व्रज - श्रावण शुक्ल चतुर्दशी
Saturday, 21 August 2021
प्रथम तिलकायत नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्री विट्ठलेशरायजी महाराज (१६५७) का उत्सव
विशेष – श्री गुसांईजी के प्रपौत्र अर्थात उनके प्रथम पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र दामोदरजी के पुत्र श्री विट्ठलेशरायजी (१६५७) (टिपारा वाले विट्ठलेशजी) का आज प्राकट्योत्सव है.
आपका धराया टिपारा का अद्भुत श्रृंगार श्रीजी को सुहाता था एवं आपश्री श्रीजी के प्रिय थे अतः आप को ‘टिपारा वाले विट्ठलेशजी’ भी कहा जाता है.
श्रीजी ने स्वयं आज्ञा कर गृह के मुखिया के रूप में तिलक कर आपको प्रथम तिलकायत के रूप में नियुक्त किया एवं उन्हें वर्ष के 360 दिनों में 60 दिवस के श्रृंगार करने की आज्ञा भी प्रदान की.
ये वे श्रृंगार हैं जो वर्ष में सभी बड़े उत्सवों पर धराये जाते हैं और ‘घर के श्रृंगार’ कहे जाते हैं और इन पर तिलकायत महाराज का विशेष अधिकार होता है.
आप ने ही श्रीजी को दूधघर की विविध प्रकार सामग्रियां अरोगाने का क्रम प्रारंभ किया.
तिलकायत के रूप में पदासीन होने के पश्चात आपने श्रीजी के कई मनोरथ किये, अपने चमत्कारों से तत्कालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर को भी प्रभावित किया एवं उनके पास से गोकुल एवं गोपालपुर (जतिपुरा) में जमीनें प्राप्त कर बड़ी-बड़ी गौशालाओं का निर्माण करवाया.
आपके काल से ही श्रीजी में तिलकायत परम्परा का प्रारंभ हुआ जो कि आज भी जारी है. आपके नित्यलीला में प्रवेश के पश्चात आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री लालगिरिधर जी तिलकायत के रूप में पदासीन हुए.
सेवाक्रम - नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी का उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज दिन भर सभी समय झारीजी मे यमुनाजल भरा जाता है.
आज श्रीजी को नियम का पिले रंग का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर कुल्हे के ऊपर सुनहरी घेरा का श्रृंगार धराया जाता है.
श्रावण शुक्ल एकादशी से श्रावण शुक्ल पूर्णिमा तक प्रतिदिन श्रृंगार समय मिश्री की गोल-डली का भोग अरोगाया जाता है.
गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं.
कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (रविवार, 22 अगस्त 2021) को रक्षाबंधन हैं. श्री गुसांईजी के ज्येष्ठ पुत्र गिरधरजी के द्वितीय पुत्र और आज के उत्सव नायक के पितृचरण गौस्वामी दामोदरजी का भी कल प्राकट्योत्सव है.
श्रीजी में पवित्रा की भांति ही रक्षा (राखी) भी शुभमुहूर्त से कभी प्रातः श्रृंगार दर्शन में और कभी उत्थापन दर्शन में धरायी जाती है.
इस वर्ष पूर्णिमा कल 22 अगस्त को सायंकाल 5.31 तक होने से रक्षा (राखी) उत्थापन दर्शन में धरायी जायेंगी.
सभी वैष्णव अपने सेव्य ठाकुरजी को उत्थापन के पश्चात और सायंकाल 5.31 से पहिले रक्षा (राखी) धरा सकते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
आंगन नंद के दधि कादौ ।
छिरकत गोपी ग्वाल परस्पर प्रकटे जगमें जादौ ।१।।
दूध लियो दधि लियो लियो घृत माखन माट संयुत ।
घर घरते सब गावत आवत भयो महरि के पुत्र ।।२।।
बाजत तूर करत कोलाहल वारि वारि दै दान ।
जीयो जशोदा पूत तिहारो यह घर सदा कल्यान ।।३।।
छिरके लोग रंगीले दीसे हरदी पीत सुवास ।
मेहा आनंद पुंज सुमंगल यह व्रज सदा हुलास ।।४।।
साज – श्रीजी में आज पिले रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है.
गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.
पीठिका व पिछवाई के ऊपर रेशम के रंग-बिरंगे पवित्रा धराये जाते हैं.
वस्त्र - श्रीजी को आज पिले रंग रंग का रूपहरी पठानी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार - श्रीजी को आज मध्य (घुटने तक) का श्रृंगार धराया जाता है. माणक एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व-आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पिले रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में माणक के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में कली की मालाजी धराई जाती हैं. हास,त्रवल नहीं धराए जाते हैं.बग्घी धरायी जाती हैं.पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी मालाजी एवं विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पवित्रा मालाजी के रूप में धराये जाते हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, माणक के वेणुजी एवं दो वेत्रजी(एक सोना का) धराये जाते हैं.
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