व्रज - वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
Sunday, 09 May 2021
श्री महाप्रभुजी के उत्सव उपरान्त बालभाव के श्रृंगार
विशेष – श्री महाप्रभुजी के उत्सव उपरान्त कुछ बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं. आज श्रीजी को बाल-लीला के भाव से धोती-पटका का श्रृंगार धराया जाता है. सभी समां में बाल-लीला के कीर्तन ही गाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन : (राग – सारंग)
जब मेरो मोहन चलेगो घटुरुवन तब हौं री करौंगी वधाई l
सर्वसु वारी देहुँगी तिहि छिनु मैया कहि तुतुराई ll 1 ll
यशोदा के वचन सुनत ‘केशो प्रभु’ जननी प्रीति जानी अधिकाई l
नंदसुवन सुख दियो मात कों अतिकृपाल मेरो नंद ललाई ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में श्री ठाकुरजी को पलना झुलाते नंद-यशोदा जी, नंदोत्सव एवं छठी पूजन के सुन्दर कलात्मक चित्रांकन की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र अमरसी रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल मलमल की गोल-पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, सुनहरी चमक की गोल-चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में जड़ाव कर्णफूल धराये जाते हैं.
मोती एवं माणक की हमेल धरायी जाती है.
श्रीकंठ में हालरा व बघनखा धराये जाते हैं.
श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
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