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Sunday, 27 June 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी
Monday, 28 June 2021

उष्णकाल शयन दर्शन को पद
राग केदारो

चलो क्यों न देखेंरी खरे दोउ कुँजन की परछाँही।
एक भुजा गहि डार कदंब की दूजी भुजा गलबाँही।।
छबि सों छबीली लपट लटक रहि कनक बेलि तरु तमाल अरूझाई।
हरिदास के स्वामी श्यामा कुँज बिहारी रंगे हैं प्रेम रंग माँही।।

शरबती मलमल का छाप वाला आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा पगा और तुर्रा के श्रृंगार

ऊष्णकाल का चतुर्थ अभ्यंग 

विशेष - आज श्रीजी में ऊष्णकाल का चतुर्थ अभ्यंग होगा. ऊष्णकाल के ज्येष्ठ और आषाढ़ मास में श्रीजी में नियम के चार अभ्यंग स्नान और तीन शीतल जल स्नान होते हैं. यह सातो स्नान ऊष्ण से श्रमित प्रभु के सुखार्थ होते हैं. 

अभ्यंग स्नान प्रातः मंगला उपरांत और शीतल जल स्नान संध्या-आरती के उपरांत होते हैं. 

अभ्यंग स्नान में प्रभु को चंदन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है जबकि शीतल स्नान में प्रभु को बरास और गुलाब जल मिश्रित सुगन्धित शीतल जल से स्नान कराया जाता है.

जिस दिन अभ्यंग हो उस दिन अमुमन चितराम (चित्रांकन) की कमल के फूल वाली पिछवाई धराई जाती है एवं गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को सतुवा के लड्डू अरोगाये जाते हैं.

जिस दिन अभ्यंग और शीतल स्नान हो उस दिन शयनभोग की सखड़ी में विशेष रूप से विविध प्रकार के मीठा-रोटी, दहीभात, घुला हुआ सतुवा आदि अरोगाये जाते हैं.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को शरबती मलमल का छाप वाला आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर चिनमा(तह वाला) पगा और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

साज – (राग : सारंग)

आवत ही यमुना भर पानी l
श्याम रूप काहुको ढोटा वाकी चितवन मेरी गैल भुलानी ll 1 ll
मोहन कह्यो तुमको या व्रजमें हमे नहीं पहचानी l
ठगी सी रही चेटकसो लाग्यो तब व्याकुल मुख फूरत न बानी ll 2 ll
जा दिनतें चितये री मो तन तादिनतें हरि हाथ बिकानी l
'नंददास' प्रभु यों मन मिलियो ज्यों सागरमें सरित समानी ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराज जी की कन्दरा में विराजित श्री गुसांईजी के पुत्रों के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को शरबती मलमल का छाप वाला रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर शरबती मलमल के चिनमां (तह वाले) पगा के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

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