By Vaishnav, For Vaishnav

Monday, 4 January 2021

श्रीराधिका स्तवनम्

"श्रीराधिका स्तवनम्"

इस अद्भुत-अलौकिक स्तोत्र के... अब तक...पाँच श्लोकों के रसास्वाद का सौभाग्य... हमें प्राप्त हुआ...। आइए... इसी शृंखला में.... आज...षष्ठ श्लोक के अवगाहन की ओर अग्रसर होते हैं...!!!

श्लोक :- 6
श्रीगोकुलेश्वर दक्षवामे युग्मरूप विराजिते 
चन्द्रावलीवृषभानुजे दिव्याSSभया खलु दीपिते।
भक्ताभिलाषितदायिके स्वीयेषु चित्तविधायिके 
युग्मं च गोकुलनायिके दासत्वमाशु हि यच्छताम्।।
श्रीराधिका भवतारिणी दूरीकरोतु ममापदम्। 
गोवर्द्धनोद्धरणेन साकं कुंज मण्डप शोभिनी।।

भावार्थ :--
श्रीगोकुलेश्वर के दक्षिण और वाम पार्श्व में...श्रीचन्द्रावलीजी और श्रीवृषभानुजा ऐसे उभय स्वरूप से विराजमान... आप... 
दिव्य शोभा से देदीप्यमान हो रहीं हैं...। भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करनेवालीं... और... निजजनों के चित्त को अपने में स्थापित करनेवालीं (तथाच निजजनों के हित में जिनका चित्त लगा हुआ है) ऐसीं श्रीगोकुलेश्वर की उभय नायिकाओं के स्वरूप से विराजमान... आप... अपने दास्य का दान मुझे शीघ्र ही करने की कृपा कीजिए। श्रीगोवर्धनधरण के संग कुंजमण्डप में शोभायमान भवसागर से पार उतारनेवालीं हे श्रीराधिकाजी! मेरी आपत्ति दूर कीजिए !!!

(क्रमशः)

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