श्री वल्लभ की करूणा द्रष्टि श्री दमलाजी के मस्तक पर है । ओर श्री दमलाजी द्रष्टि श्री वल्लभ के चरणाराविंद में लगी रही है । दीनताभाव,द्र्ढनिष्टा,अनन्यता,स्वामिभाव के प्रतिक श्री दमलाजी है । जीनकुं संसार नही भावे है, लौकीक सब छुटो भयो हे,बालपन सुं ही शांत स्वभावी, मौनी,ध्यानी, ओर श्री वल्लभ के दर्शन की आर्ति जीन के ह्रदय में बनी भई हे ऐसे कोमल ह्रदयी श्री दमलाजी है । जो नित्यलीला में श्री ललिता सखी रुप है । सदा सेवा में युगल स्वरुप कुं आनंद करावे में तत्पर है । यह श्री ठाकुरजी ओर श्री स्वामिनी की प्रिय सखी है । श्री प्रभुन् की अनेक लीलान में मनोरथ सिध्ध करवें में उत्साही है । जो सदा युगल स्वरुप को सुख चाहे है,ये दूती रुप हे,यासुं दोनो की सेवा में हे,मानलीला में मुख्य इनकी यही सेवा है । मनायवे की कभी प्रियाजी मान में होवे तो कभी प्रितमजी मान में होंवे,दोनो रुठे तब श्री ललीताजी एसे मधुर हितकर वचन बोली के बडी चतुराई सो कभी प्रितमजी तो कभी प्रियाजी रुठे भये कुं मनाय के निकट पधराय लावे है । वही स्वरुप श्री दमलाजी को है,जो प्रिया प्रितम के उभय स्वरुप श्री वल्लभ सुं लीलान की वार्ता करें है,कभी प्रितमजी के मानकी कभी प्रियाजी के मान की फिर दोनो स्वरुप को मिलन कराय के संयोग रस बढाय के अधर सुधा को पान प्रियतमजी प्रियाजी कुं करायके रस द्रविभूत होय बहेवे लगे तब श्री ललीताजी कुं द्रष्टि सुं कटाक्ष करी कें प्रियाजी आज्ञा देवे है, शीध्र ही या रस को पान करी संयोगरस की लीला को अनुभव करो । एसी परस्पर प्रियाप्रितम की अनेक लीला में तत्पर रह कें प्रियाप्रितम कुं आनंद करायवें वारे श्री ललीताजी है । वही श्री दमलाजी वही प्रियाप्रितम के स्वरुप श्री वल्लभ या जीवन कुं लीला को परम रस देवे श्री ललीताजी के सहित भूतल पे पधारे है । एसे मेरे परम प्रिय श्रीवल्लभजी,श्री ललीताजी,श्री दमलाजी है ।
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