By Vaishnav, For Vaishnav

Thursday, 17 September 2020

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल प्रतिपदा

व्रज – आश्विन अधिक शुक्ल प्रतिपदा
Friday, 18 September 2020

विशेष - आज से पुरशोत्तम (अधिक )  मास शुरू हो रहा हे जो 18 सितंबर 2020 से 16 ऑक्टोबर 2020 तक रहेगा. श्रीजी को पूरे अधिक मास में विविध प्रकार के मनोरथ कर के रिझाया जाएगा.
(अधिक मास पर विशेष अन्य पोस्ट में )

आज के मनोरथ-
राजभोग में सायबान की फूलन की मंडली 
शाम को मणि कोठा में साँझी को मनोरथ 
(सांझी भली बनी आई)

विशेष – आज का श्रृंगार ऐच्छिक है. ऐच्छिक श्रृंगार नियम के श्रृंगार के अलावा अन्य खाली दिनों में ऐच्छिक श्रृंगार धराया जाता है. 
ऐच्छिक श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, मौसम की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञा एवं मुखिया जी के स्व-विवेक के आधार पर धराया जाता है.

मुझे ज्ञात जानकारी के अनुसार आज श्रीजी को लाल मलमल का पिछोड़ा
श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे और पाँच मोर चंद्रिका की जोड़  धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन - 

कीर्तन – (राग : सारंग)

बल बल आज की बानिक लाल l
कसुम्भी पाग पीत कुलह भरित कुसुम गुलाल ll 1 ll
विश्वमोहन नवकेसर को तिलक ललित भाल l
सुन्दर मुख कमल हि लपटावत मधुप जाल ll 2 ll
बरुनी पीत विथुरित बंद सुभग उर विसाल l
‘गोविंद’ प्रभुके पदनख परसत तरुन तुलसीमाल ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में लाल रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के होते हैं. 

शृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर लाल रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 कली, कस्तूरी एवं कमल माला धराई जाती हैं.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, मीना के लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

देखि सांझी की शोभा आली ।
कुँज महल की पौरि रचाई ,श्याम सहेली घूंघट वाली ।१।
सांची प्रीति की  केली साँझी  ,मनमोहत सखी नई निराली ।
गावत मधुर गीत प्रीती के ,नृत्य संगीत संच सुर ताली ।२।
सजि धजि संग पूंजियै प्यारी,साजी सुरति सौंज की थाली ।
मनभायौ चाह्यौ सब पावौ,सुनि सिंगारि सजि हुलसत चाली ।३।
सांझी सुरति सेज सुख अद्भुत ,श्याम सहेली प्रीती पाली ।
कृष्णचंद्र राधा चरणदासि बलि ,पूंजत मिलीं मीत बनमाली ।४।

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