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Saturday, 28 August 2021

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी

व्रज - भाद्रपद कृष्ण सप्तमी 
Sunday, 29 August 2021

षष्ठी उत्सव

“षष्टी देवी नमस्तुभ्यं सूतिकागृह शालिनी l
पूजिता परमयाभक्त्या दीर्घमायु: प्रयच्छ मे ll”  

विशेष –आज तीन समां की आरती थाली में की जाती है. आज सभी समय झारीजी में यमुनाजल आता है.
 रक्षाबन्धन से नंदोत्सव तक पिछवाई, गादी, तकिया आदि सर्व साज पर आगे की सफेदी नहीं चढ़ाई जाती है, इस क्रम में आज तकिया के खोल जड़ाऊ स्वर्ण  काम के आते हैं.

आज ऊष्णकाल की सेवा का अंतिम दिन होने से गुलाबदानी एवं माटी का कुंजा अंतिम बार धरा जायेगा. 
कल से गुलाबदानी, कुंजा, चन्दन की बरनी, अंकुरित मूंग, चने की दाल, मूंग की दाल, शीतल आदि (जो अक्षय तृतीया से प्रभु को प्रतिदिन संध्या-आरती में अरोगाये जा रहे थे) नहीं आयेंगे.

आज श्रीजी में पिछवाई, पलंगपोश, सूजनी, खिलौने, चौपाट, आरसी आदि बदल के उत्सव का नया साज लिया जाता है. 
एक छाब में जन्माष्टमी के दिवस धराये जाने वाले नये वस्त्र, इत्र की शीशी, गुंजा माला, कुल्हे जोड़, श्रीफल, भेंट-न्यौछावर के सिक्के आदि तैयार कर के रखे जाते हैं.
प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के दिवस केसरी वस्त्र, गुंजा की माला एवं कुल्हे जोड़ नयी धरने की रीत है. 
जन्माष्टमी के दिवस पंचामृत के लिए दूध, दही, घी, शहद एवं बूरा आदि भी साज के रखना चाहिए. कुंकुम, अक्षत और हल्दी आदि भी तैयार रखने चाहिए.

सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है पर आज श्री यशोदाजी के भाव से भावित साज आता है. 

साज, पिछवाई, खण्डपाट, ठाड़े वस्त्र सभी पीले रंग के आते हैं. इसका यह भाव है कि माता यशोदाजी पीले वस्त्र धारण कर लाला को गोद में ले कर छठ्ठी पूजन करने विराजित है. 
इसी प्रकार प्रत्येक उत्सव के एक दिन पहले पन्ना एवं मोती के आभरण धराये जाते हैं परन्तु आज हीरे-मोती के आभरण धराये जाते हैं. इस प्रकार आज अनोखा-अद्भुत भावभावित श्रृंगार धराया जाता है.

भोग – आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में केशरिया घेवर अरोगाया जाता है. 

राजभोग दर्शन - 
कीर्तन – (राग : देवगंधार)

व्रज भयो महरिके पुत, जब यह बात सुनी, सुनि आनंदे सब लोग, गोकुल गणित गुनी l
व्रज पूरव पूरे पुन्य रुपी कुल, सुथिर थुनी, ग्रह लग्न नक्षत्र बलि सोधि, कीनी वेद ध्वनी ll 1 ll  
सुनि धाई सबे व्रजनारी, सहज सिंगार कियें, तन पहेरे नौतन चीर, काजर नैन दिये l
कसि कंचुकी तिलक लिलाट, शोभित हार हिये, कर कंकण कंचन थार, मंगल साज लिये ll 2 ll....अपूर्ण

कीर्तन – (राग : सारंग)

घरघर ग्वाल देत हे हेरी l
बाजत ताल मृदंग बांसुरी ढ़ोल दमामा भेरी ll 1 ll
लूटत झपटत खात मिठाई कहि न सकत कोऊ फेरी l
उनमद ग्वाल करत कोलाहल व्रजवनिता सब घेरी ll 2 ll
ध्वजा पताका तोरनमाला सबै सिंगारी सेरी l
जय जय कृष्ण कहत ‘परमानंद’ प्रकट्यो कंस को वैरी ll 3 ll 

साज - श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी में आज लाल रंग का डोरिया का रूपहरी किनारी का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के होते हैं.

श्रृंगार – श्रीजी को आज छेड़ान का  (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के कर्णफूल धराये जाते हैं. 
नीचे चार पान घाट की जुगावली एवं ऊपर मोतियों की माला धरायी जाती हैं.
त्रवल नहीं धरावें परन्तु हीरा की बघ्घी धरायी जाती है.
गुलाब के पुष्पों की एक मालाजी एवं दूसरी श्वेत पुष्पों की कमल के आकार की मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में कमलछड़ी, विट्ठलेशजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी (एक स्वर्ण का) धराये जाते हैं.
पट उत्सव का एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आती हैं.
 आरसी शृंगार में लाल मख़मल की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.

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