By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 30 June 2025

व्रज - आषाढ़ शुक्ल षष्ठी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल षष्ठी 
Tuesday, 01 July 2025

देखो माई ये बड़भागी मोर ।
जिनके पंखको मुकुट बनत है सिर धरे नंदकिशोर।।१।।
ये बड़भागी नंद यशोदा पुण्य कीये भर झोर ।
वृंदावन हम क्यों न भई है लागत पग की ओर ।।२।।

कसूंभा (छठ) षष्ठी 

विशेष – आज का दिन पुष्टिमार्ग में विशेषकर पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ नाथद्वारा में अतिविशिष्ट है.

सर्वप्रथम आज श्री वल्लभाचार्यजी के लौकिक पितृचरण श्री लक्ष्मणभट्टजी का प्राकट्योत्सव है.

आज वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री 108 श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का गादी उत्सव हैं. आज के दिन विक्रम संवत 2057 में आप गादी बिराजे थे.

आज भक्त ईच्छापूरक प्रभु श्रीनाथजी ने श्री गुसाईजी को विप्रयोगानुभव से मुक्त कर, दर्शन दे कर उनकी सेवा को पुनः अंगीकार किया था अतः अनुराग स्वरुप लाल (कसुम्भल) रंग के वस्त्र धराये जाते हैं और प्रभु के यशप्रसार के भाव से ठाड़े वस्त्र श्वेत धराये जाते हैं. आज के दिन ही चन्द्र-सरोवर के विप्र-योग अनुभव के पश्चात् श्री गुंसाईजी का सेवा में पुनः प्रवेश हुआ था. 
अष्टसखा कीर्तनकार कृष्णदासजी ने आज के दिन ही निम्नलिखित प्रसिद्द कीर्तन गाया एवं श्री गुंसाईजी ने कृष्णदासजी को प्रभु से साक्षात् कराया.

“परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन करत कृपा निज हाथ दे माथे l
जे जन शरण आय अनुसरही गहे सोंपत श्री गोवर्धननाथ ll 1 ll 
परम उदार चतुर चिंतामणि राखत भवधारा बह्यो जाते l
भजि ‘कृष्णदास’ काज सब सरही जो जाने श्री विट्ठलनाथे ll 2 ll”

इसके अतिरिक्त आज धरायी जाने वाली पिछवाई के सन्दर्भ में एक सुंदर प्रसंग है. 

श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के क़सीदा वाली प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है. बहुत कम लोग जानते हैं कि यह दो भागों में बनी हुई है.

कई वर्षों पूर्व एक वैष्णव ने इस पिछवाई का आधा भाग जो कि जापान के एक काफी विशिष्ट कपड़े पर निर्मित था जिसमें गर्दन उठा कर कूकते मयूरों का सुन्दर चित्रांकन था. 
तत्कालीन गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी को ये वस्त्र बहुत पसंद आया और वे इसे प्रभु की पिछवाई के रूप में प्रयोग करना चाहते थे पर प्रभु सेवा में आवश्यक माप से कम होने के कारण यह अनुपयोगी था. 

तब आपने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति बिल्कुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लायेगा उसे मुँहमाँगा पुरस्कार दिया जायेगा. तब एक गुजराती शिक्षक दम्पति बिलकुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लाये और प्रभु में भेंट किया जिसे इस पिछवाई में जोड़कर नाथद्वारा के एक ख्यातनाम चित्रकार ने दुसरे भाग में भी ऐसा ही सुन्दर चित्रांकन किया. 

तबसे यह पिछवाई प्रतिवर्ष इस दिन प्रभु में नियम से धरायी जाती है. यद्यपि अत्यंत प्राचीन होने के कारण यह काफ़ी जर्जर हो चुकी है परन्तु इसकी अद्भुत चित्रकारी का आज भी कोई सानी नहीं है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुना जल भरा जाता है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है.

मंगला में प्रभु को कसुम्भल (लाल) मलमल का उपरना धराया जाता है.
श्रृंगार समय प्रभु को नियम से पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशर-युक्त जलेबी के टूक, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखडी में मीठी सेव, केसर युक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

श्रीनवनीत प्रियाजी में भी विशेष रूप से सायंकाल शयन भोग में वर्तमान तिलकायत के गादी बिराजने के अवसर पर मनोरथ भोग अरोगाया जाता है जिसमें जलेबी टूक, मनोर के लड्डू, पतली पूड़ी, खीर, गुंजा-कचौरी, चना-दाल, बीज-चालनी के सूखे मेवे, दहीवड़ा, बूंदी का रायता, आमरस, आम का बिलसारू (मुरब्बा) आदि आरोगाये जाते हैं.
आज श्री नवनीतप्रियाजी शयन समय बाहर चबूतरा पर बिराजित हो आनन्द वर्षा करते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखमें सुखद एक रसना कहां लो वरनौ ‘गोविंद’ बलि जाई ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर क़सीदा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भांतवार होते हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कसुमल(लाल) मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मोती के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कली, वल्लभी आदि सभी माला आती हैं. 
आज हांस, त्रवल आदि नहीं धराये जाते, वहीं जड़ाऊ थेगड़ा की बघ्घी धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत (सुनहरी किनारी का), गोटी मोती की व आरसी श्रृंगार में  लाल मखमल की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है.

सभी पुष्टि वैष्णवों को विविध दिव्य प्रसंगों की बधाई

Sunday, 29 June 2025

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पंचमी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पंचमी 
Monday, 30 June 2025

छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।

नियम का ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के शृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात नियम का मोगरे की कली का पहला शृंगार (कली के शृंगार पर विशिष्ट पोस्ट आज दोपहर तीन बजे)

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में कुछ नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में भी धराये जाते हैं.
इसमें विशेष यह है कि ये वस्त्र श्रृंगार वैशाख मास में जिस क्रम से आवें उसके ठीक उलट क्रम से आषाढ़ मास में धराये जाते हैं.

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म संप्रदाय से हो. 

इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में कम से कम छह बार धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के दिन निश्चित नहीं हैं. 

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

आज श्रीजी को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के मध्य में धराया अवश्य जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

ओढे लाल उपरैनी झिनी ।
तन सुख सेत सुदेश अशं पर बहुत अगरज भीनी ।।१।।
अति सुगंध सीतल ऊर चंदन आदि ये रचना कीनी ।
हरी धरी भु पर पाग दुपेचीं कोटि मदन छबी छीनी ।।२।।
सूथन बनी हिरमिचीं शोभित गति गयंदकी
लीनी ।
परमानंद प्रभु चतुर शिरोमनि व्रजवनिता प्रेम रति दीनी ।।३।।

साज – आज श्रीजी में मलमल की फ़ुलवेल की चित्रकाम की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को फ़िरोज़ी धोरा के रंग की मलमल का धोरे (थोड़े-थोड़े अंतर से किनारी के धोरे) वाला सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर फ़िरोज़ी धोरा के रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, चंद्रिका, कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी (लड़ वाले कर्णफूल) धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Saturday, 28 June 2025

व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी 
Sunday, 29 June 2025

श्वेत चौखाना की मलमल का किनारी के धोरा वाला आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे और तीन मोर पंख की चंद्रिका के शृंगार

विशेष – आज मंगला में धोरा का आड़बंद धराया जाता है. पूरे दिन में दो समय आरती थाली में होती है.

आज श्रीजी को अतिविशिष्ट श्रृंगार धराया जायेगा. वर्ष में केवल एक बार रथयात्रा के अगले दिन श्री ठाकुरजी को आड़बंद के ऊपर श्वेत कुल्हे तथा कुंडल का मध्य का श्रृंगार धराया जाता है.

सामान्यतया श्रीजी प्रभु को आड़बंद के साथ कुल्हे जोड़ या कुंडल नहीं धराये जाते व श्रृंगार भी छोटा धराया जाता है. 
साथ ही आज रथ के चित्रांकन से सुशोभित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वयं रथ में विराजित हों.

आज से जन्माष्टमी तक प्रभु को सायं भोग समय फल के भोग के साथ क्रमशः तीन दिन कच्ची (चने की दाल, मूंग की दाल और अंकुरित मूंग) और तीन दिन छुकमां (चने की दाल, मूंग की दाल और अंकुरित मूंग) अरोगाये जायेंगे.

आज से प्रभु को सतुवा (लड्डू व घोला हुआ), श्रीखण्ड-भात आदि नहीं अरोगाये जाते.
आज से प्रभु को सतुवा की जगह मगद के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

रथयात्रा से आषाढ़ी पूनम तक श्रीजी के सम्मुख चांदी का रथ (चित्र में दृश्य) रखा जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

आयो आगम नरेश देश देशमें आनंद भयो मन्मथ अपनी सहाय कु बुलायो l
मोरन की टेर सुन कोकिला कुलाहल तेसोई दादुर हिलमिल सुर गायो ll 1 ll
चढ्यो घन मत्त हाथी पवन महावत साथी अंकुश बंकुश देदे चपल चलायो l
दामिनी ध्वजा पताका फरहरात शोभा बाढ़ी गरज गरज घों घों दमामा बजायो ll 2 ll
आगे आगे धाय धाय बादर बर्षत आय ब्यारन की बहु कन ठोर ठोर छिरकायो l
हरी हरी भूमि पर बूंदन की शोभा बाढ़ी वरण वरण बिछोना बिछायो ll 3 ll
बांधे है विरही चोर कीनी है जतन रोर संजोगी साधनसों मिल अति सचुपायो l
‘नंददास’ प्रभु नंदनंदनके आज्ञाकारी अति सुखकारी व्रजवासीन मन भायो ll 4 ll

साज - श्रीजी में आज रथयात्रा के चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में रथ का चित्रांकन इस प्रकार किया गया है कि श्रीजी स्वयं रथ में विराजित प्रतीत होते हैं. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज श्वेत चौखाना की मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित, किनारी के धोरा वाला आड़बंद धराया जाता है. आज ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते.

श्रृंगार - प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. छेड़ान के आभरण हीरे के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी धराये जाते हैं.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत सुनहरी किनारी का व गोटी सोने की राग-रंग की आती है.

Friday, 27 June 2025

व्रज - आषाढ़ शुक्ल तृतीया

व्रज - आषाढ़ शुक्ल तृतीया
Saturday, 28 June 2025

मनोरथात्मकरथे रथात्मात्मन् हरे मम l
श्रीकृष्णस्योपवेशार्थमधिवासं कुरु प्रभो ll

भावार्थ - हे प्रभु, मेरे मनोरथात्मक हृदयरुपी रथ में प्रभु श्रीकृष्ण के बिराजवे की योग्यता करने के लिये अधिवास करें 
अथवा मेरे इस हृदयरुपी रथ में हे हरि (सर्वदुःख हर्ता) अधिवास (अधिकवास) करें.

हे कृष्ण, आपके लिये ही मनोरथात्मक रथ की भावना की है अतः आप इस रथ में बिराजकर मेरे भी मनोरथ पूर्ण करें जिस प्रकार आपने गोपीजनों के मनोरथ पूर्ण किये हैं.
हे प्रभु, आप बलरामजी एवं सुभद्रा बहन सहित मेरे हृदयरुपी रथ में आरूढ़ होकर मुझे भक्तिदान द्वारा इस संसार-सागर से उबारें अथवा भक्तिदान द्वारा संसार-सागर से मेरी रक्षा करें.

सभी वैष्णवों को भक्त मनोरथ पूरक प्रभु के रथ में बिराजने की बधाई

आज से सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे.
शीतल जल के फव्वारे, खस के पर्दे, खस के पंखा, जल का छिड़काव, प्रभु के सम्मुख जल में रजत खिलौनों का थाल, मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी आदि ऊष्णकाल के धोतक साज आज से पूर्ण हो जायेंगे.

आज ही मध्याह्न समय श्री महाप्रभुजी ने गंगाजी की मध्यधारा में सदेह प्रवेश कर आसुरव्यामोह लीला कर नित्यलीला में प्रवेश किया था, जिसके स्मरण में आज के दिन श्रीजी को श्वेत वस्त्र धराये जाते हैं.
पर्वरुपी उत्सव के कारण कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है.
आज से श्रीजी को पुनः ठाड़े वस्त्र धरने प्रारंभ हो जायेंगे यद्यपि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) तक कुछ मुख्य दिनों को ही ठाड़े वस्त्र धराये जायेंगे. तदुपरांत प्रतिदिन प्रभु को ठाडे वस्त्र धराये जायेंगे.

आज से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है.

भोग विशेष - श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कूर (कसार) के गुंजा और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

श्रीजी को उत्सव भोग भी गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही धरे जाते हैं. 
उत्सव भोग में विशेष रूप से आम, जामुन, अंकूरी (अंकुरित मूंग) के बड़े थाल, शीतल के दो हांडा, खरबूजा के बीज-चिरोंजी के लड्डू, खस्ता शक्करपारा, छुट्टी बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल आदि अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, मीठी सेव, श्रीखण्ड-भात, दहीभात और केसरी पेठा अरोगाया जाता है. 

आज प्रभु को उष्णकाल की विशिष्ट सामग्री ‘सतुवा’ अंतिम बार अरोगाये जाते हैं. मैं पूर्व में भी बता चुका हूँ कि मेष संक्रांति (14 अप्रैल) से रथयात्रा तक श्रीजी में मगद (बेसन के लड्डू) के स्थान पर सतुवा अरोगाये जाते हैं.
यह सामग्री अनसखड़ी में लड्डू के रूप में व सखड़ी में घोले हुए सतुवा के रूप में अरोगायी जाती है और उष्णकाल में विशिष्ट लाभप्रद होती है. 
कल से प्रभु को मगद के लड्डू पुनः अरोगाये जाने आरंभ हो जायेंगे.

राजभोग दर्शन 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

गोवर्धन पर्वत के ऊपर परम मुदित बोलत हे मोर l
अति आवेश होत सबही के मन, ठायं ठायं नाचत मोर,
ध्वनि सुन मुरली की मंदस्वर कलघोर ll 1 ll
श्रीअंग जलद घटा सुहाई वासन दामिनी
इन्द्रवधु वनमाल मोतिनहार झलक डोर l
‘कुंभनदास’ प्रभु प्रेम नीर बरखत नित निरंतर अंतर
गिरिवरधरनलाल नवल नंदकिशोर ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज सफेद मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस के ‘धोरे-वाली’ वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज श्वेत डोरिया के वस्त्र पर सुनहरी ज़री के धोरा वाला पिछोड़ा धराया जाता है. केसरी डोरिया के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्री ठाकुरजी को आज वनमाला (चरणारविन्द) से दो अंगुल ऊंचा ऊष्णकालीन भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के मिलमा धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज हांस, चोटी, पायल आदि नहीं धराये जाते. श्रीकंठ में कली, वल्लभी आदि सभी माला, नीचे पदक, ऊपर माला, हार आदि सब धराये जाते हैं. सफेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व मोती के) धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी मोती की आती है. श्रीजी के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है.

आज भोग-आरती में प्रभु को छुंकमां अंकूरी (अंकुरित मूंग) अरोगायी जाती है. मैं पूर्व में भी बता चुका हूँ कि अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी चने की दाल (अजवायन युक्त), भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. 
आज से जन्माष्टमी तक इस क्रम में कुछ परिवर्तन होगा. आज से श्रीजी को यही सामग्री तीन दिन छुकमां व अगले तीन दिन कच्ची अरोगायी जाएगी.

Thursday, 26 June 2025

व्रज – आषाढ़ शुक्ल द्वितीया

व्रज – आषाढ़ शुक्ल द्वितीया
Friday, 27 June 2025

आगम का शृंगार

गुलाबी मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर श्वेत मोर चंद्रिका के शृंगार

विशेष – कल रथयात्रा है अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 
सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 
यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है. 
इस श्रृंगार के लाल वस्त्र विविध ऋतुओं के उत्सवों के अनुरूप होते हैं.

अभी ऊष्णकाल है और अभी लाल रंग निषिद्ध है अतः आज लाल के स्थान पर गुलाबी वस्त्र धराये जायेंगे. सामान्यतया इस श्रृंगार में वस्त्र और पिछवाई लाल और ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं परन्तु ऊष्णकाल में ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते अतः आज प्रभु को गुलाबी वस्त्र धराये जायेंगे. इसी श्रृंखला में आज प्रभु को गुलाबी परधनी धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

 साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, श्वेत मोर चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Wednesday, 25 June 2025

व्रज – आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा
Thursday, 26 June 2025

श्वेत मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर श्वेत मोर चंद्रिका के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज-आज श्रीजी में श्वेत मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल के बिना किनारी के धोती एवं पटका धराये जाते है.

श्रृंगार – आज प्रभु को ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, श्वेत मोर चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Tuesday, 24 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण अमावस्या

व्रज – आषाढ़ कृष्ण अमावस्या
Wednesday, 25 June 2025

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव

विशेष - आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव है. 
आपने अपने जीवनकाल में नाथद्वारा में श्रीजी के सुख हेतु एवं जनसुखार्थ गिरधर सागर आदि कई स्थानों का निर्माण करवाया. 

आपके समय में नाथद्वारा के ऊपर मराठाओं आदि के आक्रमण के कारण आपने घसियार में श्रीजी का नूतन मंदिर सिद्ध करवा कर विक्रम संवत १८५८ में श्रीजी, श्री नवनीतप्रियाजी एवं श्री विट्ठलनाथजी को पधराये. 
आप वहां अत्यधिक उल्लास व उत्साह से श्रीजी को सेवा, मनोरथ आदि करते थे. आपने घसियार में ही लीलाप्रवेश किया था.

आपके पुत्र श्री दामोदरजी ने श्रीजी को घसियार से विक्रम संवत १८६४ की फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को पुनः वर्तमान खर्चभंडार के स्थान पर पाट पर पधराये.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

आज के उत्सव नायक का जीवन अत्यंत सादगी पूर्ण होने से प्रभु को भी सादा वस्त्र, अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल का आड़बन्द एवं गोल-पाग के श्रृंगार ही धराये जाते हैं. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी के मीठा में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं.

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्या-आरती के ठोड़ के वारा में बूंदी के गोद के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन (राग : सारंग)

बधाई - श्री वल्लभ नन्दन रूप अनूप

ठीक दुपहरीकी तपनमें भलेई आये मेरे गेह l
भवन बिराजे बिंजना ढुराऊँ श्रम झलकत सब देह ll 1 ll
श्रमको निवारिये अरगजा धारिये जियतें टारिये और संदेह ll 2 ll
चतुर शिरोमनि याही तें कहियत ‘सूर’ सुफल करो नेह ll 3 ll

साज - आज श्रीजी में अधरंग (गहरे पतंगी) रंग के मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार - प्रभु को आज छोटा (कमर तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
आभरण हीरा के व उत्सव के, श्रीमस्तक पर अधरंग रंग की गोल-पाग के ऊपर रुपहली लूम की किलंगी और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर कुल्हे की कंठी धरायी जाती है.
 पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सूवा वाले वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है

सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) के उत्सव की बधाई

Monday, 23 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी 
Tuesday, 24 June 2025

केसरी मलमल का पिछोड़ा और दुमाला पर मोती के सेहरा के श्रृंगार

राजभोग दर्शन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दुल्हे चंदनको तनलेप कीये l
सकल श्रृंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ll 1 ll
खासाको कटि बन्यो है पिछोरा मोतिन सहरो सीस धरे l
रातै नैन बंक अनियारे चंचल अंजन मान हरे ll 2 ll
ठाडे कमल फिरावत गावत कुंडल श्रमकन बिंद परे l
‘सूरदास’ प्रभु मदन मोहन मिल राधासों रति केल करे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल  का मलमल का पिछोड़ा एवं अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि की माला श्रीकंठ में धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सुवा वाला व एक चांदी की) धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

Sunday, 22 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी 
Monday, 23 June 2025

शरबती मलमल पर गुलाबी छापा की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल के परदनी अति झीनी।।
तापर एक अधिक छबि उपजत जलसुत पांति बनी कटी छीनी।।1।।
उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी।।
‘कुंभनदास' प्रभु गोवरधनधर चपल नयन युवतीन बस कीनी।।2।।

साज – आज श्रीजी में शरबती मलमल पर गुलाबी छापा से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल पर गुलाबी छापा की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती पर गुलाबी छापा की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Saturday, 21 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वादशी (एकादशी क्षय)

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वादशी (एकादशी क्षय)
Sunday, 22 June 2025

योगिनी एकादशी व्रत 

श्वेत धोती, गाती का पटका एवं श्रीमस्तक पर कूल्हे पर श्वेत मोरपंख के जोड़ के शृंगार, 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में विमल कदम्ब के भाव की चितराम की पिछवाई धरायी जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल की धोती एवं गाती का पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, श्वेत मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि मालाए धराई जाती हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी बड़ी हक़ीक की आती हैं.

Friday, 20 June 2025

व्रज - आषाढ़ कृष्ण दशमी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण दशमी 
Saturday, 21 June 2025

अंगूरी मलमल पर गुलाबी छापा का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर गोल चंद्रिका के शृंगार

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

तनक प्याय दे पानी याहि मिस गए वाके घर l
समझ बूझ के जल भर लाई पीवन लागे ओक ढीली करि
तब ग्वालिन मंद मंद मुसिकानी ll 1 ll
वेही जल वैसे ही गयो ओर जल भर लाई
तब ग्वालिन बोली मधुर सी बानी l
‘चतुरबिहारी’ प्यारे प्यासे हो तो पीजिये
नातर सिधारो रावरे जु प्यास मैं जानी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में अंगूरी मलमल की गुलाबी छापा की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अंगूरी मलमल पर गुलाबी छापा का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर अंगूरी रंग की गुलाबी छापा की छज्जेदार पाग के  ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

Thursday, 19 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण नवमी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण नवमी
Friday, 20 June 2025

गुलाबी मलमल पर नीले छापा की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर बांकी गोल चंद्रिका के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल के परदनी अति झीनी।।
तापर एक अधिक छबि उपजत जलसुत पांति बनी कटी छीनी।।1।।
उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी।।
‘कुंभनदास' प्रभु गोवरधनधर चपल नयन युवतीन बस कीनी।।2।।

साज - आज श्रीजी में मलमल की चित्राम की पिछवाई है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल पर नीले छापा की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल पर नीले छापा की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, बांकी गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Wednesday, 18 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण अष्टमी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण अष्टमी
Thursday , 19 June 2025

चंदनी मलमल का गुलाबी छाप का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर ग्वाल पगा पर पगा चंद्रिका (मोरशिखा) के शृंगार

राजभोग दर्शन – 

साज – (राग : सारंग)

लालन पहिरत है नवचंदन l
विविध सुगंध मिलाय अरगजा व्रजयुवतिन मनफंदन ll 1 ll
शीतल मंद बहत मलयानिल मोहन मन को रंजन l
अंग अंग छबि कहा लों वरनो मनमथ मनके गंजन ll 2 ll
आरत चित विलोकत हरिमुख चपल चलन दृग खंजन l
‘गोविंद’ प्रभुपिय सदा बसो जिय गिरिधर विरह निकंदन ll 3 ll 

साज – आज श्रीजी में चंदनी रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को चंदनी मलमल का गुलाबी छाप का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर चंदनी रंग के ग्वाल पगा पर मोती की लड़, पगा चंद्रिका (मोरशिखा) एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. 
श्रीकर्ण में मोती के लोलकबिंदी धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट ऊष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती है.

Tuesday, 17 June 2025

व्रज - आषाढ़ कृष्ण सप्तमी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण सप्तमी
Wednesday, 18 June 2025

 शरबती मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर तुर्रा के शृंगार, ऊष्णकाल का पंचम अभ्यंग

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का पंचम अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के पाँच अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह आठों स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल की या निकुंज की पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन शयन समय श्री नवनीतप्रियाजी से सखड़ी सामग्री पतलानेग (मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा इत्यादि )श्रीजी में पधारती है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में सफ़ेद रंग के मलमल पर कमल के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन मध्यम श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर मोती की लड़, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की छोटी आती है.

Monday, 16 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण षष्ठी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण षष्ठी
Tuesday, 17 June 2025

खसखसी मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

तनक प्याय दे पानी याहि मिस गए वाके घर l
समझ बूझ के जल भर लाई पीवन लागे ओक ढीली करि
तब ग्वालिन मंद मंद मुसिकानी ll 1 ll
वेही जल वैसे ही गयो ओर जल भर लाई
तब ग्वालिन बोली मधुर सी बानी l
‘चतुरबिहारी’ प्यारे प्यासे हो तो पीजिये
नातर सिधारो रावरे जु प्यास मैं जानी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में खसखसी मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को खसखसी मलमल का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर खसखसी रंग की छज्जेदार पाग के  ऊपर सिरपैंच, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

Sunday, 15 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण पंचमी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण पंचमी 
Monday, 16 June 2025

सुआ पंखी मलमल पर लाल छापा की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल चन्द्रिका के श्रृंगार 

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

सोहत लाल के परदनी अति झीनी।।
तापर एक अधिक छबि उपजत जलसुत पांति बनी कटी छीनी।।1।।
उज्जवल पाग श्याम शिर शोभित अलकावली मधुप मधुपीनी।।
‘कुंभनदास' प्रभु गोवरधनधर चपल नयन युवतीन बस कीनी।।2।।

साज – आज श्रीजी में सुआ पंखी मलमल पर लाल छापा से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सुआ पंखी मलमल पर लाल छापा की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुआ पंखी पर लाल छापा की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Saturday, 14 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी 
Sunday, 15 June 2025

अंगूरी मलमल पर लाल छापा का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर फेटा के साज का श्रृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

गोविंद लाडिलो लडबौरा l
अपने रंग फिरत गोकुल में श्याम बरण जैसे भौंरा ll 1 ll
किंकणी कवणित चारू चल कुंडल तन चंदन की खौरा l
नृत्यत गावत वसन फिरावत हाथ फूलन के झोरा ll 2 ll
माथे कनक वरण को टिपारो ओढ़े पीत पिछोरा l
देखी स्वरुप ठगी व्रजवनिता जिय भावे नहीं औरा ll 3 ll
जाकी माया जगत भुलानो सकल देव सिरमौरा l
‘परमानंददास’ को ठाकुर संग ढीठौ ना गौरा ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में अंगूरी मलमल पर लाल छापा की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को अंगूरी मलमल पर लाल छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर फेंटा का साज धराया जाता है. अंगूरी मलमल पर लाल छापा के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, श्वेत रेशम की मोरशिखा, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती की लोलकबंदी-लड़वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
 तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. 
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी बाघ बकरी की आती है.

Friday, 13 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण तृतीया

व्रज – आषाढ़ कृष्ण तृतीया
Saturday, 14 June 2025

शरबती मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा पगा (तह वाली पाग)के ऊपर दोहरा क़तरा के शृंगार, ऊष्णकाल का चतुर्थ अभ्यंग

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का चतुर्थ अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन शयन समय श्री नवनीतप्रियाजी से सखड़ी सामग्री पतलानेग (मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा इत्यादि )श्रीजी में पधारती है.

राजभोग दर्शन – 

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग के मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण मोती के, श्रीमस्तक पर शरबती मलमल के चिनमा पगा (तह वाली पाग) के ऊपर सिरपैंच, दोहरा क़तरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं श्वेत पुष्पों की ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी छोटी हक़ीक की धरायी जाती हैं.

Thursday, 12 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वितीया

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वितीया
Friday, 13 June 2025

चंदनी मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर क़तरा के शृंगार

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में चंदनी मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज प्रभु को चंदनी रंग की मलमल धोती एवं पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर चंदनी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

Wednesday, 11 June 2025

व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा

व्रज – आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा
Thursday, 12 June 2025

प्रीतम प्रीत ही तें पैये ।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता, इन बातन न रीजैयें ॥१॥
सतकुल जन्म करम शुभ लक्षण, वेद पुरान पढ़ैये ।
“गोविंदके प्रभु” बिना स्नेह सुवालों, रसना कहा जू नचैये ॥२॥

भावार्थ- विशुद्ध प्रेम ही अन्त:करण को पवित्र करता है. परम प्रीति ही भक्ति है. प्रभु प्रेम द्वारा ही वश में होते हैं.
रूप, गुण, शील, सुघड़ता इन सब से प्रभु प्रसन्न नहीं होते हैं. अच्छे कुल में जन्म होना, कर्म, शुभ लक्षण, वेद पुराणों का ज्ञान यह सब हो किन्तु प्रेम नहीं हो तो सब व्यर्थ है.

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव

विशेष – आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री का गादी उत्सव हैं. विक्रम संवत १९३२ में आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा के दिन आप तिलकायत की गादी पर आसीन हुए थे. 
आपने प्रभु सुखार्थ कई भव्य मनोरथों का आयोजन किया और नाथद्वारा की उत्तरोत्तर प्रगति के क्षेत्र में कई कार्य किये अतः आपका युग नाथद्वारा के लिए स्वर्णयुग कहा जाता है.

सेवाक्रम - गादी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

आज का श्रृंगार भी निश्चित है. आज प्रभु को गुलाबी रंग की परधनी, श्रीमस्तक पर पाग एवं हीरा के आभरण धराये जाते हैं. 
आज से कीर्तनों में सूहा, बिलावल एवं सायंकाल सोरठ राग भी गाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से आमरस की तवापूड़ी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में आमरस-भात अरोगाये जाते हैं.

प्रभु को नियम से आमरस की तवापूड़ी वर्ष में केवल आज के दिन ही अरोगायी जाती है.
आज से सायंकाल भोग दर्शन के समय श्रीजी के सम्मुख मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी धरी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

गायनसों रति गोकुलसों रति गोवर्धनसों प्रीति निवाहीं l
श्रीगोपाल चरण सेवा रति गोप सखा सब अमित अथाई ll 1 ll
गोवाणी जो वेदकी कहियत श्रीभागवत भलें अवगाही ll 2 ll
‘छीतस्वामी’ गिरिधरन श्रीविट्ठल नंदनंदन की सब परछांई ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा की निकुंज एवं श्री स्वामिनीजी आदि के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल की परधनी धरायी जाती है. परधनी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होती है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की ऊपर छोर व नीचे लटकन वाली पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की रुपहली किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. अलख धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में हीरा की बघ्घी आती है व त्रवल नहीं धराये जाते. हरे एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीं हीरे की एक सुन्दर माला हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

Tuesday, 10 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा 
Wednesday, 11 June 2025

नंदको मन वांछित दिन आयो,
फुली फरत यशोदा रोहिणी,
उर आनंद न समायो ।।
गाम गाम ते जाति बलाई
मोतिन चोक पुरायो 
व्रज वनिता सब मंल गावत,
बाजत घोष बधायो ।।
प्रथम रात्रि यमुना जल घट भरि,
अधिवासन करवायो ।।
उठि प्रातकंचन चोकी धरी
ता पर लाल बैठायो ।।
राज बेठ अभिषेक करत है
विप्रन वेद पठायो ।
जेष्ठ शुकल पून्यो दिन सुर बधु,
हरखि फूल बरखायो ।।
रंगी कोर धोती उपरणा,
आभूषण सब साज, ।
द्वारकेश आनंद भयो प्रभु,
नाम धर्यो ब्रजराज

ज्येष्ठाभिषेक (स्नान-यात्रा)

श्री नंदरायजी ने श्री ठाकुरजी का राज्याभिषेक कर उनको व्रजराजकुंवर से व्रजराज के पद पर आसीन किया, यह उसका उत्सव है. 

इसी भाव से स्नान-अभिषेक के समय वेदमन्त्रों-पुरुषसूक्त का वाचन किया जाता है. वेदोक्त उत्सव होने के कारण सर्वप्रथम शंख से स्नान कराया जाता है.

इस आनंद के अवसर पर व्रजवासी अपनी ओर से प्रभु को अपनी ओर से अपनी ऋतु के फल की भेंट के रूप में उत्तमोत्तम ‘रसस्वरुप’ आम प्रभु को भोग रखते हैं इस भाव से आज श्रीजी को सवा लाख (1,25,000) आम (विशेषकर रत्नागिरी व केसर) आरोगाये जाते हैं.

ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में ज्येष्ठ मास में पूरे माह श्री यमुनाजी के पद, गुणगान, जल-विहार के मनोरथ आदि हुए. इसके उद्यापन स्वरुप आज प्रभु को सवालक्ष आम अरोगा कर पूर्णता की.

स्नान का कीर्तन - (राग-बिलावल)

मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी l
दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ll 1 ll
चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी l
अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ll 2 ll
सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी l
केशो किशोर सकल सुखदाता श्रीवल्लभनंदनकी बलिहारी ll 3 ll

स्नान में लगभग आधा घंटे का समय लगता है और लगभग डेढ़ से दो घंटे तक दर्शन खुले रहते हैं. 

दर्शन पश्चात श्रीजी मंदिर के पातलघर की पोली पर कोठरी वाले के द्वारा वैष्णवों को स्नान का जल वितरित किया जाता है.

मंगला दर्शन उपरांत श्रीजी को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर सफ़ेद कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराये जाते हैं.

मंगला दर्शन के पश्चात मणिकोठा और डोल तिबारी को जल से खासा कर वहां आम के भोग रखे जाते हैं. इस कारण आज श्रृंगार व ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को विशेष रूप से मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, श्रीखण्ड भात, दहीभात, मीठी सेव, केशरयुक्त पेठा व खरबूजा की कढ़ी अरोगाये जाते हैं.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) में ही उत्सव भोग भी रखे जाते हैं जिसमें खरबूजा के बीज और चिरोंजी के लड्डू, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल के दो हांडा, चार थाल अंकुरी (अंकुरित मूंग) आदि अरोगाये जाते हैं.

इसके अतिरिक्त आज ठाकुरजी को अंकूरी (अंकुरित मूंग) एवं फल में आम, जामुन का भोग अरोगाने का विशेष महत्व है.

 अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी (अजवायन युक्त) चने की दाल, भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. 

इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से ठाकुरजी को छुकमां मूँग (घी में पके हुए व नमक आदि मसाले से युक्त) अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन  –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जमुनाजल गिरिधर करत विहार ।
आसपास युवति मिल छिरकत कमलमुख चार ॥ 1 ll
काहुके कंचुकी बंद टूटे काहुके टूटे ऊर हार ।
काहुके वसन पलट मन मोहन काहु अंग न संभार ll 2 ll
काहुकी खुभी काहुकी नकवेसर काहुके बिथुरे वार ।
‘सूरदास’ प्रभु कहां लो वरनौ लीला अगम अपार ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है जिसमें केशर के छापा व केशर की किनार की गयी है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को श्वेत मलमल का केशर के छापा वाला पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा एवं मोती के उत्सव के मिलमा आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर केसर की छाप वाली श्वेत  रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में बघ्घी धरायी जाती है व हांस, त्रवल नहीं धराये जाते. कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी तथा दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है.
आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

आज शयन में आम की मंडली आवे

Monday, 9 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्दशी
Tuesday, 10 June 2025

यमुना जल घट भर चलि चंद्रावली नारि ।
मारग में खेलत मिले घनश्याम मुरारि ।।१।।
नयनन सों नयना मिले मन हर लियो लुभाय ।
मोहन मूरति मन बसी पग धर्यो न जाय ।।२।।

स्नान को जल भरवे को श्रृंगार

 
विशेष – आज प्रभु को नियम का गुलाबी आड़बंद व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग धरायी जाती है. ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल भरकर आती गोपियों की पिछवाई धरायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

दुपहरी झनक भई तामें आये पिय मेरे मैं ऊठ कीनो आदर l
आँखे भर ले गई तनकी तपत सब ठौर ठौर बूंदन चमक ll 1 ll
रोम रोम सुख संतोष भयो गयो अनंग तनमें न रह्यो ननक l
मोहें मिल्यो अब ‘धोंधी’ के प्रभु मिट गई विरहकी जनक ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली (Net) पर जल भरकर लाती गोपियों के सुन्दर काम (Work) से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, श्वेत पंख के कतरा (खंडेला) एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ ऐसी ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सोने-चांदी (गंगा-जमुना) के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट-गोटी उष्णकाल के आते हैं.

स्नान का जल भरने जाना एवं स्नान के जल का अधिवासन

आज प्रातः श्रृंगार उपरांत श्रीजी को ग्वाल भोग धरकर चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी व श्रीनवनीतप्रियाजी के मुखियाजी, भीतरिया व अन्य सेवकों, वैष्णवजनों के साथ श्रीजी मन्दिर के दक्षिणी भाग में मोतीमहल के नीचे स्थित भीतरली बावड़ी पर ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल लेने पधारेंगे.

कुछ वर्ष पूर्व तक ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल मन्दिर की पश्चिम दिशा में कुछ दूरी पर गणगौर घाट में स्थित चूवा वाली बावड़ियों से लाया जाता था परन्तु अब वहां का जल प्रभुसेवा में प्रयुक्त होने योग्य न होने के कारण पिछले तीन वर्षों से भीतरली बावड़ी से ही जल लिया जाता है.

स्वर्ण व रजत पात्रों में जल भर कर लाया जायेगा और शयन के समय के इसका अधिवासन किया जायेगा.

पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन अर्थात जल की गागर का चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है.
 
अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, गुलाब, जूही, रायबेली, मोगरा की कली, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं.
अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है.
“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”

कल ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल मंगला समय प्रभु को इस जल के 108 धड़ों (स्वर्ण पात्र) से प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक कराया जायेगा. 
सवा लाख आमों का भोग लगाया जायेगा.

Sunday, 8 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी
Monday, 09 June 2025

नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री (वि.सं.१८९९) का उत्सव
केसरी धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर सेहरा के शृंगार

दिन दुल्हे तेरे सोहे शीश सुहावनो ।
मणि मोतिन को शेहरो सोहे बसियो मन मेरे ।।१।।
मुख पून्यो को चंद है मुक्ताहल तारे । 
उन के नयन चकोर हैं, ऐ सब देखन हारे ।।२।।
पिय बने प्यारि, अति सुंदर बनि आय । 
परम आगरी रूप नागरी ऐ सब देखन आई ।।३।। 
दुलहनि रेन सुहाग की, दुलह सुंदर वर पायो । 
श्रीनंदलाल को शेहरो, जन परमानंद यश गायो ।।४।।

विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री (वि.सं.१८९९) का उत्सव है. आप सभी को नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री (वीर) गिरधारी जी महाराज के उत्सव की बधाई

प्रभु को नियम के वस्त्र और श्रृंगार - केसरी धोती, पटका व दुमाला के ऊपर सेहरा धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं. 

खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी जाती है. 

भोग समय फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दूलहे,
चंदन की तन खोर करें ।।
सकल सिंगार बने मोतीनके,
बिविध कुसुम की माला गरें ।।१।।
खासा को कटि बन्यो पिछोरा,
मोतीन सहेरो शीश धरें ।।
राते नयन बंक अनियारे,
चंचल खंजन मान हरें ।।२।।
ठाडे कमल फिराजत,
गावत कुंडल श्रमकण बिंदु परें ।।
सूरदास मदन मोहन मिल,
राधासों रति केलि करें ।।३।।

बधाई-

केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े
तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l
जन्मधोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान,
नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll
सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई
आसपास युवतीजन करत है गुणगान l
‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस
यह अवसर जे हुते ते महा भाग्यवान ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया गया है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य से दो अंगुल नीचे (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया गया है. हीरा व मोती के मिलवा उत्सव के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा पर पांच हीरा के फूल एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं. दायीं ओर सेहरे की हीरे की चोटी धरायी गयी है. मोती की बग्घी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये हैं.
श्रीकंठ में कली आदि सब माला धरायी जाती है. आज हांस-त्रवल नहीं धराये जाते. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में दो कमल की कमलछड़ी, जड़ाव मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का, गोटी राग-रंग की, आरसी श्रृंगार में पीले खंड की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Saturday, 7 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी (द्वितीय)

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी (द्वितीय) 
Sunday, 08 June 2025

बसरा के मोतियों की परधनी एवं श्रीमस्तक पर मोती की गोल पाग पर मोती के दोहरा क़तरा श्रृंगार , राजभोग में बंगला का मनोरथ व
सायं कली के श्रृंगार का मनोरथ

शृंगार दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

देखे री हरि नंगमनंगा l
जलसुत भूषन अंग विराजत बसन हीन छबि उठि तरंगा ll 1 ll
अंग अंग प्रति अमित माधुरी निरखि लज्जित रति कोटि अनंगा l
किलकत दधिसुत मुख लेपन करि ‘सूर’ हसत ब्रज युवतिन संगा ll 2 ll

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

शीतल उसीर गृह छिरक्यों गुलाबनीर
परिमल पाटीर घनसार बरसत हैं ।
सेज सजी पत्रणकी अतरसो तर कीनी
अगरजा अनूप अंग मोद दरसत हैं ॥१॥
बीजना बियाँर सीरी छूटत फुहारें नीके 
मानो घन नहैनि नहैनि फ़ूही बरसत हैं ।
चतुर बिहारी प्यारी रस सों विलास करे 
जेठमास हेमंत ऋतु सरस दरसत हैं ॥२॥

 साज – आज श्रीजी में श्वेत जाली की कलात्मक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को बसरा के मोतियों से सिद्ध परधनी धरायी जाती है.

शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मोती की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोती का दोहरा क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली एक सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Friday, 6 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी (निर्जला एकादशी व्रत)

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी (निर्जला एकादशी व्रत)
Saturday, 07 June 2025

निर्जला एकादशी

श्वेत मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर मोती का किरीट के शृंगार

विशेष – आज निर्जला एकादशी है. आज के दिन कई लोग निर्जल रह कर एकादशी करते हैं यद्यपि पुष्टिमार्ग में कोई भी व्रत निर्जल रह कर नहीं किया जाता अतः वैष्णव हल्का फलाहार महाप्रसाद अवश्य लें. 

अति ऊष्णकाल में मुकुट नहीं धराया जाता अतः इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.
कुछ वैष्णव किरीट और मुकुट को एक ही समझते हैं. किरीट दिखने में मुकुट जैसा ही होता है परन्तु मुकुट एवं किरीट में कुछ अंतर होते हैं.

मुकुट अकार में किरीट की तुलना में बड़ा होता है.

मुकुट अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में नहीं धराया जाता अतः इस कारण देव-प्रबोधिनी से डोलोत्सव तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक नहीं धराया जाता परन्तु इन दिनों में किरीट धराया जा सकता है.

मुकुट धराया जावे तब वस्त्र में काछनी ही धरायी जाती है परन्तु किरीट के साथ चाकदार, घेरदार वागा, धोती-पटका अथवा पिछोड़ा धराये जा सकते हैं.

मुकुट सदैव मुकुट की टोपी पर धराया जाता है परन्तु किरीट को कुल्हे एवं अन्य श्रीमस्तक के श्रृंगारों के साथ धराया जा सकता है.

ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की चारों एकादशियों में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में लिचोई (मिश्री के बूरे और पीसी हुई इलायची से सज्जित पतली पूड़ी) अरोगायी जाती है.

श्रीजी को एकादशी फलाहार के रूप में कोई विशेष भोग नहीं लगाया जाता, केवल संध्या आरती में प्रतिदिन अरोगायी जाने वाली खोवा (मिश्री-मावे का चूरा) एवं मलाई (रबड़ी) को मुखिया, भीतरिया आदि भीतर के सेवकों को एकादशी फलाहार के रूप में वितरित किया जाता है.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज ठाड़े लाल मुकुट धरे l
वदन लसत मकराकृत कुंडल रतिपति मन जु हरे ll 1 ll
अरुन अधर और चिबुक चारु बन्यो दुलरी मोहन माल गरे l
अति सुगंध और चंदन खोर किये पहोंची मोतीन की लरे ll 2 ll
कर मुरली कटि लाल काछनी किंकणी नूपुर शब्द करे l
गुन भरे ‘कृष्णदास’ प्रभु राधा निरख नेन ईत ऊत न टरे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोती का किरीट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
चोटीजी मोती की धरायी जाती है.
श्रीकंठ में कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर, कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की बड़ी आती है.

Thursday, 5 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी
Friday, 06 June 2025

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर गोल बाँकी चन्द्रिका के श्रृंगार,

निर्जला एकादशी व्रत शनिवार, 07 जून 2025 के दिन होगा

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

 साज - श्रीजी में आज शरबती मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, बाँकी गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

Wednesday, 4 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशमी)

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशमी)
Thursday, 05 June 2025

आगे आगे भाज्यो जात भागीरथ को रथ, पाछे  पाछे आवत रंग भरी गंग । 
झलमलात उज्वल जल ज्योति अब निरखत, मानो सीस भर मोतिन मंग ।।१।।
जहां परे है भूप कबके भस्म रूप ठोर ठोर, 
जाग उठे होत सलिल संग ।
नंददास मानों अग्नि के यंत्र छूटे, ऐसे 
सुर पुर चले धरें दिव्य अंग।।२।।

गंगादशमी, नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज का गादी उत्सव

श्रीजी को नियम के केसरी पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर केसरी रंग की श्याम झाईं वाली छज्जेदार पाग के ऊपर रुपहली लूम की किलंगी धरायी जाती है.

आज के दिन ही नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलाल जी महाराज श्री का गादी उत्सव भी है. दो उत्सव होने के कारण आज श्रीजी को गोपीवल्लभ भोग में दो नवीन प्रकार की सामग्रियां अरोगायी जाती हैं.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में दहीभात, सतुवा, केसरयुक्त पेठा व मीठी सेव अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

जाको वेद रटत ब्रह्मा रटत शम्भु रटत शेष रटत,
नारद शुक व्यास रटत पावत नहीं पाररी l
ध्रुवजन प्रह्लाद रटत कुंती के कुंवर रटत,
द्रुपद सुता रटत नाथ अनाथन प्रति पालरी ll 1 ll
गणिका गज गीध रटत गौतम की नार रटत,
राजन की रमणी रटत सुतन दे दे प्याररी l
‘नंददास’ श्रीगोपाल गिरिवरधर रूपजाल,
यशोदा को कुंवर प्यारी राधा उर हार री ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी रंग की मलमल की, उत्सव के कमल के काम और रुपहली तुईलैस की किनारी से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का किनारी वाला पिछोड़ा धराया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
उत्सव के हीरा एवं उष्णकाल के मिलमा आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी मलमल की श्याम झाईं वाली छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, रुपहली लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी झुमका वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल की जगह कंठी धरायी जाती हैं.
तुलसी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं एवं इसी प्रकार श्वेत व गुलाबी पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है.

Tuesday, 3 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल नवमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल नवमी
Wednesday, 04 June 2025

बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और मोती के दोहरा क़तरा के श्रृंगार, ऊष्णकाल का तृतीय अभ्यंग 

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का तृतीय अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

शृंगार दर्शन – 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

देखे री हरि नंगमनंगा l
जलसुत भूषन अंग विराजत बसन हीन छबि उठि तरंगा ll 1 ll
अंग अंग प्रति अमित माधुरी निरखि लज्जित रति कोटि अनंगा l
किलकत दधिसुत मुख लेपन करि ‘सूर’ हसत ब्रज युवतिन संगा ll 2 ll

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सूर आयो सिर पर छाया आई पायनतर
पंथी सब झूक रहे देख छांह गहरी l
धंधीजन धंध छांड रहेरी धूपन के लिये
पशु-पंछी जीव जंतु चिरिया चूप रही री ll 1 ll
व्रज के सुकुमार लोग दे दे किंवार सोये 
उपवन की ब्यार तामें सुख क्यों न लहेरी l
‘सूर’ अलबेली चल काहेको डरात है
महा की मधरात जैसी जेठ की दुपहरी ll 2 ll  

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की (Net) जाली की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को बसरा के मोतियों से गूंथा हुआ आड़बंद धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर बसरा के मोतियों की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोती का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो मालाएँ हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी,मोती के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी हकीक की आती है.

Monday, 2 June 2025

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी 
Tuesday, 03 June 2025

ज्येष्ठ मास तपत घाम एसेमें कहां सीधारे श्याम एसी कोन चतुर नार जाको बीरा लीनो हे।।
नेकधों कृपा कीजे हमहूको सुज दीजे जैये फेरि वाके धाम जाको नेह नवीनो हे।।1।।
बाँह पकरि भवन लाई सैया पर दिये बैठाई अरगजा अंग लगाई हियो सीतल कीनो है।।
रसिक प्रीतम कंठ लगाय रसमें रस सो मिलाय अरसपरस केल करत प्रीतम बस कीनो है।।2।।

राजभोग में चंदन की गोली का मनोरथ

आज प्रभु के श्रीअंगों (वक्षस्थल, दोनों श्रीहस्त और दोनों चरणकमल) में कुल पांच केशर बरास मिश्रित चंदन की गोलियां धरायी जाती है.
श्रीजी में प्रतिदिन अथवा नियम से चंदन नहीं धराया जाता अपितु मनोरथियों द्वारा आयोजित चंदन धराने के मनोरथ होते हैं और मनोरथ के रूप में ऋतु के अनुरूप विविध सामग्रियां भी अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

सखी सुगंध जल घोरके चंदन हरि अंग लगावत l
वदन कमल अलके मधुपनसी टेढ़ी पाग मनभावन ll 1 ll
कोऊ बिंजना कुसुमन के ढोरत कुसुम भूषन ले ले पहेरावत l
मृदुवेली सायंतर क्रीड़त ‘व्रजाधीश’ गुन गावत ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में केसरी मलमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के पतले हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. 
गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल का बिना किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. 

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच,तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो अन्य मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी धरायी जाती है.
श्रीअंग (वक्षस्थल पर, दोनों श्रीहस्त में और दोनों चरणारविन्द) में चंदन की गोलियां धरायी जाती हैं.

Sunday, 1 June 2025

व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी

व्रज – ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी 
Monday, 02 June 2025

श्वेत मलमल के धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार, संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज धरी गिरधर पिय धोती
अति झीनी अरगजा भीनी पीतांबर घन दामिनी जोती ll 1 ll
टेढ़ी पाग भृकुटी छबि राजत श्याम अंग अद्भुत छबि छाई l
मुक्तामाल फूली वनराई, 'परमानंद' प्रभु सब सुखदाई ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग की मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. 

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल के धोती एवं पटका धराये जाते है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, सुवा के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान 

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का द्वितीय शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

व्रज – पौष कृष्ण दशमी

व्रज – पौष कृष्ण दशमी Sunday, 14 December 2025 श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार विशेष – आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृं...