भाग - 3
जय श्री कृष्णा
भगवद गुणगान का महिमा जानते है।
श्री प्रभु को भक्त मण्डली के बिच मग्न हो कर नृत्य करते हुए देख श्री हरिरायचरण को व्रजलीला का प्रशंग यद् आया।
अक्रूरजी के साथ भगवन मथुरा गए तब अपने माता -पिता नन्द-यशोदा को वचन दिया था " में जल्द ही वापस लौटूंगा"।
अपने बालसखा तथा गोपिका औ को भी कहा था में कहिँ नही जा रहा हु। पर प्रभु
काभि नहीं आए । अपने सखा उद्धव को कहा व्रज में सब को मेरा सन्देश देंना ।
उद्धवजी व्रज पधारे नंदबाबा थता यशोदामाँ से मिले। गोपो के साथ प्रभु की
लीला का समरण किया। वृंदावन जाकेश्री यमुनाजी के तट पर गोपिओ से मिले और
स्यामसुंदर के स्मरण ताजा किये।
समूचे व्रजमें सभी व्रजवासीऔ के हृदय
में श्री कृष्णा के लीला स्मरण से उत्स्व की अनुभूति हुई। आचार्य चरण
श्री महाप्रभु जी निरोधलक्षण में आज्ञा करते है की उद्धवजी के आगमन से
गोकुल और वृन्दावन में जो सुमहान उत्सव उदभव हुआ वो मेरे मन में कब प्रगट
होगा। प्रभु का गुणगान करके सभी को आननद होता हे।
छोटे बड़े , स्त्री पुरुष , राय रंक सब को आनंद का अनुभव क्यों होता हे?
क्युकी पुष्टि पुरुशोतम पूर्णानंद स्वरुप है। जब श्री प्रभु स्वयं पृथ्वी
पे प्रगट हुए तब सभी को स्वयंभू आनंद का दान किया। अब प्रभु अपने भक्तो को
अपने नाम और रूप से आनंद का दान करते है। तभी तो श्रीमद भगवत , अन्य भगवत
कहानिया , अष्टछाप तथा अन्य महान कविऔ के कीर्तन प्रभु के नाम स्वरुप हे
और उनका सदैव गान करके ह्रदय स्पर्शी आनंद की अनुभूति होती हे।
बोलो श्री पुष्टि पुरषोतम की जय।
पुष्तक - तुलसी क्यारो - १
राइटप टाइपिंग - वर्षा चिनाई
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