Special from Pushti Saaj Shringar
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भाग -1
जय श्री कृष्णा।
आज भगवद गुणगान का माहिमा जानते है।
श्री ठाकोरजी की द्वारिका लीला का प्रशंग है।
श्री ठाकुरजीकी सभी पटरानियां माता देवकीजी के पास श्री प्रभु की बाललीला
के प्रशंग सुननेकी विनती लेके पहुंची तो माता ने कहा मैंने तो कभी भी मेरे
लल्ला की बाललीला का आनंद नहीं लिया। वो सौभगाय तो नंदरानीजी और नंदबाबा
को मिला था। ग्यारह वर्ष के बाद मथुरा आने के बाद कान्हा ने कोई बाललीला
नहीं की। तुम सभी का मनोरथ पूर्ण करने केलिए नंदबाबा तथा व्रज की गोपिओ से
जो ललित लीला प्रशंग मैंने सुने हे आप सुब को सुनती हु।
माता ने
द्वारपाल से किसी को भी भीतर ना आने देने का आदेश दिया। श्री द्वारिकाधीश
पधारे तो भी बिनती करके भीतर न आने देने के लिए कह।
माता देवकी ने आठो
पुत्रवधुओं को श्री कृष्णा की बाललीला गुनगान करना सुरु किया। सभी लीला
श्रवण में डूब गए। किसी को भी ना देहाध्यान था न तो बितते हुए समय का
अनुमान। तभी द्वार पे श्री ठाकुरजी और बलरामजी पधारे। द्वारपालने माता के
कथन अनुशार प्रवेश न करने की बिनती की। दोनों भाई द्वार पर ही रुके और
भीतर से आ रही शब्द ध्वनि को सुनने लगे। अपनी बाललीला चरित्र का श्रवण
करते हुए तीन प्रहार तक द्वार पर ही व्यतीत हो गए। तभी वहा श्री नारदजी
पधारे और प्रभुके कथा श्रवण में लींन हो गए।
दो प्रहार पश्चात माता
देवकी ने बाललीला कीर्तन पूर्ण किया। सभी को सुध आई और नारदजी ने हाथ जोड़कर
बिनती की प्रभु आपकी ये लीला समज में नहीं आई।
प्रभु हम तो आपके नाम
का संकीर्तन करके , आपके रूप ,गुणों और लीला का संकीर्तन करके हमेशा आपके
समरण में रहते हे। परनतु क्या आपको भी आपकी लिला इतनी प्रिय हे की इन में
लींन हो जाते हे। श्री ठाकुरजी ने मुश्कुराते हुए कहा हा । प्रभु में तो
आप के पास एक प्रश्न लेके आया था।
भगवन कईबार में आप को तीनो लोको में
और वैकुण्ठ में भी खोज लेता हु पर आपनाही मिलते। तो में जानने आया था की
आप का पता क्या हे। मुश्कुराते हुए श्री ठाकुरजी बोले नारद लिखो हम कही पर
हो या न हो किन्तु जहा मेरे भक्त मेरा गुणगान गाते हो वहा में अवश्य होता
हु।
मुझे मेरे गुणगान सबसे अधिक प्रिय हे।
श्री ठाकुरजी ने स्वयं आपना पता भगतो के दवरा किये जाने वाले गुणगान में बताया हे।
आओ लीला औ का ध्यान करे।
बोलो श्री लाड़िले लाल की जय।
पुष्तक - तुलसी क्यारो - १
राइटप टाइपिंग - वर्षा चिनाई
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