By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 8 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी 
Sunday, 09 March 2025

आवत लाल गुपाल लिये सूने,
 मग मिली इक नार नवीनी।
त्यौं 'रसखानि' लगाई हिय भट् ,
मौज कियौ मनमांहि अधीनी।।
सारी फटी सुकुमारी हटी अंगिया ,
दरकी सरकी रंगभीनी।
गाल गुलाल लगाइ कै अंक ,
रिझाई बिदा कर दीनी।।

आप (तिलकायत श्री) के द्वादशी के श्रृंगार

फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो गये हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये शृंगार  द्वितीया पाट तक धराये जायेंगे.  ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी शृंखला में आज चतुर्दशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.

सभी समय की झारीजी यमुनाजल से भरी जाएगी. दो समय आरती थाली में की जाएगी.

आज नियम का श्रृंगार है जिसमें श्वेत लाल छींट के बसंत के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर चीला वाली गोल पाग एवं मोर का सुनहरी फ़ोंदना  वाला कतरा धराया जाता हैं. 

फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. 

इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में घेवर अरोगाया जाता हैं.

राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है.
 
प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : जेतश्री / हिंडोल)

झुलत युग कमनीय किशोर सखी चहुँ ओर झुलावत डोल l
ऊंची ध्वनि सुन चकृत होत मन सब मिल गावत राग हिंडोल ll 1 ll
एक वेष एक वयस एक सम नव तरुनि हरनी दग लोल l
भांत भांत कंचुकी कसे तन वरन वरन पहेरे वलिचोल ll 2 ll
वन उपवन द्रुमवेळी प्रफुल्लित अंबमोर पिकन कर कलोल l 
तैसेही स्वर गावत व्रज वनिता झुमक देत लेत मन मोल ll 3 ll
सकल सुगंध सवार अरगजा आई अपने अपने टोल l
तक तकजु पिचकाईन छिरकत एक भरे भर कनक कचोल ll 4 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लाल छींट का बसंत का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे हरे रंग के धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर मच्छीघाट का सुनहरी कतरा  एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है.
पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है. 
आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी डांडी की आती है. 
भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

Friday, 7 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी 
Saturday, 08 March 2025

सुन्दर स्याम सुजान सिरोमनि देहु कहा कहि गारी जू।।बड़े लोग के औगुन ब्ररनत सकुच होत जिय भारी।।1।।
को करि सके पिता को निर्णय जाति पांति को जानें।। जिनके जिय जेसी बनि आवे तेसी भांति बखानें।।2।।
माया कुटिल नटी तन चितयो कोन बड़ाई पाई।।उन चंचल सब जगत विगोयो जहाँ तहाँ भई हँसाई।।3।।
तुम पुनि प्रगट होई बारेते कोन भलाई कीनी।।मुक्ति वधू उत्तम जन लायक ले अधमन कों दीनी।।4।।
बसि दस मास गर्भ माता के उन आशा करी जाये।।सो घर छांडि जीभ के लालच व्हे गाये पूत पराये।।5।।
बारेही ते गोकुल गोपिन के सूने ग्रह तुम डाटे।।व्हे निशंक तहाँ पेठि रंकलो दधि के भाजन चाटे।।6।।
आपु कहाय बड़े के ढोटा बात कृपन लों मांग्यो।।मनभंग पर दूजें याचत नेंक संकोच न लाग्यो।।7।।
लरिकाई तें गोपन के तुम सूने भवन ढढोरे।। यमुना न्हात गोपकन्या के निपट निलज पट चोरे।।8।।
वेन बजाय विलास कियो बन बोलि पराई नारी।।वे बतें मुनि राजसभा में व्हे निसंक विस्तारी।।9।।
सब कोउ कहत नंद बाबा को घर भर्यो रतन अमोले।। गिरे गंजा सिर मोर पखौवा गायन के संग डोले।।10।।
राजसभा को बेठनहारो कोन त्रियन संग नाचे।। अग्रज सहित राजमारग में कुबजा देखत राचे।।11।।
अपनी सहोदरा आपुही छल करि अर्जुन संग भजाई।।भोजन करि दासी सुत के घर जादों जाति लजाई।।12।।
ले ले भजे राजन की कन्या यहधों कोन भलाई।।सत्यभामा जु गोत में ब्याही उलटी चाल चलाई।।13।।
बहनि पिता की सास कहाई नेंक हू लाज न आई।। एते पर दीनी जु बिधाता अखिल लोक ठकुराई।।14।।
मोहन वशीकरन चट चेटक यंत्र मंत्र सब जाने।।ताते भलें भलें करी जाने भलें भलें जग माने।।15।।
वरनों कहा यथामती मेरी वेद हू पार न पावे।।दास गदाधर प्रभु की महिमा गावत ही उर आवे।।16।।

डोलोत्सव के आपके (तिलकायत श्री) के श्रृंगार आरम्भ 

आज से प्रतिदिन झारीजी सभी समय यमुनाजल से भरी जाएगी. प्रतिदिन दो समय (राजभोग व संध्या) की आरती थाली में की जाएगी और डोलोत्सव की नौबत की बड़ी बधाई बैठेगी.

आज से द्वितीया पाट के दिन तक प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो जाते हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.

इन श्रृंगार के अधिकृत श्रृंगारी स्वयं पूज्य श्री तिलकायतजी होते हैं.

आज नियम का श्रृंगार है जिसमें दोहरी किनारी वाले श्वेत चौखाना वस्त्र के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर लूम की किलंगी धराये जाते हैं. 

विगत कुछ दिनों से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो गयी है. इनमें से कुछ सामग्रियां आज से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में प्रभु को अरोगायी जाती हैं. 

इस श्रृंखला में सर्वप्रथम आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डु अरोगाये जाते हैं.  

आज से राजभोग के खेल में टिपकियाँ नहीं की जाती और भारी खेल होता है और अबीर की टिपकियां की जाती है. आज प्रभु की दाढ़ी रंगी जाती है और खेल के समय गुलाल भी फेंट (पोटली) में भर कर वैष्णवों पर उड़ाई जाती है.
प्रभु की चोली पर खेल नहीं होता.  

कीर्तनों में कल (दशमी) तक अष्टपदी गायी जाती है और परसों से डोल के भाव के कीर्तन आरंभ होंगे.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : काफी) 

गोपकुमार लिये संग हो हो होरी खेले व्रजनायक l ईत व्रजयुवति यूथ मधिनायक श्रीवृषभान किशोरी ll 1 ll
मोहन संग डफ दुंदुभी सहनाई सरस धुनि राजे l बीचबीच युवती मनमोहन महुवर मुरली बाजे ll 2 ll
श्याम संग मृदंग झांझ आवज आन भांत बजावे l किन्नरी बीन आदि बाजे साजे गिनत न आवे ll 3 ll
ईत व्रजकुंवर करनी कर राजत रत्न खचित पिचकाई l उत करकमल कुसुम नवलासी गावत गारि सुहाई ll 4 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत चौखाना वस्त्र का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्वेत रंग का कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे लाल रंग के धराये जाते हैं. 
सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सफ़ेद रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर पट्टीदार सिरपैंच, लाल गोटी, लूम की सुनहरी किलंगी तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में बटदार आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

Thursday, 6 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल अष्टमी 
Friday, 07 March 2025

होलकाष्टकारंभ

विशेष –आज से होलकाष्टक प्रारंभ हो जाता है. होली के आठ दिन पूर्व शुरू होने वाले होलकाष्टक के दिनों में कोई लौकिक शुभ कार्य नहीं किये जाते.

व्रज में इस अष्टमी, नवमी व दशमी से होली तक नंदगांव व बरसाना में विश्वप्रसिद्द लट्ठमार होली खेली जाती है. इसे होरंगा भी कहा जाता है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक व्रज में जाते हैं.

आज श्री नवनीतप्रियाजी में बगीचा उत्सव है. आज के दिन प्रभु श्री नवनीतप्रियाजी मंदिर में श्री महाप्रभुजी की बैठक वाले बगीचे में फाग खेलने को पधारते हैं. 

व्रज में नन्दगाँव के पास नंदरायजी का बगीचा है जहाँ नंदकुमार खेलने के लिए पधारते थे इस भाव से आज बैठक के बगीचे को नंदरायजी का बगीचा मानकर श्री नवनीतप्रियाजी वहां राजभोग व उत्सव भोग अरोग कर फाग खेलने पधारते हैं.

लाड़ले लाल बगीचे में पधारते हैं अतः श्रीजी को भी आज नियम का मुकुट काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी में आज से गोविंदस्वामी के गारी के पद गाये जाते हैं.

आज प्रभु को चोवा की चोली, हरे मलमल के सूथन, काछनी व पीताम्बर धराये जाते हैं. 
श्रृंगार दर्शन में कमल के भाव की चित्रांकन वाली पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर दिया जाता है.

साज – आज श्रीजी में फ़िरोज़ी रंग के आधार-वस्त्र पर कमल के फूलों के चित्रांकन वाली सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. यह पिछवाई केवल श्रृंगार दर्शन में ही धरायी जाती है क्योंकि उसके बाद सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल अबीर से खेल किया जाता है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे मलमल  का सूथन, काछनी, रास-पटका एवं चोवा की चोली धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (लट्ठा) के धराये जाते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे एवं मेघश्याम मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मीना का मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मीना के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मीना की शिखा (चोटी) धरायी जाती है. 
दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. पीले एवं लाल पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, लहरिया के वेणुजी दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

Wednesday, 5 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल सप्तमी
Thursday, 06 March 2025

प्रभु मथुराधीशजी (कोटा) का पाटोत्सव, पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का जन्मदिवस

विशेष - आज कोटा में विराजित निधि स्वरुप श्री मथुराधीशजी का पाटोत्सव है. 
इसके अतिरिक्त आज श्रीजी में पुष्टिमार्गीय प्रधान गृहाधीश परमपूज्य गौस्वामी तिलकायत श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) का जन्मदिवस है.

दोनों शुभ प्रसंगों की श्रीमान तिलकायत, चिरंजीवी विशाल बावा व समस्त पुष्टि-सृष्टि को बधाई

श्रीजी का सेवाक्रम - तिलकायत का जन्मदिन होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

आज प्रभु को विशेष रूप से पतंगी चाकदार वागा और श्रीमस्तक पर दुमाला के ऊपर सेहरे का श्रृंगार धराया जाता है. 
श्रृंगार दर्शन में सेहरे के भाव की चित्रांकन की पिछवाई आती है जिसे ग्वाल दर्शन में बड़ा कर लिया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी व शाकघर में सिद्ध विविध प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं. 

शृंगार दर्शन 

साज – श्रीजी में आज संकेत वन में विवाह लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पतंगी रंग का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं. 
ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, मेघश्याम एवं सफ़ेद मीना व स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर स्वर्ण का मीनाकारी का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दुमाला के दायीं ओर सेहरे की मीना की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
एक चन्द्रहार व दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. श्वेत एवं पीले पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी चाँदी की आती है.

Tuesday, 4 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल षष्ठी 
Wednesday, 05 March 2025

गुलाबी लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर लाल गोल पाग पर  बाँकी गोल चंद्रिका के शृंगार

प्रभु के श्री अंग पर एक गुलाल की व एक अबीर की पोटली बाँधी जाती है.

राजभोग में गुलाल, अबीर एवं चन्दन से अन्य दिनों की अपेक्षा भारी खेल किया जाता है. खेल के समय फेंट से गुलाल उड़ायी जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत) (अष्टपदी)

खेलत वसंत गिरिधरनलाल, कोकिल कल कूजत अति रसाल ll 1 ll
जमुनातट फूले तरु तमाल, केतकी कुंद नौतन प्रवाल ll 2 ll
तहां बाजत बीन मृदंग ताल, बिचबिच मुरली अति रसाल ll 3 ll
नवसत सज आई व्रजकी बाल, साजे भूखन बसन अंग तिलक भाल ll 4 ll
चोवा चन्दन अबीर गुलाल, छिरकत पिय मदनगुपाल लाल ll 5 ll
आलिंगन चुम्बन देत गाल, पहरावत उर फूलन की माल ll 6 ll
यह विध क्रीड़त व्रजनृपकुमार, सुमन वृष्टि करे सुरअपार ll 7 ll
श्रीगिरिवरधर मन हरित मार, ‘कुंभनदास’ बलबल विहार ll 8 ll

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पिले रंग के धराये जाते हैं. पटका लाल रंग का धराया जाता हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में मीना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
 गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

Monday, 3 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल पंचमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल पंचमी
Tuesday, 04 March 2025

फागुन में रसिया घर बारी फागुन में ।
हो हो बोले गलियन डोले गारी दे दे मत वारी ।।१।।
लाजधरी छपरन के ऊपर आप भये हैं अधिकारी ।
"पुरुषोत्तम" प्रभु की छबि निरखत ग्वाल करे सब किलकारी ।।२।।

श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर फेटा का साज के शृंगार

राजभोग खेल में प्रभु की कटि में गुलाल व की पोटली बांधी जाती है. आज प्रभु के कपोल पर गुलाल अबीर लगाये जाते  जाते है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन (राग : बिलावल) 

बरसाने की गोपी मागन फगुवा आई l कियो हे जुहार नंदजुको भीतर भवन बुलाई ll 1 ll
एक नाचत एक गावत एक बजावत तारी l काहे मोहन राय दूरि रहे मैयाय दिवावत गारी ll 2 ll
आदर देत व्रजरानी अब निज भागि हमारे l प्रीतम सजन कुलवधू पाये दरस तुम्हारे ll 3 ll
सुने कुंवरि मेरी राधे अबही जिन मुख मांडो l जेंवत श्याम सखन संग जिन पिचकाई छांडो ll 4 ll
केसरि बहोत अरगजा कित मोहन पर डारो l सीत लगे कोमल तन तुमही चित्त विचारो ll 5 ll.....अपूर्ण

साज - आज श्रीजी में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा के सुथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, मोरशिखा, दोहरा कतरा एवं बायीं और शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती है.
 पीले एवं लाल पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. फेटा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं. 

Sunday, 2 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी 
Monday, 03 March 2025

मोहन होहो होहो होरी।।
काल्ह हमारे आंगन गारी देआयो सो कोरी।।1।।
अब क्योंदूर बैठे जसोदा ढिंग निकसो कुंज बिहारी।।
उमगउमग आईं गोकुल की वे सब वाई दिन बारी।।2।।
तबही लाल ललकार निकारे रूप सुधाकी प्यासी।।
लपट गई घनश्याम लालसों चमक चमक चपलासी।।3।।
काजर दे भजिभार भरुवाकें हँसहँस ब्रजकीनारी।।
कहें रसखान एक गारीपर सो आदर बलिहार।।4।।

श्वेत लट्ठा के घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर केसरी गोल पाग पर मोर चंद्रिका के शृंगार

कीर्तनों में अष्टपदी गाई जाती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन खेलो होरी फाग सबे मिल झुमक गावो झुमक गावो ll ध्रु ll
संग सखा खेलन चले वृषभान गोप की पौरी l श्रवन सुनत सब गोपिका गई है कुंवरि पे दोरी ll 1 ll
मोहन राधा कारने गहि लीनो नौसर हार l हार हेत दरसन भयो सब ग्वालन कियो जुहार ll 2 ll
राधा ललितासो कह्यो नेंक हार हाथ ते लेहूं l चंद्रभागा सो यों कह्यो नेंक इनही बैठन देहु ll 3 ll
बहोत भांति बीरा दीये कीनों बहोत सन्मान l राधा मुख निरखत हरि मानो मधुप करत मधुपान ll 4 ll
मोहन कर पिचकाई लीये बंसी लिये व्रजनारी l जीती राधा गोपिका सब ग्वालन मानी हार ll 5 ll
फगुआ को पट खेंचते मुरली आई हाथ l फगुआ दीये ही बने तुम सुनो गोकुल के नाथ ll 6 ll
मधु मंगल तब टेरियो लीनो सुबल बुलाय l मुरली तो हम देयगी प्यारी, राधा को सिर नाय ll 7 ll
ढोल मुरंज डफ बाजही और मुरलीकी घोर l किलकत कौतुहल करे मानो आनंद निर्तत मोर ll 8 ll
राधा मोहन विहरही सुन्दर सुघर स्वरुप l पोहोप वृष्टि सुरपति करें तुम धनि धनि व्रज के भूप ll 9 ll
होरी खेलत रंग रह्यो चले यमुना जल न्हान l सिंधपोरी ठाड़े हरी गोपी वारि वारि दे दान ll 10 ll
नरनारी आनंद भयो तनमन मोद बढाय l श्रीगोकुलनाथ प्रताप तें जन ‘श्यामदास’ बलिजाय ll 11 ll

साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं केसरी कटि-पटका धराये जाते हैं. 
लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. 

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के लाल, सफ़ेद मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पाग एवं कपोल पर अबीर गुलाल से खेल खिलाया जाता है. लाल एवं सफ़ेद पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है. 

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. शयन समय श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं.

Saturday, 1 March 2025

व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया

व्रज - फाल्गुन शुक्ल तृतीया
Sunday, 02 March 2025
                   
नेंक मोहोंड़ो मांड़न देहो होरी के खिलैया ।
जो तुम चतुर खिलार कहावत अंगुरीन को रस लेहौ ।।1।।
उमड़े घुमड़े फिरत रावरे सकुचत काहे हो ।
सूरदास प्रभु होरी खेलों फगुवा हमारो देहो ।।2।।

पीले लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर टिपारा का श्रृंगार

राजभोग खेल में एक गुलाल व एक अबीर की पोटली प्रभु की कटि पर बांधी जाती है. प्रभु के कपोल भी मांडे जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : गोरी) 

श्रीवल्लभकुल मंडन प्रकटे श्री विट्ठलनाथ l 
जे जन चरन न सेवत तिनके जन्म अकाथ ll 1 ll
भक्ति भागवत सेवा निसदिन करत आनंद l
मोहन लीला-सागर नागर आनंद कंद ll 2 ll
सदा समीप विराजे श्री गिरिधर गोविंद l 
मानिनी मोद बढ़ावे निजजन के रवि चंद ll 3 ll
श्रीबालकृष्ण मनरंजन खंजन अंबुज नयन l 
मानिनी मान छुड़ावे बंक कटाच्छन सेन ll 4 ll
श्रीवल्लभ जगवल्लभ करूणानिधि रघुनाथ l
और कहां लगि बरनो जगवंदन यदुनाथ ll 5 ll
श्रीघनश्याम लाल बल अविचल केलि कलोल l
कुंचित केस कमल मुख जानो मधुपन के टोल ll 6 ll
जो यह चरित्र बखाने श्रवन सुने मन लाय l
तिनके भक्ति जू बाढ़े आनंद घोस विहाय ll 7 ll
श्रवन सुनत सुख उपजत गावत परम हुलास l
चरण कमलरज पावन बलिहारी ‘कृष्णदास’ ll 8 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, अबीर व चन्दन से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाडे वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. श्वेत मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर पीले रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मीना के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
बायीं और मीना की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकंठ में अक्काजी की दो मालाजी धरायी जाती है. लाल एवं श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट चीड़ का व गोटी फाल्गुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े किये जाते हैं. टिपारा बड़ा नहीं किया जाता व लूम तुर्रा भी नहीं धराये जाते हैं. 

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी  Sunday, 09 March 2025 आवत लाल गुपाल लिये सूने,  मग मिली इक नार नवीनी। त्यौं 'रसखानि' लगाई हिय भट् , मौज क...