By Vaishnav, For Vaishnav

Sunday, 2 August 2020

श्रीनाथजी बावा तथा श्रीनवनीतप्रियजी एकसाथ क्यों बिराजते नहीं?

 

श्रीनाथजी बावा तथा श्रीनवनीतप्रियजी एकसाथ क्यों बिराजते नहीं?

नाथद्वारा में श्री लाडले लाल श्रीनाथजी के साथ बिराजे नहीं उसके पीछे एक कारण है। श्रीनाथजी बावा ने जगत के सर्व जीवो पर कृपा करने के लिए शिखरबंध मंदिर में बिराजना पसंद किया। श्रीजीबावा का स्वरूप मंदिर में सर्वोद्धारक स्वरूप में बिराजित है। पुष्टिमार्ग में गृहसेवा का आग्रह होने से श्रीमहाप्रभुजी से लेकर उनके वंश के सभी बालको ने श्रीनवनीतप्रियजी की सेवा अपने घर में की है। इसीलिये गोकुल तथा नाथद्वारा में दोनों स्वरुप अलग अलग मंदिर में बिराजे। अभी जो नवनीतप्रियजी का मंदिर है वह श्रीजीबावा के मंदिर का हिस्सा नहीं है, परंतु श्रीनवनीतप्रियजी का मंदिर श्रीतिलकायत महाराज के निवासस्थान मोतीमहल का हिस्सा है।

पुष्टिमार्ग का गृहसेवा का सिद्धांत वैष्णवों को सिखाने के लिए श्रीनवनीतप्रियजी श्रीमहाप्रभुजी के वंश में आपश्री के घर में बिराजे है, मंदिर में नहीं। श्रीनाथजी बावा तथा श्रीनवनीतप्रियजी यह दोनों स्वरुप की सेवा तिलकायत करते हैं, इसीलिए बड़े उत्सव पर श्रीनवनीतप्रियजी श्रीनाथजी बावा के साथ बिराजते है और वैष्णवों को दोनों स्वरुप के एकसाथ दर्शन करने मिलते है।

इसीलिए श्रीनवनीतप्रियजी का मंदिर नंदलाय के भाव का मंदिर है। श्रीठाकुरजी की सेवा वहां बालभाव से होती है। यशोदाजी के नन्हे से लालन के दर्शन करने के लिए जैसे व्रजभक्त जाते थे उसी तरह वैष्णव भी श्रीनवनीतप्रियजी के दर्शन करने जाते है। वैष्णवगण अति स्नेह से लालन के दर्शन करते है और बोलते है -

*लाडले लाल की जय, श्री नवनीतलाल प्यारे की जय, लालन करेंगे पालन*

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