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Sunday, 23 August 2020

व्रज – भाद्रपद शुक्ल षष्ठी

व्रज – भाद्रपद शुक्ल षष्ठी
Monday, 24  August 2020

आज की पोस्ट श्रीस्वामनिजी(राधाजी) की अति प्रिय सखी श्री ललिताजी के प्राकट्योत्सव एवं ललिताजी के भाव से श्रीजी को लाड लड़ाने वाले नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी के सुंदर प्रसंग से ओत-प्रोत हैं

सभी वैष्णवजन को श्रीललिताजी के उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव की ख़ूब ख़ूब बधाई
 
बलदेव छठ, श्रीललिताजी का उत्सव, नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी (१७४४) का प्राकट्योत्सव

विशेष – आज राधिकाजी की प्रिय सखी ललिताजी का प्राकट्योत्सव है. इसी प्रकार आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री विट्ठलेशराय जी (१७४४) का भी प्राकट्योत्सव है.

आपका जन्म श्रीजी के नाथद्वारा पधारने के पश्चात तत्कालीन तिलकायत श्री दामोदरजी (दाऊजी) महाराज के यहाँ हुआ था. आप अनुपम सुन्दर, प्रसन्नवदन एवं सर्वांग सौष्टव युक्त थे. 
आज के दिन जन्म होने से आप सदैव ललिताजी के भाव से बिराजते थे. आपने सदैव स्वामिनी भाव से श्रीजी को विविध भोग, राग एवं श्रृंगार धरकर लाड़ लड़ाये. 
एक वैष्णव ने आपसे प्रश्न किया कि आप सदैव स्त्री वेश में क्यों रहते हैं तब आपने ललिताजी के स्वरुप में उनको दर्शन देकर संशय दूर किया. 
सामान्यतया कोई वल्लभकुल बालक का प्राकट्योत्सव हो तो श्रीजी में महाप्रभुजी की बधाई के पद गाये जाते हैं पर आज के उत्सव में आपकी अथवा श्री महाप्रभुजी की बधाई नहीं गाई जाती परन्तु ललिताजी की बधाई के पद गाये जाते हैं.

ललिताजी के भाव से ही आज श्रीजी को पंचरंगी लहरिया के वस्त्र धराये जाते हैं.

उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

श्रीजी प्रभु को नियम के पंचरंगी लहरिया के वस्त्र व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर मोरपंख की सादी चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.  

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तला बीज चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

आज सखी शारदा कन्या जाई l
भादों सुदि षष्ठी है शुभ नक्षत्र वर आई ll 1 ll
भेरि मृदंग दुंदुभी बाजत नंदकुंवर सुखदाई l
गोपीजन प्रफुल्लित भई गावत मंगल गीत बधाई ll 2 ll
नामकरनको गर्ग पराशर गौतम वेद पढ़ाई l
दीने दान पिता विशोकजु नारद बीन बजाई ll 3 ll
आभूषण पाटंबर बहुविध गो भू दान कराई l
नंदराय वृषभानराय मीली विशोक ही देत बधाई ll 4 ll
सकल सुवासिनी धरत साथिये कीरति पंजरी धाई l
'व्रजपति' की स्वामिनी यह प्रगटी ललिता नाम धराई ll 5 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा तथा श्री स्वामिनीजी के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के होते हैं. 

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली, ऊपर मोतियों की माला आती है. त्रवल नहीं धराया जाता वहीं हीरा की बग्घी धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर पंचरंगी लहरिया की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशरायजी के वेणु, वेत्र (व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट लाल, गोटी स्याम मीना की आती हैं.
आरसी शृंगार में पिले खंड की व राजभोग में सोना की डाँडी की आती  है.

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