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Thursday, 2 September 2021

व्रज – भाद्रपद कृष्ण एकादशी

व्रज – भाद्रपद कृष्ण एकादशी
Friday, 03 September 2021

आज अजा एकादशी हैं. महापापी अजामिल के प्रसंग में प्रभु के जीव पर अनुग्रह को आत्मसात करे.

अजा एकादशी

विशेष – महापापी अजामिल जिसने अपने अंतिम समय में अपने स्वयं के पुत्र ‘नारायण’ के नामोच्चारण के निमित प्रभु का नाम उच्चारण किया था. प्रभु की दयालुता देखें कि केवल अंत समय में ‘नारायण’ के नाम के उच्चारण मात्र से उन्होंने आज के दिन अपने देवदूत भेज अजामिल पर अनुग्रह कर उसका उद्धार किया था. प्रभु ने यह अपना अनुग्रह प्रकट करने के लिए किया इसी लिए कहते हे की प्रभु कर्तुम अकर्तुम अन्यथाकर्तुम सर्वसमर्थ है।आज की एकादशी उसी अजामिल के नाम से अजा एकादशी कहलाती है.
ये अध्याय से यह सीख मिलती है कि  हम सब पुष्टि वैष्णवो को ठाकुरजी की सेवा और नाम किर्तन सतत अंतिम श्र्वास तक करना है , कितनी भी विषम परिस्थिति हमारे जीवन में क्यों न आए ? 
ठाकुरजी की सेवा और ठाकुरजी से स्नेह यही पुष्टि जीव का लक्ष्य होना चाहिए ।
मनुष्य चाहे जितना बड़ा पापी हो , चाहे जितना नि:साधन हो ; यदि सच्चे ह्रदय से एकबार भी प्रभु की शरण स्वीकार ले तो प्रभु उसको " स्वजन " मान लते हैं . इसीलिए महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी  ने "कृष्णाश्रयस्तोत्र" में कहा हैं :-

"पापसक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम" 

भावार्थ :- सुखी हो या दु:खी , पापी हो या निष्पाप , धनवान हो या निर्धन , साधन-सम्पन्न हो या नि:साधन ; सभी को श्रीकृष्ण की शरण में ही जाना चाहिए .
          सब देवें के देव , सर्वशक्तिमान , सर्वकारण ऐसे श्रीकृष्ण को छोड़ कर अन्य किसी की शरण में क्यों जाएँ ?
      इसीलिए पुष्टिमार्ग श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति का मार्ग 
दिखाता/सिखाता है . (अजामिल का सम्पूर्ण प्रसंग माहत्य सहित अन्य पोस्ट में)

विशेष – आज श्रीजी को गुलाबी धोती-पटका एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग एवं गोल चंद्रिका धराये जाते हैं. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : आशावरी)

तेरे लाल मेरो माखन खायो l
भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll
खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l
छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll
नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l
‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll

साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल पर रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी मलमल की धोती एवं पटका धराया जाता है. दोनों वस्त्र रूपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व-आभरण धराये जाते हैं. 
श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर लूम गोल चंद्रिका  एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. 
 श्वेत एवं पीले पुष्पों की चार मालाजी धरायी जाती हैं. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, फ़िरोज़ी मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.

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