व्रज – भाद्रपद कृष्ण तृतीय
Wednesday, 06 August 2020
हिंडोलना विजय
विशेष - श्रीजी में आज श्रृंगार के दर्शन के पश्चात हिंडोलना विजय होगा. हिंडोलना विजय शुभमुहूर्त के अनुसार किया जाता है.
हिंडोलना विजय के दिन, प्रथम हिंडोलना रोपण के दिन धराये गये साज दीवालगरी, वस्त्र, श्रृंगार आदि सभी वैसे ही धराये जाते हैं.
चांदी को शुभ माना जाता है अतः प्रथम हिंडोलने की भांति ही हिंडोलना विजय
के दिन भी श्री मदनमोहनजी चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं.
श्रृंगार के दर्शन के पश्चात हिंडोलना विजय होता है. गोविन्दस्वामी के चार हिंडोलने के निम्नलिखित पद गाये जाते हैं.
चित्र क्रमांक २
हिंडोलना विजय के पद
कीर्तन – (राग : मल्हार)
तैसोई वृन्दावन तेसीये हरित भूमि तेसीये वीर वधू चलत सुहाई माई l
तेसोई कोकिल कल कुहुकुहु कुंजत तेसोई नाचत मोर निरखत नयना सुखदाई ll 1 ll
तेसीय नवरंग नवरंग बनी जोरी तेसेई गावत राग मल्हार तान मन भाई l
‘गोविंद’ प्रभु सुरंग हिंडोरे झूले फूले आछे रंग भरे चंहु दिशते घटा जुरि आई ll 2 ll
कीर्तन – (राग : मल्हार)
झूलन आई व्रजनारी गिरिधरनलालजु के सुरंग हिंडोरना l
सुभग कंचन तन पहेरे कसुम्भी सारी गावत परस्पर हस मृदुबोलना ll 1 ll
ईत नंदलाल रसिकवर सुन्दर ऊत वृषभानसुता छबि सोहना l
रमकत रंग रह्यो पियप्यारी ‘गोविंद’ बलबल रतिपति जोहना ll 2 ll
कीर्तन – (राग : मल्हार)
झूलत सुरंग हिंडोरे राधामोहन l
बरन बरन चूनरी पहेरे व्रजवधू चंहू ओरे ll 1 ll
राग मल्हार अलापत सातसूरन तीनग्राम जोरे l
मदनमोहन जु की या छबि ऊपर ‘गोविंद’ बल तृण तोरे ll 2 ll
कीर्तन – (राग : मल्हार)
रंग मच्यो सिंघद्वार हिंडोरे व झूलना l
गौरश्याम तन नील पीतपट घनदामिनी हेम बिराजत निरख निरख व्रजजन मन फूलना ll 1 ll
ऊर पर वनमाल सोहे इन्द्रधनुष मानो उदित भयो मोतीनहार बगपंगति समतूलना l
वरषत नवरूप वारी घोख अवनि रत्न खचित ‘गोविंद’ प्रभु निरख कोटि मदन भूलना ll 2 ll
अंतिम कीर्तन के उपरांत उपस्थित वल्लभकुल बालक, मुखियाजी, सभी भीतरिया आदि सेवक हिंडोलना की चार परिक्रमा करते हैं एवं तत्पश्चात आरती की जाती है और ठाकुरजी हिंडोलना से भीतर पधरा लिए जाते हैं.
श्रीजी के उस्ताखाना के सेवक हिंडोलना की सभी साज बड़ी कर लेते हैं.
आज से हिंडोलने की बिछायत, दीवालगरी आदि उतार लिए जाते हैं. केवल मणिकोठा में आगामी सप्तमी तक दीवालगरी रहती
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
आज महा मंगल महराने ।
पंच शब्द ध्वनि भीर वधाई घर घर बैरख बाने ।।१।।
ग्वाल भरे कांवरि गोरसकी वधू सिंगारत वाने ।
गोपी गोप परस्पर छिरकत दधि के माट ढुराने ।।२।।
नामकरन जब कियो गर्ग मुनि नंद देत बहु दाने ।
पावन जस गावति कटहरिया जाहि परमेश्वर माने ।।३।।
साज – श्रीजी में आज साज लाल रंग की मलमल की सुनहरी लप्पा की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल की बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.
श्रृंगार - आज प्रभु को हीरों का छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है.
हीरे के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर आसमानी मलमल की सुनहरी बाहर की खिड़की वाली छज्जेदार पाग के
ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये
जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं.
मोतियों की माला के ऊपर चार पान घाट की जुगावली धराई जाती हैं.श्रीकंठ में त्रवल नहीं धराया जाता हैं. हीरे की बघ्घी धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी छोटी स्वर्ण की छोटी धराई जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में लाल मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.
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