( गुंजमाला का भाव )
हमारे यहाँ गुन्जामाला धराने में एक लाल मणिका एक सफेद
मणिका इसके पीछे भी अपना एक भाव रहा हुआ है और उसका
अनुभाव है गुंजामाला।
ठाकुरजी तो गुंजामाला इस लिए धारण करते थे की ब्रज में उस
समय गुंजामाला बहुतायत में होती थी। और ठाकुरजी की
गोचारण लीला के वर्णन में यही है की जो फुल पत्ते जो कुछ भी
मिले वो यहाँ ठुसे,वहां ठुसे
"बहर्पीडम नटवरवपु कर्णयो कर्निकारम वैजयंती च मालाम"
इस अनुभाव को प्रकट करने में अपने यहाँ गुन्जामाला धराई
जाती है।
इस गूंजा में हम ऐसा कहते है की हमारे ह्रदय में रहा भया कौनसा
भाव आपको अच्छा लगेगा ये हमें क्या पता,तो हमारे ह्रदय के
चारो भाव अर्थात तामस, राजस, सात्विक, निर्गुण ये चारो
भाव हम गुन्जामाला के अनुभाव द्वारा आपको समर्पित कर रहे
है।
गुंजा माल में काला हमारे ह्रदय का तामस भाव, लाल राजस
भाव , सफेद दाना सात्विक भाव व डोरा निर्गुण भाव है।
इसलिए चारो में से जो आपको अच्छा लगता हो आप उसे धारण
करो।
ये सब होते हुए भी इस बात को जड़ कर्म की तरह नहीं ले सकते
उष्णकाल में लाल और काला रंग गर्म दिखाई देता है इसलिए
उष्णकाल में हम सफ़ेद रंग की गुन्जामाला धराते है जिससे की
एक तो उष्णकाल की गर्मी उसके बाद राजस तामस भाव की
गर्मी तो दो-दो गरमी इकठी न हो प्रभु के पास इसलिए सफेद
गुन्जामाला धराते है।
No comments:
Post a Comment