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Saturday, 8 August 2020

व्रज - भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (प्रथम)

 

व्रज - भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (प्रथम)
रविवार, 9.8.2020

विशेष - आज के दिन श्रीजी में चंदरवा, टेरा, वंदनमाल, कसना, तकिया के खोल आदि बदले जाते हैं.

सभी बड़े उत्सवों के पूर्व श्रीजी को नियम के घर के श्रृंगार धराये जाते हैं जिन्हें घर के श्रृंगार भी कहा जाता है और इन पर श्रीजी के तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.

जन्माष्टमी के पूर्व भी आज घर के श्रृंगार धराये जाते हैं. इस श्रृंखला में आज श्रीजी को लाल चैफूली एकधारी चूंदड़ी के पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल-पाग के ऊपर लूम की किलंगी धरायी जाती है.

आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू आरोगाये जाते हैं.

आज ही जन्माष्टमी के दिन श्रीजी को धराये जाने वाले वस्त्र एवं साज के लिए सफेद मलमल एवं डोरिया के वस्त्र केसर से रंगे जाते हैं.

वस्त्र रंगते समय नक्कारे बजाये जाते हैं एवं सभी वैष्णव बधाईगान करते हैं.

राजभोग आरती पश्चात पूज्य तिलकायत परिवार के सदस्य, मुखियाजी वस्त्र रंगते हैं, वैष्णवजन और दर्जीखाना के सेवकगण अपने हाथ में रख के सुखाते हैं.

भाद्रपद कृष्ण पंचमी के दिन ये वस्त्र रंगे जाते हैं इसका यह भाव है कि “हे प्रभु, जिस प्रकार ये श्वेत वस्त्र आज केशर के रंग में रंगे जा रहे हैं,

मेरी पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँचों कर्मेन्द्रियाँ भी आज पंचमी के दिवस आपके रंग में रंग जाएँ.”

राजभोग दर्शन -

कीर्तन - (राग: सारंग)

सब ग्वाल नाचे गोपी गावे स प्रेम मगन कछु कहत न आवे ।।1।।
हमारे राय घर ढोटा जायो स सुनि सब लोक बधाये आयो ।।2।।
दूध दधि घृत कांवरि ढोरी स तंदुल डूब अलंकृत रोरी ।।3।।
हरद दूध दधि छिरकत अंगा स लसत पीत पट बसन सुरंगा ।।4।।
ताल पखावज दुंदुभि ढोला स हसत परस्पर करत कलोला ।।5।।
अजिर पंक गुलफन चढि आये स रपटत फिरत पग न ठहराये ।।6।।
वारि वारि पटभूषन दीने स लटकत फिरत महारस भीने ।।7।।
सुधि न परे को काकी नारी स हसि हसि देत परस्पर तारी ।।8।।
सुर विमान सब कौतिक भूले स मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ।।9।।

साज - श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर चैफूली चुन्दडी की रुपहली जरी के हांशिया (किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.

गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचैकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र - श्रीजी में आज लाल रंग का चैफूली चुन्दडी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती, पन्ना एवं सोने के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम की किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती है इसी प्रकार श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी भी धराये जाते हैं.

 

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