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Monday, 12 April 2021

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०७८

व्रज - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा २०७८
Tuesday, 13 April 2021

चैत्र मास संवत्सर परवा, वरस प्रवेश भयो है आज l
कुंज महल बैठे पिय प्यारी, लालन पहेरे नौतन साज ll 1 ll
आपुही कुसुम हार गुही लीने, क्रीड़ा करत लाल मन भावत l
बीरी देत दास ‘परमानंद’, हरखि निरखि जश गावत ll 2 ll

आज की पोस्ट भी काफी लम्बी परन्तु आज से श्रीजी की सेवा में होने वाले परिवर्तनों की विलक्षण जानकारियों से युक्त है अतः इसे पूरा पढ़ें और उत्सव का आनंद लें.

आप सभी वैष्णवों को नव-संवत्सर २०७८ की ख़ूबख़ूब बधाई 
       
भारतीय नव-संवत्सर २०७८

विशेष – आज भारतीय नव-संवत्सर (नववर्ष) है. ऐसा कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिवस सूर्योदय के समय श्री ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की उत्पत्ति की थी. अतः आज इस दिन को नव-संवत्सर के रूप में मनाया जाता है. 

त्रेतायुग में आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था. 

आज ही के दिन २०७८ वर्ष पहिले उज्जैनी के सम्राट महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत का शुभारम्भ हुआ था.

शक्ति उपासना का पर्व चैत्री नवरात्रि आज से प्रारंभ हो जाता है.

आज के दिन मीठे नीम की कोंपलें और मिश्री का सेवन करना चाहिए. 

पुष्टिमार्ग में आज की सेवा श्री स्वामिनीजी की ओर से होती है अतः प्रभु को आज छापा के खुलेबंद के वस्त्र, श्रीमस्तक पर छापा की कुल्हे एवं मोरपंख की जोड़ धराये जाते हैं. 

देवीपूजन के जो पद आश्विन मास की नवरात्रि में गाये जाते हैं वही पद इन नौ दिनों में भी गाये जाते हैं. 

श्रीजी में आज से सेवाक्रम में कई परिवर्तन होंगे 

विगत कल तक मंगला में श्रीजी के श्रीअंग पर दत्तु और पीठिका पर दग्गल धरायी जा रही थी. 
आज से प्रभु के श्रीअंग पर उपरना धराया जायेगा, दग्गल पूर्ण रूप से विदा हो जाएगी. दत्तु केवल पीठिका पर धरायी जाएगी एवं श्री महाप्रभुजी के उत्सव के अगले दिन (वैशाख कृष्ण द्वादशी) से पूर्ण रूप से बड़ी कर (हटा) दी जाएगी.

आज से श्रीजी में ज़री के वस्त्र नहीं धराये जायेंगे. मलमल पर छापा के वस्त्र आज से प्रभु को धराने प्रारंभ हो जायेंगे.

कुछ वैष्णव मंदिरों में आज नववर्ष के अवसर पर मीठे नीम की कोमल कोंपलों के रस में मिश्री के टूक एवं इलायची पधराकर प्रभु के सम्मुख धरी जाती है यद्यपि ऐसा कोई सेवाक्रम श्रीजी में नहीं किया जाता. श्रीजी के पातल-घर में प्रशादी मिश्री की कणी और नीम की कोंपलें बाहर से लाकर रखी जाती है जिन्हें आज सेवकगण एवं वैष्णव लेते हैं.

आज से प्रभु की शैयाजी शैया मन्दिर के स्थान पर मणिकोठा में साजी जाती है और इस कारण आज से शयन के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
गेंद, चौगान व दिवला सभी सोने के आते हैं. राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी(स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे. सभी जगह भाँतवार बंटा चढ़े.
  
आज दिनभर झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. सभी समय आरती थाल में की जाती है. आज से प्रतिदिन आरती में एक खण्ड (बाती) कम आता है.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

श्रृंगार समय प्रभु के मुख्य पंड्याजी श्रीजी के सम्मुख नववर्ष का पंचांग वाचन करते हैं एवं न्यौछावर की जाती है.

श्रृंगार दर्शन 

कीर्तन – (राग : बिलावल)

नवनिकुंज देवी जय राधिका, वरदान नीको देहौ, प्रिय वृन्दावन वासिनी l
करत लाल आराधन, साधन करी प्रन प्रतीत, नामावली मंत्र जपत जय विलासीनी ll 1 ll
प्रेम पुलक गावत गुन, भावत मन आनंद भर, नाचत छबि रूप देखी मंद हासिनी l
अंगन पर भूषण पहिराई, आरसी दिखाई, तोरत तृन लेत बलाई सुख निवासीनी ll 2 ll....अपूर्ण

साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल पर लाल छापा की हरी किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. सिंहासन, चरणचौकी, पडघा, झारीजी आदि स्वर्ण जड़ाव के धरे जाते हैं. प्रभु के सम्मुख चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं जो प्रतिदिन राजभोग पश्चात अनोसर में धरे जाते हैं. 

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले छापा का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, लाल छापा की चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग दरियाई वस्त्र के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. मिलवा – हीरा की प्रधानता, मोती, माणक, पन्ना एवं स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल छापा की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पान, टीका, दोहरा त्रवल, पांच मोरपंख की चंद्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
बायीं ओर हीरा की चोटी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में पदक, हार, माला, दुलड़ा आदि धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती हैं.
चैत्री गुलाब के पुष्पों की सुन्दर वनमाला धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली वाली व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोना की डांडी आती है. पीठिका पर लाल छापा का सेला धराया जाता है.

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू अरोगाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है.
राजभोग की अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केसरी पेठा अरोगाये जाते हैं.
आज भोग समय फल के साथ अरोगाये जाने फीका के स्थान पर तले सूखे मेवे की बीज-चलनी अरोगायी जाती है

सभी वैष्णवों को भारतीय नववर्ष की मंगल कामना

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