By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 3 August 2020

"साधनदीपिका"

 "साधनदीपिका" ग्रंथ में श्री गोपीनाथजी कह रहे हैं--"सर्वस्वम् हरिसात्कार्यं त्यजेत् सर्वम् अवैष्णवम्। हिंस्र कामान्यदेवार्चा यदि नित्यम् च लौकिकम्। अर्थात् वैष्णव होने के बाद अपनो सब कुछ श्रीहरि कू समर्पित करनो।जो भी अवैष्णवाचार पहले करते थे वो सब छोड देनो। जीवहिंसा होती होय एसो कर्म, काम्यकर्म और श्रीकृष्ण के अलावा अन्य देवों की पूजा अर्चना आदि छोड देनो।
नित्य, नैमित्तिक शास्त्रीय कर्म भी वैष्णव मार्ग से विपरीत होय तो छोड देनो। वैसे ही वैष्णवमार्ग सू विपरीत जो भी सामाजिक और लौकिक कार्य होवें उनकू भी छोड ही देनो।

 

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