रगट भये तैलंग कुल दीप।।
श्रीलक्ष्मणभट अति आनंदित ,
सुत मुख निरखत आय समीप।।१।।
मात ईल्लमा कूख उदय भयो,
ज्यों उपजत मुक्ताफल सीप।।
सगुणदास मुख कहत न आवे,
जस प्रसर्यो नव खंड सप्तदीप।।२।।
भावार्थ
तेलंग कुल के दीपक श्रीमद्वल्लभाचार्यजी प्रकट हुए ह़ैं। प्राकट्य समय
पिता श्रीलक्ष्मण भटजी अत्यंन्त आनंदित होते हुए अपने लाल के पास आकर
मुख दर्शन करते हैं। मैया श्रीइलम्माजी के उदर से आपश्री का प्राकट्य की
उपमा देते हुए भगवदीय काहेते है जैसे मोती सीप से प्रकट हुआ हो। सगुणदासजी
कहते हैं कि नौ खंडो एवं सात द्वीपों में आपश्री का यश प्रसरा हुआ है जो
अवर्णनीय् है।।
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