडी में रौशनी की जाती है.
आज से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि के थाल आरोगाया जाता है.
इसके अतिरिक्त आज से अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं.

Thursday, 24 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण नवमी

व्रज – कार्तिक कृष्ण नवमी 
Friday, 25 October 2024

दीपोत्सव का प्रतिनिधि का शृंगार

बड़े उत्सवों के पूर्व अथवा उपरांत उनके परचारगी श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.

इसी श्रृंखला में इसी श्रृंखला में आज श्रीजी को दीपावली के दिन धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें प्रभु को लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलकसाही ज़री की चोली, चाकदार वागा एवं सुनहरी ज़री का पटका धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर फूलकसाही ज़री की कुल्हे व पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धरायी जाती है.

भोग विशेष - मनोरथ के साज की भावना से श्रीजी को राजभोग व शयनभोग में कट-पुआ, केशरयुक्त सुवाली, पकागुंजा, खुरमा, खस्ता मठडी आदि अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गुड़ के गुंजा पुआ सुहारी, गोधन पूजत व्रज की नारी ll 1 ll
घर घर गोमय प्रतिमा धारी, बाजत रुचिर पखावज थारी ll 2 ll
गोद लीयें मंगल गुन गावत, कमल नयन कों पाय लगावत ll 3 ll
हरद दधि रोचनके टीके, यह व्रज सुरपुर लागत फीके ll 4 ll
राती पीरी गाय श्रृंगारी, बोलत ग्वाल दे दे करतारी ll 5 ll
‘हरिदास’ प्रभु कुंजबिहारी मानत सुख त्यौहार दीवारी ll 6 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की धरती (Base) के ऊपर सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रकोसी के काम (Work) वाली, जिसमें चन्द्र, सूर्य, गाय, तथा पुष्पों का ज़रकोसी का काम (Work) किया गया है. तकिया के ऊपर मेघश्याम रंग की एवं गादी तथा चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री की सूथन, श्वेत फूलक साई ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता सहित हीरे, मोती, पन्ना तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर फूलक साई श्वेत ज़री की कुल्हे के ऊपर तीन टीका व तीन ही त्रवल, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति हीरा के कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर माणक की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. 
त्रवल व टोडर दोनों धराये जाते हैं. 
आज हालरा धराया जाता हैं.
कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 

राजभोग में पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर तुर्रा-किलंगी नहीं आते हैं व हीरा की किलंगी धरायी जाती है.  
पिछवाई बड़ी (हटा) कर कांच का बंगला आवे. 
मणिकोठा में पांच कांच की हांडियों में रौशनी की जाती है वहीँ निज मन्दिर की देहरी के भीतर दो कांच की मृदंग में रौशनी की जाती है.
शयन दर्शन उपरांत अनोसर में कुल्हे बड़ी कर छज्जेदार पाग धरायी जाती है.

इस वर्ष आगामी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के क्षय के कारण दशमी को आरम्भ होने वाले दीपावली के विशिष्ट श्रृंगार कल कार्तिक कृष्ण नवमी से ही प्रारंभ हो जाएंगे. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘घर के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये श्रृंगार दीपावली के अलावा जन्माष्टमी एवं डोलोत्सव के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन श्रृंगार का विशेषाधिकार पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री का होता है.

Wednesday, 23 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी

व्रज – कार्तिक कृष्ण अष्टमी
Thursday, 24 October 2024

रूपचौदस का प्रतिनिधि का श्रृंगार

प्रतिनिधि का श्रृंगार – बड़े उत्सवों के पहले उनके श्रृंगार के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं अतः इन्हें प्रतिनिधि के श्रृंगार कहे जाते हैं.

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली चतुर्दशी अर्थात रूप-चौदस या नरक चतुर्दशी को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जाता है जिसमें हल्के चंपाई आधारवस्त्र पर सुरमा-सितारा के भरतकाम (भीम पक्षी के पंख की) से सुसज्जित पिछवाई, सुनहरी ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया है. 

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की चतुर्दशी (रूप-चौदस) को भी धराये जायेंगे. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll

साज – श्रीजी में आज हल्के चंपाई रंग की सुरमा सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी (फुलकसाई) ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका रुपहली ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरे की प्रधानता के, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर सुनहरी फुलकसाई ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर हीरा-पन्ना का सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. लूम व झोरा हीरा के आते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल आदि सर्व श्रृंगार, कस्तूरी व कली की माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (हीरा व सोने के) धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का व गोटी जडाऊ चौपड़ की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर शयन समय छोटे छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर नवरत्न की किलंगी और मोती की लूम धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते.

Tuesday, 22 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण सप्तमी

व्रज – कार्तिक कृष्ण सप्तमी
Wednesday, 23 October 2024

दीपावली के पूर्व का नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार

आज श्रीजी में नियम का मुकुट का श्रृंगार धराया जायेगा. 
दीपोत्सव के पूर्व नियम के कुछ श्रृंगार धराये जाते हैं. 
आज के मुकुट के श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं है यद्यपि यह इस पक्ष में धराया अवश्य जाता है.

आज प्रभु को पतंगी शैला के सूथन, काछनी व डाँख (ज़री के काम) का मुकुट धराया जाएगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नटवरगति नृत्यत है भक्तन उर परसत है, पुलकित तन हरखत है रासमें लाल बिहारी l
बाजत ताल मृदंग उपंग बांसुरी बिना स्वर तरंग ग्रग्रता ग्रग्रता थुंग थुंग लेत छंद भारी ll 1 ll
कटि काछिनि पीत सुरंग मोर मुकुट अति सुधंग रंग राख्यौं अर्धभाल ललित शीश पेंच संवारी l
आरती वारति यशोदामाय लेत कंठ लगाय देखत सुरनर मुनि और ‘रामदास’ बलिहारी ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में गौचारण लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी शैला का सूथन, काछनी व मलमल का रास-पटका धराया जाता है. इसी प्रकार मेघश्याम दरियाई की चोली धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत (चिकने लट्ठा के) धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी डाख (ज़री के काम के ) की मुकुट की टोपी व मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है.
 कली, कस्तूरी व कमल माला धरायी जाती है.श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ी मीना के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पतंगी व गोटी मीना की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत मुकुट, टोपी, काछनी व आभरण बड़े कर सुथन पटका, गोल-पाग एवं छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं लूम तुर्रा रूपहरी धराया जाता है और शयन दर्शन खुलते हैं.

Monday, 21 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण षष्ठी

व्रज – कार्तिक कृष्ण षष्ठी 
Tuesday, 22 October 2024

धनतेरस का प्रतिनिधि का श्रृंगार

बड़े उत्सवों के पहले उन उत्सवों के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. ये उत्सव के मुख्य श्रृंगार के भांति ही होते हैं

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली त्रयोदशी अर्थात धनतेरस को धराये जाने वाला श्रृंगार धराया जायेगा जिसमें कत्थई आधारवस्त्र पर कला बत्तू के सुन्दर काम से सुसज्जित पिछवाई, हरी सलीदार ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. 
लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की त्रयोदशी (धनतेरस) को भी धराये जायेंगे. 

इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.
अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार ललिताजी की ओर का है.

यह श्रृंगार निश्चित है यद्यपि इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

येही हे कुलदेव हमारो l
काहू नहीं और हम जाने गोधन हे व्रज को रखवारो ll 1 ll
दीप मालिका के दिन पांचक गोपन लेहु बुलाय l
बलि सामग्री करो अबही तुम कही सबन समुझाय ll 2 ll
लिये बुलाय महरि महेराने सुनत सबे उठि धाई l
नंदघरनी यो कहत सखिनसो कित तुम रहत भुलाई ll 3 ll
भूली कहा कहत हो हमसो कहत कहा डरपाई l
‘सूरदास’ सूरपति की सेवा तुम सबहिन विसराई ll 4 ll

साज - श्रीजी में आज कत्थई रंग के आधारवस्त्र के ऊपर सुनहरी के कशीदे (कला बत्तू) के ज़रदोज़ी के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे रंग की सलीदार ज़री की सूथन, पटका, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, पन्ना,माणक एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 त्रवल के स्थान पर टोडर धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं.
श्रीमस्तक पर हरी सलीदार ज़री चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, उसके ऊपर-नीचे मोती की लड़, नवरत्न की किलंगी, मोरपंख की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 पीठिका के ऊपर जड तल (हीरे) का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (माणक व सोने के) धराये जाते हैं.
पट हरा, गोटी शतरंज की सोने की व आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने के डांडी की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Sunday, 20 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण पंचमी (चतुर्थी क्षय)

व्रज – कार्तिक कृष्ण पंचमी (चतुर्थी क्षय)
Monday, 21 October 2024

दीपावली पूर्व का अभ्यंग एवं अभ्यंग का शृंगार

विशेष – दीपोत्सव के पूर्व के नियत श्रृंगारों के मध्य इस पखवाड़े में एक बार अभ्यंग अवश्य होता है. इसका दिन नियत नहीं परन्तु होता अवश्य है. इसी भाव से आज मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जायेगा.
अभ्यंग के साथ घेरदार वस्त्र का श्रृंगार भी धराया जाता है .इसमें लाल सलीदार ज़री के घेरदार वस्त्र, चोली, सूथन, पटका व श्रीमस्तक पर चीरा (ज़री की पाग) धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र श्याम धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोधन पूजें गोधन गावें ।
गोधनके सेवक संतत हम गोधनहीकों माथो नावें ।।१।।
गोधन मात पिता गुरु गोधन गोधन  देव जाहि नित्य ध्यावें ।
गोधन कामधेनु कल्पतरु गोधनपें मागें सोईपावें ।।२।।
गोधन खिरक खोर गिरि गव्हर रखवारो घरवन जहां छावें ।
परमानंद भांवतो गोधन गोधनहीकों हमहूं पुनभावें ।।३।।

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग के आधारवस्त्र के ऊपर झाड़ फ़ानुश एवं सेवा करती सखियों की सुनहरी कशीदे के ज़रदोज़ी के काम वाली तथा पुष्पों के सज्जा के कशीदे के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सलीदार ज़री के एवं सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सुवा पंखी मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

 श्रीमस्तक पर लाल सलीदार ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा चमकनी गोल चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल व गोटी चाँदी की आती है.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक पर धराये श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं और शयन दर्शन खुलते हैं.

Saturday, 19 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया 
Sunday, 20 october 2024

दीपावली के पूर्व कार्तिक कृष्ण वत्स द्वादशी का प्रतिनिधि श्रृंगार

 विशेष – दशहरा के अगले दिन से दीपावली के उत्सव के प्रतिनिधि के श्रृंगार धराये जाते हैं. 
इनमें कार्तिक कृष्ण दशमी से दीपावली तक धराये जाने वाले सभी छह श्रृंगारों के प्रतिनिधि के श्रृंगार आगामी दिनों में धराये जाएंगे. इनमें कुछ श्रृंगार के दिन नियत व कुछ खाली दिनों में धराये जाते हैं. 
प्रतिनिधि श्रृंगार में वस्त्र, साज और श्रृंगार आदि मुख्य श्रृंगार जैसे ही होते हैं.

इसी श्रृंखला में आज दीपावली के पहले वाली वत्स द्वादशी को धराये जाने वाले वस्त्र और श्रृंगार धराया जाता है जिसमें पिली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की कशी के काम की चन्द्रिका धरायी जाती है. 

लगभग यही वस्त्र व श्रृंगार दीपावली के पूर्व की वत्स द्वादशी को भी धराये जायेंगे. 

इस श्रृंगार को धराये जाने का अलौकिक भाव भी जान लें.
अन्नकूट के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी का है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

सुनरी सेन दई ग्वालन को मोहनलाल बजायो बेन ।
प्रातसमे जागे अनुरागे वृंदावन आनंद माई चले चरावन घेन ।।१।।
बरन बरन बानिक बनि आये पटभूखण जसुमति पहेराये भाल तिलक के आंजे नैन ।
हरिनारायण श्यामदासके प्रभु माई प्रगट भये, धरी सीस चंद्रिका सब व्रजजन सुख देन ।।२।।

साज – श्रीजी में आज कत्थाई (brown) तथा श्याम आधार (base) पर सुनहरी सुरमा सितारा के भरतकाम और हांशिया वाली (कला बत्तू के काम की) पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पिली सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, कड़ा,हस्त सांखला आदि धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले रंग के सलीदार चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, पन्ना की कशी के काम की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं.
कली की मालाजी धरायी जाती है. 
 गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, स्वर्ण के (एक पन्ना का) वेणुजी एवं बेंतजी धराये जाते हैं.
पट प्रतिनिधि का एवं गोटी सोना की  आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण व श्रीमस्तक पर रुपहली लूम तुर्रा धराकर शयन दर्शन खुलते हैं.

Friday, 18 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया

व्रज – कार्तिक कृष्ण तृतीया
Saturday, 19 October 2024

राते पीरे टिपारा को शृंगार 

आज प्रभु को 'राते पीरे टिपारा' का श्रृंगार धराया जाता है.
'राते पीरे' देशी ब्रजभाषा का शब्द है जिसका हिन्दी अर्थ 'लाल पीला' होता है.

आज से प्रतिदिन सरसलीला के कीर्तन गाये जाते हैं. 
प्रातः राग–बिलावल में, राजभोग आवें तब राग-सारंग में एवं शयन भोग आवें तब राग कान्हरो के कीर्तन गाये जाते हैं. ओसरा (बारी-बारी) से दो अथवा चार पद गाये जाते हैं.

दीपावली के पूर्व अष्टसखियों के भाव से आठ विशिष्ट श्रृंगार धराये जाते हैं. 

जिस सखी का श्रृंगार हो उनकी अंतरंग सखी की ओर से ये श्रृंगार धराया जाता है. 
आज का श्रृंगार श्री स्वामिनीजी के भाव से धराया जाता है जिसमें लाल ज़री के चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर (राते पीरे) लाल ज़री का टिपारा, पीले तुर्री व पेच (मोरपंख का टिपारा का साज), गायों के घूमर में प्रभु विराजित हैं ऐसी पिछवाई एवं श्वेत वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण फिरोज़ा के धराये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l
बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll
कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l
आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll
आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l
राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll
छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l
‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की धरती (आधार वस्त्र) पर श्वेत ज़री से  गायों, बछड़ों के चित्रांकन वाली एवं श्वेत ज़री की लैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले (लीम्बोई) रंग के धराये जाते हैं.पटका पिला धराया जाता हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी व वैजयन्ती माला धरायी जाती हैं.
श्रीमस्तक पर मोर के टिपारा का साज – लाल ज़री की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, पीले तुर्री व पेच (मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. बायीं ओर मीना की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में फ़ीरोज़ा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
पीले एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी सोना की बाघ-बकरी की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं और छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं और शयन दर्शन खुलते हैं.

Thursday, 17 October 2024

व्रज – कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा 
Friday, 18 October 2024

पीत दुमालो बन्यो,कंठ मोतीनकी माला ।
सुंदर सुभग शरीर,झलमले नयन विशाला ।।

पीत दुमाला के शृंगार

विशेष – आज श्रीजी को अन्नकुट पर गोवर्धन लीला के अन्तर्गत गाए जाने वाले   ‘अपने अपने टोल क़हत ब्रिजवासिया’ के उपरोक्त पद के आधार पर पीत दुमाला का श्रृंगार धराया जाता है. जिसमें प्रभु को श्रीमस्तक पर पीले मलमल का बीच का दुमाला, पटका व तनिया धराया जाता है. 
वस्त्र व आभरण ऐच्छिक होते हैं प्रभु को आज के दिन पीले रंग का दुमाला धराया जाता है और फ़िरोज़ी ज़री के चाकदार वागा धराये जायेंगे.

गोवर्धन पूजा के पद गाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सुनिये तात हमारो मतो श्रीगोवर्धन पूजा कीजे l
जो तुम यज्ञ रच्यो सुरपति को सोई याहि दे दीजे ll 1 ll
कंदमूल फल पहोपनकी निधि जो मागे सो पावे l
यह गिरी वास हमारो निशदिन निर्भय गाय चरावे ll 2 ll...अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में लाल रंग के हांशिया वाली श्याम मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. जिसमें गायों का चित्रांकन किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे श्रीजी गायों के मध्य विराजित हों. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी सलीदार ज़री का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्री मस्तक पर पीले मलमल का बीच का दुमाला मोर चन्द्रिका, एक कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ तथा झुमकी वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कमल माला धराई जाती हैं.
 सफेद एवं पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट चांदी का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.आरसी नित्य की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला ही रहता है और लूम तुर्रा नहीं धराये जाते. 

Wednesday, 16 October 2024

व्रज - आश्विन शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - आश्विन शुक्ल पूर्णिमा 
Thursday, 17 October 2024

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता, इन बातन न रीजैयें ॥१॥
सतकुल जन्म करम शुभ लक्षण, वेद पुरान पढ़ैये ।
“गोविंदके प्रभु” बिना स्नेह सुवालों, रसना कहा जू नचैये ॥२॥

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

द्रश्य शरदोत्सव, कार्तिक स्नान आरंभ

विशेष – आज से कार्तिक स्नान आरंभ हो रहा है. यशोदाजी एवं गोपियों ने आज से व्रत आरंभ कर कार्तिक कृष्ण सप्तमी व अष्टमी को मानसी-गंगा में स्नान कर, श्री कृष्ण-बलराम को भी स्नान करा कर इंद्रपूजन की शुरुआत कार्तिक कृष्ण नवमी के दिन से की थी. 

आज श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

आज से प्रतिदिन भीतर की देहरी हल्दी से लीपी जाती है, अन्नकूट के कीर्तन गाये जाते हैं एवं श्रीमस्तक के श्रृंगार में विशेष श्रृंगार मोरपंख की चन्द्रिका एवं कतरा के धराये जाते हैं.

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. इसी श्रृंखला में आज महारास की सेवा का पंचम एवं अंतिम अध्याय का मुकुट का श्रृंगार है जिसमें शरद का दूसरा वैसा ही श्रृंगार और शयन में चन्द्रावलीजी के भाव से ठाकुरजी को श्वेत उपरना धरावे का वर्णन है.

आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार कल की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. 

सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद परचारगी श्रृंगार होता है. 
परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज चिरंजीवी श्री विशालबावा होते हैं. यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं.

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

हमारो देव गोवर्धन पर्वत गोधन जहाँ सुखारो l
मघवाको बलि भाग न दीजे सुनिये मतो हमारो ll 1 ll
बडरे बैठ बिचार मतो कर पर्वतको बलि दीजे l
नंदरायको कुंवर लाडिलो कान्ह कहे सोई कीजे ll 2 ll
पावक पवन चंद जल सूरज वर्तत आज्ञा लीने l
या ईश्वर को कियो होत है कहा इंद्र के दीने ll 3 ll
जाके आसपास सब व्रजकुल सुखी रहे पशुपारे l
जोरो शकट अछूते लेले भलो मतो को टारे ll 4 ll
माखन दूध दह्यो घृत घृतपक लेजु चले व्रजवासी l
अद्भुत रूप धरे बलि भुगतत पर्वत सदा निवासी ll 5 ll
मिट्यो भाग सुरपति जब जान्यो मेघ दीये मुकराई l
‘मेहा’ प्रभु गिरि कर धर राख्यो नंदसुवन सुखदाई ll 6 ll  

साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है. आज सर्व साज शरद का ही आता है परन्तु दीवालगिरी, चंदरवा आदि बिछात नहीं होती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज कल की ही भाँति सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की  रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है. लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज कल जैसा ही भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के  सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं. आज पीठिका के ऊपर हीरे का जड़ाव का चौखटा नहीं धराया जाता है.
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट श्वेत ज़री का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.

Tuesday, 15 October 2024

व्रज - आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (शरद का उत्सव)

व्रज - आश्विन शुक्ल चतुर्दशी (शरद का उत्सव)
Wednesday, 16 October 2024

पूरी पूरी पूरण मासी पूरयो पूरयौ शरदको  चंदा,
पूरयौ है मुरली स्वर केदारो कृष्णकला संपूरण भामिनी रास रच्यो सुख कंदा.

           शरद पूर्णिमा (रासोत्सव)
                    
आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. इसके साथ शाकघर के मीठा में आज के दिन सीताफल का रस भी श्रीजी को विशेष रूप से अरोगाया जाता है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता भोग लगाया जाता है.
आज श्रीजी को सखड़ी में केसर युक्त पेठा, मीठी सेव, श्याम खटाई, कचहरिया आदि आरोगाया जाता हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

साज - “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े शरद-रास कर रहें हैं ऐसी महारासलीला के अद्भुत चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद लट्ठा की बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज सुनहरी और रुपहली ज़री का सूथन व काछनी तथा मेघश्याम रंग की दरियाई (रेशम) की  रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली धरायी जाती है. लाल रंग का रेशमी रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज उत्सव के भारी श्रृंगार धराये जाते है. हीरे की प्रधानता एवं मोती, माणक, पन्ना से युक्त जड़ाव सोने के  सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हीरे का जड़ाव का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. आज चोटीजी नहीं धराई जाती हैं. 
कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती हैं
हीरा का शरद उत्सव वाला कोस्तुभ धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.पट उत्सव का व गोटी जड़ाऊ काम की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में शरद की डांडी की दिखाई जाती हैं.
पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे का जड़ाव का चौखटा धराया जाता है.

Monday, 14 October 2024

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी (द्वादशी क्षय)

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी (द्वादशी क्षय)
Tuesday, 15 October 2024

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. 
आज रास का तृतीय मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.

*उक्त वर्णित श्रृंगार आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को धराया जाता है परन्तु इस वर्ष शरद पूर्णिमा का उत्सव आश्विन शुक्ल चतुर्दशी को होने से और द्वादशी के क्षय के कारण आज त्रयोदशी के दिन धराया जाएगा.*

रास के भाव से आज, कल और परसों (तीनों दिन) मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाएगा.

आज महारास की सेवा का तृतीय अध्याय का मुकुट का श्रृंगार है जिसमें सलीदार ज़री की काछनी, रास के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. मुकुट धराया जाता है एवं श्री यमुनाजी के भाव से शयन में मंगला की भांति चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारांग)

करत हरि नृत्य नवरंग राधा संग,
लेत नवगति भेद, चरचरी तालके ।
परस्पर दरस रसमत्त भये तत्त थेई थेई,
गति लेत संगीत सुरसालके ॥ १ ॥
फरहरत बर्हिवर थरहरत उपहार,
भरहरत भ्रमर वर, विमल वनमालके ।
खसित सित कुसुम शिर, हँसत कुंतल मानों,
लसत कल झलमलत,स्वेद कण भालके ॥ २ ॥
अंग अंगन लटक मटक भृंगन भ्रोंह,
पटक पटताल कोमल चरण चालके ।
चमक चल कुंडलन दमक दशनावली,
विविध विद्युत भाव, लोचन विशालके ॥ ३ ॥
बजत अनुसार द्रिम द्रिम मृदंग निनाद,
झमक झंकार, कटि किंकिणि जालके ।
तरल ताटक तड़ित, नील नव जलद में,
यौं विराजत प्रिया, पास गोपालके ॥ ४ ॥
युवति जन यूथ अगणित, बदन चंद्रमा,
चंद्र भयौ मंद उद्योत तिहिं कालके ।
मुदित अनुराग वश, राग रागिणी,
तान गान गत गर्व, रंभादि सुर बालके ॥ ५ ॥
गगनचर सघन रास मगन बरषत फूल,
बार डारत रत्न जतन भर थालके ।
एक रसना गदाधर न वर्णत बनै,
चरित्र अद्भुत कुँवर गिरिधरन लालके ॥ ६ ॥

साज – श्रीजी में आज रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल हाशियां का सफ़ेद ज़री का सूथन, काछनी एवं सफ़ेद मलमल का रास-पटका धराया जाता है.चोली स्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा - हीरे एवं मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. शरद के दिनो में  चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज हास एवं त्रवल नहीं धराये जाते हैं.
कली कस्तूरी एवं कमल माला धरायीं जाती हैं.
हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं. पट लाल गोटी मोर की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत सारे वस्त्र, शृंगार ठाड़े वस्त्र पिछवाई बड़े कर के  शयन के दर्शन में मंगला के दर्शन की भांति चुंदड़ी का उपरना एवं गोल पाग एवं हीरा मोती के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Saturday, 12 October 2024

व्रज – आश्विन शुक्ल दशमी

व्रज – आश्विन शुक्ल दशमी
Sunday, 13 October 2024            

नित्यलीलास्थ श्री मुरलीधरजी का उत्सव

आज श्री गिरिधरजी के प्रथम लालजी मुरलीधरजी का उत्सव है.

उत्सव के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बन्यौ रास मंडल अहो युवति यूथ मध्यनायक नाचे गावै l
उघटत शब्द तत थेई ताथेई गतमे गत उपजावे ll 1 ll
बनी श्रीराधावल्लभ जोरी उपमाको दीजै कोरी, लटकत कै बांह जोरी रीझ रिझावे l
सुरनर मुनि मोहे जहा तहा थकित भये मीठी मीठी तानन लालन वेणु बजावे ll 2 ll
अंग अंग चित्र कियें मोरचंद माथे दियें काछिनी काछे पीताम्बर शोभा पावे l
‘चतुर बिहारी’ प्यारी प्यारा ऊपर डार वारी तनमनधन, यह सुख कहत न आवे ll 3 ll 

राजभोग दर्शन – 

साज – “द्वे द्वे गोपी बीच बीच माधौ” अर्थात दो गोपियों के बीच माधव श्री कृष्ण खड़े रास कर रहें हैं ऐसी रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई आज श्रीजी में धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी ज़री का सूथन, काछनी एवं रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. 
मिलवा - हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. शरद के दिनो में  चोटी (शिखा) नहीं धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज हास एवं त्रवल नहीं धराये जाते हैं.
कली कस्तूरी एवं कमल माला धरायीं जाती हैं.
हीरा की बग्घी एवं बग्घी की कंठी धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत सारे वस्त्र, शृंगार ठाड़े वस्त्र पिछवाई बड़े कर के  शयन के दर्शन में मंगला के दर्शन की भांति गुलाबी उपरना एवं गोल पाग एवं हीरा मोती के छेड़ान के शृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.
आज से कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा तक आठों दर्शनों में रास के कीर्तन गाये जाते हैं.

Friday, 11 October 2024

व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी

व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी  
Saturday, 12 October 2024

             विजयदशमी (दशहरा)

आज की पोस्ट आज के विजयदशमी पर्व  की अद्भुत विलक्षणता को समाहित करते हुए  कुछ लम्बी परन्तु बहुत सुन्दर व अर्थपूर्ण है. समय देकर पूरी अवश्य पढ़ें

आज असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयदशमी (दशहरा) है.

आज से ही प्रतिदिन खिड़क से गौमाता पधारें इस भाव से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गाय पधरायी जाती है.

हल्की ठण्ड आरम्भ हो गयी है अतः आज से मंगला समय प्रभु स्वरुप की पीठिका पर दत्तु ओढाया जाता है.

आज से तीन माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल एकादशी को तुलसी के बीज बोये जाते हैं एवं उनकी अभिवृद्धि और रक्षा हेतु प्रयत्न किये जाते हैं. कन्यावत उनका पालन कर कार्तिक शुक्ल एकादशी को उनका विवाह प्रभु के साथ किया जाता है. 
इससे श्रीजी में यह परंपरा है कि आज से एक माह तक समस्त पुष्टि-सृष्टि के वैष्णवों की ओर से सभी जीवों के कृतार्थ हेतु मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी के श्रीचरणों में प्रतिदिन सवा लाख (1,25,000) तुलसी दल (पत्र) समर्पित किये जाते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को केसर युक्त चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज से प्रभु को ज़री के वागा धराये जाने आरम्भ हो जाते हैं जो कि बसंत पंचमी से एक दिन पूर्व तक धराये जायेंगे. ठाडे वस्त्र भी दरियाई के आरम्भ हो जाते हैं.

ज़री के वस्त्र प्रभु के श्रीअंग पर चुभें नहीं इस भाव से आज से प्रतिदिन प्रभु को सामान्य वस्त्रों के भीतर आत्मसुख के वागा धराये जाते हैं. 
आत्मसुख के वागा विजयदशमी से कार्तिक शुक्ल दशमी तक (मलमल के) व कार्तिक शुक्ल (देवप्रबोधिनी) एकादशी से डोलोत्सव तक (शीत वृद्धि के अनुसार रुई के) धराये जाते हैं.

आज के दिन सुदर्शनजी की सभी सात ध्वजाएं स्वर्ण की ज़री की चढ़ाई जाती है.

आज निर्गुण भक्तों के भाव की सेवा है अतः श्रीजी को नियम के रुपहली ज़री के श्वेत घेरदार वागा धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरायी जाती है.
आज श्रृंगार में विशेष यह है कि आज प्रभु के दायें श्रीहस्त में प्राचीन पन्ना की जडाऊ कटार धरायी जाती है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. 
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है. आज से राजभोग समय अरोगाये जाने वाले फीका, थपडी के स्थान पर तले जमीकंद (सूरण, अरबी, रतालू व शकरकन्द) अरोगाये जाते हैं.

शक्तिरूपेण भाव से राजभोग समय प्राचीन मगर की खाल से बनी ढाल (जिसमें स्वर्ण का अद्भुत काम किया हुआ है) को तबकड़ी पर प्रभु के सम्मुख रखा जाता है एवं राजभोग पश्चात हटा लिया जाता है.

इसी भाव से एक दिवस पूर्व संध्या काल में प्रभु के स्वरुप के पीछे एक लकड़ी के लम्बे संदूक में विभिन्न आकारों की ढालें, तलवारें, अद्भुत काम से सुसज्जित कटारें, धनुष-बाण, चाकू आदि विभिन्न अस्त्र-शस्त्र रखे जाते हैं जिन्हें दशहरा के दिन संध्या-आरती दर्शन के उपरांत हटा लिया जाता है. 

तृतीय गृह प्रभु श्री द्वारकाधीशजी आदि कुछ पुष्टि स्वरूपों में नवरात्रि के अंतिम दिनों में अस्त्र, शस्त्र प्रभु के सम्मुख रखे जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : नट बिलावल)

आन और आन कहत भेचक रहत व्रजनारी नर l
कटु तिकत आम्ल मधुर खारे सलोने प्रकार खटरसको प्रीतसों आरोगत सुन्दरवर ll 1 ll
गिरिराज बरन बरन शिला जु सहस्त्रन मोदक ठोर ठोर बेसन गुंजा बाबरन l
‘राजाराम’के प्रभु को अचवावन कारन इन्द्र झारी भर लायो जलधर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज रुपहली ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
किलंगी नवरत्न की धराई जाती हैं.
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कली, कस्तूरी वल्लभी आदि माला धरायी जाती हैं.
 श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं. 
दायें श्रीहस्त में ही आज विशेष रूप से पन्ने की कटार (श्री मुरलीधरजी वाली) धरायी जाती है.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.
आरसी शृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दिखाई जाती है.

Thursday, 10 October 2024

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी

व्रज – आश्विन शुक्ल अष्टमी
Friday, 11 October 2024

आठों विलास कियौ श्यामाजू,
शांतनकुंड प्रवेशजू ।
उनकी मुख्य भामा सारंगी,
खेलत जनित आवेशजू  ।।१।।
सूरज मंदिर पूजन कर मेवा,
सामग्री भोगधरी ।
आनँद भरी चली व्रज ललना,
क्रीडन बनकों उमगि भरी ।।२।।
भद्रबन गमन कियौ बनदेवी,,
पूजन चंदनबंदन लीन ।
भोग स्वच्छ फेनी एनी,
सब अंबर अभरनचीने ।३।।
गावत आवत भावत चितवन,
नंदलालके रसमाती ।
कृष्णकला सुंदर मंदिरमें,
युवती भयी सुहाती।।४।।
देखी स्वरूप ठगी ललनाते,
चकचोंधीसी लाई ।
अँचवत दृगन अघात "दास रसिक,"
विहारीन राई ।।५।।

विशेष – आज दुर्गाष्टमी है. नवविलास के अंतर्गत पुष्टिमार्ग में आज अष्टम विलास का लीलास्थल शांतन कुंड है. 
आज के मनोरथ की मुख्य सखी भामाजी (भावनी जी) हैं और सामग्री चंद्रकला (सूतरफेणी) है. यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ में डेढ़ बड़ी आरोगाया जाता हैं.
आज श्रीजी को सखड़ी में अठपुड़ा प्रकार आरोगाया जाता हैं.

नवरात्रि में मर्यादामार्गीय शक्ति पूजन के मूल में शिव है जबकि पुष्टिमार्गीय शक्ति की लीला प्रकार के मूल में स्वयं नंदनंदन प्रभु श्रीकृष्ण है l

‘तिहिंछिन प्रभुजी आप पधारे कोटिक मन्मथ मोहै l’

आज श्रीजी की पिछवाई के सुन्दर चित्रांकन में गोपियाँ समूह में भद्रवन में वनदेवी के पूजन हेतु जा रही हैं किन्तु चिंतन एवं गुणगान नंदनंदन श्रीकृष्ण का ही कर रही हैं. 

आज प्रभु को नियम का मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं जिनका वर्णन मैं आगे भी दूंगा. आज महारास की सेवा का प्रथम मुकुट का श्रृंगार है जिसमें प्रभु प्रथम वेणुनाद करते हैं, गोपियाँ प्रश्न करती हैं, उपदेश तथा प्रणय गीत होते हैं जिससे रास के भाव से आती गोपीजनों के चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. 

प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. इस उपरांत निकुँज लीला में भी मुकुट धराया जाता है. मुकुट उद्बोधक है एवं भक्ति का उद्बोधन कराता है.

अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (श्रीजी का पाटोत्सव) तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं.

जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

दान और रास के भाव के मुकुट-काछनी के श्रृंगार में पीताम्बर (जिसे रास-पटका भी कहा जाता है) धराया जाता है जबकि गौ-चारण के भाव में गाती का पटका (जिसे उपरना भी कहा जाता है) धराया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

नागरी नागरसो मिल गावत रासमें सारंग राग जम्यो l
तान बंधान तीन मूर्छना देखत वैभव काम कम्यौ ll 1 ll
अद्भुत अवधि कहां लगी बरनौ मोहन मूरति वदन रम्यो l
भजि ‘कृष्णदास’ थक्ति नभ उडुपति गिरिधर कौतुक दर्प दम्यो ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज वेणुनाद सुन कर दोनों दिशाओं से प्रभु की ओर आते गोपियों के समूह की, रास के प्रारंभ के भाव की भद्रवन की लीला के अद्भुत चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी छापा के
 रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, एवं काछनी धरायी जाती है. चोली  श्याम सुतरु की धरायी जाती हैं. अमरसी रंग के छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित रास-पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत छापा के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर डाख का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
आज अलख (घुंघराले केश) धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी एवं कमल माला धरायी जाति हैं.रंग-बिरंगी पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट अमरसी एवं गोटी नाचते मोर की  आती हैं.

Wednesday, 9 October 2024

व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी

व्रज - आश्विन शुक्ल सप्तमी
Thursday, 10 October 2024

सातौ विलास कियौ श्यामाजू, गह्वर वनमें मतौजू कीन ।
मुख्य कृष्णावती सहचरी, लघु लाघव अति ही प्रवीन ।। १ ।।
बनदेवी हे गुंजा कुंजा, पुहुपन गुही सुमाल ।
चंद्रावली प्रमुदित बिहसत मुख, मुख ज्यों मुनिया लाल ।। २ ।।
रच्यौ खेल देवी ढिंग युवती, कोक कला मनोज ।
अति आवेश भये अवलोकत, प्रगटे मदन सरोज ।। ३ ।।
कोऊ भुजधर कर चरन उर कोऊ, अंग अंग मिलाय ।
कुंवर किशोरकिशोरी रसिकमणि, दास रसिक दुलराय ।। ४ ।।

विशेष – आज नवविलास के अंतर्गत सप्तम विलास का लीला स्थल गहवर वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी कृष्णावतीजी हैं और सामग्री वड़ी एवं बूंदी है. 
यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

आगम के शृंगार

इस वर्ष आश्विन शुक्ल नवमी (शनिवार, 12 अक्टूबर 2024) के दिन विजय दशमी (दशहरा) का पर्व है और अष्टमी (शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024) के दिन नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है अतः उत्सव पूर्व धराया जाने वाला आगम का श्रृंगार आज सप्तमी के दिन धराया जाएगा.

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार प्रभु को अनुराग के भाव से धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग के छापा वाली सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी और हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के छापा के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के  कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
आज चार माला पन्ना की धराई जाती हैं.
 विविध पुष्पों की एक एवं दूसरी गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी छोटी सोना की आती है.
आरसी शृंगार में सोना की डाँडी की दिखाई जाती है.

Tuesday, 8 October 2024

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी

व्रज – आश्विन शुक्ल षष्ठी
Wednesday, 09 October 2024

छठो विलास कियो श्यामा जु 
गौधन वन चली भामा जु ।
पहेरे रंग रंग सारी  हाथन पूजन थारी ।
ताकी मुख्य सहचरी राई  खेलनमें बहुत सुधराई ।।१।।
चली बन बन बिहसी सुंदरी  हार कंकन जगमगे ।
आई मंदिर पूजन देवी  भोग सिखरन सगमगे ।।२।।
ता समे प्रभु पधारे  कोटि मन्मथ मोहे ही ।
निरखी सखियन कमल मुख मानो  निर्धन धन जो सोहे ।।३।।
खेलको आरंभ कीनो  राधा माधो बीच किये ।
वाकी परछाई परी तब रसिक चरनन चित दिये ।।४।।

विशेष - आज छठे विलास का लीला स्थल गोवर्धन वन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी राईजी हैं और सामग्री मोहनथाल एवं दूधपूवा है यद्यपि यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है. 

आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के बहूजी का उत्सव है जिसे राणीजी का उत्सव भी कहा जाता हैं.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से सिकोरी (मूंगदाल, मावे, इलायची के मीठे मसाले से निर्मित पूरणपूड़ी जैसी सामग्री) अरोगायी जाती है.
आज श्रीजी को सखड़ी में पत्तरवेला प्रकार आरोगाया जाता हैं.

श्रीजी में सभी देवों को मान दिया जाता है और महाप्रभुजी ने भी भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चार (श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीवामन एवं श्रीनृसिंह) को मान्यता दी है. 
इसी सन्दर्भ में आज श्रीजी में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्रजी को मान देती आज श्री रामचंद्रजी के जीवन चरित्र का दर्शन कराती पिछवाई धरायी जाती है. 
इसी प्रकार रामभक्त हनुमान जी के गुणगान एवं अन्य रामभक्त जानकीजी को खोज रहे हैं ऐसी लीला के कीर्तन संध्या-आरती में मारू राग में गाये जाते हैं.

पायं तो पूजि चले रघुनाथ  
हनुमान आदि ले बडरे योद्धा लीने साथ।।
से तू  बांधि के लंका लूटी, रावण के काटे माथ।
कृष्ण दास सीता घर लाये, विभीषण  कियो सनाथ।।

आज प्रभु श्री रामचन्द्रजी के पराक्रम की भावना को दर्शाता मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के विषय में मैं पहले भी कई बार बता चुका हूँ कि मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) के मेल से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

आज के इस श्रृंगार की विशेषता यह है कि वर्षभर में केवल आज मल्लकाछ के ऊपर चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि विशिष्ट वीर-रस का धोतक है. 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन (राग : सारंग)

वृन्दावन सघनकुंज माधुरी लतान तर जमुना पुलिनमे मधुर बाजे बांसुरी l
जबते धुनि सुनी कान मानो लागे मैंनबान, प्राननकी कासौ कहू पीर होत पांसुरी ll 1 ll
व्याप्यो जु अनंग ताते अंग सुधि भूल गई कौऊ वंदो कोऊ निंदो करौ उपहासरी l
ऐसे ‘व्रजाधीश’सों प्रीति नई रीति बाढ़ी जाके उर गढ़ रही प्रेम पुंज गांसरी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में प्रभु श्री रामचंद्रजी के जन्म से रावण वध एवं उनके राज्याभिषेक तक के विविध प्रसंगों को दर्शाते चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग के सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं इसी प्रकार गुलाबी रंग के छापा का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं चड़ी आस्तीन का खुलेबंध का चाकदार वागा धराया जाता है. आज पटका लाल रंग का एक ही धराया जाता हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल रंग के छापा की टिपारा की टोपी के ऊपर सिरपैंच, मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के कुंडल धराये जाते हैं.
आज चड़ी आस्तीन का बागा धराने से हीरा की एक ही गोल पहुची धराई धराई जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी  व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

Monday, 7 October 2024

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी

व्रज – आश्विन शुक्ल पंचमी
Tuesday, 08 October 2024

पाँचो विलास कियौ शयामाजू,
कदली वन संकेत ।
ताकी मुख्य सखी संजावलि,
पिया मिलनके हेत ।।१।।
चली रली उमगी युवती सब,
पूजन देवी निकसीं ।
धूप,दीप,भोग,संजावलि,
कमल कली सों विकसीं ।।२।।
आनँद भर नाचत गाबत,
वधू रस में रस उपजाती ।
मंडलमें हरी ततच्छि आये,
हिल मिल भये एकपाँती ।।३।।
द्वै युग जाम श्यामश्या
संग भाभिनी यह रस पीनौ ।
उनकी कृपा द्रष्टि अवलोकत,
रसिक दास रस भीनौ ।।४।।

विशेष - आज पंचम विलास का लीला स्थल कदलीवन है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी संजावलीजी हैं और सामग्री मनोहर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधपूआ है. 

मनोर के लड्डू श्रीजी में नहीं अरोगाये जाते परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को दोनों सामग्रियां अरोगायी जाती है. 

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधपूआ (दूध में मेदे के घोल से सिद्ध मालपूए जैसी सामग्री) आरोगाए जाते हे 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

कहा कहो लाल सुघर रंग राख्यो मुरलीमें l
तान बंधान स्वर भेदलेत अतिजित
बिचबिच मिलवत विकट अवधर ll 1 ll
चोख माखनीकी रेख तामे गायन मिलवत लांबे लांबे स्वर l
बिच बिच लेत तिहारो नाम सुनरी सयानी,
‘गोविंदप्रभु’ व्रजरानी के कुंवर ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्याम रंग के छापा की, चाँद-सितारे और सूर्य की छापवाली, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें पीठिका के आसपास पुष्प-पत्रों का हांशिया बना है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम रंग के छापा का सूथन, श्याम छापा के वस्त्र की चोली एवं खुलेबंद का चाकदार वागा धराये जाते हैं जो कि सफेद ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (छेड़ान) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर लाल रंग का छापा वाला ग्वालपगा के ऊपर सिरपैंच, पगा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में सोना की लोलकबिन्दी धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की विविध रंगों वाले पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्याम व गोटी बाघ-बकरी की आती है. 

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...