By Vaishnav, For Vaishnav

Tuesday, 15 February 2022

व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा

व्रज – माघ शुक्ल पूर्णिमा 
Wednesday, 16 February 2022

चटकीली चोली पहेरें बीच बीच चोवा लपटानो ।
परम प्रिय लागत प्यारीको अपने प्रीतम को बानो ।।१।।
देखत शोभा अंगअंगकी मनसिज मन हिल जानो ।
सुधरराय प्रभु प्यारीकी छबि निरखत मोह्यो गोवर्धनरानो ।।२।।

होली डांडा रोपण (रोपणी को उत्सव)

विशेष – बसंत पंचमी से आज माघ शुक्ल पूर्णिमा तक के दिन बसंत के खेल के कहे जाते हैं. 
इन दस दिनों में प्रिया-प्रीतम को युगल स्वरुप के रूप में पधराकर शांत भाव से सूक्ष्म खेल किया जाता है. प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन का आनंद विशेष प्रकार से लिया जाता है जो कि बसंत के कीर्तनों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. 
श्यामसुंदर को मूर्तिमंत बसंत स्वरुप जान के भक्तजन इसका वर्णन कर प्रभु को रिझाते हैं. 

“देखो प्यारी कुंजविहारी मूरतिमंत वसंत l
मोर तरुन तरुलता तन में मनसिज रस वरसंत ll”

आज माघ शुक्ल पूर्णिमा को होली डांडा रोपण के पश्चात से दस दिन धमार खेल के होंगे. तत्पश्चात फाल्गुन कृष्ण एकादशी से आगामी दस दिन फाग के और फाल्गुन शुक्ल षष्ठी से अंतिम दस दिन होली के खेल होते हैं. 

इस प्रकार 40 दिनों की होली खेल की सेवा चार (बसंत, धमार, फाग एवं होली) रीतियों से की जाती हैं. होली खेल की लीला का स्वरुप ऐसा है कि जैसे-जैसे दिन व्यतीत होते जाते हैं, वैसे-वैसे होली के खेल में वृद्धि होती जाती है. 
बसंत का खेल नन्दभवन में, धमार का खेल पोल (पोरी) में, तीसरा फाग का खेल गली में और चौथा होली का खेल गाँव के बाहर के चौक में खेला जाता है.

श्रीजी में आज रोपणी का उत्सव है अर्थात आज होली डांडा रोपण किया जाता है. 
व्रज में प्राचीन परम्परानुसार होली-डांडा रोपण होली के एक मास पूर्व आज पूर्णिमा के दिन गाँव के चौक अथवा गाँव के बाहर किया जाता है. 
यमुना पुलिन, गिरिराज जी, वृन्दावन, कुंज-निकुंजों आदि में डांडा रोपण किया जाता है. 

इसके पीछे यह भावना है कि व्रजभक्तों को सुख-दान हेतु प्रभु रसक्रीड़ा करते हैं तब एक मास तक निर्विध्न सब खेल हों इसके लिए ब्राह्मण स्वस्तिवाचन, मंत्रोच्चार एवं वेद-ध्वनि कर डांडा रोपण करते हैं. 
डांडा के ऊपर लाल रंग की ध्वजा फहरायी जाती है जो कि हार-जीत की प्रतीक है अर्थात योगी प्रभु श्रीकृष्ण को अपने वश में करने आये कामदेव की चुनौती प्रभु ने स्वीकार कर ली है. 
नंदरायजी, वृषभानजी, बड़े गोप, यशोदाजी, गोपी-ग्वाल, गोपाल, बलदेव आदि सभी दंडवत प्रणाम कर धमार का प्रारंभ करते हैं.

आज शाम 6.26 सूर्यास्त पश्चात नाथद्वारा नगर में स्थित होली-मगरा पर होली-डांडा रोपण किया जायेगा. 

इस वर्ष मुहुर्तानुसार होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (17 मार्च 2022) सुबह को 6.28 सूर्योदय के पूर्व होगा.

आज श्रीजी के मुख्य पंड्याजी, खर्च-भंडारी, घी-घरिया, श्रीनाथ गार्ड्स, श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के कीर्तनिया आदि कीर्तन गाते हुए सूर्यास्त के पश्चात श्रीजी मंदिर से होली-मगरा जाकर मंत्रोच्चार और कीर्तन की मधुर ध्वनि के बीच पूजन कर व भोग धरकर होरी-डांडा रोपण करते हैं. 
कल से प्रतिदिन डांडा के चारों ओर कांटे की ढेरियाँ डाल कर होली तैयार की जाएगी. नाथद्वारा नगर में सबसे ऊँची और बड़ी होली श्रीजी की ही होती है.

आज से प्रतिदिन राजभोग दर्शन में प्रभु के मुखारविंद (कपोल) पर गुलाल लगायी जाती है.

आज से श्रीजी में गुलाल की फेंट (पोटली) भरी जाती है, पुष्प की छड़ी एवं गुलाल पिचकारी धरी जाती है, गुलाल-अबीर का खेल भारी होता जाता है, होली की गालियाँ भी गायीं जाती है और झांझ, मृदंग, ढप बांसुरी आदि वाध्य बजाये जाते हैं. 

आज का उत्सव श्री यमुनाजी की सेवा के दस दिन की पूर्णता का उत्सव है. फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा से दस दिन धमार के दिन कहे जाते हैं और ये श्री चन्द्रावलीजी की सेवा के दिवस हैं. 

श्रीजी में बसंत पंचमी से केवल वसंत राग के पद गाये जाते हैं जबकि होली-डांडा रोपण के पश्चात धमार का प्रारंभ हो जायेगा अर्थात आज से अन्य राग के पद भी गाये जा सकेंगे. धमार एक विशिष्ट ताल होती है और आज से दस दिनों तक इस ताल के पद भी गाये जायेंगे. आज से डोलोत्सव तक मान के पद नहीं गाये जाते हैं.

आज से एक मास तक श्रीजी को कुल्हे का श्रृंगार नहीं धराया जाता क्योंकि कुल्हे का श्रृंगार बाल-भाव का श्रृंगार माना जाता है और होली-खेल की लीला किशोर-भावना की है अतः सेहरा, मुकुट, टिपारा आदि के श्रृंगार धराये जाते हैं. घेरदार वागा अधिक धराये जाते हैं और श्रीमस्तक पर मोरचन्द्रिका के बदले कतरा, मोरशिखा, गोल-चंद्रिका, चमक की चंद्रिका आदि धराये जाते हैं.

सेवाक्रम - श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. 
सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है और आरती दो समां में थाली में की जाती है. राजभोग में 6 बीड़ा की शिकोरी(स्वर्ण का जालीदार पात्र) आवे.

मंगला दर्शन पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है. 
आज प्रभु को नियम के श्वेत घेरदार वस्त्रों के ऊपर चोवा की चोली धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर श्वेत रंग की पाग के ऊपर मोरपंख का दोहरा कतरा धराया जाता है.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में सिकोरी (मूंग की दाल, इलायची व मावे के मीठे मसाले से भरी तवापूड़ी जैसी सामग्री) व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है. 

राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है एवं सखड़ी में केसरी पेठा एवं मीठी सेव आरोगाये जाते हैं.
भोग में फीका की जगह चालनी अरोगायी जाती हैं.

राजभोग दर्शन – 

कीर्तन – (राग : वसंत)

लालन संग खेलन फाग चली l
चोवा चन्दन अगर कुंकुमा छिरकत गोख गली ll 1 ll
ऋतु वसंत आगम नव नागरी जोबन भार भरी l
देखत चली लाल गिरिधरको नंदजुके द्वार खरी ll 2 ll
रातीपीरी चोली पहेरें नौतन झुमक सारी l
मुखहि तंबोल नेनमें काजर देत भामती गारी ll 3 ll
बाजत ताल मृदंग बांसुरी गावत गीत सुहाये l
नवल गुपाल नवल व्रजवनिता निकसि चोहटे आये ll 4 ll
देखो आई कृष्णजुकीलीला विहरत गोकुल माहीं l
कहत न बने दास ‘परमानंद’ यह सुख अनतजु नाहीं ll 5 ll

साज - आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रेशम का सूथन, चोवा की श्याम चोली एवं सफ़ेद घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सफ़ेद मोठड़ा का कटि-पटका ऊर्ध्वभुजा की ओर धराया जाता है. मेघश्याम रंग के मोजाजी एवं लाल रंग के ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
 श्रीमस्तक पर श्वेत स्याम खिड़की की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी फ़ोन्दना का दोहरा मोरपंख का कतरा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं.
आज चार माला तायत वाली धरायी जाती हैं. आज त्रवल नहीं धराया जाता हैं कंठी धरायी जाती हैं.
 लाल एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.
 श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, स्वर्ण के बटदार वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.
 पट चीड़ का एवं गोटी चाँदी की आती हैं.
आरसी बड़ी डाँडी की दिखाई जाती हैं.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

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