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Sunday, 17 October 2021

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी

व्रज - आश्विन शुक्ल त्रयोदशी
Monday, 18 October 2021

विशेष – रासपंचाध्यायी के आधार पर श्रीजी को शरद पूर्णिमा रास महोत्सव के मुकुट के पांच अध्याय के वर्णित श्रृंगार धराये जाते हैं. 
आज रास का तृतीय मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा. 

आज महारास की सेवा का तृतीय अध्याय का मुकुट का श्रृंगार है जिसमें सलीदार ज़री की काछनी, रास के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. मुकुट धराया जाता है एवं श्री यमुनाजी के भाव से शयन में मंगला की भांति चूंदड़ी का उपरना धराया जाता है. 

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : सारांग)

करत हरि नृत्य नवरंग राधा संग,
लेत नवगति भेद, चरचरी तालके ।
परस्पर दरस रसमत्त भये तत्त थेई थेई,
गति लेत संगीत सुरसालके ॥ १ ॥
फरहरत बर्हिवर थरहरत उपहार,
भरहरत भ्रमर वर, विमल वनमालके ।
खसित सित कुसुम शिर, हँसत कुंतल मानों,
लसत कल झलमलत,स्वेद कण भालके ॥ २ ॥
अंग अंगन लटक मटक भृंगन भ्रोंह,
पटक पटताल कोमल चरण चालके ।
चमक चल कुंडलन दमक दशनावली,
विविध विद्युत भाव, लोचन विशालके ॥ ३ ॥
बजत अनुसार द्रिम द्रिम मृदंग निनाद,
झमक झंकार, कटि किंकिणि जालके ।
तरल ताटक तड़ित, नील नव जलद में,
यौं विराजत प्रिया, पास गोपालके ॥ ४ ॥
युवति जन यूथ अगणित, बदन चंद्रमा,
चंद्र भयौ मंद उद्योत तिहिं कालके ।
मुदित अनुराग वश, राग रागिणी,
तान गान गत गर्व, रंभादि सुर बालके ॥ ५ ॥
गगनचर सघन रास मगन बरषत फूल,
बार डारत रत्न जतन भर थालके ।
एक रसना गदाधर न वर्णत बनै,
चरित्र अद्भुत कुँवर गिरिधरन लालके ॥ ६ ॥

साज – श्रीजी में आज रासलीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज लाल ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं लाल मलमल का रास-पटका धराया जाता है. चोली श्याम सुतरु धरायी जाती है. ठाड़े वस्त्र श्वेत जामदानी  के धराये जाते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 कस्तूरी, कली एवं कमल माला धरायी जाती हैं हांस, त्रवल हीरा के आते हैं. 
श्रीमस्तक पर सुनहरी डांख के टोपी, मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
 श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. 
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चांदी के वेणुजी दो वैत्रजी धराये जाते हैं. पट सफ़ेद व गोटी मोर की आती है.
आरसी शृंगार में काँच के कलात्मक काम की बावा साहब वाली दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत मुकुट, टोपी व सभी वस्त्र, आभरण बड़े कर मंगला के दर्शन की भांति चोफुली चूंदड़ी का उपरना, हीरा मोती के छेड़ान के श्रृंगार एवं श्रीमस्तक पर गोल-पाग के ऊपर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं और शयन के दर्शन खुलते हैं. 
इस ऋतु में चूंदड़ी के वस्त्र आज अंतिम बार धराये जाते हैं.

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