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Saturday, 29 May 2021

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी

व्रज - ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी (चतुर्थी क्षय)
Sunday, 30 May 2021

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा के शृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली का प्रथम श्रृंगार एवं संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान 

शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

सोहत श्याम मनोहर गात l
श्वेत परदनी अति रसभीनी केसर पगिया माथ ll 1 ll
कर्णफूल प्रतिबिंब कपोलन अंग अंग मन्मथ ही लजात l
‘परमानंद’ दास को ठाकुर निरख वदन मुसकात ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में शरबती रंग की मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल की गोल छोर वाली बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर शरबती रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
आज मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ एक श्वेत एवं एक कमल के पुष्पों की माला हमेल की भांति धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

श्रीजी को कल ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया से आषाढ़ शुक्ल एकादशी तक प्रभु को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जाते हैं. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 
इनमें कुछ श्रृंगार नियत (Fixed) हैं यद्यपि कुछ मनोरथी के द्वारा आयोजित होते हैं. इसके अतिरिक्त उसी दिन से खस के बंगला और मोगरे की कली और पुष्पों के बंगला के मनोरथ भी प्रारंभ हो जाते हैं. 
उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. 
इसमें प्रभु श्रमित होवें इस भाव से अधिक ग्रीष्म हों तब कली के श्रृंगार के अगले दिन प्रभु को अभ्यंग कराया जाता है. 
ऊष्णकाल में नियम के चार अभ्यंग होते हैं.

आज  संध्या-आरती में श्रीजी को कली का श्रृंगार धराया जायेगा

ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान 

आज श्रीजी में संध्या-आरती के उपरांत ऊष्णकाल का प्रथम शीतल जल स्नान होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

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