भाग - ४
जय श्री कृष्णा
भगवद गुणगान का महिमा जानते है।
श्री ठाकुरजी का रूप-स्वरुप आनंदायक हे वेशे ही नाम-स्वरुप भी उत्सव की अनुभूति कराता है।
आओ एक और प्रशंग यद् करते है जब प्रभु के गुणगान करने से ही प्रभु के
दर्शन होते है। रास के समय जब गोपीजनों को शोभाग मद हुआ तो प्रभु अंतर्
ध्यान हो गए और तब प्रभु की कथा का गुणगान करने से ही गोपिया श्री प्रभु
को अपने ह्रदय मे धारण कर पाई। उस गोपीगीत के कारन ही गोपीजन जीवित रह सकी
ओर रास रासिक के साथ महारास का शोभाग्य प्राप्त हुआ।
श्री महाप्रभुजी
सुबोधिनिजि में प्रभु के नाम स्वरुप को अद्भुत तरह से समझाते हे । प्रभु
में ६ धर्म बिराजमान है। ऐश्वर्य,वीर्य ,यश ,श्री , ज्ञान, तथा वैराग्य।
जैसे सूरज से उशकी किरणे भिन्न नही वेसे ही प्रभु और दीव्य गुण अलग नही।
प्रभु के ये ६ गुण प्रभु के नाम तथा उनकी कथा में भी विध्यमान है। प्रभु
का स्वरुप अमृत रूप है तो प्रभु कि कथा भी अमृत रुप ही है। इसिलिये भक्तगण
नित्य भगवद कथामृत का पान करने की अभिलाषा और आग्रह रकते है।
बोलो रास ससिक श्रीघनश्याम की जय।
पुष्तक - तुलसी क्यारो - १
राइटप टाइपिंग - वर्षा चिनाई
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