By Vaishnav, For Vaishnav

Saturday, 31 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण अष्टमी (द्वितीय)

व्रज - श्रावण कृष्ण अष्टमी (द्वितीय) 
Sunday, 01 August 2021

ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के शृंगार

विशेष – श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी जाति या धर्म से हो. 
इसी भाव से आज ठाकुर जी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं.

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांईजी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

आज प्रभु को गुलाबी किनारी के धोरा के वस्त्र धराये जायेंगे.
संध्या-आरती  डोल तिवारी में श्री मदनमोहन जी फल-फूल के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

देख गजबाज़ आज वृजराज बिराजत गोपनके शीरताज ।
देस देस ते खटदरसन आवत मनवा छीत कूल पावत 
किरत अपरंपार ऊंचे चढ़े दान जहाज़ ।।१।।
सुरभि तिल पर्वत अर्ब खर्ब कंचन मनी दीने, सो सुत हित के काज ।
हरि नारायण श्यामदास के प्रभु को नाम कर्म करावन,
महेर मुदित मन बंधि है धर्म की पाज ।।२।।

साज - श्रीजी में आज गुलाबी रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी की धोरेवाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है और चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल जड़ी होती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज गुलाबी रंग के धोरा का सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार - ठाकुरजी को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हरे मीना के छेड़ान के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर गुलाबी फेंटा का साज धराया जाता है जिसमें गुलाबी रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, बीच की चंद्रिका, कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती है. 
श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट गुलाबी रंग का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Friday, 30 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण अष्टमी

व्रज - श्रावण कृष्ण अष्टमी 
Saturday, 31 July 2021

जन्माष्टमी की बधाई बैठे, जन्माष्टमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार

विशेष – आज से ठीक एक मास पश्चात भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी होगी अतः आज उत्सव से एक माह पूर्व जन्माष्टमी के उत्सव की बधाई बैठती है. 

श्रीजी को आज जन्माष्टमी का प्रतिनिधि का श्रृंगार धराया जाता है.
प्रतिनिधि के श्रृंगार का अर्थ उत्सव के आगमन के आभास से है अथवा यूं कहा जा सकता है कि प्रभु के प्राकट्य की शुभ घड़ी निकट ही है अतः बालक श्रीकृष्ण के स्वागत की तैयारी प्रारंभ कर लीजिये.

जन्माष्टमी-नंदमहोत्सव की बधाई एक माह पूर्व बैठती है इसके विविध भाव भी जान लीजिये –

यह उत्सव महामहोत्सव होने के कारण यशोदाजी एवं रोहिणीजी के भाव से 15-15 दिन बधाई बैठती है.

इसी प्रकार श्री महाप्रभुजी (श्री स्वामिनीजी) एवं श्री गुसाईंजी (श्री चन्द्रावलीजी) के भाव से 15-15 दिन की बधाई बैठती है.

वैसे अन्य भाव में वात्सल्य एवं मधुर भाव से बधाई बैठती है. 

इसमें भी चार यूथाधिपतियों के भाव से चार बधाई बैठती है. विभिन्न प्रकार के वाधों द्वारा अगले एक मास की (आज से) झांझ की बधाई श्री यमुनाजी के भाव से, बारह दिन की (पवित्रा द्वादशी से) नौबत की बधाई श्री चन्द्रावलीजी के भाव से, आठ दिन की (रक्षाबंधन से) मांदल की बधाई श्री स्वामिनीजी के भाव से एवं इसी प्रकार आठ दिन की (रक्षाबंधन से) गीत गाने वाली गोपीजनों की बधाई कुमारिकाजी भाव से होती है.

आज से श्रीजी में बालभाव के कीर्तन गाये जाते हैं, बालभाव के श्रृंगार धराये जाते हैं

सेवाक्रम – पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
कंदराजी पर उस्ताजी का चौखटा आता हैं.
आज मंगला में केसरिया उपरना धराया जाता हैं.
संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी सोने के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

कल अर्थात श्रावण कृष्ण नवमी को श्रीजी को विशिष्ट पंचरंगी लहरिया का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर पाग पर तीन कलंगी वाले सिरपैंच के ऊपर नागफणी के कतरे का श्रृंगार धराया जायेगा. 
यह श्रृंगार वर्षभर में केवल कल के दिन ही धराया जाता है. 

इन वस्त्रों की कुछ और भी विशेषता है जो कि मैं कल की post में बताने का प्रयास करूंगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आसावरी)

धन्य यशोदा भाग तिहारो जिन ऐसो सुत जायो हो l
जाके दरस परस सुख उपजत कुलको तिमिर नसायो हो ll 1 ll
विप्र सुजन चारन बंदीजन सबै नंदगृह आये हो l
नौतन सुभग हरद दूब दधि हरषित सीस बरसाये हो ll 2 ll
गर्ग निरुप किये सुभ लच्छन अवगत है अविनासी l
‘सूरदास’ प्रभुको जस सुनिकै आनंदे व्रजवासी ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित, उत्सव की कमल के बड़े लप्पा वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. 

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल का रुपहली किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव सोने के तीन जोड़ी के आभरण धराये जाते हैं. 
नीचे पदक व ऊपर हार, माला आदि धराये जाते हैं. त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं. एक हालरा, बघनखा भी धराया जाता है.  
श्रीमस्तक पर रुपहली किनारी से सुसज्जित केसरी मलमल की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. उत्सव की हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है. 
कली, कस्तूरी आदि सब माला धरायी जाती है. पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, हीरा की वेणुजी एवं दो (एक सोना का) वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी जडाऊ की छोटी आती हैं.
 आरसी श्रृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डाँडी की आती है. 

Thursday, 29 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण सप्तमी

व्रज - श्रावण कृष्ण सप्तमी
Friday, 30 July 2021

देखो माई अति बने है गोपाल ।
तन राजत है श्याम पिछोरा श्याम पाग धरे भाल ।।१।।
श्याम ऊपरना श्याम ही फेंटा श्याम घटा अति लाल ।
रसिक प्रीतम अबके जो पाऊँ गरे धराऊँ वनमाल ।।२।।

विशेष – श्रीजी में आज नियम से श्याम रंग का पिछोड़ा और श्याम रंग के ग्वाल पगा का श्रृंगार धराया जाता है. 
जन्माष्टमी की बधाई से एक माह तक श्याम,बेंगनी,बादली इत्यादि रंग नहीं धराए जाते हे.
आज का यह श्रृंगार श्री यमुनाजी की प्रिय सखी श्यामाजी के भाव से होता है और आज की सेवा उन्हीं की ओर की है.

संध्या-आरती में श्री मदनमोहन जी  हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

कारे कारे बदरा देस देस ते उलरे श्याम बरन सब रुख भयो l
मनो हो मदन मिल्यो मदन मोहन सों करत ओट महा सघन तिमिर के बासन ननरो ll 1 ll
मोरन की सोर अति पिक को पपैया कुहूकात नुपूर धुन अलसे धूनतयो l
‘धोंधी’ के प्रभु बोली चली तहां जहाँ पातन की सेज करी पातन छयो ll 2 ll  

साज – श्रीजी में आज श्याम रंग की मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज श्याम रंग की मलमल का सुनहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. सोने के के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्याम रंग की ग्वालपाग (पगा) के ऊपर मोती की लूम, सुनहरी चमक (जमाव) की चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में लोलकबंदी लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज कमल माला धरावे.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी व कमल के पुष्प की मालाजी  धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट राग रंग का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

Wednesday, 28 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण षष्ठी

व्रज - श्रावण कृष्ण षष्ठी
Thursday, 29 July 2021

विशेष –  आज श्रीजी को इस ऋतु का अंतिम सेहरे का श्रृंगार धराया जायेगा. यह श्रृंगार कभी श्रावण कृष्ण पंचमी और कभी षष्ठी को धराया जाता है. 

शनिवार 31 जुलाई श्रावण कृष्ण अष्टमी से जन्माष्टमी की बधाई बैठेगी, प्रभु को बालभाव के श्रृंगार अधिक धराये जायेंगे और सेहरा कुमारभाव का श्रृंगार है अतः आज के बाद आश्विन नवरात्री तक श्रीजी को सेहरा नहीं धराया जाता. 

आज के दिन सखियों ने साकेत वन में प्रिया-प्रीतम को सेहरे का श्रृंगार धराकर हिंडोलना झुलाया था इस भाव से यह श्रृंगार धराया जाता है.

आज श्रीजी को अमरसी पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर अमरसी छज्जेदार पाग के ऊपर सेहरा धराया जायेगा. 

संध्या-आरती में कमलचौंक में श्री मदनमोहन जी फूल-पत्ती के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सखी री सावन दूल्हे आयो l
शीश सहेरो सरस गजमुक्ता हीरा बहुत जरायो ll 1 ll
लाल पिछोरा सोहे सुन्दर सोवत मदन जगायो l
तेसीये वृषभान नंदिनी ललिता मंगल गायो ll 2 ll
दादुर मोर पपैया बोले बदरा बराती आयो l
‘सूरदास’ प्रभु तिहारे दरसकों दामिनी हरख दिखायो ll 3 ll  

साज – आज श्रीजी में साकेत वन में विवाह के भाव की लग्नमंडप के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्री ठाकुरजी के साथ श्री स्वामिनीजी एवं श्री यमुनाजी के सेहरे के श्रृंगार में दर्शन होते हैं और सखियाँ मंगल गीत गा रहीं हैं. 
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज अमरसी मलमल का पिछोड़ा एवं राजशाही पटका धराया जाता है. पटका रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फिरोज़ा के सर्वआभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर रुपहली ज़री की बाहर की खिडकी की अमरसी छज्जेदार पाग के ऊपर हीरा व माणक का सेहरा धराया जाता है. 
बायीं ओर दो तुर्री, लूम रुपहली ज़री की एवं दायीं ओर मीना की चोटी धरायी जाती हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली व कमल माला धरायी जाती है. श्वेत पुष्पों की थाग वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, फिरोज़ा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक फिरोज़ा व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट केसरी व गोटी राग-रंग की आती है.

Tuesday, 27 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण पंचमी

व्रज - श्रावण कृष्ण पंचमी
Wednesday, 28 July 2021

विशेष – आज श्रावण मास का पाँचवा दिन हे आज का श्रृंगार श्री ललिताजी की भाव से होता है. श्रीजी को नियम के हरी मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर जमाव का कतरा धराया जाता है.  
अनोसर में श्रीमस्तक पर धरायी पाग के ऊपर की सुनहरी खिड़की बड़ी कर के धरायी जाती है.

संध्या-आरती में कमलचौंक में श्री मदनमोहन जी चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

व्रज पर नीकी आजघटा l
नेन्ही नेन्ही बुंद सुहावनी लागत चमकत बीजछटा ll 1 ll
गरजत गगन मृदंग बजावत नाचत मोर नटा l
तैसेई सुर गावत आतक पिक प्रगट्यो है मदन भटा ll 2 ll
सब मिलि भेट देत नंदलाल हि बैठे ऊंची अटा l
‘कुंभनदास’ गिरिधरन लाल सिर कसुम्भी पीत पटा ll 3 ll  

साज – श्रीजी में आज हरे रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की पठानी किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज हरे मलमल का सुनहरी पठानी किनारी से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. माणक तथा सोने के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर हरे रंग की सुनहरी जरी की बाहर की खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी लूम तथा जमाव का कतरा सुनहरी तु्र्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कमल माला धरायी जाती है. सफेद एवं पीले पुष्पों की सुन्दर दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं दो वैत्रजी धराये जाते हैं.
पट हरा व गोटी लाल मीना की आती है. 
 अनोसर में पाग पे से सुनहरी खिड़की बड़ी करके धरायी जाती हैं.

Monday, 26 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण चतुर्थी

व्रज - श्रावण कृष्ण चतुर्थी
Tuesday, 27 July 2021

देखो माई शोभा श्यामल तनकी।
मानों लई रसिक नंदनंदन सब गति नौतन धनकी।।१।।
निरख सखी नीलांबर को छोर।
झूम रह्ये सखी वदन चंदपें आई घटा घनघोर।।२।।

नील कुल्हे का श्रृंगार

विशेष – आज श्रीजी को नियम का श्रृंगार धराया जाता है. वर्षभर में केवल आज ही श्रीजी को नील कुल्हे (गहरे आसमानी रंग की कुल्हे) धरायी जाती है और कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा धराया जाता है. 

आज का उत्सव श्री यमुनाजी की ओर से होता है. श्री यमुनाजी और श्री गिरिराजजी के भाव से आज गहरे आसमानी रंग के वस्त्र एवं कुल्हे धरायी जाती है.
 
संध्या-आरती में कमलचौंक में श्री मदनमोहन जी चांदी के हिंडोलने में झूलते हैं. उनके सभी वस्त्र श्रृंगार श्रीजी के जैसे ही होते हैं. आज श्री बालकृष्णलाल जी भी उनकी गोदी में विराजित हो झूलते हैं.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : मल्हार)

तेसीय हरित भूमि तेसीय बूढ़न शोभा तेसोई इन्द्र को धनुष मेहसों l
तेसीय घुमड़ घटा वरषत बूंदन तेसेई नाचत मोर नेह सों ll 1 ll
वृन्दावन सघन कुंज गिरीगहवर विरहत श्याम श्यामा सोहें दामिनी सं देहसों l
‘छीतस्वामी’ गुननिधान गोवर्धनधारी लाल मध्य तहां गान करत लाल तान गेहसों ll 2 ll

साज – श्रीजी में आज गहरे आसमानी (शोशनी) रंग की मलमल की सुनहरी लप्पा (ज़री की तुईलैस की किनारी) से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गहरे आसमानी (शोशनी) मलमल का सुनहरी लप्पा (ज़री की तुईलैस की किनारी) से सुसज्जित पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के होते हैं.

श्रृंगार - श्रीजी को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 
श्रीमस्तक पर नील कुल्हे के ऊपर सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर हीरा का शीशफूल, दो हीरा की तुर्री धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 स्वरुप की बायीं ओर मीना की शिखा (चोटीजी) धरायी जाती हैं. 
तुलसी व पीले पुष्पों की सुन्दर कलात्मक दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक भाभीजी वाले व एक सोने के) धराये जाते हैं.
पट आसमानी व गोटी राग-रंग की आती है.

Sunday, 25 July 2021

व्रज - श्रावण कृष्ण तृतीया

व्रज - श्रावण कृष्ण तृतीया 
Monday, 26 July 2021

हिंडोलना रोपण के परचारगी श्रृंगार

विशेष – आज का श्रीजी का श्रृंगार कल के श्रृंगार का परचारगी श्रृंगार है.

अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन उपरांत उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. 

इसमें सभी वस्त्र एवं श्रृंगार लगभग सम्बंधित उत्सव की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज अगर यहाँ बिराज रहे होवे तो (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं.

आज का श्रृंगार चन्द्रावलीजी की ओर से किया जाता है अतः कल के उलट वस्त्र पीले धराये जाते हैं और ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

चल सखी देखन नंद किशोर l
श्रीराधाजु संग लीये बिहरत रुचिर कुंज घन सोर ll 1 ll
उमगी घटा चहुँ दिशतें बरखत है घनघोर l
तैसी लहलहातसों दामन पवन नचत अति जोर ll 2 ll
पीत वसन वनमाल श्याम के सारी सुरंग तनगोर l
जुग जुग केलि करो ‘परमानंद’ नैन सिरावत मोर ll 3 ll

साज – श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल का रुपहरी लप्पा का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं. कल ललिताजी की भावना से लाल वस्त्र धराये थे और आज के वस्त्र चन्द्रावलीजी की भावना से पीले होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के माणक के आभरण धराये जाते हैं. 
कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. 
श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलड़ा धराया जाता है. 
श्रीमस्तक पर पीले रंग की (आसमानी बाहर की खिडकी की) छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, पन्ने की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक माणक व एक हीरा के) धराये जाते हैं. 
पट उत्सव का, गोटी सोने की छोटी व आरसी सोने की डांडी की आती है. प्रातः श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की आती है.

Saturday, 24 July 2021

व्रज – श्रावण कृष्ण द्वितीया (प्रतिपदा क्षय)

व्रज – श्रावण कृष्ण द्वितीया (प्रतिपदा क्षय)
Sunday, 25 July 2021

विशेष - श्रावण मास प्रारंभ हो चुका हैं.
इस वर्ष प्रतिपदा क्षय के कारण एवं श्रवण नक्षत्र रात्रि 12.40 से लगने से हिंडोलना रोपण आज श्रावण कृष्ण द्वितीया को किया जायेगा. कल प्रभु को उष्णकाल के अंतिम मोती के आभरण धराये गये. आज से ठाड़े वस्त्र धराये जायेंगे. 

श्रावण मास में भगवान शंकर अपनी अर्धांगिनी माता पार्वतीजी के साथ पृथ्वी पर निवास करते हैं अतः इस मास में शिव की पूजा का विशेष महत्व है.

श्रीजी में सेवाक्रम – हिंडोलना रोपण का पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

पुष्टिमार्ग में ऊष्णकाल पूर्णतया विदा हो जाता है. प्रातःकाल प्रभु के शंखनाद के पश्चात सर्वप्रथम सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि सभी साज चांदी के बड़े (हटा) कर सोने के श्री ठाकुरजी के सम्मुख रखे जाते हैं. केवल दो गुलाबदानी, माटी के झारीजी का पड़घा एवं त्रस्टीजी चांदी के रहते हैं. चंदन बरनी पर श्वेत के स्थान पर लाल वस्त्र चढ़ाया जाता है. पंखा, चंदवा लाल मखमल के और टेरा आदि साज रंगीन साजे जाते हैं. 

चारों समय (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) आरती थाली में की जाती है. आज से आरती के दो खंड सजाये जाते हैं. झारीजी में दिनभर यमुनाजल भरा जाता है.

मंगल भोग के पश्चात ठाकुरजी को चन्दन, आवंला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) आदि से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 

आज नियम का लाल पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर पाग व मोर-चंद्रिका का श्रृंगार धराया जाता है. 

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चारोली (चिरोंजी) के लड्डू एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी का भोग अरोगाया जाता है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : मल्हार)

सखीरी सावन दूल्हे आयो l
चार मास के लग्न लिखाये, बदरन अंबर छायो ll 1 ll
बिजुरी चमके बगुआ बराती कोयल शब्द सुनायो l
दादुर मोर पपैया बोले इन्द्र निशान बजायो ll 2 ll
हरी हरी भूमि पर इन्द्रवधु सी रंग बिछोना बिछायो l
‘सूरदास’ प्रभु तिहारे मिलनको सखियन मंगल गायो ll 3 ll  

साज – श्रीजी में आज लाल रंग की मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव सोने के रखे जाते हैं. मात्र दो गुलाबदानी, माटी के झारीजी का पड़धा एवं त्रस्टीजी चांदी के रहते हैं. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है. आज से चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट नहीं की जाती.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल रंग की मलमल का सुनहरी लप्पा का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं. आज की सेवा ललिताजी एवं चन्द्रावली जी के भाव से होने के कारण लाल अनुराग के रंग के वस्त्र धराये जाते हैं. श्री स्वामिनीजी के भाव से पीले ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
नीचे पदक,ऊपर हीरा, पन्ना,मानक मोती के हार,माला,दुलड़ा धराये जाते हैं.
 कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती है.
श्रीमस्तक पर लाल (हरी बाहर की खिडकी की) छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. 
रंग-बिरंगी पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में एक कमल की कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उत्सव का, गोटी सोने की जाली की व आरसी श्रृंगार में चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

Friday, 23 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा
Saturday, 24 July 2021

पिय बीन लागत बूंद कटारी ।
छिन भीतर छिन बाहिर
आवत छिन छिन चढत अटारी ।।१।।
दादुर मोर बपैया बोले कोयल कुंजे कारि ।
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन बीन दुख व्याप्यो मोहे भारी ।।२।।

     कचौरी पूनम (गुरु पूर्णिमा)

विशेष - आज आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा है जिसे हम गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कचौरी पूनम के नाम से भी जानते हैं.

आज पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय के अलावा अन्य हिन्दू सम्प्रदायों के लोग अपने गुरु का दर्शन एवं पूजन करते हैं. पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय में गुरु का पूजन पवित्रा एकादशी के दूसरे दिन अर्थात श्रावण शुक्ल द्वादशी को किया जाता है.

आज वेदव्यासजी का जन्मदिवस है और वेदव्यासजी भगवान विष्णु के अवतार हैं अतः पुष्टिमार्ग में देहरी-वन्दनमाल का क्रम होता है.

आज से ऊष्णकाल विदा हो जाता है. प्रभु सेवा में ठाड़े वस्त्र आरम्भ हो जाते हैं. चंदन बरनी पर श्वेत के स्थान पर लाल वस्त्र चढ़ाया जाता है.
चंदवा एवं टेरा आज से रंगीन बदले जाते हैं.

सेवाक्रम - पर्वात्मक उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
सभी समय झारीजी में यमुना जल भरा जाता है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है.

आज श्रीजी में नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जाता है. प्रभु को मुख्य रूप से तीन लीलाओं (शरद-रास, दान और गौ-चारण) के भाव से मुकुट का श्रृंगार धराया जाता है. 
अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी के दिनों में मुकुट नहीं धराया जाता इस कारण देव-प्रबोधिनी से फाल्गुन कृष्ण दशमी तक एवं अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक मुकुट नहीं धराया जाता. 
जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 
जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 
जिस दिन मुकुट धराया जाये उस दिन विशेष रूप से भोग-आरती में सूखे मेवे के टुकड़ों से मिश्रित मिश्री की कणी अरोगायी जाती है. 

भोग विशेष - श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से चारोली (चिरोंजी) के लाटा के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
चारोली (चिरोंजी) के लाटा के लड्डू वर्ष भर में श्रीजी को एक बार ही गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आरोगाये जाते हैं. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.

आज श्री नवनीतप्रियाजी को विशेष रूप से पलना के भोग में जोटापूड़ी (पतली पूड़ी) के स्थान पर एवं संध्या-आरती में भी फीके के स्थान पर उड़द की दाल की कचौरी अरोगायी जाती है. 
अधिकतर पुष्टिमार्गीय मंदिरों में आज के दिन ठाकुर जी को कचौरी अरोगायी जाती है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

अरी इन मोरन की भांत देख नाचत गोपाला ।
मिलवत गति भेदनीके मोहन नटशाला ।।१।।
गरजत धन मंदमद दामिनी दरशावे ।
रमक झमक बुंद परे राग मल्हार गावे ।।२।।
चातक पिक सधन कुंज वारवार कूजे ।
वृंदावन कुसुम लता चरण कमल पूजे ।।३।।
सुरनर मुनि कामधेनु कौतुक सब आवे ।
वारफेर भक्ति उचित परमानंद पावे ।।४।।

साज – श्रीजी में आज वर्षाऋतु के आगमन पर चमकती बिजली, वन खड़े में ग्वाल-बाल, गायें एवं हिरणों के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल चूंदड़ी का सूथन, छोटी काछनी लाल एकदानी चूंदड़ी की रूपहरी किनारी की एवं बड़ी काछनी श्याम रंग की सुनहरी किनारी तथा लाल रंग की एकदानी चूंदड़ी का रास-पटका धराया जाता है. सूथन तथा रास-पटका के ऊपर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी शोभित है. ठाड़े वस्त्र सफेद डोरिया के धराये जाते हैं. आज से प्रतिदिन ठाड़े वस्त्र धराये जाएंगे.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर मोती का सुन्दर मुकुट तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हे बध्धी धरायी जाती हैं.
नीचे पदक,ऊपर हरी मणी की माला धरायी जाती हैं.
मोती की शिखा (चोटी) और श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
राजभोग में मोती का चोखटा आता हैं.
पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी जड़ाव मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत रंग का सुनहरी किनारी का और गोटी मोती की धरायी जाती हैं.
आरसी श्रृंगार में  एक झाड़ की एवं राजभोग में सोना की दाँडी की आती है.

Thursday, 22 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी
Friday, 23 July 2021

श्वेत मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर श्वेत फेटा और मोरपंख का दोहरा क़तरा के शृंगार

मैं नहीं जान्यो माई,
बहु नायक को नेह ।
मास अषाढ की धटा,घुमड आयी,
रिमझिम बरखत मेह ।।१।।
काहु त्रियन संग,नेह जोर के,
काहु के आवत प्रात उठ गेह ।
धोंधी के प्रभु रस बस कर लीने,
बड भागिन जुवति एह ।।२।।

विशेष – आज श्रीजी को नियम की परधनी
 व श्रीमस्तक पर फ़ेट के ऊपर मोरपंख का दोहरा कतरा का श्रृंगार धराया जाता हैं. आज ऊष्णकाल में अंतिम बार परधनी धरायी जायेगी.

राजभोग दर्शन 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

अंग अंग घन कांति मोतीमाल बगपांत इन्द्र धनुष वनमाला शोभा छीन छीन है l
दामिनी की दमकन पीताम्बर की चमकन मुरली की घोर मोर नाचे रेन दिन है ll 1 ll
वृन्दावन चदरी जरी रे पंछी दीजे कहा री चहु न दीजे तो झंको न गिन है l
धरनी ते चंद्रिका लीनी सिरधारी गिरिधारी हंस बोले मोर तेरी मेरे रिन है ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की परधनी धरायी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 सर्व आभरण मोती के लड वाले, श्रीमस्तक पर स्याम झाई के श्वेत फेटा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख का दोहरा कतरा और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के झुमका वाले कर्णफूल धराये जाते हैं. बध्घी मोती के लड़ की आती हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्वेत पुष्पों की ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है एवं पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की मोटी मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमनी  के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बड़ीं हक़ीक की आती हैं.

कल  आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा है जिसे हम गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कचौरी पूनम के नाम से भी जानते हैं.

कल की पोस्ट में पूर्णिमा पर विशिष्ट विवरण होग.

Wednesday, 21 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी
Thursday, 22 July 2021

श्वेत मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल छोरवाली पाग के ऊपर श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा क़तरा के शृंगार

विशेष – आज श्रीजी को नियम का आड़बंद व श्रीमस्तक पर गोल छोरवाली पाग के ऊपर श्वेत खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा कतरा) का श्रृंगार धराया जाता  आज ऊष्णकाल में अंतिम बार आड़बंद धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

हों इन मोरनकी बलिहारी l
जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll
बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l
सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll
बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l
सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll
बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l
‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत रंग के मलमल की बिना किनारी की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण मोती के, श्रीमस्तक पर श्वेत मलमल की छोर वाली गोलपाग के ऊपर सिरपैंच, खंडेला (श्वेत मोरपंख का दोहरा कतरा)और बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं श्वेत पुष्पों की ही दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में चार कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी और एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी छोटी हक़ीक की धरायी जाती हैं.

भक्तवत्सल प्रभु श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को मान दिया है एवं अपनी कृपा से व्रज के सभी जीवमात्रों, पेड़-पौधों को कृतार्थ किया है. 
श्री गोवर्धन पर्वत की चारों दिशाओं में 132 वन हैं जिनमें 96 सुगन्धित पुष्प एवं जीवोपयोगी वनौषधियां हैं जिनको कृतार्थ करने के भाव से कल श्रीजी को संध्या-आरती दर्शन में वनमाला धरायी जाएगी. यह वर्ष में केवल एक बार आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को धरायी जाती है. 
कल प्रभु को ऊष्णकाल में अंतिम बार परधनी धरायी जाएगी. 

Tuesday, 20 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वादशी 
Wednesday, 21 July 2021

पीले मलमल पर मेघश्याम हाशिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और क़तरा अथवा चंद्रिका के श्रृंगार 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को पीले मलमल पर मेघश्याम हाशिया का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और क़तरा अथवा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

कुंवर चलोजु आगे गहवरमें जहाँ बोलत मधुरे मोर l
विकसत वनराजी कोकिला करत रोर ।।१।।
मधुरे वचन सुनत प्रीतम के लीनो प्यारी चितचोर l
‘गोविंद’ बलबल पिय प्यारी की जोर ।।२।।

साज – श्रीजी में आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज के समस्त परिवारजनों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरी जाती है जिसमें स्वयं श्री गोविन्दलालजी महाराज बायीं ओर खड़े आरती कर रहे हैं और दायीं ओर क्रमशः नित्यलीलास्थ श्री राजीवजी (दाऊबावा), चिरंजीवी श्री विशालबावा, वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराज एवं उनकी माता श्री विजयलक्ष्मी बहूजी खड़ीं हैं. बायीं ओर विराजित स्वरूपों में बाएं से दूसरे श्री राजेश्वरीजी बहूजी (वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेश जी महाराज श्री के बहूजी) हैं. गादी, तकिया और चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
(यद्यपि आज वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री राकेशजी महाराज के तिलकोत्सव की नवीनतम पिछवाई धरायी जायेगी)

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले मलमल पर मेघश्याम हाशिया पिछोड़ा का धराया जाता है. पिछोड़ा रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर पीली छज्जेदार पाग  के ऊपर सिरपैंच, लूम, क़तरा अथवा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हक़ीक की आते हैं.

Monday, 19 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल एकादशी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल एकादशी 
Tuesday, 20 July 2021

देवशयनी एकादशी (चातुर्मास नियमारम्भ)

मुकुट-काछनी का श्रृंगार

विशेष – आज देवशयनी एकादशी है. 
सनातन धर्म में एकादशी का महत्वपूर्ण स्थान है. प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती हैं.

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है. कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं. 

सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है. इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें जगाया जाता है. 
उस दिन को देव प्रबोधिनी एकादशी (देवोत्थापन) कहा जाता है. इस बीच के अंतराल को चातुर्मास कहा जाता है. 

आज से चार माह अर्थात देव प्रबोधिनी एकादशी तक विवाहादि कुछ शुभ कार्य वर्जित होते हैं.

आज श्रीजी को लगभग तीन माह पश्चात इस ऋतु का प्रथम मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.

जब भी मुकुट धराया जाता है वस्त्र में काछनी धरायी जाती है. काछनी के घेर में भक्तों को एकत्र करने का भाव है. 

जब मुकुट धराया जाये तब ठाड़े वस्त्र सदैव श्वेत रंग के होते हैं. ये श्वेत वस्त्र चांदनी छटा के भाव से धराये जाते हैं. 

ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की चारों एकादशियों में श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में लिचोई (मिश्री के बूरे और इलायची पाउडर से सज्जित पतली पूड़ी) अरोगायी जाती है.

इसके अतिरिक्त आज विशेष रूप से द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर से अनसखड़ी में श्रीजी के अरोगने हेतु मांडा (मीठी रोटी) और आमरस की सामग्री पधारती हैं जो कि प्रभु को संध्या-आरती में अरोगायी जाती है.

राजभोग दर्शन -

कीर्तन – (राग : मल्हार)

माईरी श्यामघन तन दामिनी दमकत पीताम्बर फरहरे l
मुक्ता माल बगजाल कही न परत छबी विशाल मानिनीकी अरहरे ll 1 ll
मोर मुकुट इन्द्रधनुष्यसो सुभग सोहत मोहत मानिनी धुत थरहरे l
‘कृष्णजीवन’ प्रभु पुरंदर की शोभा निधान मुरलिका की घोर घरहरे ll 2 ll

श्रीजी में आज श्री यमुना जी में जलविहार करते हुए तथा तथा खस के बंगले बिराजते हुए श्री ठाकुर जी, श्री स्वामिनी जी एवं गोपीयों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज सुवापंखी रंग का सूथन, काछनी (लाल हांशिया की) तथा रास-पटका धराया जाता है. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत डोरिया के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर मोती का अद्वितीय मुकुट तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
स्वरुप की बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. 
कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा-जमनी (सोने-चांदी) के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है.

Sunday, 18 July 2021

व्रज – आषाढ़ शुक्ल दशमी

व्रज – आषाढ़ शुक्ल दशमी
Monday, 19 July 2021

गुलाबी मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा के शृंगार

विशेष – आज बैंगन दशमी है. 
श्रीनाथजी के अलावा अन्य सभी पुष्टिमार्गीय वैष्णव मंदिरों में कल से चार माह अर्थात देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक बैंगन का प्रयोग वर्जित है. 
इसीलिए आज इन सभी पुष्टि स्वरूपों को अनसखड़ी भोग में बैंगन के गुंजा (समोसे), बैंगन के पकौड़े, बैंगन की सब्जी आदि विशेष रूप से आरोगाये जाते हैं वहीँ सखड़ी भोग में प्रभु को बैंगन भात, बैंगन की कढ़ी, बैंगन के पकौड़े, बैंगन के तले हुए चकते, आखा (भरवां) बैंगन की सब्जी आदि आरोगाये जाते हैं.

गोवर्धनधरण में बैंगन की कोई वर्जना नहीं है अतः श्रीजी को
पूरे वर्ष बैंगन से निर्मित सामग्रियां अरोगायी जाती हैं. 
कई पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिवारों में चतुर्मास में बाजार से खरीद कर बैंगन नहीं खाए जाते परन्तु श्रीजी के अरोगे हुए महाप्रसाद के बैंगन की वर्जना नहीं होती.

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और तुर्रा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : मल्हार)

हों इन मोरनकी बलिहारी l
जिनकी सुभग चंद्रिका माथे धरत गोवर्धनधारी ll 1 ll
बलिहारी या वंश कुल सजनी बंसी सी सुकुमारी l
सुन्दर कर सोहे मोहन के नेक हू होत न न्यारी ll 2 ll
बलिहारी गुंजाकी जात पर महाभाग्य की सारी l
सदा हृदय रहत श्याम के छिन हू टरत न टारी ll 3 ll
बलिहारी ब्रजभूमि मनोहर कुंजन की अनुहारी l
‘सूरदास’ प्रभु नंगे पायन अनुदिन गैया चारी ll 4 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी मलमल की आसमानी हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का आसमानी हाशिये का आड़बंद धराया जाता है. आड़बंद रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, तुर्रा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

Saturday, 17 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल नवमी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल नवमी
Sunday, 18 July 2021

प्राचीन सेला के केसरी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सेहरा के श्रृंगार 

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को प्राचीन सेला के केसरी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सेहरा का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

आज बने गिरिधारी दूलहे,
चंदन की तन खोर करें ।।
सकल सिंगार बने मोतीनके,
बिविध कुसुम की माला गरें ।।१।।
खासा को कटि बन्यो पिछोरा,
मोतीन सहेरो शीश धरें ।।
राते नयन बंक अनियारे,
चंचल खंजन मान हरें ।।२।।
ठाडे कमल फिराजत,
गावत कुंडल श्रमकण बिंदु परें ।।
सूरदास मदन मोहन मिल,
राधासों रति केलि करें ।।३।।

साज - श्रीजी में आज श्री गिरिराजजी के निकुंज में विवाह खेल की निकुंज-लीला, सेहरे के श्रृंगार में दर्शन देते श्री स्वामिनी जी एवं श्री यमुना जी के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज प्राचीन सेला के केसरी धोती एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 सर्वआभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर केसरी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर लालफोंदना वाला मोती का सेहरा, बायीं ओर शीशफूल एवं दायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. आज श्रीमस्तक पर तुर्री धराई जाती हैं.
 श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 तुलसी एवं श्वेत पुष्पों वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. कली आदि माला धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट राग रंग का एवं गोटी लाल रंग की आती हैं.

Friday, 16 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल अष्टमी(सप्तमी क्षय)

व्रज - आषाढ़ शुक्ल अष्टमी(सप्तमी क्षय)
Saturday, 17 July 2021

आज कछु कुंजनमें बरबासी ।
दलबादरमें देख सखीरी चमकत है चपलासी ।।१।।
न्हेनी न्हेनी बूदंन बरखन लागी पवन चलत सुखरासी ।
मंद मंद गरजन सुनियत है नाचत मोर कलासी ।।२।।

अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और चमकनी गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और चमकनी गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –
 
कीर्तन – (राग : मल्हार)

कुंवर चलोजु आगे गहवरमें जहाँ बोलत मधुरे मोर l
विकसत वनराजी कोकिला करत रोर ।।१।।
मधुरे वचन सुनत प्रीतम के लीनो प्यारी चितचोर l
‘गोविंद’ बलबल पिय प्यारी की जोर ।।२।।

 साज – आज श्रीजी में श्री गिरिराजजी की कन्दरा में निकुंजलीला के सुन्दर चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है जिसमें श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं श्री गोपीजन श्रीप्रभु की सेवा में रत है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी के ऊपर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल की परधनी धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
हीरा के सर्व आभरण, श्रीमस्तक पर अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम तथा चमकनी गोल चंद्रिका और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल की एक जोड़ी धराये जाते हैं.
पीले पुष्पों की रंगीन थाग वाली दो कलात्मक सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. इसी प्रकार दो मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का एवं गोटी हक़ीक की आती है.

Thursday, 15 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल षष्ठी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल षष्ठी
Friday, 16 July 2021

देखो माई ये बड़भागी मोर ।
जिनके पंखको मुकुट बनत है सिर धरे नंदकिशोर।।१।।
ये बड़भागी नंद यशोदा पुण्य कीये भर झोर ।
वृंदावन हम क्यों न भई है लागत पग की ओर ।।२।।

कसूंभा (छठ) षष्ठी 

विशेष – आज का दिन पुष्टिमार्ग में विशेषकर पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ नाथद्वारा में अतिविशिष्ट है.

सर्वप्रथम आज श्री वल्लभाचार्यजी के लौकिक पितृचरण श्री लक्ष्मणभट्टजी का प्राकट्योत्सव है.

प्रधान पीठ में आज के दिन ही नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गोविन्दलालजी महाराज भी गादी बिराजे थे. आपश्री का औपचारिक और विधिवत गादी उत्सव गंगादशमी को हुआ था.

आज वर्तमान गौस्वामी तिलकायत श्री 108 श्री इन्द्रदमनजी (श्री राकेशजी) महाराजश्री का गादी उत्सव हैं. आज के दिन विक्रम संवत 2057 में आप गादी बिराजे थे.

आज भक्त ईच्छापूरक प्रभु श्रीनाथजी ने श्री गुसाईजी को विप्रयोगानुभव से मुक्त कर, दर्शन दे कर उनकी सेवा को पुनः अंगीकार किया था अतः अनुराग स्वरुप लाल (कसुम्भल) रंग के वस्त्र धराये जाते हैं और प्रभु के यशप्रसार के भाव से ठाड़े वस्त्र श्वेत धराये जाते हैं. आज के दिन ही चन्द्र-सरोवर के विप्र-योग अनुभव के पश्चात् श्री गुंसाईजी का सेवा में पुनः प्रवेश हुआ था. 
अष्टसखा कीर्तनकार कृष्णदासजी ने आज के दिन ही निम्नलिखित प्रसिद्द कीर्तन गाया एवं श्री गुंसाईजी ने कृष्णदासजी को प्रभु से साक्षात् कराया.

“परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन करत कृपा निज हाथ दे माथे l
जे जन शरण आय अनुसरही गहे सोंपत श्री गोवर्धननाथ ll 1 ll 
परम उदार चतुर चिंतामणि राखत भवधारा बह्यो जाते l
भजि ‘कृष्णदास’ काज सब सरही जो जाने श्री विट्ठलनाथे ll 2 ll”

इसके अतिरिक्त आज धरायी जाने वाली पिछवाई के सन्दर्भ में एक सुंदर प्रसंग है. 

श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर चित्रांकन वाली प्राचीन पिछवाई धरायी जाती है. बहुत कम लोग जानते हैं कि यह दो भागों में बनी हुई है.

कई वर्षों पूर्व एक वैष्णव ने इस पिछवाई का आधा भाग जो कि जापान के एक काफी विशिष्ट कपड़े पर निर्मित था जिसमें गर्दन उठा कर कूकते मयूरों का सुन्दर चित्रांकन था. 
तत्कालीन गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी को ये वस्त्र बहुत पसंद आया और वे इसे प्रभु की पिछवाई के रूप में प्रयोग करना चाहते थे पर प्रभु सेवा में आवश्यक माप से कम होने के कारण यह अनुपयोगी था. 

तब आपने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति बिल्कुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लायेगा उसे मुँहमाँगा पुरस्कार दिया जायेगा. तब एक गुजराती शिक्षक दम्पति बिलकुल ऐसा ही जापानी वस्त्र लाये और प्रभु में भेंट किया जिसे इस पिछवाई में जोड़कर नाथद्वारा के एक ख्यातनाम चित्रकार ने दुसरे भाग में भी ऐसा ही सुन्दर चित्रांकन किया. 

तबसे यह पिछवाई प्रतिवर्ष इस दिन प्रभु में नियम से धरायी जाती है. यद्यपि अत्यंत प्राचीन होने के कारण यह काफ़ी जर्जर हो चुकी है परन्तु इसकी अद्भुत चित्रकारी का आज भी कोई सानी नहीं है.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

सभी समय झारीजी में यमुना जल भरा जाता है. दिन में दो समय की आरती थाली में की जाती है.

मंगला में प्रभु को कसुम्भल (लाल) मलमल का उपरना धराया जाता है.
श्रृंगार समय प्रभु को नियम से पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा व श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सादी मोरपंख की चन्द्रिका धरायी जाती है.

श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशर-युक्त जलेबी के टूक, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखडी में मीठी सेव, केसर युक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.

श्रीनवनीत प्रियाजी में भी विशेष रूप से सायंकाल शयन भोग में वर्तमान तिलकायत के गादी बिराजने के अवसर पर मनोरथ भोग अरोगाया जाता है जिसमें जलेबी टूक, मनोर के लड्डू, पतली पूड़ी, खीर, गुंजा-कचौरी, चना-दाल, बीज-चालनी के सूखे मेवे, दहीवड़ा, बूंदी का रायता, आमरस, आम का बिलसारू (मुरब्बा) आदि आरोगाये जाते हैं.
आज श्री नवनीतप्रियाजी शयन समय बाहर चबूतरा पर बिराजित हो आनन्द वर्षा करते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

श्रीवल्लभ नंदन रूप अनूप स्वरुप कह्यो न जाई l
प्रकट परमानंद गोकुल बसत है सब जगत के सुखदाई ll 1 ll
भक्ति मुक्ति देत सबनको निजजनको कृपा प्रेम बरखत अधिकाई l
सुखमें सुखद एक रसना कहां लो वरनौ ‘गोविंद’ बलि जाई ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज अपनी गर्दन ऊँची कर कूकते, वर्षाऋतु के आगमन की बधाई देते मयूरों के सुन्दर चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज पठानी किनारी से सुसज्जित कसुम्भल (लाल) मलमल का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद भांतवार होते हैं.

श्रृंगार - प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
 सर्व आभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर कसुमल(लाल) मलमल की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मोती के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
कली, वल्लभी आदि सभी माला आती हैं. 
आज हांस, त्रवल आदि नहीं धराये जाते, वहीं जड़ाऊ थेगड़ा की बघ्घी धरायी जाती है.
 श्वेत पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. पीठिका के ऊपर श्वेत पुष्पों की थागवाली मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत (सुनहरी किनारी का), गोटी मोती की व आरसी श्रृंगार में  लाल मखमल की एवं राजभोग में सोना की डांडी की आती है.

सभी पुष्टि वैष्णवों को विविध दिव्य प्रसंगों की बधाई

Wednesday, 14 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पंचमी

व्रज - आषाढ़ शुक्ल पंचमी
Thursday, 15 July 2021

नियम को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार

 उत्थापन दर्शन पश्चात नियम का मोगरे की कली का शृंगार (कली के शृंगार पर विशिष्ट पोस्ट आज दोपहर तीन बजे)

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में कुछ नियम के श्रृंगार धराये जाते हैं जो वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में भी धराये जाते हैं.
इसमें विशेष यह है कि ये वस्त्र श्रृंगार वैशाख मास में जिस क्रम से आवें उसके ठीक उलट क्रम से आषाढ़ मास में धराये जाते हैं.

आज श्रीजी को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराया जायेगा. आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के मध्य में धराया जाता है.

मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

वृन्दावन कनकभूमि नृत्यत व्रज नृपतिकुंवर l
उघटत शब्द सुमुखी रसिक ग्रग्रतततत ता थेई थेई गति लेत सुधर ll 1 ll
लाल काछ कटि किंकिणी पग नूपुर रुनझुनत बीच बीच मुरली धरत अधर l
‘गोविंद’ प्रभु के जु मुदित संगी सखा करत प्रसंशा प्रेमभर ll 2 ll 

साज – आज श्रीजी में माखनचोरी लीला के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें कृष्ण-बलराम अपने मित्रों के साथ मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार धराये माखन चोरी कर रहे हैं. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. एक पटका आगे और एक कंदराजी पर आता हैं. ठाड़े वस्त्र चंदनी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्वआभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें गुलाबी रंग की टिपारे की टोपी के ऊपर बीच में चमक की मोरशिखा, दोनों ओर दोहरे कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मोती के कुंडल धराये जाते हैं. श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी धराये जाते हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ बकरी की आती हैं.

Tuesday, 13 July 2021

व्रज – आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी

व्रज – आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी
Wednesday, 14 July 2021

गुलाबी मलमल का सुवापंखी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा अथवा चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सुवापंखी हाशिये का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और क़तरा अथवा चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

तनक प्याय दे पानी याहि मिस गए वाके घर l
समझ बूझ के जल भर लाई पीवन लागे ओक ढीली करि
तब ग्वालिन मंद मंद मुसिकानी ll 1 ll
वेही जल वैसे ही गयो ओर जल भर लाई
तब ग्वालिन बोली मधुर सी बानी l
‘चतुरबिहारी’ प्यारे प्यासे हो तो पीजिये
नातर सिधारो रावरे जु प्यास मैं जानी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी मलमल की सुवापंखी हाशिये की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का सुवापंखी हाशिये का आड़बंद धराया जाता है. आड़बंद रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के  ऊपर सिरपैंच, क़तरा अथवा चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

Monday, 12 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल तृतीया

व्रज - आषाढ़ शुक्ल तृतीया 
Tuesday, 13 July 2021

छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब हमारा है।।

आज ताज़बीबी के अन्नय भाव के सूथन, फेंटा और पटका के श्रृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार (कली के शृंगार पर विशिष्ट पोस्ट आज दोपहर तीन बजे)

विशेष – ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाता है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के मध्य में धराया जाता है.

श्रीजी ने अपने सभी भक्तों को आश्रय दिया है, मान दिया है चाहे वो किसी भी धर्म से हो. 

इसी भाव से आज ठाकुरजी अपनी अनन्य मुस्लिम भक्त ताज़बीबी की भावना से सूथन-पटका का श्रृंगार धराते हैं. यह श्रृंगार ताज़बीबी की विनती पर सर्वप्रथम भक्तकामना पूरक श्री गुसांईजी ने धराया था. 

ताज़बीबी की ओर से यह श्रृंगार वर्ष में छह बार धराया जाता है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) के दिन यह श्रृंगार नियम से धराया जाता है यद्यपि इस श्रृंगार को धराने के अन्य पांच दिन निश्चित नहीं हैं. 

ताज़बीबी बादशाह अकबर की बेग़म, प्रभु की भक्त और श्री गुसांई जी की परम-भगवदीय सेवक थी. उन्होंने कई कीर्तनों की रचना भी की है और उनके सेव्य स्वरुप श्री ललितत्रिभंगी जी वर्तमान में गुजरात के पोरबंदर में श्री रणछोड़जी की हवेली में विराजित हैं.

आज श्रीजी को सूथन, फेंटा और पटका का श्रृंगार धराया जाएगा है. यद्यपि आज का दिन इस श्रृंगार के लिए नियत नहीं परन्तु सामान्यतया आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के मध्य में धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

ओढे लाल उपरैनी झिनी ।
तन सुख सेत सुदेश अशं पर बहुत अगरज भीनी ।।१।।
अति सुगंध सीतल ऊर चंदन आदि ये रचना कीनी ।
हरी धरी भु पर पाग दुपेचीं कोटि मदन छबी छीनी ।।२।।
सूथन बनी हिरमिचीं शोभित गति गयंदकी
लीनी ।
परमानंद प्रभु चतुर शिरोमनि व्रजवनिता प्रेम रति दीनी ।।३।।

साज – आज श्रीजी में सुवापंखी धोरा के रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सुवापंखी धोरा के रंग की मलमल का धोरे (थोड़े-थोड़े अंतर से किनारी के धोरे) वाला सूथन और राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं. ठाड़े वस्त्र गुलाबी रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन छेड़ान का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुवापंखी धोरा के रंग के फेंटा के ऊपर सिरपैंच, चंद्रिका, कतरा तथा बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.
 श्रीकर्ण में लोलकबिन्दी (लड़ वाले कर्णफूल) धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, गंगा जमुनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी बाघ-बकरी की आती है.

Sunday, 11 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वितीया

व्रज - आषाढ़ शुक्ल द्वितीया 
Monday, 12 July 2021

श्वेत चौखाना की मलमल का किनारी के धोरा वाला आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे और तीन मोर पंख की चंद्रिका के शृंगार

विशेष – आज मंगला में धोरा का आड़बंद धराया जाता है. पूरे दिन में दो समय आरती थाली में होती है.

आज श्रीजी को अतिविशिष्ट श्रृंगार धराया जायेगा. वर्ष में केवल एक बार रथयात्रा के अगले दिन श्री ठाकुरजी को आड़बंद के ऊपर श्वेत कुल्हे तथा कुंडल का मध्य का श्रृंगार धराया जाता है.

सामान्यतया श्रीजी प्रभु को आड़बंद के साथ कुल्हे जोड़ या कुंडल नहीं धराये जाते व श्रृंगार भी छोटा धराया जाता है. 
साथ ही आज रथ के चित्रांकन से सुशोभित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसमें ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु स्वयं रथ में विराजित हों.

आज से जन्माष्टमी तक प्रभु को सायं भोग समय फल के भोग के साथ क्रमशः तीन दिन कच्ची (चने की दाल, मूंग की दाल और अंकुरित मूंग) और तीन दिन छुकमां (चने की दाल, मूंग की दाल और अंकुरित मूंग) अरोगाये जायेंगे.

आज से प्रभु को सतुवा (लड्डू व घोला हुआ), श्रीखण्ड-भात आदि नहीं अरोगाये जाते.
आज से प्रभु को सतुवा की जगह मगद के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

रथयात्रा से आषाढ़ी पूनम तक श्रीजी के सम्मुख चांदी का रथ (चित्र में दृश्य) रखा जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

आयो आगम नरेश देश देशमें आनंद भयो मन्मथ अपनी सहाय कु बुलायो l
मोरन की टेर सुन कोकिला कुलाहल तेसोई दादुर हिलमिल सुर गायो ll 1 ll
चढ्यो घन मत्त हाथी पवन महावत साथी अंकुश बंकुश देदे चपल चलायो l
दामिनी ध्वजा पताका फरहरात शोभा बाढ़ी गरज गरज घों घों दमामा बजायो ll 2 ll
आगे आगे धाय धाय बादर बर्षत आय ब्यारन की बहु कन ठोर ठोर छिरकायो l
हरी हरी भूमि पर बूंदन की शोभा बाढ़ी वरण वरण बिछोना बिछायो ll 3 ll
बांधे है विरही चोर कीनी है जतन रोर संजोगी साधनसों मिल अति सचुपायो l
‘नंददास’ प्रभु नंदनंदनके आज्ञाकारी अति सुखकारी व्रजवासीन मन भायो ll 4 ll

साज - श्रीजी में आज रथयात्रा के चित्रांकन से सुशोभित पिछवाई धरायी जाती है. पिछवाई में रथ का चित्रांकन इस प्रकार किया गया है कि श्रीजी स्वयं रथ में विराजित प्रतीत होते हैं. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज श्वेत चौखाना की मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित, किनारी के धोरा वाला आड़बंद धराया जाता है. आज ठाड़े वस्त्र नहीं धराये जाते.

श्रृंगार - प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. छेड़ान के आभरण हीरे के धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
हांस, त्रवल, कड़ा, हस्तसांखला, पायल आदि सभी धराये जाते हैं.
श्वेत एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट श्वेत सुनहरी किनारी का व गोटी सोने की राग-रंग की आती है.

Saturday, 10 July 2021

व्रज - आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा

व्रज - आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा 
Sunday, 11 July 2021

             रथयात्रा

मनोरथात्मकरथे रथात्मात्मन् हरे मम l
श्रीकृष्णस्योपवेशार्थमधिवासं कुरु प्रभो ll

भावार्थ - हे प्रभु, मेरे मनोरथात्मक हृदयरुपी रथ में प्रभु श्रीकृष्ण के बिराजवे की योग्यता करने के लिये अधिवास करें 
अथवा मेरे इस हृदयरुपी रथ में हे हरि (सर्वदुःख हर्ता) अधिवास (अधिकवास) करें.

हे कृष्ण, आपके लिये ही मनोरथात्मक रथ की भावना की है अतः आप इस रथ में बिराजकर मेरे भी मनोरथ पूर्ण करें जिस प्रकार आपने गोपीजनों के मनोरथ पूर्ण किये हैं.
हे प्रभु, आप बलरामजी एवं सुभद्रा बहन सहित मेरे हृदयरुपी रथ में आरूढ़ होकर मुझे भक्तिदान द्वारा इस संसार-सागर से उबारें अथवा भक्तिदान द्वारा संसार-सागर से मेरी रक्षा करें.

सभी वैष्णवों को भक्त मनोरथ पूरक प्रभु के रथ में बिराजने की बधाई

श्रीजी में आज रथयात्रा है. पुष्टिमार्ग में यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया में जिस दिन सूर्योदय के समय पुष्य नक्षत्र हो उस दिन होती है.
23 जून  दोपहर 1 बजकर 34 मिनिट से पुष्य नक्षत्र है अतः प्रभु रथ में आषाढ़ शुक्ल तृतीया 24 जून को विराजित होंगे.

ऊष्णकाल पूर्ण हो चुका है और वर्षा ऋतु प्रारंभ होने को है अतः अब सेवाक्रम में कुछ परिवर्तन होंगे. मंगला से सभी दर्शनों के कीर्तनों में राग मल्हार गाया जाता है. इसके अतिरिक्त आज से प्रतिदिन मंगला में आड़बंद के स्थान पर उपरना धराया जायेगा 

आज से श्रीजी को पुनः ठाड़े वस्त्र धरने प्रारंभ हो जायेंगे यद्यपि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक कुछ मुख्य दिनों को ही ठाड़े वस्त्र धराये जायेंगे. तदुपरांत प्रतिदिन प्रभु को ठाडे वस्त्र धराये जायेंगे.

शीतल जल के फव्वारे, खस के पर्दे, जल का छिड़काव, प्रभु के सम्मुख जल में रजत खिलौनों का थाल, मणिकोठा में पुष्पों पत्तियों से सुसज्जित फुलवारी आदि ऊष्णकाल के धोतक साज आज से पूर्ण हो जायेंगे.

रथयात्रा के दिन ही मध्याह्न समय श्री महाप्रभुजी ने गंगाजी की मध्यधारा में सदेह प्रवेश कर आसुरव्यामोह लीला कर नित्यलीला में प्रवेश किया था.

श्रीजी का सेवाक्रम - रथयात्रा का पर्व होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.

आज सिंहासन, चरणचौकी, पड़घा, झारीजी, बंटाजी आदि जड़ाव स्वर्ण के धरे जाते हैं. गेंद, चौगान, दिवाला आदि सभी चांदी के आते हैं. 
माटी के कुंजों में शीतल सुगन्धित जल भरकर कलात्मक रूप से वस्त्र में लपेटकर प्रभु के सम्मुख चांदी के पड़घा के ऊपर रखे जाते हैं. चांदी के त्रस्टीजी धरे जाते हैं.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 

 श्री महाप्रभुजी ने वि.सं.1587 मि. आषाढ़ शु.2, रविवार को रथयात्रा उत्सव के दिन मध्यान्ह में हनुमान घाट काशी में सुर सरिता गंगाजी के प्रवाह में प्रवेश कर आसुरव्यामोह लीला कर नित्यलीला में प्रवेश किया था किया अतः आज के दिन श्रीजी को श्वेत वस्त्र धराये जाते हैं.
पर्वरुपी उत्सव के कारण कुल्हे जोड़ का श्रृंगार धराया जाता है. 
आज से आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है.

भोग - श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कूर (कसार) के गुंजा और दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 

श्रीजी को उत्सव भोग भी गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में ही धरे जाते हैं. 
उत्सव भोग में विशेष रूप से आम, जामुन, अंकूरी (अंकुरित मूंग) के बड़े थाल, शीतल के दो हांडा, खरबूजा के बीज-चिरोंजी के लड्डू, खस्ता शक्करपारा, छुट्टी बूंदी, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बरफी, दूधपूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, तले हुए बीज-चालनी के सूखे मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल आदि अरोगाये जाते हैं. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में घोला हुआ सतुवा, मीठी सेव, श्रीखण्ड-भात, दहीभात और केसरी पेठा अरोगाया जाता है. 

आज प्रभु को उष्णकाल की विशिष्ट सामग्री ‘सतुवा’ अंतिम बार अरोगाये जाते हैं. मेष संक्रांति (14 अप्रैल) से रथयात्रा तक श्रीजी में मगद (बेसन के लड्डू) के स्थान पर सतुवा अरोगाये जाते हैं.
यह सामग्री अनसखड़ी में लड्डू के रूप में व सखड़ी में घोले हुए सतुवा के रूप में अरोगायी जाती है और उष्णकाल में विशिष्ट लाभप्रद होती है. 
कल से प्रभु को मगद के लड्डू पुनः अरोगाये जाने आरंभ हो जायेंगे.

आज भोग-आरती में प्रभु को छुंकमां अंकूरी (अंकुरित मूंग) अरोगायी जाती है. मैं पूर्व में भी बता चुका हूँ कि अक्षय तृतीया से रथयात्रा तक प्रतिदिन संध्या-आरती में प्रभु को बारी-बारी से जल में भीगी चने की दाल (अजवायन युक्त), भीगी मूँग दाल व तीसरे दिन अंकुरित मूँग (अंकूरी) अरोगाये जाते हैं. 
आज से जन्माष्टमी तक इस क्रम में कुछ परिवर्तन होगा. आज से श्रीजी को यही सामग्री तीन दिन छुकमां व अगले तीन दिन कच्ची अरोगायी जाएगी.

राजभोग दर्शन 

कीर्तन – (राग : मल्हार)

गोवर्धन पर्वत के ऊपर परम मुदित बोलत हे मोर l
अति आवेश होत सबही के मन, ठायं ठायं नाचत मोर,
ध्वनि सुन मुरली की मंदस्वर कलघोर ll 1 ll
श्रीअंग जलद घटा सुहाई वासन दामिनी
इन्द्रवधु वनमाल मोतिनहार झलक डोर l
‘कुंभनदास’ प्रभु प्रेम नीर बरखत नित निरंतर अंतर
गिरिवरधरनलाल नवल नंदकिशोर ll 2 ll

साज - श्रीजी में आज सफेद मलमल की सुनहरी ज़री की तुईलैस के ‘धोरे-वाली’ वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को आज सफेद मलमल पर सुनहरी ज़री के धोरा वाला पिछोड़ा धराया जाता है. चंदनिया रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. 

श्रृंगार – श्री ठाकुरजी को आज वनमाला (चरणारविन्द) से दो अंगुल ऊंचा ऊष्णकालीन भारी श्रृंगार धराया जाता है. सर्व आभरण हीरा के मिलमा धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
आज हांस, चोटी, पायल आदि नहीं धराये जाते. श्रीकंठ में कली, वल्लभी आदि सभी माला, नीचे पदक, ऊपर माला, हार आदि सब धराये जाते हैं. 
सफेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. पीठिका के ऊपर मोती का चौखटा धराया जाता है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी तथा दो वेत्रजी (हीरा व मोती के) धराये जाते हैं.
पट उष्णकाल का व गोटी मोती की आती है.
आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

 श्रीजी के सम्मुख चांदी का रथ रखा जाता है.

Friday, 9 July 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण अमावस्या(द्वितीय)

व्रज - आषाढ़ कृष्ण अमावस्या(द्वितीय)
Saturday, 10 July 2021

गुलाबी धोती पटका के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : सारंग)

भलेई मेरे आये हो पिय 
भलेई मेरे आये हो पिय ठीक दुपहरी की बिरियाँ l
शुभदिन शुभ नक्षत्र शुभ महूरत शुभपल छिन शुभ घरियाँ ll 1 ll
भयो है आनंद कंद मिट्यो विरह दुःख द्वंद चंदन घस अंगलेपन और पायन परियां l
'तानसेन' के प्रभु मया कीनी मों पर सुखी वेल करी हरियां ll 2 ll

साज - आज श्रीजी में गुलाबी रंग की (जाली) की NET  की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज प्रभु को गुलाबी रंग की मलमल धोती एवं राजशाही पटका धराया जाता हैं. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
 श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं एवं हमेल की भांति दो मालाजी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल के राग-रंग का एवं गोटी हक़ीक की आती हैं.

Thursday, 8 July 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण अमावस्या(प्रथम)

व्रज - आषाढ़ कृष्ण अमावस्या(प्रथम)
Friday, 09 July 2021

नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव

विशेष - आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव है. 
आपने अपने जीवनकाल में नाथद्वारा में श्रीजी के सुख हेतु एवं जनसुखार्थ गिरधर सागर आदि कई स्थानों का निर्माण करवाया. 

आपके समय में नाथद्वारा के ऊपर मराठाओं आदि के आक्रमण के कारण आपने घसियार में श्रीजी का नूतन मंदिर सिद्ध करवा कर विक्रम संवत १८५८ में श्रीजी, श्री नवनीतप्रियाजी एवं श्री विट्ठलनाथजी को पधराये. 
आप वहां अत्यधिक उल्लास व उत्साह से श्रीजी को सेवा, मनोरथ आदि करते थे. आपने घसियार में ही लीलाप्रवेश किया था.

आपके पुत्र श्री दामोदरजी ने श्रीजी को घसियार से विक्रम संवत १८६४ की फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को पुनः वर्तमान खर्चभंडार के स्थान पर पाट पर पधराये.

सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 

झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.

आज के उत्सव नायक का जीवन अत्यंत सादगी पूर्ण होने से प्रभु को भी सादा वस्त्र, अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल का आड़बन्द एवं गोल-पाग के श्रृंगार ही धराये जाते हैं. 

गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. 
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी के मीठा में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं.

भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्या-आरती के ठोड़ के वारा में बूंदी के गोद के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन (राग : सारंग)

बधाई - श्री वल्लभ नन्दन रूप अनूप

ठीक दुपहरीकी तपनमें भलेई आये मेरे गेह l
भवन बिराजे बिंजना ढुराऊँ श्रम झलकत सब देह ll 1 ll
श्रमको निवारिये अरगजा धारिये जियतें टारिये और संदेह ll 2 ll
चतुर शिरोमनि याही तें कहियत ‘सूर’ सुफल करो नेह ll 3 ll

साज - आज श्रीजी में अधरंग (गहरे पतंगी) रंग के मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र - श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है.

श्रृंगार - प्रभु को आज छोटा (कमर तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
आभरण हीरा के व उत्सव के, श्रीमस्तक पर अधरंग रंग की गोल-पाग के ऊपर रुपहली लूम की किलंगी और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर कुल्हे की कंठी धरायी जाती है.
 पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सूवा वाले वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है

सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) के उत्सव की बधाई

Monday, 5 July 2021

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वादशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण द्वादशी
Tuesday, 06 July 2021

प्रीतम प्रीतही ते बस कीनो ।
ऊर-अंतर ते श्याम मनोहर नेक हु जान न दीनो ।।१।।
सहि नहीं सकति बिछुरनो पलभर भलो नेमु यह लीनो ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्रीविट्ठल भक्ति कृपा रस भीनो ।।२।।

श्वेत मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और गोल चंद्रिका के शृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को श्वेत मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग और गोल चंद्रिका का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन

कीर्तन – (राग : सारंग)

पनिया न जैहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकिके पटकी l
ठीक दुपहरीमें अटकी कुंजनमें कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll
कहारी करो कछु बस नहि मेरो नागर नटसों अटकी l
‘नंददास’ प्रभुकी छबि निरखत सुधि न रही पनघटकी ll 2 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत मलमल का आड़बंद धराया जाता है. आड़बंद रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होता है परन्तु किनारी बाहर आंशिक ही दृश्य होती है अर्थात भीतर की ओर मोड़ दी जाती है.

श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर श्वेत छज्जेदार पाग के  ऊपर सिरपैंच, गोल चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
श्रीकर्ण में एक जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
श्वेत पुष्पों एवं तुलसी की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सुवा वाले वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं. पट ऊष्णकाल का गोटी हक़ीक की छोटी आती है.

Sunday, 4 July 2021

व्रज – आषाढ़ कृष्ण एकादशी

व्रज – आषाढ़ कृष्ण एकादशी
Monday, 05 July 2021

केसरी मलमल का पिछोड़ा, पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और मोती का सेहरा के शृंगार

योगिनी एकादशी

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को केसरी मलमल का पिछोड़ा, पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला और मोती का सेहरा के शृंगार का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – (राग : सारंग)

आज बने गिरिधारी दुल्हे चंदनको तनलेप कीये l
सकल श्रृंगार बने मोतिन के विविध कुसुम की माल हिये ll 1 ll
खासाको कटि बन्यो है पिछोरा मोतिन सहरो सीस धरे l
रातै नैन बंक अनियारे चंचल अंजन मान हरे ll 2 ll
ठाडे कमल फिरावत गावत कुंडल श्रमकन बिंद परे l
‘सूरदास’ प्रभु मदन मोहन मिल राधासों रति केल करे ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में सेहरा का श्रृंगार धराये श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी एवं मंगलगान करती व्रजगोपियों के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल का पिछोड़ा एवं अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं यद्यपि पिछोड़ा में किनारी को भीतर की ओर इस प्रकार मोड़ दिया जाता है कि बाहर दृश्य ना हों. 

श्रृंगार – आज प्रभु को वनमाला का (चरणारविन्द तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. दायीं ओर सेहरे की मोती की चोटी धरायी जाती है. 
श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. 
कली आदि की माला श्रीकंठ में धरायी जाती है. श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी भी धरायी जाती हैं.
 श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, गंगा-जमनी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गोटी ऊष्णकाल के राग-रंग के आते हैं.

आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 

उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. 

Saturday, 3 July 2021

व्रज - आषाढ़ कृष्ण दशमी

व्रज - आषाढ़ कृष्ण दशमी 
Sunday, 04 July 2021

गुलाबी मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और मोती का क़तरा के शृंगार

उत्थापन दर्शन पश्चात मोगरे की कली के श्रृंगार

जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. 
ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं.

ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को गुलाबी मलमल की परधनी एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग और मोती का क़तरा के शृंगार का श्रृंगार धराया जायेगा.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारंग)

तनक प्याय दे पानी याहि मिस गए वाके घर l
समझ बूझ के जल भर लाई पीवन लागे ओक ढीली करि
तब ग्वालिन मंद मंद मुसिकानी ll 1 ll
वेही जल वैसे ही गयो ओर जल भर लाई
तब ग्वालिन बोली मधुर सी बानी l
‘चतुरबिहारी’ प्यारे प्यासे हो तो पीजिये
नातर सिधारो रावरे जु प्यास मैं जानी ll 2 ll

 साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी रंग की मलमल की गोल छोर वाली रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित परधनी धरायी जाती है.

शृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है. 
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, मोती का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. 
आज मोती का चोलड़ा धराया जाता हैं.
श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी छोटी हकीक की आती है.

आज शाम को मोगरे की कली के श्रृंगार धराये जायेंगे. इसमें प्रातः जैसे वस्त्र आभरण धराये जावें, संध्या-आरती में उसी प्रकार के मोगरे की कली से निर्मित अद्भुत वस्त्र और आभरण धराये जाते हैं. 

उत्थापन दर्शन पश्चात प्रभु को कली के श्रृंगार धराये जाते हैं और शृंगार धराते ही भोग के दर्शन खोल दिए जाते और कली के शृंगार की भोग सामग्री  संध्या-आरती में ली जाती हे.
संध्या-आरती के पश्चात ये सर्व श्रृंगार बड़े (हटा) कर शैया जी के पास पधराये जाते हैं. चार युथाधिपतियों के भाव से चार श्रृंगार – परधनी, आड़बंद, धोती एवं पिछोड़ा के धराये जाते हैं. 
कली के श्रृंगार व्रजललनाओं के भाव से किये जाते हैं और इसमें ऐसा भाव है कि वन में व्रजललनाएं प्रभु को प्रेम से कली के श्रृंगार धराती हैं और प्रभु ये श्रृंगार धारण कर नंदालय में पधारते हैं. 

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया

व्रज – माघ शुक्ल तृतीया  Saturday, 01 February 2025 इस वर्ष माघ शुक्ल पंचमी के क्षय के कारण कल माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन बसंत पंचमी का पर्व ह...