व्रज – आश्विन शुक्ल नवमी
Thursday, 14 October 2021
नवम विलास कियौ जू लडैती, नवधा भक्त बुलाये ।
अपने अपने सिंगार सबै सज, बहु उपहार लिवाये ।। १ ।।
सब स्यामा जुर चलीं रंगभीनी, ज्यों करिणी घनघोरें ।
ज्यों सरिता जल कूल छांडिकें, उठत प्रवाह हिलोरें ।। २ ।।
बंसीवट संकेत सघन बन, कामकला दरसाये ।
मोहन मूरति वेणुमुकुट मणि, कुंडल तिमिर नसाये ।। ३ ।।
काछनी कटि तट पीत पिछौरी, पग नूपुर झनकार करें ।
कंकण वलय हार मणि मुक्ता, तीनग्राम स्वर भेद भरें ।। ४ ।।
सब सखियन अवलोक स्याम छबि, अपनौ सर्वसु वारें ।
कुंजद्वार बैठे पियप्यारी, अद्भुतरूप निहारें ।। ५ ।।
पूआ खोवा मिठाई मेवा, नवधा भोजन आनें ।
तहाँ सतकार कियौ पुरुषोत्तम, अपनों जन्मफल मानें ।। ६ ।।
भोग सराय अचबाय बीरा धर, निरांजन उतारे ।
जयजय शब्द होत तिहुँपुरमें, गुरुजन लाज निवारे ।। ७ ।।
सघनकुंज रसपुंज अलि गुंजत, कुसुमन सेज सँवारी ।
रतिरण सुभट जुरे पिय प्यारी, कामवेदना टारी ।। ८ ।।
नवरस रास बिलास हुलास, ब्रजयुवतिन मिल कीने ।
श्रीवल्लभ चरण कमल कृपातें, रसिक दास रस पीने ।। ९ ।।
विशेष – आज नवम विलास का लीला स्थल बंशीवट है. आज के मनोरथ की मुख्य सखी श्री लाडिलीजी ने नवधा भक्तों को बुलाया है सामग्री पूवा, खोवा, मिठाईमेवा आदि नवधा भाँती की होती है.
आज नवविलास का अंतिम दिन है और समाप्ति पर नवम विलास में श्री लाडिलीजी की सेवा बंशीवट विहार एवं प्रियाप्रियतम की रसलीला का वर्णन है.
यह सामग्री श्रीजी में नहीं अरोगायी जाती है परन्तु कई पुष्टिमार्गीय मंदिरों में सेव्य स्वरूपों को अरोगायी जाती है.
आगम के शृंगार के
सामान्य तौर पर प्रत्येक बड़े उत्सव के पूर्व लाल वस्त्र, पीले ठाड़े वस्त्र एवं पाग पर सादी चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है.
यह श्रृंगार प्रभु को अनुराग के भाव से धराया जाता है.
श्रीजी को आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में नवविलास के भाव से विशेष रूप से मोहनथाल अरोगायी जाती है.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग
कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll
मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान
जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 1 ll
प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन
अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll
वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल
कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में लाल रंग के छापा वाली सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी और हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग के छापा के सुनहरी एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली एवं खुलेबंद के चाकदार वागा धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – आज प्रभु को मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर लाल रंग की छापा की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल की एक जोड़ी धरायी जाती हैं.
आज चार माला पन्ना की धराई जाती हैं.
विविध पुष्पों की एक एवं दूसरी गुलाब के पुष्पों की सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट लाल व गोटी छोटी सोना की आती है.
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