व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया
Monday, 22 November 2021
(कीर्तन शृंगार दर्शन राग-: खट)
पाछली रात परछाही पातन की,लालजू रंगभीने डोलत, द्रुम द्रुमन तरन ।
बने देखत बने लगत अद्भुत मने,जात की सोत में निकस रही सब धरन ।।१।।
कृष्णके दरसकों अंगके परसकों,महा आरति मान चली मज्जन करन ।
नूपुर धून सुनत चक्रत व्हे थकी रही,परि गयो दृष्टि गोपाल साँवल वरन ।।२।।
जरकसी पाग पर मोरचन्द्रिका बनी,कमलदल भ्रू बंक छबि मन हरन ।
धाई सब गहनकों रसबचन कहन कों,भामिनी बनी अति छबि सुधारत चरन ।।३।।
रोम रोम रमी रह्यो, मेरो मन हरि लियो,नाहि विसरत वाकी झुकनमें भुज भरन ।
कहे भगवान हित रामराय प्रभुसों,मिलि लोक लाज भाजी गई प्राण परबस परन ।।४।।
इस कीर्तन में ‘भगवानराय’ प्रातः पूर्व की प्रभु की लीला बहुत सुंदर करते हुए कह रहे है कि अभी थोड़ा अँधेरा हैं, वृक्षों के पतों की परछाई पड़ रही है,ऐसे समय प्रभु वृक्ष के नीचे से पधार रहे हैं जिन्होंने सुंदर ज़रकसी पाग एवं मोर चन्द्रिका धारण की हुई है.
प्रभु को अपने मन में बसाये, उनका वरण करने की चाह लिए नूपुर की ध्वनि करते हुए यमुना स्नान करने जाती व्रजभक्त गोपियों की दृष्टि सांवरे गोपाल पर पड़ी और वे कमल नयन घनश्याम को पकड़ने के लिए दौड़ती हैं परन्तु राधिकाजी सबके साथ नहीं दौड़ी और अपने पैरो के नूपुर ठीक करने के बहाने पीछे ही रुक गयी. श्याम सुंदर वहाँ पधारे हैं ओर राधिकाजी को दोनों श्रीहस्त से गोद में उठा लिया.
सभी सखियों के सामने प्रीतम द्वारा इस प्रकार उठाये जाने से आल्हादित राधिकाजी की लोक-लाज जाती एवं प्राण परवश (प्रभु के वश में)हो गये.
इसी अद्भुत कीर्तन के आधार नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री दामोदरलालजी महाराज ने आज का श्रृंगार धराया एवं तब से यह सेवाक्रम परंपरागत रूप से प्रति वर्ष किया जाता है.
इस श्रृंगार को 'पाछली रात का श्रृंगार' कहा जाता है. इसी में प्रभु ने गोपिका वस्त्रहरण लीला की थी. पाछली रात के श्रृंगार में इसी गोपिका वस्त्रहरण लीला का भाव है.
पाछली रात को श्रृंगार
विशेष – आज श्रीजी को नियम का ‘पाछली रात का श्रृंगार’ धराया जाएगा.
इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं परंतु इन दिनों में अवश्य धराया जाता है. इस शृंगार में चीरा एवं मोजाजी सुनहरी धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर चन्द्रिका एवं पिछवाई नियम के धराये जाते हैं. घेरदार वागा एवं ठाड़े वस्त्र इच्छा अनुसार धराये जासकते हैं.
ये व्रतचर्या के दिन हैं. व्रतचर्या के दिनों में गोप-कुमारियाँ प्रातः अँधेरे यमुना स्नान करने जाती हैं. प्रभु भी उनके पीछे पधारते हैं इस भावना के एक कीर्तन के आधार पर आज प्रातः श्रृंगार के दर्शन सामान्य दिनों की अपेक्षा कुछ जल्दी खोले जाते हैं.
इसी अद्भुत कीर्तन के आधार पर तत्कालीन परचारक महाराज श्री दामोदरलालजी की प्रार्थना पर तत्कालीन तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री ने आज का श्रृंगार अंगीकार कराया और तब से यह सेवाक्रम परंपरागत रूप से प्रतिवर्ष किया जाता है.
आज सभी दर्शनों में इसी भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.
कई वर्ष पूर्व आज के दिन श्रीजी के राजभोग लगभग सात बजे के पूर्व हो चुकते थे परन्तु अब प्रभु वैभव वृद्धि के कारण राजभोग तक का सेवाक्रम नियमित दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होता है.
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञानुसार राजभोग अन्य दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होते हैं जिससे बाहर से आने वाले वैष्णव प्रभु दर्शनों से वंचित न रहें.
कीर्तन – मंगला दर्शन (राग : रामकली)
देहो व्रजनाथ हमारी आंगी l
नातर रंगबिरंग होयगो केई बेरिया हम मांगी ll १ ll
व्रजके लोग कहा कहेंगे देख परस्पर नागी l
खरे चतुर हरि हो अंतरगत रैन परी कब जागी ll २ ll
सकल सूत कंचन के लागे बीच रत्नन की धागी l
परमानंद प्रभु दीजिये न काहे प्रेम सुरंग रंग पागी ll ३ ll
राजभोग दर्शन –
साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base) पर केले के पत्तों, गायों, मयूर तथा पुष्प-लताओं के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम की पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया श्याम रंग का होता है जिसमें पुष्प-लताओं का सुन्दर ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज गुलाबी साटन का सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र गहरे हरे रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
पन्ना की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में फ़ीरोज़ा के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट गुलाबी एवं गोटी चाँदी की आती हैं.
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