व्रज - आषाढ़ कृष्ण अमावस्या(प्रथम)
Friday, 09 July 2021
नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव
विशेष - आज नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री बड़े गिरधारीजी महाराज (१८२५) का उत्सव है.
आपने अपने जीवनकाल में नाथद्वारा में श्रीजी के सुख हेतु एवं जनसुखार्थ गिरधर सागर आदि कई स्थानों का निर्माण करवाया.
आपके समय में नाथद्वारा के ऊपर मराठाओं आदि के आक्रमण के कारण आपने घसियार में श्रीजी का नूतन मंदिर सिद्ध करवा कर विक्रम संवत १८५८ में श्रीजी, श्री नवनीतप्रियाजी एवं श्री विट्ठलनाथजी को पधराये.
आप वहां अत्यधिक उल्लास व उत्साह से श्रीजी को सेवा, मनोरथ आदि करते थे. आपने घसियार में ही लीलाप्रवेश किया था.
आपके पुत्र श्री दामोदरजी ने श्रीजी को घसियार से विक्रम संवत १८६४ की फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को पुनः वर्तमान खर्चभंडार के स्थान पर पाट पर पधराये.
सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
झारीजी में सभी समय यमुनाजल भरा जाता है. दो समय की आरती थाली में की जाती है.
आज के उत्सव नायक का जीवन अत्यंत सादगी पूर्ण होने से प्रभु को भी सादा वस्त्र, अधरंग (गहरे पतंगी) मलमल का आड़बन्द एवं गोल-पाग के श्रृंगार ही धराये जाते हैं.
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में आज श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी के मीठा में बूंदी प्रकार अरोगाये जाते हैं.
भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी का घी में तला सूखा मेवा आरोगाया जाता है.
संध्या-आरती के ठोड़ के वारा में बूंदी के गोद के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन (राग : सारंग)
बधाई - श्री वल्लभ नन्दन रूप अनूप
ठीक दुपहरीकी तपनमें भलेई आये मेरे गेह l
भवन बिराजे बिंजना ढुराऊँ श्रम झलकत सब देह ll 1 ll
श्रमको निवारिये अरगजा धारिये जियतें टारिये और संदेह ll 2 ll
चतुर शिरोमनि याही तें कहियत ‘सूर’ सुफल करो नेह ll 3 ll
साज - आज श्रीजी में अधरंग (गहरे पतंगी) रंग के मलमल की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र - श्रीजी को अधरंग (गहरे पतंगी) रंग की मलमल का बिना किनारी का आड़बंद धराया जाता है.
श्रृंगार - प्रभु को आज छोटा (कमर तक) उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
आभरण हीरा के व उत्सव के, श्रीमस्तक पर अधरंग रंग की गोल-पाग के ऊपर रुपहली लूम की किलंगी और बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में त्रवल के स्थान पर कुल्हे की कंठी धरायी जाती है.
पीले एवं श्वेत पुष्पों की दो मालाजी धरायी जाती हैं वहीँ श्वेत पुष्पों की दो मालाजी हमेल की भांति भी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, सूवा वाले वेणुजी तथा एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी बड़ी हकीक की आती है
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