व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी
Saturday, 12 October 2024
विजयदशमी (दशहरा)
आज की पोस्ट आज के विजयदशमी पर्व की अद्भुत विलक्षणता को समाहित करते हुए कुछ लम्बी परन्तु बहुत सुन्दर व अर्थपूर्ण है. समय देकर पूरी अवश्य पढ़ें
आज असत्य पर सत्य की विजय का पर्व विजयदशमी (दशहरा) है.
आज से ही प्रतिदिन खिड़क से गौमाता पधारें इस भाव से प्रभु के सम्मुख काष्ट (लकड़ी) की गाय पधरायी जाती है.
हल्की ठण्ड आरम्भ हो गयी है अतः आज से मंगला समय प्रभु स्वरुप की पीठिका पर दत्तु ओढाया जाता है.
आज से तीन माह पूर्व आषाढ़ शुक्ल एकादशी को तुलसी के बीज बोये जाते हैं एवं उनकी अभिवृद्धि और रक्षा हेतु प्रयत्न किये जाते हैं. कन्यावत उनका पालन कर कार्तिक शुक्ल एकादशी को उनका विवाह प्रभु के साथ किया जाता है.
इससे श्रीजी में यह परंपरा है कि आज से एक माह तक समस्त पुष्टि-सृष्टि के वैष्णवों की ओर से सभी जीवों के कृतार्थ हेतु मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी के श्रीचरणों में प्रतिदिन सवा लाख (1,25,000) तुलसी दल (पत्र) समर्पित किये जाते हैं.
मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को केसर युक्त चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.
आज से प्रभु को ज़री के वागा धराये जाने आरम्भ हो जाते हैं जो कि बसंत पंचमी से एक दिन पूर्व तक धराये जायेंगे. ठाडे वस्त्र भी दरियाई के आरम्भ हो जाते हैं.
ज़री के वस्त्र प्रभु के श्रीअंग पर चुभें नहीं इस भाव से आज से प्रतिदिन प्रभु को सामान्य वस्त्रों के भीतर आत्मसुख के वागा धराये जाते हैं.
आत्मसुख के वागा विजयदशमी से कार्तिक शुक्ल दशमी तक (मलमल के) व कार्तिक शुक्ल (देवप्रबोधिनी) एकादशी से डोलोत्सव तक (शीत वृद्धि के अनुसार रुई के) धराये जाते हैं.
आज के दिन सुदर्शनजी की सभी सात ध्वजाएं स्वर्ण की ज़री की चढ़ाई जाती है.
आज निर्गुण भक्तों के भाव की सेवा है अतः श्रीजी को नियम के रुपहली ज़री के श्वेत घेरदार वागा धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरायी जाती है.
आज श्रृंगार में विशेष यह है कि आज प्रभु के दायें श्रीहस्त में प्राचीन पन्ना की जडाऊ कटार धरायी जाती है.
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (जलेबी-इलायची) के लड्डू और विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
सखड़ी में केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है. आज से राजभोग समय अरोगाये जाने वाले फीका, थपडी के स्थान पर तले जमीकंद (सूरण, अरबी, रतालू व शकरकन्द) अरोगाये जाते हैं.
शक्तिरूपेण भाव से राजभोग समय प्राचीन मगर की खाल से बनी ढाल (जिसमें स्वर्ण का अद्भुत काम किया हुआ है) को तबकड़ी पर प्रभु के सम्मुख रखा जाता है एवं राजभोग पश्चात हटा लिया जाता है.
इसी भाव से एक दिवस पूर्व संध्या काल में प्रभु के स्वरुप के पीछे एक लकड़ी के लम्बे संदूक में विभिन्न आकारों की ढालें, तलवारें, अद्भुत काम से सुसज्जित कटारें, धनुष-बाण, चाकू आदि विभिन्न अस्त्र-शस्त्र रखे जाते हैं जिन्हें दशहरा के दिन संध्या-आरती दर्शन के उपरांत हटा लिया जाता है.
तृतीय गृह प्रभु श्री द्वारकाधीशजी आदि कुछ पुष्टि स्वरूपों में नवरात्रि के अंतिम दिनों में अस्त्र, शस्त्र प्रभु के सम्मुख रखे जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : नट बिलावल)
आन और आन कहत भेचक रहत व्रजनारी नर l
कटु तिकत आम्ल मधुर खारे सलोने प्रकार खटरसको प्रीतसों आरोगत सुन्दरवर ll 1 ll
गिरिराज बरन बरन शिला जु सहस्त्रन मोदक ठोर ठोर बेसन गुंजा बाबरन l
‘राजाराम’के प्रभु को अचवावन कारन इन्द्र झारी भर लायो जलधर ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में हरे रंग के आधार वस्त्र पर पुष्प-पत्रों की लता के सुरमा-सितारा के कशीदे के ज़रदोज़ी के भरतकाम वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज रुपहली ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे दरियाई के धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का धराया जाता है.
श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक की प्रधानता एवं जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर चीरा (रुपहली ज़री की पाग) के ऊपर माणक का पट्टीदार सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
किलंगी नवरत्न की धराई जाती हैं.
स्वर्ण का जड़ाव का चौखटा पीठिका के ऊपर धराया जाता है.
कली, कस्तूरी वल्लभी आदि माला धरायी जाती हैं.
श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाब एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक हीरा का) धराये जाते हैं.
दायें श्रीहस्त में ही आज विशेष रूप से पन्ने की कटार (श्री मुरलीधरजी वाली) धरायी जाती है.
पट रुपहली ज़री का व गोटी चांदी की आती है.
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