By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 2 August 2020

कुंभनदासजी श्रीनाथजी की सेवा में नित्य कीर्तन करके श्रीनाथजी को रिझाते थे.

 

कुंभनदासजी श्रीनाथजी की सेवा में नित्य कीर्तन करके श्रीनाथजी को रिझाते थे. वे श्रीनाथजीको प्रिय थे. श्रीनाथजी उनको अपना सानुभव जताते थे. वे साथ साथ खेलते रहते थे और बाते भी किया करते थे.

श्रीनाथजीने आज्ञा करी कि हमें टोंड के घने में पधारने की इच्छा है वहां हमें ले चलो.

निकुंज में श्रीनाथजी ने अपने मुख से कुंभनदासको आज्ञा करी कि कुंभनदास इस समय ऐसा कोई कीर्तन गा तो मेरा मन प्रसन्न होने पावे. मै सामग्री आरोंगु और तु कीर्तन गा.
श्री कुम्भनदासने अपने मनमें सोचा कि प्रभुको कोई हास्य प्रसंग सुननेकी इच्छा है ऐसा लगता है. कुंभनदास आदि चारों वैष्णव भूखे भी थे और कांटें भी बहुत लगे थे इस लिये कुंभनदासने यह पद गाया :
राग : सारंग
“भावत है तोहि टॉडको घनो ।
कांटा लगे गोखरू टूटे फाट्यो है सब तन्यो ।।१।।
सिंह कहां लोकड़ा को डर यह कहा बानक बन्यो ।
‘कुम्भनदास’ तुम गोवर्धनधर वह कौन रांड ढेडनीको जन्यो ।।२।।
यह पद सुनकर श्रीनाथजी एवं श्री स्वामिनीजी अति प्रसन्न हुए. सभी वैष्णव भी प्रसन्न हुए. बादमें मालाके समय कुंभनदासजीने यह पद गाया :
बोलत श्याम मनोहर बैठे...
राग : मालकौंश
बोलत श्याम मनोहर बैठे, कमलखंड और कदम्बकी छैयां ।
कुसुमनि द्रुम अलि पीक गूंजत, कोकिला कल गावत तहियाँ ।। 1 ।।
सूनत दूतिका के बचन माधुरी, भयो हुलास तन मन महियाँ ।
कुंभनदास ब्रज जुवति मिलन चलि, रसिक कुंवर गिरिधर पहियाँ ।। 2 ।।

https://www.facebook.com/pushtisaajshringar
https://www.pushtisaajshringar.com/
 

No comments:

Post a Comment

व्रज - फाल्गुन शुक्ल एकादशी

व्रज - फाल्गुन शुक्ल एकादशी  Monday, 10 March 2025 फागुन लाग्यौ सखि जब तें,  तब तें ब्रजमण्डल में धूम मच्यौ है। नारि नवेली बचै नाहिं एक,  बि...